शनिवार, 21 अक्टूबर 2017

👉 Sowing and Reaping (Investment & its Returns) (Part 3)

🔵 What is my life all about? It is about an industrious urge led by a well crafted mechanism of transforming (sowing & reaping) all the resources basically available for my use (available invariably to all) due to grace of BHAGWAN) like capacity to feel, capacity to think and capacity to do labour and of course the resources additionally available for my use (yet not essential) like ancestral money and property, into such a scenario that is equally gratifying to each & everyone who prefers to join it.
 
🔴 I invested/sown all I had earned through ancestors. When land-lord system was abolished, I was paid money in exchange of lands. I donated all the money to construct GAYATRI-TAPO BHUMI. My wife had 600 grams of gold that too was sold to invest in GAYATRI-TAPOBHUMI. Whatever I had was expended for the cause of BHAGWAN, for making the home of BHAGWAN, the temple of BHAGWAN. I was left with only 80 BIGHA of agricultural field only to be sold later and money thereof expended. Expended in what?
 
🔵 Whenever you get a chance to go there, you will be happy to see that I used this money in making a higher secondary school in the village, I was born and again there were no good hospital all around leaving the patients compelled to travel distant places for their treatments. Many people died. Many pregnant ladies died and many people fell ill. I could saw that and assuming those deprived cluster of society to be a version of BHAGWAN, I employed my money in making there a good hospital also.

🔴 How could I do that? The money, my father left after his death was not used by me. I cannot say if I had consumed some of it while I was a child but thereafter I never ate any penny given by others. I expended all. Every single penny has been expended by me for the cause of BHAGWAN. Now I have nothing given by father. If someone asks me, ‘‘how much money do you have?’’ my reply will be in negative. If someone says, ‘‘then you are in loss overall.’’ Oh! You talk about loss.
 
🌹 to be continue...
🌹 Pt Shriram Sharma Aachrya

👉 देवत्व विकसित करें, कालनेमि न बनें (भाग 9)

🔴 कालनेमि की कथा सुना रहा हूँ— स्कन्द पुराण की आपको। पूतना के कोई बाल-बच्चे नहीं थे। कालनेमि ने उससे कहा कि तेरे बच्चा नहीं होता है तो तू जादू का मंत्र लेकर जा और श्रीकृष्ण को दूध पिला दे। तेरा दूध पीएगा तो अपनी माता को भूल जाएगा और तेरे पास रहने लगेगा। कालनेमि के बहकावे में आकर पूतना बेचारी गई कि मेरे बेटा नहीं होता तो बेटा ले जाऊँ और बेटा तो मिला नहीं, उल्टे थुक्के-फजीहत और हुई। सूर्पणखा से कालनेमि ने कहा—तू ब्याह करेगी? उसने कहा—हाँ। वह बोला—राक्षस तो काले-कलूटे होते हैं, माँस खाते हैं, शराब पीते हैं और गाली देंगे और मारेंगे भी। हम तुझे ऐसा दूल्हा बताते हैं कि उससे खूबसूरत तुझे दुनिया में कहीं नहीं मिलेगा। बस तेरे जाने भर की देर है, तू गई और ब्याह हुआ। दूल्हे का नाम राम है। उसके पिता के तीन ब्याह हुए थे राम के दो ब्याह करा देंगे। सीताजी भी बनी रहेंगी और तू भी बनी रहेगी और राजगद्दी पर बैठेगी। तू गोरी होगी और तेरे बच्चे भी गोरे होंगे।
      
🔵 सूर्पणखा कालनेमि के बहकाने पर रामचन्द्र जी के पास गई और अपनी फजीहत कराकर लौटी। उसकी बुद्धी जो बिगाड़ दी थी कालनेमि ने। मन्थरा की भी बुद्धि जो बिगाड़ दी थी उसने। उससे कहा कि भरत के साथ तेरा ब्याह करा देंगे। ये जो कैकेयी है वह जाएगी मर और तू रानी बनेगी, राज्य करेगी। उसको समझा करके भरत के लिए राज्य माँग ले। मन्थरा ने कैकेयी को पट्टी पढ़ाकर अपना काम बनाना चाहा। इस तरह दुनिया भर की अंडम-बंडम करके उसने मंथरा ने कैकेयी को मिट्टी पलीद की।

