सोमवार, 4 नवंबर 2019
👉 अहंकार मरता है...शरीर जलता है
ऐसा कहते हैं कि नानक देव जी जब आठ वर्ष के थे तब पहली बार अपने घर से अकेले निकल पड़े, सब घर वाले और पूरा गाँव चिंतित हो गया तब शाम को किसी ने नानक के पिता श्री कालू मेहता को खबर दी कि नानक तो श्मशान घाट में शांत बैठा है। सब दौड़े और वाकई एक चिता के कुछ दूर नानक बैठे हैं और एक अद्भुत शांत मुस्कान के साथ चिता को देख रहे थे, माॅ ने तुरंत रोते हुए गले लगा लिया और पिता ने नाराजगी जताई और पूछा यहां क्यों आऐ। नानक ने कहा पिता जी कल खेत से आते हुए जब मार्ग बदल कर हम यहां से जा रहे थे और मैंने देखा कि एक आदमी चार आदमीयो के कंधे पर लेटा है और वो चारो रो रहे हैं तो मेरे आपसे पूछने पर कि ये कौन सी जगह हैं, तो पिताजी आपने कहा था कि ये वो जगह है बेटा जहां एक न एक दिन सबको आना ही पड़ेगा और बाकी के लोग रोएगें ही।
बस तभी से मैनें सोचा कि जब एक दिन आना ही हैं तो आज ही चले और वैसे भी अच्छा नही हैं लगता अपने काम के लिए अपने चार लोगो को रूलाना भी और कष्ट भी दो उनके कंधो को, तो बस यही सोच कर आ गया।
तब कालू मेहता रोते हुए बोले नानक पर यहां तो मरने के बाद आते हैं इस पर जो आठ वर्षीय नानक बोले वो कदापि कोई आठ जन्मो के बाद भी बोल दे तो भी समझो जल्दी बोला
"नानक ने कहा पिता जी ये ही बात तो मैं सुबह से अब तक मे जान पाया हूं कि लोग मरने के बाद यहां लाए जा रहे हैं, अगर कोई पूरे चैतन्य से यहां अपने आप आ जाऐ तो वो फिर कभी मरेगा ही नही सिर्फ शरीर बदलेगा क्योंकि मरता तो अंहकार है और जो यहां आकर अपने अंहकार कि चिता जलाता है वो फिर कभी मरता ही नही मात्र मोक्ष प्राप्त कर लेता है।।
इसीलिए उन्होंने अमर वचन कहे जप जी सहाब अर्थात "एक ओंकार सतनाम "
बस तभी से मैनें सोचा कि जब एक दिन आना ही हैं तो आज ही चले और वैसे भी अच्छा नही हैं लगता अपने काम के लिए अपने चार लोगो को रूलाना भी और कष्ट भी दो उनके कंधो को, तो बस यही सोच कर आ गया।
तब कालू मेहता रोते हुए बोले नानक पर यहां तो मरने के बाद आते हैं इस पर जो आठ वर्षीय नानक बोले वो कदापि कोई आठ जन्मो के बाद भी बोल दे तो भी समझो जल्दी बोला
"नानक ने कहा पिता जी ये ही बात तो मैं सुबह से अब तक मे जान पाया हूं कि लोग मरने के बाद यहां लाए जा रहे हैं, अगर कोई पूरे चैतन्य से यहां अपने आप आ जाऐ तो वो फिर कभी मरेगा ही नही सिर्फ शरीर बदलेगा क्योंकि मरता तो अंहकार है और जो यहां आकर अपने अंहकार कि चिता जलाता है वो फिर कभी मरता ही नही मात्र मोक्ष प्राप्त कर लेता है।।
इसीलिए उन्होंने अमर वचन कहे जप जी सहाब अर्थात "एक ओंकार सतनाम "
👉 जो कुछ चाहें, वह सब पायें
आध्यात्मिक मान्यताओं के अनुसार सभी प्राणियों में एक ही चेतना का अस्तित्व विद्यमान है। शरीर की दृष्टि से वे भले ही अलग-अलग हों, पर वस्तुतः आत्मिक दृष्टि से सभी एक हैं। इस संदर्भ में परामनोविज्ञान की मान्यता है विश्व-मानस एक अथाह और असीम जल राशि की तरह है। व्यक्तिगत चेतना उसी विचार महासागर (यूनीवर्सल माइण्ड) की एक नगण्य -सी तरंग है, इसी के माध्यम से व्यक्ति अनेक विविध चेतनाएँ उपलब्ध करता है और अपनी विशेषताएँ सम्मिलित करके फिर उसे वापस उसी समुद्र को समर्पित कर देता है।
