इस संसार में भावना ही प्रधान है। कर्म का भला-बुरा रूप उसी के आधार पर बंधनकारक और मुक्तिदायक बनता है। सद्भावना से प्रेरित कर्म सदा शुभ और श्रेष्ठ ही होते हैं, पर कदाचित् वे अनुपयुक्त भी बन पड़ें तो भी लोक दृष्टि से हेय ठहरते हुए वे आत्मिक दृष्टि से उत्कृष्ट ही सिद्ध होंगे। आंतरिक उत्कृष्टता, सदाशयता, उच्च भावना और कर्त्तव्य बुद्धि रखकर हम साधारण जीवन व्यतीत करते हुए भी महान् बनते हैं और इसी से हमारी लक्ष्य पूर्ति सरल बनती है।
यदि हम सज्जनता ढूँढने निकलें तो सर्वत्र न्यूनाधिक मात्रा में सज्जनता दिखाई देगी। मानवता के श्रेष्ठ गुणों से रहित कोई भी व्यक्ति इस संसार में नहीं है। सद्गुण और अच्छाइयाँ ढूँढने निकलें तो बुरे समझे जाने वाले मनुष्यों में भी अगणित ऐसी अच्छाइयाँ दिखाई देंगी जिनसे अपना चित्त प्रसन्न हो सके। इसके विपरीत यदि बुराई ढूँढना ही अपना उद्देश्य हो तो श्रेष्ठ, सज्जन और सम्भ्रान्त माने जाने वाले लोगों में भी अनेकों दोष सूझ पड़ सकते हैं और उनकी निन्दा करने का अवसर मिल सकता है।
जीवन में हर घड़ी आनंद और संतोष की मंगलमय अनुभूतियाँ उपलब्ध करते रहना अथवा द्वेष, विक्षेप और असंतोष की नारकीय अग्नि में जलते रहना बिलकुल अपने निज के हाथ की बात है। इसमें न कोई दूसरा बाधक है और न सहायक। अपना दृष्टिकोण यदि दोषदर्शी हो तो उसका प्रतिफल हमें घोर अशान्ति के रूप में मिलेगा ही और यदि हमारा सोचने का तरीका गुणग्राही है तो संसार की विविधता और विचित्रता हमारे मार्ग में विशेष बाधक नहीं हो सकती।
यदि हम सज्जनता ढूँढने निकलें तो सर्वत्र न्यूनाधिक मात्रा में सज्जनता दिखाई देगी। मानवता के श्रेष्ठ गुणों से रहित कोई भी व्यक्ति इस संसार में नहीं है। सद्गुण और अच्छाइयाँ ढूँढने निकलें तो बुरे समझे जाने वाले मनुष्यों में भी अगणित ऐसी अच्छाइयाँ दिखाई देंगी जिनसे अपना चित्त प्रसन्न हो सके। इसके विपरीत यदि बुराई ढूँढना ही अपना उद्देश्य हो तो श्रेष्ठ, सज्जन और सम्भ्रान्त माने जाने वाले लोगों में भी अनेकों दोष सूझ पड़ सकते हैं और उनकी निन्दा करने का अवसर मिल सकता है।
जीवन में हर घड़ी आनंद और संतोष की मंगलमय अनुभूतियाँ उपलब्ध करते रहना अथवा द्वेष, विक्षेप और असंतोष की नारकीय अग्नि में जलते रहना बिलकुल अपने निज के हाथ की बात है। इसमें न कोई दूसरा बाधक है और न सहायक। अपना दृष्टिकोण यदि दोषदर्शी हो तो उसका प्रतिफल हमें घोर अशान्ति के रूप में मिलेगा ही और यदि हमारा सोचने का तरीका गुणग्राही है तो संसार की विविधता और विचित्रता हमारे मार्ग में विशेष बाधक नहीं हो सकती।
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
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