🔴 कालनेमि की जो यह घटना है वह हमारे ऊपर भी लागू होती है। हमारे प्राणों से प्यारे बच्चे, हमारे हृदय के टुकड़ों को अलग करके, बहका करके इनको हमसे दूर करने की कोई कालनेमि कोशिश कर रहा है। तो गुरुजी आपका नुकसान हो जाएगा? नहीं, बेटा, हमारा क्या नुकसान हो जाएगा? अभी ये लड़के गा रहे थे—‘कोई साथ न दे तो अकेला चल।’ अकेले चल देंगे हम। अकेले वामन ने सारी जमीन नापी थी। अकेले परशुराम ने सारी पृथ्वी पर से इक्कीस बार भार उतारा था और अकेले हम भी कम नहीं हैं, लेकिन हमको अपने बच्चे प्यारे लगते हैं। बच्चों को कोई छीन न ले जाए, चुरा न ले जाए, अगर कोई घर में से बच्चों को उठा ले जाए तो माँ-बाप को दुःख होता है। हमें भी दुःख होता है।

🔵 जब कोई कालनेमि हमारे बच्चों को हमसे दूर कर देता है, बागी कर देता है। अपने ये जो बच्चे हैं, उनकी हमें फिकर है कि कोई कालनेमि उनकी बुद्धि को भ्रष्ट न कर दे। कालनेमि से हमारा नुकसान है। उसकी हमें फिकर रहती है और कोई फिकर नहीं। न मिशन की फिकर रहती है और न मरने की, न काम की। मिशन बढ़ रहा है और वह बढ़ेगा ही। काम भी हो रहा है। उसकी फिकर थोड़े ही है। काम तो बढ़ ही रहा है। गंगा में बाढ़ तो आएगी, रुकेगी नहीं। उसे कोई रोकने वाला नहीं है। मिशन के लिए हम नहीं कहते कि आप कोई सहायता कीजिए। कहते हैं तो इसलिए कि नफा होगा आपको। आप नेता हो जाएँगे। सरदार पटेल, नेहरू, जार्ज वाशिंगटन, अब्राहम लिंकन बन जाएँगे। नेता बनना जिनको पसन्द होवे आगे आएँ, कदम से कदम कन्धे से कन्धा मिलकर चलें। साथ नहीं चलेंगे तो योग्य आदमी कैसे बनेंगे?
 
🌹 क्रमशः जारी
🌹 पं श्रीराम शर्मा आचार्य (अमृतवाणी)

👉 आज का सद्चिंतन 21 Oct 2017


👉 प्रेरणादायक प्रसंग 21 Oct 2017


👉 आस्तिक बनो (अन्तिम भाग)

🔴 ईश्वर भक्ति का जितना ही अंश जिसमें होगा वह उतने ही दृढ़ विश्वास के साथ ईश्वर की सर्व व्यापकता पर विश्वास करेगा, सबसे प्रभु को समाया हुआ देखेगा। आस्तिकता का दृष्टिकोण बनते ही मनुष्य भीतर और बाहर से निष्पाप होने लगता है। अपने प्रियतम को घट-घट में बैठा देख कर वह सबसे नम्रता का मधुरता का स्नेह का आदर का सेवा का सरलता शुद्धता और निष्कपटता से भरा हुआ व्यवहार करता है। भक्त अपने भगवान के लिए व्रत, उपवास, तप, तीर्थ यात्रा आदि द्वारा स्वयं कष्ट उठाता है और अपने प्राणबल्लभ के लिए नैवेद्य, अक्षत, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य, भोग प्रसाद आदि कुछ न कुछ अर्पित करता ही करता है।