इच्छा शक्ति द्वारा वस्तुओं को प्रभावित करना अब एक स्वतंत्र विज्ञान बन गया है, जिसे ‘साइकोकिनस्रिस’ कहते हैं। इस विज्ञान पक्ष का प्रतिपादन है कि ठोस दिखने वाले पदार्थों के भीतर भी विद्युत् अणुओं की तीव्रगामी हलचलें जारी रहती है। इन अणुओं के अंतर्गत जो चेतना तत्त्व विद्यमान है, उन्हें मनोबल की शक्ति-तरंगों द्वारा प्रभावित, नियंत्रित और परिवर्तित किया जा सकता है। इस प्रकार मौलिक जगत पर मनःशक्ति के नियंत्रण को एक तथ्य माना जा सकता है।
भारत ही नहीं, अपितु अन्य देशों में भी अभ्यास द्वारा इच्छाशक्ति बढ़ाने और उसे प्रखर बना लेने के रूप में ऐसी कई विचित्रताएँ देखने को मिल जाती हैं, जो इस बात का प्रतीक है कि मनुष्य कुछ विशेष परिस्थतियों में ही शान्त, सन्तुलित, सुखी और संतुष्ट भले ही रहता हो, परन्तु इच्छाशक्ति को बढ़ाया जाय तथा अभ्यास किया जाय, तो वह अपने को चाहे जिस रूप में बदल सकता है। इच्छा और संकल्पशक्ति के आधार पर असंभव लगने वाले दुष्कर कार्य भी किए जा सकते हैं।
कुछ वर्ष पूर्व मैक्सिको (अमेरिका) में डॉ. राल्फ एलेक्जेंडर ने इच्छाशक्ति की प्रचण्ड क्षमता का सार्वजनिक प्रदर्शन किया। प्रदर्शन यह था कि आकाश में छाये बादलों को किसी भी स्थान से किसी भी दिशा में हटाया जा सकता है और उसे कैसी भी शक्ल दी जा सकती है। इतना ही नहीं, बादलों को बुलाया और भगाया जा सकता है। एक प्रसिद्ध वैज्ञानिक ऐलेन एप्रागेट ने साइकोलॉजी पत्रिका में उपरोक्त प्रदर्शन पर टिप्पणी करते हुए बताया कि मनुष्य की इच्छा शक्ति अपने ढंग की एक सामर्थ्यवान विद्युत् धारा है और उसके आधार पर प्रकृति की हलचलों को प्रभावित कर सकना पूर्णतया संभव है। अमेरिका के ही ओरीलिया शहर में डॉ. एलेग्जेंडर ने एक शोध संस्थान खोल रखा है, जहाँ वस्तुओं पर मनः शक्ति के प्रभावों का वैज्ञानिक अध्ययन विधिवत् किया जा रहा है। तद्नुसार एक व्यक्ति के विचार दूरवर्ती दूसरे व्यक्ति तक भी पहुँच सकते हैं और वस्तुओं को ही नहीं, व्यक्तियों को भी प्रभावित कर सकते हैं। यह तथ्य अब असंदिग्ध हो चला है। अनायास घटने वाली घटनाएँ ही इसकी साक्षी नहीं है, वरन् प्रयोग करके यह भी संभव बनाया जा सकता है कि यदि इच्छा शक्ति आवश्यक परिमाण में विद्यमान हो या दो व्यक्तियों के बीच पर्याप्त घनिष्ठता हो तो विचारों के वायरलैस द्वारा एक दूसरे से सम्पर्क संबंध स्थापित किया जा सकता है और अपने मन की बात कही-सुनी जा सकती है।
अभी तक ऐसी अनेक घटनाएँ घटी है और ऐसे कई प्रामाणिक तथ्य मिले हैं, जिसके आधार पर यह प्रतिपादित किया गया है कि मनुष्य अपनी बढ़ी हुई इच्छाशक्ति को और बढ़ाकर इस संसार के सिरजनहार की तरह समर्थ और शक्तिमान बन सकता है, क्योंकि अलग-अलग एकाकी इकाई दिखाई पड़ने पर भी वह है तो उसी का अंश।
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
