बुधवार, 7 जून 2023

👉 आत्मचिंतन के क्षण Aatmchintan Ke Kshan 7 June 2023

🔷 इस दुनिया में तीन बड़े सत्य हैं-

1)  आशा,
2)  आस्था और
3)  आत्मीयता

जिसने सच्चे मन से इन तीनों को जितनी मात्रा में हृदयंगम किया, समझना चाहिए कि सफल जीवन का आधार उसे उतनी ही मात्रा में उपलब्ध हो गया।

🔶 प्रत्येक कार्य एक कला है, चाहे वह छोटा हो या बड़ा। प्रत्येक कार्य का मौलिक आधार समान है। जिस तरह एक कलाकार अपनी कला से प्रेम करता है, उसमें तन्मयता के साथ खो जाता है, उसके प्रति दिलचस्पी और लगन का अटूट स्रोत उमड़ पड़ता है, उसी तरह प्रत्येक काम को किया जाय तो वह काम ही निश्चित समय पर वरदान बनकर मनुष्य को धन्य कर देता है।

🔷 सेवा वृत्ति हमारे स्वभाव का एक अंग होना चाहिए। इस एक मानवीय कर्तृत्व को  पुण्य-परमार्थ की दृष्टि से ही  किया जाना चाहिए। यदि इसके बदले यश की, प्रत्युपकार की आशा की जायगी तो सेवा कार्य बन ही न पड़ेगा। जब जहाँ यश मिलता है, तब वहाँ थोड़ा सा सेवा कार्य बन पड़ता है। जब उसमें कमी दिखती है, तभी वह उत्साह ठंडा पड़ जाता है, यह पुण्य प्रवृत्ति कहाँ हुई?

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

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👉 क्रोध को कैसे जीता जाय? (भाग 1)

जैसे अपने शत्रु पर विजय प्राप्त करने के लिए यह आवश्यक है कि हम उसकी शक्ति का पहले अन्दाजा लगा लें, और यह समझ लें कि उसकी शक्ति का उद्गम क्या है, वैसे ही हमें यह समझ लेना चाहिये क्रोध पैदा क्यों होता है। इतना समझ लेने के बाद, क्रोध को पचा लेने की शक्ति मनुष्य प्राप्त कर सकता है।

ध्यायतो विषयान्पुँसः संगस्तेषूपायते,
संगात्संजायते कामः कामात्क्रोधोभिजायते॥
(गीता अध्याय 2 श्लोक 68)


उक्त पंक्तियों में क्रोध की उत्पत्ति पर प्रकाश डाला गया है। मनुष्य की इन्द्रियों के विषय हैं- सौंदर्य, स्वाद, मधुर शब्द, कोमल स्पर्श आदि। मनुष्य सुन्दर वस्तुओं को देखने, अच्छे-अच्छे भोजन और रसों का स्वाद लेने, संगीत के जैसे कर्ण प्रिय स्वरों को सुनने आदि की चिंता करता है। यह तो स्वाभाविक ही है किन्तु खतरा यह है कि उनके संबंध में सोचते वह इतना आदी हो जाता है कि वह उनके पाने की इच्छा करने लगता है। उनके बिना वह रह नहीं सकता, बस यही क्रोध का कारण है, क्योंकि उन सब चीजों की प्राप्ति अपने वश की बात नहीं है।

इस प्रकार हम देखते हैं कि क्रोध का सबसे बड़ा कारण है किसी से अत्यधिक इच्छा करना। आप अपने मित्र, पुत्र या पत्नी से इसीलिए नाराज होते हैं कि उसने आपकी इच्छानुसार कार्य नहीं किया। इच्छा करना बुरी चीज नहीं है, किन्तु जब हम किसी के ऊपर आवश्यकता से अधिक आशाएं बाँध लेते हैं और अपनी स्वार्थ सिद्धि का आधार समझ बैठते हैं, तभी क्रोध को मानो न्योता दे देते हैं। कोई व्यक्ति हमारी या आपकी इच्छाओं का पालन, मशीन की तरह नहीं कर सकता है। उसकी भी इच्छाएं हैं, जब पहले उसकी इच्छाएं पूरी हो जाएगी तभी वह आपकी तरफ ध्यान देगा। इसलिए क्रोध के विजय के मार्ग में सबसे क्षीण पहला कदम यह होगा कि हमें किसी से अंधाधुन्ध आशाएं नहीं करनी चाहिये। किन्तु यह केवल रक्षात्मक कार्य हैं। क्रोध पर पूरी तरह विजय प्राप्त करने के लिए किसी से कुछ कार्य सिद्धि की अभिलाषा करने के स्थान पर, यदि हम यह सोचना बल्कि करना आरम्भ कर दें कि हमें अपने मित्रों और प्रेमियों की सेवा करनी है। इस प्रकार की मनोवृत्ति उत्पन्न हो जाने पर क्रोध की कोई गुंजाइश न रहेगी।

अखण्ड ज्योति- जून 1949 पृष्ठ 9

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👉 महिमा गुणों की ही है

🔷 असुरों को जिताने का श्रेय उनकी दुष्टता या पाप-वृति को नहीं मिल सकता। उसने तो अन्तत: उन्हें विनाश के गर्त में ही गिराया और निन्दा के न...