आज ही के दिन यानी 24 जून, 1564 को रानी दुर्गावती का निधन हुआ था। 5 अक्टूबर, 1524 को प्रसिद्ध चंदेल राजा कीर्ति सिंह चंदेल के घर जन्मीं रानी दुर्गावती ने मुगलों से जमकर लोहा लिया लेकिन मुगलों की विशाल सेना के सामने ज्यादा दिनों तक उनका प्रतिरोध नहीं चला और 24 जून, 1564 को जब उनको हार करीब महसूस हुई तो आत्म बलिदान दे दिया।
🔷 परिचय
रानी दुर्गावती का जन्म 5 अक्टूबर,1524 को महोबा में हुआ था। बांदा जिले के कालिंजर किले में 1524 ईस्वी की दुर्गाष्टमी पर जन्म के कारण उनका नाम दुर्गावती रखा गया। नाम के अनुरूप ही तेज, साहस, शौर्य और सुंदरता के कारण उनकी प्रसिद्धि सब ओर फैल गई। दुर्गावती के पिता महोबा के राजा थे। रानी दुर्गावती सुंदर, सुशील, विनम्र, योग्य एवं साहसी लड़की थी। बचपन में ही उनको वीरतापूर्ण एवं साहस भरी कहानियां सुनना व पढ़ना अच्छा लगता था। पढ़ाई के साथ-साथ दुर्गावती ने घोड़े पर चढ़ना, तीर तलवार चलाना, अच्छी तरह सीख लिया था। शिकार खेलना उसका शौक था। वह अपने पिता के साथ शिकार खेलने जाया करती थीं। पिता के साथ वह शासन का कार्य भी देखती थीं।
🔷 परिचय
रानी दुर्गावती का जन्म 5 अक्टूबर,1524 को महोबा में हुआ था। बांदा जिले के कालिंजर किले में 1524 ईस्वी की दुर्गाष्टमी पर जन्म के कारण उनका नाम दुर्गावती रखा गया। नाम के अनुरूप ही तेज, साहस, शौर्य और सुंदरता के कारण उनकी प्रसिद्धि सब ओर फैल गई। दुर्गावती के पिता महोबा के राजा थे। रानी दुर्गावती सुंदर, सुशील, विनम्र, योग्य एवं साहसी लड़की थी। बचपन में ही उनको वीरतापूर्ण एवं साहस भरी कहानियां सुनना व पढ़ना अच्छा लगता था। पढ़ाई के साथ-साथ दुर्गावती ने घोड़े पर चढ़ना, तीर तलवार चलाना, अच्छी तरह सीख लिया था। शिकार खेलना उसका शौक था। वह अपने पिता के साथ शिकार खेलने जाया करती थीं। पिता के साथ वह शासन का कार्य भी देखती थीं।
🔶 विवाह
1542 में दुर्गावती का विवाह गोंड साम्राज्य के संग्राम शाह के बड़े बेटे दलपत शाह के साथ कराया गया। शादी के कुछ वर्षों बाद दुर्गावती को एक बेटा हुआ जिसका नाम वीर नारायण रखा। बेटे के जन्म के कुछ समय बाद ही राजा दलपत शाह की मृत्यु हो गई।
🔷 जब शेर को मार गिराया
गढ़मंडल के जंगलो में उन दिनों एक शेर ने आतंक मचा रखा था। शेर के आतंक का शिकार कई जानवर बन चुके थे। जब रानी तक यह खबर पहुंची तो वह शेर को मारने निकल पड़ीं। दिन भर की खोज के बाद शाम में एक झाड़ी में शेर दिखाई दिया। रानी ने एक ही वार में शेर को मार दिया। उनके अचूक निशाने को देखकर सैनिक हैरान रह गए।
1542 में दुर्गावती का विवाह गोंड साम्राज्य के संग्राम शाह के बड़े बेटे दलपत शाह के साथ कराया गया। शादी के कुछ वर्षों बाद दुर्गावती को एक बेटा हुआ जिसका नाम वीर नारायण रखा। बेटे के जन्म के कुछ समय बाद ही राजा दलपत शाह की मृत्यु हो गई।
🔷 जब शेर को मार गिराया
गढ़मंडल के जंगलो में उन दिनों एक शेर ने आतंक मचा रखा था। शेर के आतंक का शिकार कई जानवर बन चुके थे। जब रानी तक यह खबर पहुंची तो वह शेर को मारने निकल पड़ीं। दिन भर की खोज के बाद शाम में एक झाड़ी में शेर दिखाई दिया। रानी ने एक ही वार में शेर को मार दिया। उनके अचूक निशाने को देखकर सैनिक हैरान रह गए।
🔶 पति की मौत के बाद संघर्ष
