कौरवों की राज सभा लगी हुई है। एक ओर कौने में पाण्डव भी बैठे हैं। दुर्योधन की आज्ञा पाकर दुःशासन उठता है और द्रौपदी को घसीटता हुआ राज सभा में ला रहा है। आज दुष्टों के हाथ उस अबला की लाज लूटी जाने वाली है। उसे सभा में नंग किया जायेगा। वचनबद्ध पाण्डव सिर नीचा किए बैठे हैं।
द्रौपदी अपने साथ होने वाले अपमान से दुःखी हो उठी। उधर सामने दुष्ट दुःशासन आ खड़ा हुआ। द्रौपदी ने सभा में उपस्थित सभी राजों महाराजों, पितामहों को रक्षा के लिए पुकारा, किन्तु दुर्योधन के भय से और उसका नमक खाकर जीने वाले कैसे उठ सकते थे। द्रौपदी ने भगवान को पुकारा अन्तर्यामी घट−घटवासी कृष्ण दौड़े आये कि आज भक्त पर भीर पड़ी है। द्रौपदी को दर्शन दिया और पूछा किसी को वस्त्र दिया हो तो याद करो? द्रौपदी को एक बात याद आई और बोली—‟भगवान् एक बार पानी भरने गई थी तो तपस्या करते हुए ऋषि की लँगोटी नदी में बह गई, तब उसे धोती में से आधी फाड़कर दी थी। कृष्ण भगवान ने कहा—द्रौपदी अब चिन्ता मत करो। तुम्हारी रक्षा हो जायगी और जितनी साड़ी दुःशासन खींचता गया उतनी ही बढ़ती गई। दुःशासन हारकर बैठ गया, किन्तु साड़ी का ओर छोर ही नहीं आया।
यदि मनुष्य का स्वयं का कुछ किया हुआ न हो तो स्वयं विधाता भी उसकी सहायता नहीं कर सकता। क्योंकि सृष्टि का विधान अटल है। जिस प्रकार विधान बनाने वाले विधायकों को स्वयं उसका पालन करना पड़ता है वैसे ही ईश्वरीय अवतार महापुरुष स्वयं भगवान भी अपने बनाये विधानों का उल्लंघन नहीं कर सकते। इससे तो उनका सृष्टि संचालन ही अस्त−व्यस्त हो जायेगा।
इस सम्बन्ध में उन लोगों को सचेत होकर अपना कर्म करना चाहिए जो सोचते हैं कि भगवान सब कर देंगे और स्वयं हाथ पर हाथ धरे बैठे रहें। जीवन में जो कुछ मिलता है अपने पूर्व या वर्तमान कर्मों के फल के अनुसार। बैंक बैलेन्स में यदि रकम नहीं हो तो खातेदार को खाली हाथ लौटना पड़ता है। मनुष्य के कर्मों के खाते में यदि जमा में कुछ नहीं हो तो कुछ नहीं मिलने का। कर्म की पूँजी जब इकट्ठी करेंगे तभी कुछ मिलना सम्भव है। भगवान और देवता क्या करेंगे?