🔵 “स्वयं कष्ट सहकर भगवान को कुछ समर्पण करना” पूजा की सम्पूर्ण विधि व्यवस्थाओं का यही तथ्य है। भगवान को घट-घट वासी मानने वाले भक्त अपनी पूजा विधि को इसी आधार पर अपने व्यवहारिक जीवन में उतारते हैं। वे अपने स्वार्थों की उतनी परवा नहीं करते, खुद कुछ कष्ट भी उठाना पड़े तो उठाते हैं पर जनता जनार्दन को, नरनारायण को अधिक सुखी बनाने में वे दत्त चित्त रहते हैं लोक सेवा का, व्रत लेकर वे घट-घटवासी परमात्मा की जीवन व्यावहारिक रूप से पूजा करते हैं। ऐसे भक्तों का जीवन-व्यवहार बड़ा निर्मल, पवित्र, मधुर और उदार होता है। आस्तिकता का यही तो प्रत्यक्ष लक्षण है।

🔴 पूजा के समस्त कर्मकाण्ड इसलिए हैं कि मनुष्य परमात्मा को स्मरण रखे, उसके अस्तित्व को अपने चारों ओर देखे और मनुष्योचित कर्म करे। पूजा, अर्चना, वन्दना, कथा, कीर्तन, व्रत, उपवास, तीर्थ आदि सबका प्रयोजन मनुष्य की इस चेतना की जाग्रत करना है कि परमात्मा की निकटता का स्मरण रहे और ईश्वर के प्रेम एवं श्रद्धा द्वारा लोक सेवा का व्रत रखे और ईश्वर के क्रोध से डर कर पापों से बचे। जिस पूजा उपासना से यह उद्देश्य सिद्ध न होता हो, वह व्यर्थ है। जिस उपाय से भी “पाप से बचने और पुण्य में प्रवृत्त होने” का भाव उठें वह उपाय ईश्वर भक्ति की साधना ही है।

🔵 पाठको! ईश्वर की खाल मत ओढ़ो? सच्चे ईश्वर भक्त बनो। भक्ति को मंदिरों को धरोहर मत बनाओ, उसे व्यवहारिक जीवन में उतार लो। वाचक ज्ञानी मत बनो, कर्मनिष्ठा सीखो। ईश्वर के थन लाठियों से मत छुओ उसे अपने में ओत-प्रोत कर लो। विडम्बना को छोड़ो, परमात्मा के चरणों से लिपट जाओ उसे अपने अंतःकरण के भीतरी कोने में बिठा लो। अपनी दृष्टि को परमात्मा मय बना लो। तुम्हारा जीवन सच्चे आस्तिक का पवित्र जीवन होना चाहिए। अपवित्र जीवन तो प्रत्यक्ष नास्तिकता है।

🌹 समाप्त
🌹 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
🌹 अखण्ड ज्योति- दिसम्बर 1945 पृष्ठ 5

http://literature.awgp.org/akhandjyoti/1945/December/v1.5

👉 त्याग कैसे करेगा?

🔵 जिसने भोगा ही नहीं है, वह त्याग कैसे करेगा? और जिसके पास है ही नहीं, वह छोड़ेगा कैसे?

🔴 एक यहूदी फकीर हुआ बालसेन। एक दिन एक धनपति उससे मिलने आया। वह उस गांव का सबसे बड़ा धनपति था, यहूदी था। और बालसेन से उसने कहा कि कुछ शिक्षा मुझे भी दो। मैं क्या करूं?

