🌹 ‘‘हम बदलेंगे-युग बदलेगा’’, ‘‘हम सुधरेंगे-युग सुधरेगा’’ इस तथ्य पर हमारा परिपूर्ण विश्वास है।
🔴 युग निर्माण की योजना का श्री गणेश हमें अपने आप से आरंभ करना चाहिए। वर्तमान नारकीय परिस्थितियों को भावी सुख-शान्तिमयी स्वर्गीय वातावरण में बदलने के लिए चिंतन ही एकमात्र वह केन्द्र बिन्दु है, जिसके आधार पर व्यक्ति की दिशा, प्रतिभा, क्रिया, स्थिति एवं प्रगति पूर्णतया निर्भर है। चिंतन की उत्कृष्टता, निकृष्टता के आधार पर व्यक्ति, देव और असुर बनता है। स्वर्ग और नरक का सृजन पूर्णतया मनुष्य के अपने हाथ में है। अपने भाग्य और भविष्य का निर्माण हर कोई स्वयं ही करता है। उत्थान एवं पतन की कुँजी चिंतन की दिशा को ही माना गया है।
🔵 हमें अपनी परिस्थितियाँ यदि उत्कृष्ट स्तर की अभीष्ट हों तो इसके लिए एक अनिवार्य शर्त यह है कि अपने चिंतन की धारा निकृष्टता की दिशा में प्रवाहित होने से रोककर उसे उत्कृष्टता की ओर मोड़ दें। यह मोड़ ही हमारे स्तर, स्वरूप और परिस्थितियों को बदलने में समर्थ हो सकता है। चिंतन निकृष्ट स्तर का हो और हम महानता वरण कर सकें, यह संभव नहीं। संकीर्ण और स्वार्थी लोग अनीति से कुछ पैसे भले ही इकट्ठे कर लें, पर उन विभूतियों से सर्वथा वंचित ही बने रहेंगे, जो व्यक्तित्व को प्रखर और परिस्थितियों को सुख-शांति से भरी संतोषजनक बना सकती है।
🔴 समाज व्यक्तियों के समूह का नाम है। व्यक्ति जैसे होंगे समाज वैसा ही बन जाएगा। लोग जैसे होंगे वैसा ही समाज एवं राष्ट्र बनेगा। दीन दुर्बल स्तर की जनता कभी समर्थ और स्वस्थ राष्ट्र का निर्माण नहीं कर सकती। धर्म, शासन, व्यवसाय, उद्योग, चिकित्सा, शिक्षा, कला आदि सभी क्षेत्रों का नेतृत्व जनता के ही आदमी करते हैं। जन-मानस का उत्तर गिरा हुआ हो तो ऊँचे, अच्छे, समर्थ और सजीव व्यक्तित्व नेतृत्व के लिए कहाँ से आएँगे?
🌹 क्रमशः जारी
🌹 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
http://literature.awgp.org/book/ikkeesaveen_sadee_ka_sanvidhan/v1.98
http://literature.awgp.org/book/ikkeesaveen_sadee_ka_sanvidhan/v2.18
🔴 युग निर्माण की योजना का श्री गणेश हमें अपने आप से आरंभ करना चाहिए। वर्तमान नारकीय परिस्थितियों को भावी सुख-शान्तिमयी स्वर्गीय वातावरण में बदलने के लिए चिंतन ही एकमात्र वह केन्द्र बिन्दु है, जिसके आधार पर व्यक्ति की दिशा, प्रतिभा, क्रिया, स्थिति एवं प्रगति पूर्णतया निर्भर है। चिंतन की उत्कृष्टता, निकृष्टता के आधार पर व्यक्ति, देव और असुर बनता है। स्वर्ग और नरक का सृजन पूर्णतया मनुष्य के अपने हाथ में है। अपने भाग्य और भविष्य का निर्माण हर कोई स्वयं ही करता है। उत्थान एवं पतन की कुँजी चिंतन की दिशा को ही माना गया है।
🔵 हमें अपनी परिस्थितियाँ यदि उत्कृष्ट स्तर की अभीष्ट हों तो इसके लिए एक अनिवार्य शर्त यह है कि अपने चिंतन की धारा निकृष्टता की दिशा में प्रवाहित होने से रोककर उसे उत्कृष्टता की ओर मोड़ दें। यह मोड़ ही हमारे स्तर, स्वरूप और परिस्थितियों को बदलने में समर्थ हो सकता है। चिंतन निकृष्ट स्तर का हो और हम महानता वरण कर सकें, यह संभव नहीं। संकीर्ण और स्वार्थी लोग अनीति से कुछ पैसे भले ही इकट्ठे कर लें, पर उन विभूतियों से सर्वथा वंचित ही बने रहेंगे, जो व्यक्तित्व को प्रखर और परिस्थितियों को सुख-शांति से भरी संतोषजनक बना सकती है।
🔴 समाज व्यक्तियों के समूह का नाम है। व्यक्ति जैसे होंगे समाज वैसा ही बन जाएगा। लोग जैसे होंगे वैसा ही समाज एवं राष्ट्र बनेगा। दीन दुर्बल स्तर की जनता कभी समर्थ और स्वस्थ राष्ट्र का निर्माण नहीं कर सकती। धर्म, शासन, व्यवसाय, उद्योग, चिकित्सा, शिक्षा, कला आदि सभी क्षेत्रों का नेतृत्व जनता के ही आदमी करते हैं। जन-मानस का उत्तर गिरा हुआ हो तो ऊँचे, अच्छे, समर्थ और सजीव व्यक्तित्व नेतृत्व के लिए कहाँ से आएँगे?
🌹 क्रमशः जारी
🌹 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
http://literature.awgp.org/book/ikkeesaveen_sadee_ka_sanvidhan/v1.98
http://literature.awgp.org/book/ikkeesaveen_sadee_ka_sanvidhan/v2.18