शुक्रवार, 21 जुलाई 2017

👉 पिछले 10 सालों से सड़कों के गड्ढों की मरम्मत कर रहें है यह साइंटिस्ट

🔵 मॉनसून के सीजन में शायद ही कोई सड़क गड्ढों से मुक्त रहती है। इस वजह से कई लोग दुर्घटना का शिकार हो जाते हैं। कुछ लोग निगम में शिकायत करते तो हैं, लेकिन ज्यादातर समय कोई कार्रवाही नहीं होती है। हममें से भी ज्यादातर इससे आगे कुछ और नहीं करते हैं, लेकिन एक साइंटिस्ट पिछले 10 वर्षों से चुपचाप गड्ढों की मरम्मत करने में लगे हुए हैं। राज सिंह नामक इस वैज्ञानिक ने एक जिम्मेदार नागरिक होने का उदाहरण तय किया है।

🔴 केंद्र सरकार के साथ काम करने वाले राज सिंह दिल्ली के रहने वाले हैं। वह अहमदाबाद में प्लाज़्मा रिसर्च सेंटर में कार्यरत हैं। उनका मानना है कि सड़कों पर गड्ढे ड्राइवरों के लिए जानलेवा साबित हो सकती है। इनकी मरम्मत से दुर्घटना की संभावना को कम किया जा सकता है। राज की कार का बैक सीट प्लास्टिक बैगों से भरा हुआ है, जिसमें मरम्मत के सामान रखे होते हैं। जहां कहीं भी उन्हें सड़कों पर गड्ढे दिखते हैं, वह फौरन गाड़ी रोक कर सड़कों की मरम्मत में लग जाते हैं।

🔵 राज सुबह के 6 से 8 बजे के बीच ही गड्ढों की मरम्मत करने का काम करते हैं, जब सड़कों पर ट्रैफिक कम होता है। कभी-कभी उन्हें काम करता देख लोग भी मदद करने आते हैं। उनका मानना है कि अगर हर एक नागरिक पूरी जिम्मेदारी के साथ यह काम करे तो बेस्ट ऐंड क्लीन सिटी का खिताब हासिल करने से कोई नहीं रोक सकता है। राज इसके साथ ही पेड़ लगाने और उनकी देखभाल करने में भी ऐक्टिव रहते हैं।

🔴 साइंटिस्ट राज ने बताया, 'देश के प्रधानमंत्री स्वच्छता अभियान चला रहे हैं। यह मेरी तरफ से छोटा सा योगदान है। बारिश की वजह से सड़कों पर कई सारे गड्ढे बन जाते हैं। निगम इन सभी गड्ढों को नहीं भर सकता है। ऐसे में एक जिम्मेदार नागरिक होने के नाते मैं गड्ढों की मरम्मत करता हूं, जिससे ट्रैफिक की समस्या होने के साथ ही ऐक्सिडेंट भी रुकते हैं।'

👉 हमारा युग निर्माण सत्संकल्प (भाग 33)

🌹  समझदारी, ईमानदारी, जिम्मेदारी और बहादुरी को जीवन का एक अविच्छिन्न अंग मानेंगे।

🔴 जिन्हें मानव जन्म के साथ जुड़ी हुई जिम्मेदारियाँ निबाहनी हों, उनके लिए करने को तो बहुत कुछ पड़ा है, पर वह सब बन तभी पड़ेगा जब निजी जीवन में संतोष और सत्प्रवृत्ति संवर्धन जैसे लोकमंगल के कार्यों के लिए समुचित उत्साह अंतःकरण में उमंगता हो। जिम्मेदारियाँ निबाहने का, सुसंस्कारिता के लक्ष्य तक पहुँचने वाला यही राजमार्ग है।

