🔴 गौरा ग्राम में एक देवतादीन नामक ब्राह्मण रहते थे। वे बचपन में तो बहुत ही दरिद्र घर में उत्पन्न हुए थे। पर जब बड़े हुए तो लेन-देन के व्यापार में रुपये वाले हो गये। जिस गरीब भाई को एक रुपया भी कर्ज में दे आते, तो उसका बीसों वर्ष तक पीछा नहीं छोड़ते। उस रुपये का सूद बढ़ा कर उसको गड़बड़ी में डाल देते और बदले में बेगार करवाते, हल जोतवाते, उनके बच्चों से पशु चरवाते इसी प्रकार आस पास के गाँवों में प्रायः करके दीन-दरिद्र लोगों को ही अपना ऋणी बनाते, जिससे कि उनके साथ वंचकता करने में कुछ भी कठिनाई नहीं पड़ती थी। इस व्यवसाय के द्वारा बहुतों का तो घर छीन लिया, अनेकों की डिगरी करा कर माल व बगिया ले लिये, बहुतों के खेतपात लेकर निहत्था कर दिया। इसी प्रकार कुछ वैभव बढ़ जाने पर गाँव के मुखिया बन बैठे। अब इनके यहाँ पुलिस और रियासत के हाकिमों की सगे रिश्तेदारों की सी सेवा-सुश्रूषा होने लगा। इससे इनका शासन दीन-दुखियों पर और भी अधिक बढ़ गया। जिसको चाहते उस को निरपराध ही पकड़वा कर मनमाना अत्याचार करते।
🔵 परमात्मा अनीति को अधिक नहीं बढ़ने देता। पूर्व सुकर्मों का फल समाप्त होते ही करनी आगे आने लगी। तीन साल तक लगातार प्रति वर्ष अग्नि-काण्ड होते रहे, जिससे बहुत सम्पत्ति स्वाहा हुई। अठारह वर्ष का विवाहित लड़का चिरस्थायी राजरोग का शिकार बना, जिस पर बहुत धन व्यय हुआ। दूसरा लड़का 12 वर्ष का था, उसकी झूला पर से गिरने के कारण जीभ कट गई। देवतादीन को आम वात ने घेरा, एक वर्ष तक चारपाई सेवन करके काल के गाल में चले गये। कुछ ही दिन बाद बड़ा लड़का जो राजरोग से पीड़ित था, मर गया। तत्पश्चात् छोटा लड़का भी संप्रहणी रोग से पीड़ित होकर पंचत्वगामी हो गया।
🔴 सम्प्रति उनके घर की यह हालत है कि जिन चौपालों में बैठ कर वे मित्रों के साथ माँ बाप मदिरा का पान करते थे वेश्याएं नचाते थे उन की दीवारें गिरी हुई पड़ी हैं। जिस द्वार पर नौबत बजती थी, वहाँ पर अब कुत्तों के चबाने से बचे हुए हाड़ दृष्टिगोचर हो रहे हैं। घर की औरतें फटे पुराने कपड़े पहन कर मजदूरी का काम करने जाती है।
🔵 ऐसी घटनायें ढूँढ़ने पर हर जगह मिल सकती हैं, पर वैभव के मद में अंधे हुए मनुष्य उस ओर से आंखें बन्द कर के अन्याय का मार्ग ही पकड़े रहते हैं और अपने स्वार्थ के लिए दूसरों के गले पर छुरी चलाते रहते हैं। यदि यह लोग अनीति से होने वाले हानिकर परिणामों पर सोचें, तो निस्सन्देह उन्हें अपना हाथ रोकना पड़ेगा।
🔵 परमात्मा अनीति को अधिक नहीं बढ़ने देता। पूर्व सुकर्मों का फल समाप्त होते ही करनी आगे आने लगी। तीन साल तक लगातार प्रति वर्ष अग्नि-काण्ड होते रहे, जिससे बहुत सम्पत्ति स्वाहा हुई। अठारह वर्ष का विवाहित लड़का चिरस्थायी राजरोग का शिकार बना, जिस पर बहुत धन व्यय हुआ। दूसरा लड़का 12 वर्ष का था, उसकी झूला पर से गिरने के कारण जीभ कट गई। देवतादीन को आम वात ने घेरा, एक वर्ष तक चारपाई सेवन करके काल के गाल में चले गये। कुछ ही दिन बाद बड़ा लड़का जो राजरोग से पीड़ित था, मर गया। तत्पश्चात् छोटा लड़का भी संप्रहणी रोग से पीड़ित होकर पंचत्वगामी हो गया।
🔴 सम्प्रति उनके घर की यह हालत है कि जिन चौपालों में बैठ कर वे मित्रों के साथ माँ बाप मदिरा का पान करते थे वेश्याएं नचाते थे उन की दीवारें गिरी हुई पड़ी हैं। जिस द्वार पर नौबत बजती थी, वहाँ पर अब कुत्तों के चबाने से बचे हुए हाड़ दृष्टिगोचर हो रहे हैं। घर की औरतें फटे पुराने कपड़े पहन कर मजदूरी का काम करने जाती है।
🔵 ऐसी घटनायें ढूँढ़ने पर हर जगह मिल सकती हैं, पर वैभव के मद में अंधे हुए मनुष्य उस ओर से आंखें बन्द कर के अन्याय का मार्ग ही पकड़े रहते हैं और अपने स्वार्थ के लिए दूसरों के गले पर छुरी चलाते रहते हैं। यदि यह लोग अनीति से होने वाले हानिकर परिणामों पर सोचें, तो निस्सन्देह उन्हें अपना हाथ रोकना पड़ेगा।