इच्छा शक्ति द्वारा वस्तुओं को प्रभावित करना अब एक स्वतंत्र विज्ञान बन गया है, जिसे ‘साइकोकिनस्रिस’ कहते हैं। इस विज्ञान पक्ष का प्रतिपादन है कि ठोस दिखने वाले पदार्थों के भीतर भी विद्युत् अणुओं की तीव्रगामी हलचलें जारी रहती है। इन अणुओं के अंतर्गत जो चेतना तत्त्व विद्यमान है, उन्हें मनोबल की शक्ति-तरंगों द्वारा प्रभावित, नियंत्रित और परिवर्तित किया जा सकता है। इस प्रकार मौलिक जगत पर मनःशक्ति के नियंत्रण को एक तथ्य माना जा सकता है।
भारत ही नहीं, अपितु अन्य देशों में भी अभ्यास द्वारा इच्छाशक्ति बढ़ाने और उसे प्रखर बना लेने के रूप में ऐसी कई विचित्रताएँ देखने को मिल जाती हैं, जो इस बात का प्रतीक है कि मनुष्य कुछ विशेष परिस्थतियों में ही शान्त, सन्तुलित, सुखी और संतुष्ट भले ही रहता हो, परन्तु इच्छाशक्ति को बढ़ाया जाय तथा अभ्यास किया जाय, तो वह अपने को चाहे जिस रूप में बदल सकता है। इच्छा और संकल्पशक्ति के आधार पर असंभव लगने वाले दुष्कर कार्य भी किए जा सकते हैं।
कुछ वर्ष पूर्व मैक्सिको (अमेरिका) में डॉ. राल्फ एलेक्जेंडर ने इच्छाशक्ति की प्रचण्ड क्षमता का सार्वजनिक प्रदर्शन किया। प्रदर्शन यह था कि आकाश में छाये बादलों को किसी भी स्थान से किसी भी दिशा में हटाया जा सकता है और उसे कैसी भी शक्ल दी जा सकती है। इतना ही नहीं, बादलों को बुलाया और भगाया जा सकता है। एक प्रसिद्ध वैज्ञानिक ऐलेन एप्रागेट ने साइकोलॉजी पत्रिका में उपरोक्त प्रदर्शन पर टिप्पणी करते हुए बताया कि मनुष्य की इच्छा शक्ति अपने ढंग की एक सामर्थ्यवान विद्युत् धारा है और उसके आधार पर प्रकृति की हलचलों को प्रभावित कर सकना पूर्णतया संभव है। अमेरिका के ही ओरीलिया शहर में डॉ. एलेग्जेंडर ने एक शोध संस्थान खोल रखा है, जहाँ वस्तुओं पर मनः शक्ति के प्रभावों का वैज्ञानिक अध्ययन विधिवत् किया जा रहा है। तद्नुसार एक व्यक्ति के विचार दूरवर्ती दूसरे व्यक्ति तक भी पहुँच सकते हैं और वस्तुओं को ही नहीं, व्यक्तियों को भी प्रभावित कर सकते हैं। यह तथ्य अब असंदिग्ध हो चला है। अनायास घटने वाली घटनाएँ ही इसकी साक्षी नहीं है, वरन् प्रयोग करके यह भी संभव बनाया जा सकता है कि यदि इच्छा शक्ति आवश्यक परिमाण में विद्यमान हो या दो व्यक्तियों के बीच पर्याप्त घनिष्ठता हो तो विचारों के वायरलैस द्वारा एक दूसरे से सम्पर्क संबंध स्थापित किया जा सकता है और अपने मन की बात कही-सुनी जा सकती है।
अभी तक ऐसी अनेक घटनाएँ घटी है और ऐसे कई प्रामाणिक तथ्य मिले हैं, जिसके आधार पर यह प्रतिपादित किया गया है कि मनुष्य अपनी बढ़ी हुई इच्छाशक्ति को और बढ़ाकर इस संसार के सिरजनहार की तरह समर्थ और शक्तिमान बन सकता है, क्योंकि अलग-अलग एकाकी इकाई दिखाई पड़ने पर भी वह है तो उसी का अंश।
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
👉 आध्यात्मिक तेज का प्रज्वलित पुंज होता है चिकित्सक (भाग ८८)
👉 पंचशीलों को अपनाएँ, आध्यात्मिक चिकित्सा की ओर कदम बढ़ाएँ
