जातिवाद
हिन्दू समाज का जातिवाद शोषण का एक और कारण है। इसका प्रारम्भ वर्ण व्यवस्था से किया गया था। वर्ण व्यवस्था पेशों को दृष्टि में रखकर सुविधा के कारण हुई थी। उसमें ऊँच नीच, छूतछात, ऊँचाई निचाई की संकुलित भावनाएँ न थीं। धीरे-धीरे ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र जन्मजात वर्ण बन गए और प्रत्येक वर्ण की अनेक उपजातियाँ बन गई। धीरे धीरे एक जाति के लोगों ने दूसरी जाति के खानपान, रोटी बेटी के व्यवहार बन्द किए। एक दूसरे के प्रति घृणा, वैर, ऊँच नीच के विचार आ गए। ऊँची कहलाने वाली जातियाँ नीची कहलाने वाली जातियों पर अत्याचार, आर्थिक शोषण और छूतछात के विचार रखने लगीं। जाति वाद के अत्याचारों, संकुचिता, शोषण, बहिष्कार के कारण हमारा देश हजारों वर्ष तक गुलाम रहा। एक जाति और वर्ण के व्यक्ति दूसरी जाति या वर्ण के लोगों को नीचा दिखाने में ही शान समझते रहे। जातिवाद के अत्याचारों के कारण हिंदू समाज का छोटा, नीच, दबा, पिसा और शोषित हिंदू शूद्र हिंदू तिरस्कार छूतछात, हीनत्व तथा हेटेपन का जीवन व्यतीत कर रहा है।
इस प्रकार हम देखते हैं कि मानव समूहों में हो रहे कठोर तम शोषण और संघर्षों के प्रधान कारण तीन रहे हैं। (1) अर्थनीतिक, (2) वर्ग या जातिगत और (3) मत या धर्म गत। प्रथम महायुद्ध में अर्थनीतिक कारण था, दूसरे में अर्थनीतिक के साथ साथ मत सम्बन्धी भी कारण संयुक्त हो रहे थे। यदि भविष्य में तृतीय महायुद्ध हुआ तो उसमें अर्थनीतिक, जाति तथा मत वैषस्य-ये तीनों ही कारण मौजूद होंगे।
आज विश्व की विचित्र दशा है। शैतानी, आसुरी, पैशाचिक शक्तियों ने मनुष्य को उसके दैवी स्वभाव तथा जन्म सिद्ध पवित्र अधिकारों से वंचित कर दिया है। अज्ञान, अविवेक, प्रलोभन, स्वार्थ, नैराश्य, संकीर्णता, ने उसकी दिव्य दृष्टि का अपहरण करके उसे क्रूर, कुकर्मी, हिंसक, हत्यारा, धूर्त, मूर्ख, पाखण्डी, एवं मोहग्रस्त बना दिया है। सृष्टि का मुकुटमणि, धर्म को धारण करने वाला महा मानव-आज निरीह एवं असहाय की तरह दुख दारिद्र की शैतानी षड़यंत्र की चक्की में पिस रहा है। हा, हन्त!
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 अखण्ड ज्योति जनवरी 1953 पृष्ठ 6
http://literature.awgp.org/akhandjyoti/1953/January/v1.6
हिन्दू समाज का जातिवाद शोषण का एक और कारण है। इसका प्रारम्भ वर्ण व्यवस्था से किया गया था। वर्ण व्यवस्था पेशों को दृष्टि में रखकर सुविधा के कारण हुई थी। उसमें ऊँच नीच, छूतछात, ऊँचाई निचाई की संकुलित भावनाएँ न थीं। धीरे-धीरे ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र जन्मजात वर्ण बन गए और प्रत्येक वर्ण की अनेक उपजातियाँ बन गई। धीरे धीरे एक जाति के लोगों ने दूसरी जाति के खानपान, रोटी बेटी के व्यवहार बन्द किए। एक दूसरे के प्रति घृणा, वैर, ऊँच नीच के विचार आ गए। ऊँची कहलाने वाली जातियाँ नीची कहलाने वाली जातियों पर अत्याचार, आर्थिक शोषण और छूतछात के विचार रखने लगीं। जाति वाद के अत्याचारों, संकुचिता, शोषण, बहिष्कार के कारण हमारा देश हजारों वर्ष तक गुलाम रहा। एक जाति और वर्ण के व्यक्ति दूसरी जाति या वर्ण के लोगों को नीचा दिखाने में ही शान समझते रहे। जातिवाद के अत्याचारों के कारण हिंदू समाज का छोटा, नीच, दबा, पिसा और शोषित हिंदू शूद्र हिंदू तिरस्कार छूतछात, हीनत्व तथा हेटेपन का जीवन व्यतीत कर रहा है।
इस प्रकार हम देखते हैं कि मानव समूहों में हो रहे कठोर तम शोषण और संघर्षों के प्रधान कारण तीन रहे हैं। (1) अर्थनीतिक, (2) वर्ग या जातिगत और (3) मत या धर्म गत। प्रथम महायुद्ध में अर्थनीतिक कारण था, दूसरे में अर्थनीतिक के साथ साथ मत सम्बन्धी भी कारण संयुक्त हो रहे थे। यदि भविष्य में तृतीय महायुद्ध हुआ तो उसमें अर्थनीतिक, जाति तथा मत वैषस्य-ये तीनों ही कारण मौजूद होंगे।
आज विश्व की विचित्र दशा है। शैतानी, आसुरी, पैशाचिक शक्तियों ने मनुष्य को उसके दैवी स्वभाव तथा जन्म सिद्ध पवित्र अधिकारों से वंचित कर दिया है। अज्ञान, अविवेक, प्रलोभन, स्वार्थ, नैराश्य, संकीर्णता, ने उसकी दिव्य दृष्टि का अपहरण करके उसे क्रूर, कुकर्मी, हिंसक, हत्यारा, धूर्त, मूर्ख, पाखण्डी, एवं मोहग्रस्त बना दिया है। सृष्टि का मुकुटमणि, धर्म को धारण करने वाला महा मानव-आज निरीह एवं असहाय की तरह दुख दारिद्र की शैतानी षड़यंत्र की चक्की में पिस रहा है। हा, हन्त!
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 अखण्ड ज्योति जनवरी 1953 पृष्ठ 6
http://literature.awgp.org/akhandjyoti/1953/January/v1.6