मंगलवार, 18 जुलाई 2023

👉 आत्मचिंतन के क्षण Aatmchintan Ke Kshan 18 July 2023

ईमानदारी का तकाजा है कि देशवासियों के औसत वर्ग की तरह जिये और बचत को लोकमंगल के लिए लौटा दे। यदि ऐसा नहीं किया जाता, बढ़ी हुई कमाई को ऐय्याशी में, बड़प्पन के अहंकारी प्रदर्शन में खर्च किया जाता है अथवा बेटे पोतों के लिए जोड़ा-जमा किया जाता है, तो ऐसा कर्त्तव्य विचारशीलता की कसौटी पर अवांछनीय ही माना जाएगा।

हमारी अभिलाषा यह है कि अपने स्वजन-परिजनों को नव निर्माणों के लिए कुछ करने के लिए कहते-सुनते रहने का अभ्यस्त मात्र न बना दें, वरन् कुछ तो करने के लिए उनमें सक्रियता पैदा करें। थोड़े कदम तो उन्हें चलते-चलाते अपनी आँखों से देख लें। हमने अपना सारा जीवन जिस मिशन के लिए तिल-तिल जला दिया, जिसके लिए हम आजीवन प्रकाश-प्रेरणा देते रहे उसका कुछ तो सक्रिय स्वरूप दिखाई देना ही चाहिए। हमारे प्रति आस्था और श्रद्धा व्यक्त करने वाले क्या हमारे अनुरोध को भी अपना सकते हैं?

समय, साधन, सुविधा और सामर्थ्य होते हुए भी हम परमार्थ प्रयोजनों के लिए कुछ सोच और कर नहीं पाते यह अंतरंग की दुर्बलता ही सबसे बड़ा बंधन है। उसे तोड़कर फेंका जा सकता हो और उच्च विचारणा के अनुरूप आदर्शवादी परमार्थ परायण जीवन जिया जा सकता हो तो समझना चाहिए कि मुक्ति मिल गई।

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

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👉 दाम्पत्य जीवन की सफलता का मार्ग (भाग 2)

अनुदार स्वभाव के स्त्री-पुरुष कट्टर, एवं संकीर्ण मनोवृत्ति के होने के कारण यह चाहते हैं कि हमारा साथी हमारी किसी भी बात में तनिक भी मतभेद न रखे। पति अपनी स्त्री को पतिव्रत पाठ पढ़ाता है और उपदेश करता है कि तुम्हें पूर्ण पवित्रता, इतनी उग्र पतिव्रता होना चाहिए कि पति की किसी भी भली-बुरी विचारधारा, आदत, कार्यप्रणाली में हस्तक्षेप न हो। इसके विपरीत स्त्री अपने पति से आशा करती है कि पति के लिए भी यह उचित है कि स्त्री को अपना जीवनसंगी, आधा अंग समझ कर उसके सहयोग एवं अधिकार की उपेक्षा न करे। यह भावनाएं जब संकीर्णता और अनुदारता से संमिश्रित होती हैं तो एक पक्ष सोचता है कि मेरे अधिकार का दूसरा पक्ष पूर्ण नहीं करता। बस यहीं से झगड़े की जड़ आरम्भ हो जाती है।
 
इस झगड़े का एकमात्र हल यह है कि स्त्री पुरुष को, और पुरुष स्त्री को, अपने मन का अधिकाधिक उदार भावना से बरते। जैसे किसी व्यक्ति का एक हाथ या एक पैर कुछ कमजोर, रोगी, या दोषपूर्ण हो तो वह उसे न तो काट कर फेंक देता है न कूट डालता है और न उससे घृणा, असंतोष, विद्वेष आदि करता है अपितु उस विकृत अंग को अपेक्षाकृत अधिक सुविधा देने और उसके सुधारने के लिए, स्वस्थ भाग की भी थोड़ी उपेक्षा कर देता है। यह नीति अपने कमजोर साथी के बारे में बरती जाय तो झगड़े का एक भारी कारण दूर हो जाता है।

झगड़ा करने से पहले आपसी विचार विनिमय के सब प्रयोगों को अनेक बार कर लेना चाहिए। कोई वज्रमूर्ख और घोर दुष्ट प्रकृति के मनुष्य तो ऐसे हो सकते हैं जो दंड के अतिरिक्त और किसी वस्तु से नहीं समझते। पर अधिकाँश मनुष्य ऐसे होते हैं जो प्रेम भावना के साथ, एकान्त स्थान में सब ऊँच नीच समझने से बहुत कुछ समझ और सुधर जाते हैं। जो थोड़ा बहुत मतभेद रह जाय उसकी उपेक्षा करके उन बातों को ही विचार क्षेत्र में आगे देना चाहिए जिनमें मतैक्य है।

.... क्रमशः जारी
📖 अखण्ड ज्योति- मार्च 1950 पृष्ठ 27


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