🔷 इस दुनिया में तीन बड़े सत्य हैं-
1) आशा,
2) आस्था और
3) आत्मीयता
जिसने सच्चे मन से इन तीनों को जितनी मात्रा में हृदयंगम किया, समझना चाहिए कि सफल जीवन का आधार उसे उतनी ही मात्रा में उपलब्ध हो गया।
🔶 प्रत्येक कार्य एक कला है, चाहे वह छोटा हो या बड़ा। प्रत्येक कार्य का मौलिक आधार समान है। जिस तरह एक कलाकार अपनी कला से प्रेम करता है, उसमें तन्मयता के साथ खो जाता है, उसके प्रति दिलचस्पी और लगन का अटूट स्रोत उमड़ पड़ता है, उसी तरह प्रत्येक काम को किया जाय तो वह काम ही निश्चित समय पर वरदान बनकर मनुष्य को धन्य कर देता है।
🔷 सेवा वृत्ति हमारे स्वभाव का एक अंग होना चाहिए। इस एक मानवीय कर्तृत्व को पुण्य-परमार्थ की दृष्टि से ही किया जाना चाहिए। यदि इसके बदले यश की, प्रत्युपकार की आशा की जायगी तो सेवा कार्य बन ही न पड़ेगा। जब जहाँ यश मिलता है, तब वहाँ थोड़ा सा सेवा कार्य बन पड़ता है। जब उसमें कमी दिखती है, तभी वह उत्साह ठंडा पड़ जाता है, यह पुण्य प्रवृत्ति कहाँ हुई?
1) आशा,
2) आस्था और
3) आत्मीयता
जिसने सच्चे मन से इन तीनों को जितनी मात्रा में हृदयंगम किया, समझना चाहिए कि सफल जीवन का आधार उसे उतनी ही मात्रा में उपलब्ध हो गया।
🔶 प्रत्येक कार्य एक कला है, चाहे वह छोटा हो या बड़ा। प्रत्येक कार्य का मौलिक आधार समान है। जिस तरह एक कलाकार अपनी कला से प्रेम करता है, उसमें तन्मयता के साथ खो जाता है, उसके प्रति दिलचस्पी और लगन का अटूट स्रोत उमड़ पड़ता है, उसी तरह प्रत्येक काम को किया जाय तो वह काम ही निश्चित समय पर वरदान बनकर मनुष्य को धन्य कर देता है।
🔷 सेवा वृत्ति हमारे स्वभाव का एक अंग होना चाहिए। इस एक मानवीय कर्तृत्व को पुण्य-परमार्थ की दृष्टि से ही किया जाना चाहिए। यदि इसके बदले यश की, प्रत्युपकार की आशा की जायगी तो सेवा कार्य बन ही न पड़ेगा। जब जहाँ यश मिलता है, तब वहाँ थोड़ा सा सेवा कार्य बन पड़ता है। जब उसमें कमी दिखती है, तभी वह उत्साह ठंडा पड़ जाता है, यह पुण्य प्रवृत्ति कहाँ हुई?
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
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