बुधवार, 12 अक्टूबर 2016
👉 समाधि के सोपान Samadhi Ke Sopan (भाग 53)
🔵 सभी प्रकार के अनुभवों का स्वागत करो। अपने संकुचित दायरे से बाहर निकलो। निर्भीकता तुम्हें मुक्त कर देगी। जैसा कि यह निश्चित है कि जीवन में केवल धर्म ही सत्य है, वैसा ही यह भी निश्चित है कि संन्यास ही सच्चा आध्यात्मिक साधन है। धर्म के समान ही त्याग भी कोई एक विशेष विधान नहीं है। यह समग्रता है, चेतना की एक अवस्था है, व्यक्तित्व की एक स्थिति है। अनुभूति में तुम्हें स्वयं ईश्वर के आमने सामने होना होगा। त्याग में तुम्हें शाश्वत शांति प्राप्त करनी होगी। तुम्हारे लिए कोई दूसरा अनुभूति नहीं कर सकता। उसी प्रकार तुम्हारे लिये कोई दूसरा त्याग नहीं कर सकता। अत: साहसी बनो और स्वयं अपने पैरों पर खड़े हो जाओ। स्वयं तुम्हारी आत्मा के बिना और कौन तुम्हारी सहायता कर सकता है?
🔴 अपने मन को अपना गुरु बनाकर, अपनी अन्तरात्मा को अपना भगवान बनाकर गैंडे के समान निर्भीक हो कर बढ़े चलो। जो भी अनुभव आवे आने दो। यह जान लो किए उससे शरीर ही प्रभावित होता है,आत्मा नहीं। ऐसा विश्वास और दृढ़ता रखो कि तुम्हें कोई भी जीत न सके। तब सब कुछ त्याग कर तुम पाओगे कि सभी वस्तुयें तुम्हारे अधीन हैं और तुम अब दास नहीं हो। किन्तु मिथ्या उत्साह से बचो। सुख या दुःख की संवेदनाओं की चिन्ता न करो। केवल बढ़े चलो, बिना पथ के, बिना भय के, बिना पश्चाताप के। सच्चे सन्यासी बनो। मिथ्या धारणाओं का आश्रय न लो। सभी परदों को फाड़- डालो। सभी बंधनों को -काट डालो। सभी भयों को जीत लो तथा आत्मा का साक्षात्कार करो।
🔵 देर न करो। समय कम है तथा जीवन क्षणभंगुर। कल बीत गया है, आज तीव्र गति से भाग रहा है। आगामी कल हाथों के पास आ गया है। केवल ईश्वर पर ही निर्भर रहो। त्याग के द्वारा ही तुम सब कुछ प्राप्त करते हो। त्याग के द्वारा ही तुम सब कर्तव्यों की पूर्ति करते हो। तुम्हारा जीवन दे कर ही तुम शाश्वत जीवन लाभ करते हो। क्योंकि किस जीवन का त्याग करते हो? इन्द्रियासक्त जीवन तथा इन्द्रियानुभूति पूर्ण विचारों का ही तो तुम त्याग करते हो। अपने व्यक्तित्व की गहराइयों में जाओ। वहाँ तुम पाओगे कि आत्मा का अन्तर प्रवाह कार्यरत है जो कि शीघ्र ही उदासीन सतह को त्याग तथा ईश्वर साक्षात्कार के प्रवाह से आप्लावित कर देगा। स्वयं पर विश्वास करो। बहुत समय' तक तुम उदासीन रहे, अब निष्ठावान बनो। अत्यन्त निष्ठावान बनो। तब आत्मा की सभी शुभ वस्तुएँ तुम्हारी हो जायेंगी।
🌹 क्रमशः जारी
🌹 एफ. जे. अलेक्जेन्डर
🔴 अपने मन को अपना गुरु बनाकर, अपनी अन्तरात्मा को अपना भगवान बनाकर गैंडे के समान निर्भीक हो कर बढ़े चलो। जो भी अनुभव आवे आने दो। यह जान लो किए उससे शरीर ही प्रभावित होता है,आत्मा नहीं। ऐसा विश्वास और दृढ़ता रखो कि तुम्हें कोई भी जीत न सके। तब सब कुछ त्याग कर तुम पाओगे कि सभी वस्तुयें तुम्हारे अधीन हैं और तुम अब दास नहीं हो। किन्तु मिथ्या उत्साह से बचो। सुख या दुःख की संवेदनाओं की चिन्ता न करो। केवल बढ़े चलो, बिना पथ के, बिना भय के, बिना पश्चाताप के। सच्चे सन्यासी बनो। मिथ्या धारणाओं का आश्रय न लो। सभी परदों को फाड़- डालो। सभी बंधनों को -काट डालो। सभी भयों को जीत लो तथा आत्मा का साक्षात्कार करो।
🔵 देर न करो। समय कम है तथा जीवन क्षणभंगुर। कल बीत गया है, आज तीव्र गति से भाग रहा है। आगामी कल हाथों के पास आ गया है। केवल ईश्वर पर ही निर्भर रहो। त्याग के द्वारा ही तुम सब कुछ प्राप्त करते हो। त्याग के द्वारा ही तुम सब कर्तव्यों की पूर्ति करते हो। तुम्हारा जीवन दे कर ही तुम शाश्वत जीवन लाभ करते हो। क्योंकि किस जीवन का त्याग करते हो? इन्द्रियासक्त जीवन तथा इन्द्रियानुभूति पूर्ण विचारों का ही तो तुम त्याग करते हो। अपने व्यक्तित्व की गहराइयों में जाओ। वहाँ तुम पाओगे कि आत्मा का अन्तर प्रवाह कार्यरत है जो कि शीघ्र ही उदासीन सतह को त्याग तथा ईश्वर साक्षात्कार के प्रवाह से आप्लावित कर देगा। स्वयं पर विश्वास करो। बहुत समय' तक तुम उदासीन रहे, अब निष्ठावान बनो। अत्यन्त निष्ठावान बनो। तब आत्मा की सभी शुभ वस्तुएँ तुम्हारी हो जायेंगी।
🌹 क्रमशः जारी
🌹 एफ. जे. अलेक्जेन्डर
सदस्यता लें
संदेश (Atom)
👉 प्रेरणादायक प्रसंग 30 Sep 2024
All World Gayatri Pariwar Official Social Media Platform > 👉 शांतिकुंज हरिद्वार के प्रेरणादायक वीडियो देखने के लिए Youtube Channel `S...