🌹 युग-निर्माण योजना का शत-सूत्री कार्यक्रम
🔵 19. सन्तान की सीमा मर्यादा— देश की बढ़ती हुई जनसंख्या, आर्थिक कठिनाई, साधनों की कमी और जन साधारण के गिरे हुए स्वास्थ्य के देखते हुए यही उचित है कि प्रत्येक गृहस्थ कम से कम सन्तान उत्पन्न करे। अधिक सन्तान उत्पन्न होने से माताएं दुर्बलता ग्रस्त होकर अकाल में ही काल कवलित हो जाती हैं। बच्चे कमजोर होते हैं और ठीक प्रकार पोषण न होने पर अस्वस्थता एवं अकाल मृत्यु के ग्रास बनते हैं। शिक्षा और विकास की समुचित सुविधा न होने से बालक भी अविकसित रह जाते हैं। इसलिए सन्तान को न्यूनतम रखने का ही प्रसार किया जाय। लोग ब्रह्मचर्य से रहें अथवा परिवार नियोजन विशेषज्ञों की सलाह लें। सन्तान के उत्तरदायित्वों एवं चिन्ताओं से जो व्यक्ति जितने हलके होंगे—वे उतने निरोग रहेंगे, यह तथ्य हर सद्गृहस्थ भली प्रकार समझ सके इसी में उसका कल्याण है।
🔴 20. प्राकृतिक चिकित्सा की जानकारी— पंच तत्वों से रोग निवारण की प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति को लोक प्रिय बनाया जाना चाहिए। जगह-जगह ऐसे चिकित्सालय रहें। इनमें उपवास एनिमा, जल चिकित्सा, सूर्य, चिकित्सा, मिट्टी, भाप आदि साधनों की सहायता से शरीर का कल्प जैसा शोधन होता है और एक रोग की ही नहीं, समस्त रोगों की जड़ ही कट जाती है। सर्वसाधारण को इस पद्धति का इतना ज्ञान करा दिया जाय कि आवश्यकता पड़ने पर अपनी तथा अपने घर के लोगों की चिकित्सा स्वयं ही कर लिया करें।
🔵 यह सभी प्रयत्न ऐसे हैं जो सामूहिक रूप से ही प्रसारित किये जा सकते हैं। इन्हें आन्दोलन का रूप मिलना चाहिए और इनका संचालन ‘अखण्ड-ज्योति’ परिवारों के सम्मिलित प्रयत्नों से होता रहना चाहिए।
🌹 क्रमशः जारी
🌹 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
🌿🌞 🌿🌞 🌿🌞
🔵 19. सन्तान की सीमा मर्यादा— देश की बढ़ती हुई जनसंख्या, आर्थिक कठिनाई, साधनों की कमी और जन साधारण के गिरे हुए स्वास्थ्य के देखते हुए यही उचित है कि प्रत्येक गृहस्थ कम से कम सन्तान उत्पन्न करे। अधिक सन्तान उत्पन्न होने से माताएं दुर्बलता ग्रस्त होकर अकाल में ही काल कवलित हो जाती हैं। बच्चे कमजोर होते हैं और ठीक प्रकार पोषण न होने पर अस्वस्थता एवं अकाल मृत्यु के ग्रास बनते हैं। शिक्षा और विकास की समुचित सुविधा न होने से बालक भी अविकसित रह जाते हैं। इसलिए सन्तान को न्यूनतम रखने का ही प्रसार किया जाय। लोग ब्रह्मचर्य से रहें अथवा परिवार नियोजन विशेषज्ञों की सलाह लें। सन्तान के उत्तरदायित्वों एवं चिन्ताओं से जो व्यक्ति जितने हलके होंगे—वे उतने निरोग रहेंगे, यह तथ्य हर सद्गृहस्थ भली प्रकार समझ सके इसी में उसका कल्याण है।
🔴 20. प्राकृतिक चिकित्सा की जानकारी— पंच तत्वों से रोग निवारण की प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति को लोक प्रिय बनाया जाना चाहिए। जगह-जगह ऐसे चिकित्सालय रहें। इनमें उपवास एनिमा, जल चिकित्सा, सूर्य, चिकित्सा, मिट्टी, भाप आदि साधनों की सहायता से शरीर का कल्प जैसा शोधन होता है और एक रोग की ही नहीं, समस्त रोगों की जड़ ही कट जाती है। सर्वसाधारण को इस पद्धति का इतना ज्ञान करा दिया जाय कि आवश्यकता पड़ने पर अपनी तथा अपने घर के लोगों की चिकित्सा स्वयं ही कर लिया करें।
🔵 यह सभी प्रयत्न ऐसे हैं जो सामूहिक रूप से ही प्रसारित किये जा सकते हैं। इन्हें आन्दोलन का रूप मिलना चाहिए और इनका संचालन ‘अखण्ड-ज्योति’ परिवारों के सम्मिलित प्रयत्नों से होता रहना चाहिए।
🌹 क्रमशः जारी
🌹 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
🌿🌞 🌿🌞 🌿🌞