रविवार, 18 मार्च 2018

👉 प्रेरणादायक प्रसंग 18 March 2018


👉 आज का सद्चिंतन 18 March 2018


👉 प्रायश्चित क्यों? कैसे? (भाग 7)

🔷 इष्टापूर्ति का मतलब क्षतिपूर्ति होता है, जो प्रायश्चित का बहुत महत्त्वपूर्ण अंग होता है। इसलिए कर्ज आपको चुकाना ही चाहिए। किसको चुकायें? जिसका नुकसान किया था, उसको तो आप चुकायेंगे नहीं, लेकिन सारा समाज एक है, एक कड़ी से जुड़ा हुआ है, इसलिए आप एक कड़ी में जुड़े हुए सारे समाज को यह मानकर चलिए कि किसी भी हिस्से पर नुकसान पहुँचाया है, तो कोई बात नहीं, दूसरे तरीके से पूरा कर देंगे।

🔶 मान लीजिए आप किसी के कान पकड़ने की गुस्ताख़ी करें तब? तब उसके पैर छू करके प्रणाम कर लीजिए। अरे साहब! हमसे गलती हो गई, माफ कर दीजिए, पैर छूते हैं आपके। कान पकड़ा था तो कान को छूना जरूरी नहीं है, आप पैर को भी छू सकते हैं। सारा समाज एक है। इसके किसी हिस्से को आपने नुकसान पहुँचाया है, तो आप उस नुकसान को पूरा करने के लिए किसी दूसरे व्यक्ति के साथ में भलाई का सलूक कर सकते हैं। जो आदमी मर गया, जिसका आपने बेईमानी के साथ पैसा हजम कर लिया था, अब कैसे उसका पैसा चुकायेंगे? नहीं साहब, हम तो उसी को चुकायेंगे, लेकिन कैसे चुकायेंगे? वह तो मर गया।

🔷 किसी लड़की का चाल-चलन खराब किया था। अब आप बताइए उसके चाल-चलन को ठीक कैसे करेंगे? नहीं साहब, हम तो क्षमा माँगेंगे। क्षमा मागेंगे लेकिन वह लड़की अब किसी की घरवाली हो गई और जिसके बेटे भी बड़े हैं, सास-ससुर भी हैं, वहाँ उनसे कहते फिरें, साहब हमने इस लड़की का चाल-चलन खराब किया था और अब हम माफी माँगते हैं। इस तरह आप भी पिटेंगे और वह लड़की भी मरेगी। जरूरी नहीं है कि जिस आदमी का आपने नुकसान किया है, उसी को लाभ दें। सारा समाज एक है, इसलिए यह बात सही है कि सारे-के संसार के तालाब में एक बड़ा ढेला फेंका और लहरें पैदा कर दीं।

🔶 बुराई पैदा करने का मतलब एक व्यक्ति को ही नुकसान पहुँचाना नहीं है, बल्कि सारे समाज को नुकसान पहुँचाना है। बुरी आदतें आपने एक को सिखा दीं, शराब पीना आपने एक को सिखा दिया, वह फिर दूसरे को सिखाएगा, दूसरा तीसरे को सिखाएगा, तीसरा चौथे को, सिखाएगा, यह तो एक लहर है। बुराइयों की भी एक लहर है और अच्छाइयों की भी एक लहर है। आपने बुराइयों की एक बार लहरें पैदा की थीं, अब उसका प्रायश्चित एक ही हो सकता है कि आप अच्छाइयों की लहरें पैदा करें और उस अच्छाइयों की लहर को पैदा करके वातावरण ऐसा बनाएँ, जिससे की उसका खामियाजा पूरा हो सके, खाई पाटी जा सके, उस छेद को बन्द किया जा सके।

.... क्रमशः जारी
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य (अमृत वाणी)

👉 गुरुगीता (भाग 66)

👉 श्री सद्गुरुः शरणं मम

🔷 इस सत्य को और भी स्पष्ट करते हुए भगवान् महेश्वर आदि- माता शैलसुता पार्वती से कहते हैं-

न मुक्ता देवगंधर्वाः पितरो यक्षकिन्नराः। ऋषयः सर्वसिद्धाश्च गुरुसेवापराङ्मुखाः॥ ८६॥
ध्यानं शृणु महादेवि सर्वानन्दप्रदायकम्। सर्वसौख्यकरं नित्यं भुक्तिमुक्तिविधायकम्॥ ८७॥

श्रीमत्परब्रह्म गुरुं स्मरामि श्रीमत्परब्रह्म गुरुं वदामि। श्रीमत्परब्रह्म गुरुं नमामि श्रीमत्परब्रह्म गुरुं भजामि॥ ८८॥

ब्रह्मानन्दं परमसुखदं केवलं ज्ञानमूॄत द्वन्द्वातीतं गगनसदृशं तत्त्वमस्यादि लक्ष्यम्।
एकं नित्यं विमलमचलं सर्वधीसाक्षिभूतं भावातीतं त्रिगुणरहितं सद्गुरुं तं नमामि॥ ८९॥

नित्यं शुद्धं निराभासं निराकारं निरञ्जनम्। नित्यबोधं चिदानन्दं गुरुं ब्रह्म नमाम्यहम्॥ ९०॥

🔶 देव हों या गन्धर्व, पितर, यक्ष, किन्नर, सिद्ध अथवा ऋषि कोई भी हों, गुरु सेवा से विमुख होने पर उन्हें कदापि मोक्ष नहीं मिल सकता है॥ ८६॥ भगवान् भोलेनाथ कहते हैं, हे महादेवि! सुनो, गुरुदेव का ध्यान सभी तरह के आनन्द का प्रदाता है। यह सभी सुखों को देने वाला है। यह सांसारिक सुख भोगों को देने के साथ मोक्ष को भी देता है॥ ८७॥

🔷 सच्चे शिष्य को इस सत्य के लिए संकल्पित रहना चाहिए कि मैं गुरुदेव का स्मरण करूँगा, गुरुदेव की स्तुति-कथा कहूँगा। परब्रह्म की चेतना का साकार रूप श्री गुरुदेव की वाणी, मन और कर्म से सेवा आराधना करूँगा॥ ८८॥ श्री गुरुदेव ब्रह्मानन्द का परम सुख देने वाली साकार मूर्ति हैं। वे द्वन्द्वातीत चिदाकाश हैं। तत्त्वमसि आदि श्रुति वाक्यों का लक्ष्य वही हैं। वे प्रभु एक, नित्य, विमल, अचल एवं सभी कर्मों के साक्षी रूप हैं। श्री गुरुदेव सभी भावों से परे, प्रकृति के तीनों गुणों से सर्वथा रहित हैं। उन्हें भावपूर्ण नमन है॥

🔶 ८९॥ श्री गुरुदेव नित्य, शुद्ध, निराभास, निराकार एवं माया से परे हैं। वे नित्यबोधमय एवं चिदानन्दमय हैं। उन परात्पर ब्रह्म गुरुदेव को नमन है॥ ९०॥

.... क्रमशः जारी
✍🏻 डॉ प्रणव पंड्या
📖 गुरुगीता पृष्ठ 106

👉 प्रेरणादायक प्रसंग 30 Sep 2024

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