शुक्रवार, 28 जनवरी 2022

👉 समय जरा भी बर्बाद न कीजिए (अन्तिम भाग)

बिना पढ़े लोग रात-दिन चलने वाले कारखानों में काम खोज सकते हैं। किसी मशीनी कारखाने में जाकर श्रम कर सकते हैं। रात को दुकानों में होने वाले बहुत से कामों में श्रम कर सकते हैं। मजदूर वर्ग के लोग लकड़ी, सींक, कांस, सेंठा, नरकुल, बांस, घास, पटेरा, पतेल, वनस्पतियां, औषधियां, जड़ी-बूटियां जैसी न जाने कितनी चीजें लाकर बाजार में बेच सकते हैं। अत्तारों और हकीम वैद्यों से उनकी आवश्यकता मालूम कर बहुत-सी जंगली चीजें सप्लाई कर सकते हैं। जानवरों का चारा, पत्ते, बेर, करौंदा, जामुन, मकोय, बेल, कैथ आदि बहुत तरह के जंगली फल लाकर बेच सकते हैं। अनेक लोग इन्हीं चीजों के आधार पर अपनी पूरी जीविका चलाया करते हैं। मिट्टी, रेत तथा दातूनों की सप्लाई भी बड़े-बड़े शहरों में लाभदायक होती है। काम करने की लगन तथा जिज्ञासा होनी चाहिये। दुनिया में काम की कमी नहीं है।

इसी प्रकार न जाने कितने घरेलू धन्धे तथा कुटीर-उद्योग हैं जिन्हें करके समय का सदुपयोग किया जा सकता है। उनमें से कढ़ाई-बुनाई, कताई-सिलाई तो साधारण है इसके अतिरिक्त तेल, साबुन, डलिया, झाबे, चटाई, झोले, लिफाफे, थैले, चूरन, चटनी, अचार, मुरब्बे आदि का भी काम किया जा सकता है। इन कामों में लगभग सभी सामान्य घरों की स्त्रियां दक्ष होती हैं। फसल पर आम, नीबू, आंवला, खीरा, ककड़ी, तरबूज, करेला आदि के अनेक प्रकार के अचार बनाकर बाजार में सप्लाई किये जा सकते हैं। बहुत से परिवार पापड़, बरियां तथा मगौड़ियां बना कर भी बनियों को सप्लाई करते रहते हैं। पढ़ी-लिखी योग्य स्त्रियां अपने घर पर सिलाई-कटाई का छोटा-मोटा स्कूल चला सकती हैं। बहुत-सी परिश्रमी नारियां हाथ से सिलने योग्य कपड़ों को दर्जी से लेकर सीकर अर्थ लाभ कर सकती हैं। अनेक परिवार मिल कर अपने घरों पर कताई-बुनाई, दरी-कालीन तथा निबाड़ बुनने के छोटे कारखाने लगा सकते हैं, जिनको घरों की स्त्रियां अपने खाली समय में आराम से चला सकती हैं। कागज, गत्ता तथा मिट्टी के खिलौने और कपड़ों की गुड़िया बना कर बेची जा सकती हैं। इस प्रकार के और भी न जाने कितने काम हो सकते हैं जिनको घर की स्त्रियां अपने फालतू समय में आसानी से कर सकती हैं। आजकल घरों के हाथ से बनी देशी चीजों का समाज में बड़ा आदर किया जाता है। परिश्रमपूर्वक तथा कम मुनाफे पर करने से यह सब काम आसानी से चल सकते हैं।

गरीब आदमियों की अपेक्षा अमीर स्त्री-पुरुषों के पास फालतू समय अधिक होता है। एक तो उनके पास विशेष काम नहीं होता, जो होता भी है वह अधिकतर नौकर-चाकर ही किया करते हैं। उन्हें पैसे की इतनी आवश्यकता भी नहीं होती जिसके लिये वे मगज और शरीर मारी करें। तब भी स्वास्थ्य, कार्यक्षमता तथा विविध प्रकार की बुराइयों तथा व्यसनों से बचने के लिए उन्हें अपने फालतू समय में कुछ न कुछ काम करना ही चाहिये। ऐसे लोग अपने मनोरंजन के लिए बागवानी कर सकते हैं। निरक्षरों को निःशुल्क साक्षर बना सकते हैं। समाज सेवा तथा परोपकार के बहुत से काम कर सकते हैं।

इस प्रकार शेष समय में पढ़े-लिखे, अपढ़ तथा गरीब-अमीर पुरुष सभी कुछ न कुछ अपने योग्य काम कर सकते हैं। फिर वह चाहे आर्थिक हो अथवा अनार्थिक। इस काम को करने में जितना महत्व समय के सदुपयोग का है उतना पैसे का नहीं। फालतू समय में काम करते रहने वाले अनेक रोगों तथा बुराइयों से बच सकते हैं। इसलिए ठल्ले-नबीसी करने के बजाय कुछ न कुछ काम करना चाहिये।

.... समाप्त
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

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