हँसना एक दैवी गुण है। हँसाना एक उत्कृष्ट स्तर का उपकार है। मुस्कराता हुआ चेहरा भले ही काला-कुरूप क्यों न हो, सदा अति सुंदर लगेगा। प्रसन्नता एक आदत है, जो कुछ समय के निरन्तर अभ्यास से अपने अंदर उत्पन्न की जा सकती है। अपनी सुविधाओं को देखें और प्रसन्न रहें। शुभ और प्रिय देखें। उज्ज्वल भविष्य की कल्पना करें, सद्भावना और सत्प्रवृत्तियों का चिंतन करें । यदि हम हँसता और हँसाता जीवन जी सकें, तो समझना चाहिए कि हमने सच्चे कलाकार जैसी मंगलमयी सफलता एवं उल्लास भरी उपलब्धि प्राप्त कर ली।
योग का उद्देश्य मानसिक परिष्कार है। उसमें संग्रहीत कुसंस्कारों का शमन करना पड़ता है। स्वभाव का अंग बनी हुई दुष्प्रवृत्तियों के उन्मूलन में जुटना होता है। भौतिक लिप्साओं की ललक शान्त करनी पड़ती है। चिंतन को उत्कृष्टता में रस लेने के लिए सहमत किया जाता है। आत्मा और परमात्मा के बीच की खाई पाटनी होती है। यह सारे कार्य अंतःपरिशोधन और आत्म परिष्कार से संबंधित हैं। इसलिए योग साधना वस्तुतः मन को साधने की ही विद्या है।
बुराई को लेकर सक्रिय रहने वाले व्यक्ति के भी सुधरने की आशा की जा सकती है, किन्तु आदर्शों, सिद्धान्तों को बघारने वाले, उपदेश देने वाले अकर्मण्य-आलसी लोगों के सुधरने की कोई गुंजाइश नहीं।
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
योग का उद्देश्य मानसिक परिष्कार है। उसमें संग्रहीत कुसंस्कारों का शमन करना पड़ता है। स्वभाव का अंग बनी हुई दुष्प्रवृत्तियों के उन्मूलन में जुटना होता है। भौतिक लिप्साओं की ललक शान्त करनी पड़ती है। चिंतन को उत्कृष्टता में रस लेने के लिए सहमत किया जाता है। आत्मा और परमात्मा के बीच की खाई पाटनी होती है। यह सारे कार्य अंतःपरिशोधन और आत्म परिष्कार से संबंधित हैं। इसलिए योग साधना वस्तुतः मन को साधने की ही विद्या है।
बुराई को लेकर सक्रिय रहने वाले व्यक्ति के भी सुधरने की आशा की जा सकती है, किन्तु आदर्शों, सिद्धान्तों को बघारने वाले, उपदेश देने वाले अकर्मण्य-आलसी लोगों के सुधरने की कोई गुंजाइश नहीं।
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य