शांतिकुंज अब स्थापना के, स्वर्ण जयंती मना रहा है।
धर्मतंत्र का स्वर्ण गान यह, सारे जग को सुना रहा है।।
गुरुवर ने निज कर कमलों से, शांतिकुंज निर्माण किया।
विश्वामित्र की तपस्थली में, ऋषियों का आह्वान किया।।
महा पुरश्चरणों से माँ ने, तपः क्षेत्र विकसाया था ।
प्राणों का प्रत्यावर्तन करके, आश्रम दिव्य बनाया था।।
बीजारोपण वर्ष इकहतर, से तरु बन लहलहा रहा है ।
शांतिकुंज अब स्थापना के, स्वर्ण जयंती मना रहा है।।1
कल्प और चान्द्रायण से ही, साधकों को बल दिया है।
साधना से सिद्धि पा, हर समस्या का हल दिया है ।।
देव कन्याओं के तप ने, वातावरण बनाया था।
युग शक्ति ही नारी शक्ति है, माताजी ने तपाया था।।
सिद्धियों की दिव्य प्रभा अब,अम्बर तक झिलमिला रहा है।
शांतिकुंज अब स्थापना के, स्वर्ण जयंती मना रहा है।।2
वानप्रस्थ से ज्ञान क्रांति का,सतत अभियान चलाया था।
महिला जाग्रति शंख बजाकर, ब्रह्मवादिनी बनाया था।।
वैज्ञानिक अध्यात्मवाद को, ब्रह्मवर्चस निर्मित किया।
धर्म के शाश्वत स्वरुप को, जनहित में प्रस्तुत किया।।
शक्तिपीठ हैं शक्तिकेंद्र अब, दीप्त हो जगमगा रहा है ।
शांतिकुंज अब स्थापना के, स्वर्ण जयंती मना रहा है।।3
सूक्ष्मीकरण साध गुरुवर ने, वीरभद्र उत्पन्न किये ।
पांच शरीर से एक साथ में, असंभव सम्पन्न किये।।
गुरुवर के हीरक जयंती पर,यज्ञ अभियान चलाया था।
राष्ट्रीय एकता यज्ञों से, भारत को श्रेष्ट बनाया था।।
मत्स्यावतार अपनी काया को, हरपल हरक्षण बढ़ा रहा है।
शांतिकुंज अब स्थापना के, स्वर्ण जयंती मना रहा है।।4
महाप्रयाण कर स्थूल देह को, पंचतत्व में लीन किया ।
सबकी आँखों से ओझल हो, गुरुवर ने ग़मगीन किया।।
ब्रह्म्वेदी यज्ञों से गुरु ने, सोया राष्ट्र जगाया है।
सूक्ष्म रूप में गुरु चेतना, शांतिकुंज में समाया है।।
शांतिकुंज का कोना कोना, गुरु-गान गुनगुना रहा है।
शांतिकुंज अब स्थापना के, स्वर्ण जयंती मना रहा है।।5
श्रद्धांजलि देकर शिष्यों ने, अपना फर्ज निभाया है ।
देश धर्म संस्कृति रक्षा को, माटी ले शपथ उठाया है।।
अश्वमेधों का दौर चल पड़ा, धर्म तंत्र मजबूत हुआ।
दिग्दिगंत तक धर्म ध्वजा ले, क्रांति का अग्रदूत गया ।।
देव संस्कृति का परचम अब, अपने जलवे दिखा रहा है।
शांतिकुंज अब स्थापना के, स्वर्ण जयंती मना रहा है।।6
माताजी के महा प्रयाण से, पुत्रों ने दुःख पाया था ।
स्नेह सलिला जीजी ने हम, सबको गले लगाया था।।
गुरु अभियानों को श्रधेय ने, गति देकर आश्वस्त किया।
जन मानस के अंध तमस को, प्रखर-ज्ञान से ध्वस्त किया।।
अखंड ज्योति के दिव्य ज्ञान से, अज्ञानता को मिटा रहा है।
शांतिकुंज अब स्थापना के, स्वर्ण जयंती मना रहा है।।7
पूर्णाहुति कर महाकुम्भ सा, जन सैलाब जुटाया था।
धरती के कोने कोने तक, धर्म ध्वजा फहराया था।।
चेतना केन्द्रों की स्थापना, का संकल्प जगाया था।
गंगा को निर्मल करने का, जन अभियान चलाया था।।
प्रौढ़ शांतिकुंज स्वर्ण रश्मियों, से देखो जगमगा रहा है।
शांतिकुंज अब स्थापना के, स्वर्ण जयंती मना रहा है ।।8
कन्या कौशल शिविरों से, नारी सम्मान जगाया है।
‘दीया’ जलाकर युवा मनों में, नव विश्वास जगाया है।।
गाँव गाँव में नशा निवारण, का अभियान चलाया है।
स्वस्थ शरीर स्वच्छ मन सबका, सभ्य समाज बनाया है।।
पर्यावरण को शुद्ध कराने, वृक्षारोपण करा रहा है।
शांतिकुंज अब स्थापना के, स्वर्ण जयंती मना रहा है।।9
संस्कारों की परिपाटी को, फिर से जीवनदान मिला।
तीर्थ क्षेत्र में संस्कारों को पुनः उचित स्थान मिला।।
शिक्षा,स्वास्थ्य, साधना जैसे, क्रांति का आगाज हुआ।
सप्त क्रांतियों की धूम मची, अश्वमेधों का प्रयाज हुआ।।
नवल विश्व के नव समाज में, नवीन चेतना जगा रहा है।
शांतिकुंज अब स्थापना के, स्वर्ण जयंती मना रहा है।।10
भाषांतर कर शांतिकुंज से, साहित्य का विस्तार किया ।
हर भाषा में हर लोगों तक, गुरु का श्रेष्ठ विचार दिया ।।
उत्तर दक्षिण पूरब पश्चिम, युग निर्माण का नारा है।
अखिल विश्व में दिग्दिगंत तक शांतिकुंज अति प्यारा है।।
लक्ष एक से कोटि कोटि तक अपना परिकर बढ़ा रहा है।
शांतिकुंज अब स्थापना के, स्वर्ण जयंती मना रहा है ।11
विश्व विद्यालय गुरुवर के, सपनों का विद्यालय है।
देव संस्कृति जग में फैले, मानवता का आलय है।।
तकनीकों का प्रयोग हम, जन हित में ही करते है।
प्राचीन विद्या का प्रसार हम, तकनीकों से करते हैं।।
एकहतर की छोटी बगिया, कोटि-कोटि फूल खिला रहा है।
शांतिकुंज अब स्थापना के, स्वर्ण जयंती मना रहा है ।।12
संकट की घड़ियाँ है बीती, नया सूर्य अब चमक रहा है।
स्वर्णमयी आभा है इसकी, शांतिकुंज अब दमक रहा है ।।
स्वर्ण जयंती संग महाकुम्भ का, दिव्य संयोग सुहाना है।
धरती पर ही स्वर्ग सृजन में, जन-जन को लग जाना है।।
घर घर गंगा जल पहुचाकर, कुम्भ घरों में मना रहा है।
शांतिकुंज अब स्थापना के, स्वर्ण जयंती मना रहा है।।13
उमेश यादव