🔵 बालसेन ने उसे नीचे से ऊपर तक देखा, वह आदमी तो धनी था लेकिन कपड़े चीथड़े पहने हुए था। उसका शरीर रूखा-सूखा मालूम पड़ता था। लगता था, भयंकर कंजूस है। तो बालसेन ने पूछा कि पहले तुम अपनी जीवन-चर्या के संबंध में कुछ कहो। तुम किस भांति रहते हो? तो उसने कहा कि मैं इस भांति रहता हूं जैसे एक गरीब आदमी को रहना चाहिये। रूखी-सूखी रोटी खाता हूं। बस नमक, चटनी और रोटी से काम चलाता हूं। एक कपड़ा जब तक जार-जार न हो जाए तब तक पहनता हूं। खुली जमीन पर सोता हूं, एक गरीब साधु का जीवन व्यतीत करता हूं।

🔴 बालसेन एकदम नाराज हो गया और कहा, नासमझ! जब भगवान ने तुझे इतना धन दिया तो तू गरीब की तरह जीवन क्यों बिता रहा है? भगवान ने तुझे धन दिया ही इसलिए है कि तू सुख से रह, ठीक भोजन कर। खा कसम कि आज से ठीक भोजन करेगा, अच्छे कपड़े पहनेगा, सुखद शैया पर सोयेगा, महल में रहेगा।

🔵 धनपति भी थोड़ा हैरान हुआ। उसने कहा कि मैंने तो सुना है कि यही साधुता का व्यवहार है। पर बालसेन ने कहा कि मैं तुझसे कहता हूं कि यह कंजूसी है, साधुता नहीं है। काफी समझा-बुझाकर कसम दिलवा दी। वह आदमी जरा झिझकता तो था, क्योंकि जिंदगी भर का कंजूस था। जिसको वह साधुता कह रहा था वह साधुता थी नहीं, सिर्फ कृपणता थी। लेकिन लोग कृपणता को भी साधुता के आवरण में छिपा लेते हैं। कृपण भी अपने को कहता है कि मैं साधु हूं इसलिए ऐसा जीता हूं। पर बालसेन ने उसे समझा-बुझाकर कसम दिलवा दी।

🔴 जब वह चला गया तो बालसेन के शिष्यों ने पूछा कि यह तो हद्द हो गई। उस आदमी की जिंदगी खराब कर दी। वह साधु की तरह जी रहा था। और हमने तो सदा यही सुना है कि सादगी से जीना ही परमात्मा को पाने का मार्ग है। यही तुम हमसे कहते रहे। और इस आदमी के साथ तुम बिलकुल उल्टे हो गये। क्या इसको नरक भेजना है?

🔵 बालसेन ने कहा, ‘यह आदमी अगर रूखी रोटी खायेगा तो यह कभी समझ ही न पायेगा कि गरीब का दुख क्या है! यह आदमी रूखी रोटी खायेगा तो समझेगा कि गरीब तो पत्थर खाये तो भी चल जाएगा। इसे थोड़ा सुखी होने दो ताकि यह दुख को समझ सके; ताकि जितने लोग इसके कारण गरीब हो गये हैं इस गांव में, उनकी पीड़ा भी इसको खयाल में आये। लेकिन यह सुखी होगा तो ही उनका दुख दिखाई पड़ सकता है। अगर यह खुद ही महादुख में जी रहा है, इसको किसी का दुख नहीं दिखाई पड़ेगा। कोई गरीब इसके द्वार पर भीख मांगने नहीं जा सकता, क्योंकि यह खुद ही भिखारी की तरह जी रहा है। यह किसी की पीड़ा अनुभव नहीं कर सकता।

🔴 विपरीत का अनुभव चाहिये। अगर सुख ही सुख हो संसार में तो तुम्हें सुख का पता ही न चलेगा। और तुम सुख से इस बुरी तरह ऊब जाओगे जितने कि तुम दुख से भी नहीं ऊबे हो। और तुम उस सुख का त्याग कर देना चाहोगे।

