रविवार, 26 नवंबर 2023

👉 आत्मचिंतन के क्षण Aatmchintan Ke Kshan 26 Nov 2023

🔶 अपने मन की चिन्तायें हटाइये, जीवन की जटिलताओं में प्रवेश पाने की कामना का परित्याग कर दीजिए, आप निश्चय ही अपनी सुन्दरता प्राप्त कर सकेंगे। सुखद विचारों की भाव-तरंगें, सादगी के उपकरण मिलकर सौंदर्य का निर्माण करते हैं। प्रेम और कर्त्तव्य-भावना से सुन्दरता का विकास होता है। मन को सद्गुणों से आरोपित करने में ही मनुष्य का सच्चा सौंदर्य सन्निहित है। इस सुन्दरता पर दुर्भावनाओं, ईर्ष्या, छिद्रान्वेषण की मलिनता न पड़ने दीजिए। इस कुरूपता से सदैव दूर ही रखने का प्रयत्न करते रहिये। प्रसन्नता और आशापूर्ण सुखद विचारों को जितना अधिक अपने मस्तिष्क में स्थान देंगे उतना ही आपके शरीर और मन में तेजस्विता बनी रहेगी, यही सौंदर्य का गुण है।

🔷 विपत्तियाँ केवल कमजोर, कायर, डरपोक और निठल्ले व्यक्तियों को ही डराती, चमकाती और पराजित करती हैं और उन लोगों के वश में रहती हैं जो उनसे जूझने के लिए कमर कसकर तैयार रहते हैं। ऐसे व्यक्ति भली-भाँति जानते हैं कि जीवन यह फूलों की सेज नहीं वरन् रणभूमि है, जहाँ हमें प्रतिक्षण दुर्भावनाओं, दुष्प्रवृत्तियों और आपत्ति से निडर होकर जूझना है। वे इस संघर्ष में सूझबूझ से काम लेते हुए अपना जीवन-क्रम तदनुसार ढाँचे में ढालने का प्रयास करते रहते हैं और हमेशा इस बात का स्मरण रखते हैं कि किसी भी तात्कालिक पराजय को पराजय न माना जाय बल्कि हर हार से उचित शिक्षा ग्रहण कर नये मोर्चे पर युद्ध जारी रखा जाय और अन्तिम विजयश्री का वरण किया जाय।

🔶 मानव! तुम्हें संसार में इसलिए भेजा गया है कि अणु-अणु में छिपे भगवान को पहचानो, उसका साक्षात्कार करो और दूसरों को कराओ। इसके लिए तुम्हें परमात्मा के असंख्य रूपों का ज्ञान करा दिया गया है। उसका मार्ग बतला दिया गया है। उसके साधन दे दिए गये हैं। किन्तु क्या तुमने कभी स्वप्न में भी उसे खोजने की जिज्ञासा की है? क्या उपलब्ध साधनों को अपने परम उद्देश्य की ओर लगाया है? यदि नहीं—तो यह एक प्रकार से कृतघ्नता ही तो रही।

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

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👉 पवित्र जीवन

मानव जीवन में व्यवहृत जितने अनुष्ठान (नियम, व्रत) सत्य, पूर्ण पवित्रता स्थापित कर सकते हैं, उनमें सबसे सरल, मीठा अनुष्ठान “ईश्वर पर विश्वास कर लेना है।” मनुष्य को यदि अपने चरित्र को ऊँचा उठाना है तो ईश्वरी नियमों को साथ-साथ आत्मिक बल बढ़ाकर स्वाध्याय, संतोष और तप को भी अपना एक मात्र लक्ष्य रखना है, इसी लक्ष्य के सहारे हम अपने अन्तिम लक्ष्य और ईश्वर के आत्मस्वरूप गुणों को प्राप्त करने की क्षमता उत्पन्न कर सकेंगे।

जैसे-जैसे हमारा स्वाध्याय बढ़ेगा, हमारी आत्मा संतोष व्रतधारी बनेगी और जब संतोष का पूर्ण रूपेण समावेश हो चुकेगा तो हमारा तप पवित्र मानव का स्वरूप लोकोपकारी वृत्तियों को जीवन देकर हमें हमारे एक मात्र लक्ष्य की पूर्ति में सहायक होगा। बस यही रूप मानव जाति का विश्व शान्तिदायक पवित्र जीवन है।

📖 अखण्ड-ज्योति अक्टूबर 1943 पृष्ठ 6


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👉 प्रेरणादायक प्रसंग 30 Sep 2024

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