३. मालिक नहीं माली बनें- मालकियत होने के बोझ के नीचे इन्सान दबता- पिसता रहता है। इस मालिकी की झूठी शान को छोड़कर माली बनने से जिन्दगी हल्की- फुल्की हो जाती है। सन्तोष व शान्ति से समय कटता है। वैसे भी मालिक तो सिर्फ एक ही है- भगवान। उस ‘सबका मालिक एक’ को झुठलाकर स्वयं मालिक होने के आडम्बर में, झूठी अकड़ में केवल मनोरोग पनपते हैं। जीवन का सत्य निर्झर सूख जाता है। आध्यात्मिक चिकित्सा के विशेषज्ञों का मानना है कि यह संसार ईश्वर का है। मालिकी भी उसी की है। हमें नियत कर्म के लिए माली की तरह नियुक्त किया गया है। उपलब्ध शरीर का, परिवार का, वैभव का वास्तविक स्वामी परमेश्वर है। हम तो बस उसकी सुरक्षा व सुव्यवस्था भर के लिए उत्तरदायी हैं। ऐसा सोचने से अपने आप ही जी हल्का रहेगा, और अनावश्यक मानसिक विक्षिप्तताओं और विषादों की आग में न जलना पड़ेगा।
हम न भूतकाल की शिकायतें करें, और न भविष्य के लिए आतुर हों। वरन् वर्तमान का पूरी जागरूकता एवं तत्परता के साथ सदुपयोग करें। न हानि में सिर पटकें न लाभ में खुशी से पागल बनें। विवेकवान, धैर्यवान, भावप्रवण भक्त की भूमिका निभाएँ। जो बोझ कन्धे पर है, उसे जिम्मेदारी के साथ निबाहें और प्रसन्न रहें। हां, अपने कर्तव्य को पूरा करने व उसके लिए मर मिटने में अपनी तरफ से कोई कसर न छोड़ें।
.... क्रमशः जारी
✍🏻 डॉ. प्रणव पण्ड्या
📖 आध्यात्मिक चिकित्सा एक समग्र उपचार पद्धति पृष्ठ १२२
३. मालिक नहीं माली बनें- मालकियत होने के बोझ के नीचे इन्सान दबता- पिसता रहता है। इस मालिकी की झूठी शान को छोड़कर माली बनने से जिन्दगी हल्की- फुल्की हो जाती है। सन्तोष व शान्ति से समय कटता है। वैसे भी मालिक तो सिर्फ एक ही है- भगवान। उस ‘सबका मालिक एक’ को झुठलाकर स्वयं मालिक होने के आडम्बर में, झूठी अकड़ में केवल मनोरोग पनपते हैं। जीवन का सत्य निर्झर सूख जाता है। आध्यात्मिक चिकित्सा के विशेषज्ञों का मानना है कि यह संसार ईश्वर का है। मालिकी भी उसी की है। हमें नियत कर्म के लिए माली की तरह नियुक्त किया गया है। उपलब्ध शरीर का, परिवार का, वैभव का वास्तविक स्वामी परमेश्वर है। हम तो बस उसकी सुरक्षा व सुव्यवस्था भर के लिए उत्तरदायी हैं। ऐसा सोचने से अपने आप ही जी हल्का रहेगा, और अनावश्यक मानसिक विक्षिप्तताओं और विषादों की आग में न जलना पड़ेगा।
हम न भूतकाल की शिकायतें करें, और न भविष्य के लिए आतुर हों। वरन् वर्तमान का पूरी जागरूकता एवं तत्परता के साथ सदुपयोग करें। न हानि में सिर पटकें न लाभ में खुशी से पागल बनें। विवेकवान, धैर्यवान, भावप्रवण भक्त की भूमिका निभाएँ। जो बोझ कन्धे पर है, उसे जिम्मेदारी के साथ निबाहें और प्रसन्न रहें। हां, अपने कर्तव्य को पूरा करने व उसके लिए मर मिटने में अपनी तरफ से कोई कसर न छोड़ें।
.... क्रमशः जारी
✍🏻 डॉ. प्रणव पण्ड्या
📖 आध्यात्मिक चिकित्सा एक समग्र उपचार पद्धति पृष्ठ १२२
👉 आत्मचिंतन के क्षण 4 Nov 2019
★ दम के समान कोई धर्म नहीं सुना गया है। दम क्या है? क्षमा, संयम, कर्म करने में उद्यत रहना, कोमल स्वभाव, लज्जा, बलवान, चरित्र, प्रसन्न चित्त रहना, सन्तोष, मीठे वचन बोलना, किसी को दुख न देना, ईर्ष्या न करना, यह सब दम में सम्मिलित है।