👉 आत्मचिंतन के क्षण 21 Oct 2017

🔴 अपने साधकों को हमारी शिक्षा है कि वे नित्य कुछ दिन एकान्त सेवन करें। इसके लिये यह जरूरी नहीं है कि वे किसी जंगल, नदी या पर्वत पर ही जावें। अपने आसपास ही कोई प्रशान्त स्थित चुन लो। कुछ भी सुविधा न हो तो अपने कमरे के सब किवाड़ बन्द करे अकेले बैठो। और शान्त चित्त होकर मन ही मन जप करो— मैं अकेला हूँ’— मैं अकेला हूँ। छोटे से साधन को हमारे प्राणप्रिय अनुयायी आज से ही आरम्भ करें। वे यह न पूछे कि इससे क्या लाभ होगा? मैं आज बता भी नहीं रहा हूँ कि इससे किस प्रकार क्या हो जायगा। किन्तु शपथ पूर्वक कहता हूँ कि जो सच्चे आत्मज्ञान की ओर बढ़ जायगा, साँसारिक चोर, पाप, दुष्ट दुष्कर्म, बुरी आदतें, नीच वासनायें, और नरक की ओर घसीट ले जाने वाली कुटिलताओं से उसे छुटकारा मिल जायगा। हम पापमयी पूतनाओं को छोड़ने के लिए साधक अनेक प्रयत्न करते हैं पर वे छाया की भाँति पीछे पीछे दौड़ती रहती है पीछा नहीं छोड़तीं। यह साधन उस झूठे ममत्व को ही छुड़ा देगा जिसकी सहचरी में पाप वृत्तियां होती हैं।

🔵 अपरिग्रह का सम्बन्ध अस्तेय से है। जो चीज मूल में चोरी की नहीं है, पर अनावश्यक है, उसका संग्रह करने से वह चोरी की चीज के समान हो जाती है। परिग्रह मतलब संचय या इकठ्ठा करना है। सत्य-शोधक अहिंसक परिग्रह नहीं कर सकता। परमात्मा परिग्रह नहीं करता, वह अपने लिए ‘आवश्यक’ वस्तु रोज-रोज पैदा करता है। इसलिए यदि हम उस पर विश्वास रक्खें तो जानेंगे कि वह हमें हमारी जरूरत की चीजें रोज-रोज देता है और देगा। प्रति दिन की आवश्यकता के अनुसार ही प्रति दिन पैदा करने के ईश्वरीय नियम को हम जानते नहीं, अथवा जानते हुए भी पालते नहीं, इससे जगत् में विषमता और तज्जन्य दुःखों का अनुभव करते हैं।

🔴 इस संघर्षमय दुनिया में जो अपने पाँवों पर खड़ा होकर अपने बलबूते पर चलता है वह कुछ चल लेता है बढ़ जाता है और अपना स्थान प्राप्त करता है। किन्तु जो दूसरों के कन्धे पर अवलंबित है, दूसरों की सहायता पर आश्रित है, वह भिक्षुक की तरह कुछ प्राप्त करलें तो सही अन्यथा निर्जीव पुतले या बुद्धि रहित कीड़े मकोड़ों की तरह ज्यों त्यों करके अपनी साँसें पूरी करते हैं, मनुष्य के वास्तविक सुख-दुख, हानि, लाभ, उन्नति पतन, बन्ध, मोक्ष का जहाँ तक संबंध है वह सब एकान्त के साथ जुड़ा हुआ है।

🌹 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

👉 Use of Suryakant Mani

🔴 A mahatma had a Suryakant Mani (a precious stone). When his end was nearing he gave this hard earned mani to his son Saumanas and said, “Take care of it, it will fulfill all your desires and you will not face any shortage in life.“

🔵 Saumanas took the mani, but didn’t pay any attention to what he said. He used it in the night as a lamp. One day his lover, a prostitute asked it as a gift, he gave it easily without giving it a thought.

🔴 The prostitute then sold it off to a jeweler bought many ornaments from the money received. The jeweler tested the mani and made lot of gold by chemical experiments. In this way he became very rich and used to lead the lifestyle of a king. He helped a lot of needy and poor from his fortune.

🔵 Anand narrated this story to his disciple, Bidruth and said, “This life is precious like the mani. Only good jewelers know its worth and use. Otherwise most of the people are like Saumanas and Ganika who don’t know its worth waste it.

👉 प्रेरणादायक प्रसंग 30 Sep 2024

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