🔷 साथियो! आपने गिरजाघरों को देखा है। गिरजाघरों में भगवान के लिए कोई गुंजाइश नहीं है क्या ?? वहाँ कहीं-कहीं मरियम की मूर्ति लगी रहती है, तो कहीं-कहीं ईसा की प्रतिमा लगी रहती हैं। एक छोटा-सा प्रार्थनाकक्ष होता है। कहीं इसमें अस्पताल या दवाखाने वाला हिस्सा होता है। कहीं पादरियों के रहने का हिस्सा होता है। कहीं एक छोटा सा दफ्तर बना होता है। इस तरह भगवान का एक छोटा सा केंद्र बनाने के बाद में बाकी सारी-की इमारत, सारा स्थान लोकमंगल के लिए होता है। पहले भारतवर्ष में भी ऐसा ही किया जाता था और किया भी जाना चाहिए, लेकिन आज तो मंदिरों की दशा देखकर हँसी आती है और क्रोध भी। आज मंदिरों का सारा-का धन कुछ चंद लोगों के निहित स्वार्थ के लिए खरच हो जाता है। जो कुछ भी चढ़ावा या दान आया, कुछ निहित स्वार्थ के लिए मठाधीशों और मंदिरों के स्वामी और दूसरे महंतों के पेट में चला गया।
🔶 मित्रों ! वह अनावश्यक धन, हराम का धन जब उन लोगों के पास आया तो उन्होंने क्या-क्या किया? आप नहीं जानते, मैं जानता हूँ। पंडा-पुजारियों, महंतों और मठाधीशों की हकीकत मुझे मालूम है, आपको नहीं मालूम है। आप तो केवल उनकी बाहर की शकल जानते हैं। मुझे उनके पास रहने का मौका मिला है। मैं जानता हूँ कि समाज-से किस्म के तबके अगर हैं, तो उनमें से एक तबका इन लोगों का भी हैं, जो धर्म का कलेवर या धर्म का दुपट्टा ओढ़े हुए हैं। धर्म का झंडा गाड़े हुए हैं और धर्म का तिलक लगाए हुए हैं। धर्म की पोशाक और धर्म का बाना पहने हुए बैठे हैं। ये क्या-क्या अनाचार फैलाते हैं और क्या-क्या दुनिया में खुराफातें पैदा करते हैं, इनके निहित स्वार्थों को पूरा करने के लिए आज का धर्मतंत्र है-मंदिर।
🔷 तो क्या मंदिर सिर्फ इसी काम के लिए है? क्या इन परिस्थितियों को बदला नहीं जाना चाहिए? हाँ, अगर हमको समाज में ढोंग, अनाचार और अज्ञान फैलाना हो, तो मंदिरों का यही रूप बना रहने देना चाहिए। अगर हमको यह ख्याल है कि जनता का इतना धन, जनता की इतनी धन, जनता का इतना पैसा-इन सब चीजों का ठीक तरीके से उपयोग किया जाए, तो आज के जो मंदिर हैं, उनकी व्यवस्था पर नए ढंग से विचार करना पड़ेगा। जिन लोगों के हाथ में उनका नियंत्रण है, उनको समझाना पड़ेगा और कहना पड़ेगा कि लोक मंगल के लिए आप इनका इस्तेमाल क्यों नहीं करते? ट्रस्टियों को समझाया जाना चाहिए। अगर उनकी समझ में यह बात आ जाए कि मंदिर में जितना धन लगा हुआ है, इसमें से थोड़े पैसे से भगवान की पूजा आसानी से की जा सकती है। एक पुजारी ने आधा घंटे सुबह और आधा घंटे शाम को पूजा कर ली। एक घंटे के बाद तेईस घंटे बच जाते हैं। नहीं साहब तेईस घंटे पुजारी पंखा लिए खड़े रहेंगे। जब भगवान सो जाएँगे, तो वे वहाँ से हटेंगे और जब भगवान उठ जाएँगे, तो फिर पंखा डुलाते रहेंगे। यह कोई तरीका है?
.... क्रमशः जारी
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य (अमृत वाणी)