◆ त्याग के बिना कुछ प्राप्त नहीं होता। त्याग के बिना परम आदर्श की सिद्धि नहीं होती। त्याग के बिना मनुष्य भय से मुक्त नहीं हो सकता। त्याग की सहायता से मनुष्य को हर प्रकार का सुख प्राप्त हो जाता है।
□ लोग अनेक प्रकार के मोह में जकडे़ हुए हैं। उनकी दशा ऐसी है, जैसी रेत के पुल की जो नदी के वेग के साथ नष्ट हो जाता है। जिस प्रकार तिल कोल्हू में पेरे जाते हैं, उसी प्रकार वे मनुष्य पेरे जाते हैं जो संसार के मोह में फँस जाता है और निकल नहीं सकता। वैसे ही दशा उस मनुष्य की है जो मोह में फँसा हुआ है।
■ श्रेष्ठ व्यक्ति अपने जीवन को केवल जीने के लिए ही नहीं, अपितु महत्वपूर्ण कार्यों के लिए उपयोग करते है और समय आने पर प्राण देकर भी अपने उद्दिष्ट कार्य को पूर्ण करते है। मनुष्य का विद्याध्ययन की अपेक्षा सरल व्यवहार से ही अधिक ज्ञान प्राप्त हो सकता है पर वह सत्संगति द्वारा ही प्राप्त होता है।
◇ यदि केवल बालू की ही दिवार बनाई जाय तो-प्रथम तो दीवार बनेगी ही नहीं और आदि बन गई तो शीघ्र गिर जायेगी, यदि उस बालू में सीमेंट छठा अंश भी मिला दिया जाये तो वही दीवार पत्थर की बन जाती है, इसी प्रकार माया के सब कार्य भी बालू की भाँति है । यदि इनसें परमार्थ रूपी कुछ सीमेन्ट मिल जायेगा तो वही बालू की दीवार सुदृढ़ बन जाएगी।
✍🏻 पं. श्रीराम शर्मा आचार्य
◆ त्याग के बिना कुछ प्राप्त नहीं होता। त्याग के बिना परम आदर्श की सिद्धि नहीं होती। त्याग के बिना मनुष्य भय से मुक्त नहीं हो सकता। त्याग की सहायता से मनुष्य को हर प्रकार का सुख प्राप्त हो जाता है।
□ लोग अनेक प्रकार के मोह में जकडे़ हुए हैं। उनकी दशा ऐसी है, जैसी रेत के पुल की जो नदी के वेग के साथ नष्ट हो जाता है। जिस प्रकार तिल कोल्हू में पेरे जाते हैं, उसी प्रकार वे मनुष्य पेरे जाते हैं जो संसार के मोह में फँस जाता है और निकल नहीं सकता। वैसे ही दशा उस मनुष्य की है जो मोह में फँसा हुआ है।
■ श्रेष्ठ व्यक्ति अपने जीवन को केवल जीने के लिए ही नहीं, अपितु महत्वपूर्ण कार्यों के लिए उपयोग करते है और समय आने पर प्राण देकर भी अपने उद्दिष्ट कार्य को पूर्ण करते है। मनुष्य का विद्याध्ययन की अपेक्षा सरल व्यवहार से ही अधिक ज्ञान प्राप्त हो सकता है पर वह सत्संगति द्वारा ही प्राप्त होता है।
◇ यदि केवल बालू की ही दिवार बनाई जाय तो-प्रथम तो दीवार बनेगी ही नहीं और आदि बन गई तो शीघ्र गिर जायेगी, यदि उस बालू में सीमेंट छठा अंश भी मिला दिया जाये तो वही दीवार पत्थर की बन जाती है, इसी प्रकार माया के सब कार्य भी बालू की भाँति है । यदि इनसें परमार्थ रूपी कुछ सीमेन्ट मिल जायेगा तो वही बालू की दीवार सुदृढ़ बन जाएगी।
✍🏻 पं. श्रीराम शर्मा आचार्य
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👉 जीवन की सफलता
जीवन ऊर्जा का महासागर है। काल के किनारे पर अगणित अन्तहीन ऊर्जा की लहरें टकराती रहती हैं। इनकी न कोई शुरुआत है, और न कोई अन्त; बस मध्य है...