🔵 सुसंस्कारिता का चौथा चरण है- बहादुरी दैनिक जीवन में अनेकानेक उलझनें आती रहती हैं। उन सबसे निपटने के लिए आवश्यक साहस होना आवश्यक है, अन्यथा हड़बड़ी में समाधान का कोई सही उपाय तक नहीं सूझ पड़ेगा। आगे बढ़ने और ऊँचा उठने की प्रतिस्पर्द्धाओं में सम्मिलित होना पड़ता है। गुण, कर्म, स्वभाव की गहराई तक घुसे, जन्म जन्मान्तरों के कुसंस्कारों से भी, निरंतर वह महाभारत लड़ने का कृत्य करना पड़ता है, जिसमें गीताकार ने अर्जुन को प्रशंसा एवं भर्त्सना की नीति अपनाते हुए प्रवृत्त होने के लिए उद्धत किया है। अपने को निखारने, उबारने और उछालने के लिए अदम्य साहस का सहारा लिए बिना कोई मार्ग नहीं। समाज में अवांछनीय तत्त्वों की, अंधविश्वासों, कुप्रचलनों और अनाचारों की कमी नहीं है।
 
🔴 उनके साथ समझौता संभव नहीं, जो चल रहा है, उसे चलने देना सहन नहीं हो सकता। उसके विरुद्ध असहयोग, विरोध की नीति अपनाए बिना और कोई चारा नहीं। इसके लिए सज्जन प्रकृति के लोगों को संगठित भी तो करना होता है। यह सभी बहादुरी के चिह्न है, इन्हें भी सुसंस्कारिता का महत्त्वपूर्ण अंग माना गया है।

🔵 सभ्यता के सर्वतोमुखी क्षेत्र को प्रकाशित करने के लिए जागरूकता, पराक्रम, प्रयत्न अपनाए जाने की आवश्यकता है, वहीं सुसंस्कारिता को भी बढ़ाने और अपनाने के लिए, भरपूर प्रयत्न करते रहने की भी अनिवार्य आवश्यकता है।

🌹 क्रमशः जारी
🌹 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
http://literature.awgp.org/book/ikkeesaveen_sadee_ka_sanvidhan/v1.45

👉 भगवान शिव और उनका तत्त्वदर्शन (भाग 5)

🔵 भगवान शंकर मरघट में निवास करते हैं। मरघट में क्यों रहते हैं? इसका मतलब कि हमें जिंदगी के साथ मौत को भी याद रखना पड़ेगा। सब चीजें याद हैं, पर मौत को हम भूल गए। अपना फायदा, नुकसान, जवानी, खाना-पीना सब कुछ याद है, पर मौत जरा भी याद नहीं है? मौत की बात भी अगर याद रही होती तो हमारे काम करने और सोचने के तरीके कुछ अलग तरह के रहे होते। वे ऐसे न होते जैसे कि इस समय आपके हैं। अगर यह ख्याल बना रहे कि आज हम जिंदा हैं, पर कल हमें मरना ही पड़ेगा; आज मरे हैं, पर कल जिंदा रहना ही पड़ेगा तो यह स्मृति सदा बनी रहती कि हमको क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए?

🔴 हमारे लिए मरघट और घर दोनों एक ही होने चाहिए। समझना चाहिए कि आज का घर कल मरघट होने वाला है और आज का मरघट कल घर होने वाला है। आज की जिंदगी कल मौत में बदलने वाली है तो कल की मौत नई जिंदगी में बदलने वाली है। मौत और जिंदगी रात और दिन के तरीके से खेल है, फिर मरने के लिए डरने से क्या फायदा? यह नसीहतें हैं जो शंकर भगवान मरघट में रहकर के हमको सिखाते हैं।

🔵 भगवान शंकर न जाने क्या-क्या सिखाते हैं? उनके शरीर को देखा जाए तो मालूम पड़ेगा कि उस पर भस्म लगी हुई है और गले में मुण्डों की माला पड़ी है। अगर सही ढंग से जीवन जीना आता होता तो हमने शंकर जी की भस्म का महत्त्व समझा होता। पूजा करने के बाद हम हवन करते और उसकी भस्म मस्तक पर लगाते हैं। इसका अर्थ है ‘भस्मांतक œ शरीरम्’—यह शरीर खाक होने वाला है। यह शरीर मिट्टी और धूल है, जो हवा में उड़ने वाला है। जिस शरीर पर हम लोगों को अहंकार और घमंड है, वह कल लोगों के पैरों तले कुचलने वाला है और हवा के धुर्रे की तरीके से आसमान में उड़ने वाला है। शंकर भगवान की यह फिलॉसफी अगर हमने सीखी होती तो मजा आ जाता।

🌹 क्रमशः जारी
🌹 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

👉 मैं नारी हूँ (अन्तिम भाग)

🔴 मैं खड्गधारिणी काली हूँ, पाखण्डों का वध करने के लिए। मैं दश प्रहरणधारिणी दुर्गा हूँ, संसार में नारी शक्ति को जगाने के लिए। मैं लक्ष्मी हूँ - संसार को सुशोभन बनाने के लिए। मैं सरस्वती हूँ - जगत में विद्या वितरण के लिए। मैं धरणी हूँ - सहिष्णुता के गुण से। आकाश हूँ - सबकी आश्रयदायिनी होने से। वायु हूँ - सबकी जीवनदायिनी होने से और जल हूँ सबको रससिक्त करने वाली - दूसरों को अपना बनाने वाली होने से। मैं ज्योति हूँ - प्रकाश के कारण और मैं माटी हूँ - क्योंकि मैं माँ हूँ।

🔵 मेरे धर्म के विषय में मतभेद मतान्तर नहीं है। मेरा धर्म है नारीत्व, मातृत्व। मुझ में जातिभेद जनित कोई चिन्ह नहीं है। सम्पूर्ण नारी जाति मेरी जाति है।

🔴 मैं सबसे अधिक छोटा बनना जानती हूँ परन्तु मैं बड़ी स्वाभिमानी हूँ। मेरे भय से त्रिभुवन काँपता है। मैं जो चाहती हूँ, वही पाती हूँ, तो भी मेरा मान जगत प्रसिद्ध है।

🔵 पुरुष कामुक है इसलिए वह अपने ही समान मानकर मुझको कामिनी कहता है। पुरुष दुर्बल है, सहज ही विभक्त हो जाता है, इसी से मुझे दारा कहता है। मैं सभी सहती हूँ, क्योंकि मैं सहना जानती हूँ। मैं मनुष्य को गोद में खिलाकर मनुष्य बनाती हूँ। उसके शरीर की धूलि से अपना शरीर मैला करती हूँ, इसलिए कि मैं यह सब सह सकती हूँ।

🔴 रामायण और महाभारत में मेरी ही कथाएं हैं। इनमें मेरा ही गान हुआ है। यही कारण है जगत को और जगत के लोगों को जीवन विद्या का शिक्षण देने में इनके समान अन्य कोई भी ग्रन्थ समर्थ नहीं हुआ। मैं दूसरी भाषा सीखती हूँ, परन्तु बोलती हूँ अपनी ही भाषा और मेरी सन्तान इसलिए उसे गौरव के साथ मातृभाषा कहती है।

🔵 मुझको क्या पहचान लिया है ? नहीं पहचाना, तो फिर पहचान लो। मैं नारी हूँ, इक्कीसवीं सदी में अपना प्रभुत्व लेकर आ रही हूँ।

🌹 समाप्त
🌹 अखण्ड ज्योति- सितम्बर 1996 पृष्ठ 8
http://literature.awgp.org/akhandjyoti/1996/September/v1.8

👉 Lose Not Your Heart Day 21

🌹  The Importance of Hard Work and Desire

🔵 The desire to achieve something is an immensely powerful force. It can drive a person to work a hundred times harder than his normal capacity. You might be surprised at what I have achieved; from writing so much literature to bringing this revolution and creating so many ashrams how did all of this happen? This is the result of hard work and a desire to achieve.

🔴 If i had not applied myself to hard work, I might have remained the type of person for whom it is difficult even to make his own living. I would have accumulated money for my own petty entertainment by whatever means possible, but i would never have been able to accomplish such a Himalayan task.d you will retain your mental equilibrium.

🌹 ~Pt. Shriram Sharma Acharya

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