पति की मौत के बाद गोंड साम्राज्य पर आधिपत्य को लेकर चल रही राजनीति की आहट पाकर रानी ने स्वयं को गोंडवाना की महारानी घोषित कर दिया। 1550 में वह गोंडवाना की रानी बनीं और 1564 तक रानी रहीं। एक महिला ने जब राज्य की सत्ता का संचालन अपने हाथों में लिया तो आसपास के राज्यों के पुरुषवादी शासक काफी प्रसन्न हो गए। उनको आशा थी कि महिला होने के नाते गोंड साम्राज्य पर कब्जा करने के लिए उन्हें ज्यादा संघर्ष नहीं करना पड़ेगा।
🔷 बाज बहादुर को हरायामालवा गणराज्य के शासक बाज बहादुर ने इसी सोच के साथ गोंडवाना पर हमला किया लेकिन बाज बहादुर की सोच गलत साबित हुई और उसे रानी दुर्गावती ने करारी शिकस्त दी। इस जीत के साथ ही रानी दुर्गावती का यश चारों ओर फैल गया।
पति की मौत के बाद गोंड साम्राज्य पर आधिपत्य को लेकर चल रही राजनीति की आहट पाकर रानी ने स्वयं को गोंडवाना की महारानी घोषित कर दिया। 1550 में वह गोंडवाना की रानी बनीं और 1564 तक रानी रहीं। एक महिला ने जब राज्य की सत्ता का संचालन अपने हाथों में लिया तो आसपास के राज्यों के पुरुषवादी शासक काफी प्रसन्न हो गए। उनको आशा थी कि महिला होने के नाते गोंड साम्राज्य पर कब्जा करने के लिए उन्हें ज्यादा संघर्ष नहीं करना पड़ेगा।
🔷 बाज बहादुर को हरायामालवा गणराज्य के शासक बाज बहादुर ने इसी सोच के साथ गोंडवाना पर हमला किया लेकिन बाज बहादुर की सोच गलत साबित हुई और उसे रानी दुर्गावती ने करारी शिकस्त दी। इस जीत के साथ ही रानी दुर्गावती का यश चारों ओर फैल गया।
🔶 मुगलों का डटकर मुकाबला किया
मुगल सूबेदार ने रानी दुर्गावती से अकबर की अधीनता स्वीकार करने को कहा। आसफ खां ने समझा कि दुर्गावती महिला है, अकबर के प्रताप से भयभीत होकर आत्मसमर्पण कर देगी. परन्तु रानी दुर्गावती को अपनी योग्यता, साधन और सैन्य शक्ति पर इतना विश्वास था कि उसे अकबर की सेना के प्रति भी कोई भय नहीं था। रानी दुर्गावती के मंत्री ने आसफ खान की सेना और सज्जा को देखकर युद्ध न करने की सलाह दी।
रानी दुर्गावती ने उसे जवाब भिजवाते हुए कहा, 'कलंकित जीवन जीने की अपेक्षा शान से मर जाना अच्छा है। आसफ खान जैसे साधारण सूबेदार के सामने झुकना लज्जा की बात है। रानी सैनिक के वेश में घोड़े पर सवार होकर निकल पड़ी। रानी को सैनिक के वेश में देखकर आसफ खान के होश उड़ गये। रणक्षेत्र में रानी के सैनिक उत्साहित होकर शत्रुओ को काटने लगे। रानी भी शत्रुओ पर टूट पड़ी। देखते ही देखते दुश्मनो की सेना मैदान छोड़कर भाग निकली। आसफ खान बड़ी कठिनाई से अपने प्राण बचाने में सफल हुआ।
आसफ खान की बुरी तरह हार सुनकर अकबर बहुत लज्जित हुआ। डेढ़ वर्ष बाद उसने पुनः आसफ खान को गढ़मंडल पर आक्रमण करने भेजा। रानी तथा आसफ खान के बीच घमासान युद्ध हुआ। तोपों का वार होने पर भी रानी ने हिम्मत नहीं हारी। रानी हाथी पर सवार सेना का संचालन कर रही थी। उन्होंने मुग़ल तोपचियों का सिर काट डाला। यह देखकर आसफ खान की सेना फिर भाग खड़ी हुई। दो बार हारकर आसफ खान लज्जा और ग्लानी से भर गया।
मुगल सूबेदार ने रानी दुर्गावती से अकबर की अधीनता स्वीकार करने को कहा। आसफ खां ने समझा कि दुर्गावती महिला है, अकबर के प्रताप से भयभीत होकर आत्मसमर्पण कर देगी. परन्तु रानी दुर्गावती को अपनी योग्यता, साधन और सैन्य शक्ति पर इतना विश्वास था कि उसे अकबर की सेना के प्रति भी कोई भय नहीं था। रानी दुर्गावती के मंत्री ने आसफ खान की सेना और सज्जा को देखकर युद्ध न करने की सलाह दी।
रानी दुर्गावती ने उसे जवाब भिजवाते हुए कहा, 'कलंकित जीवन जीने की अपेक्षा शान से मर जाना अच्छा है। आसफ खान जैसे साधारण सूबेदार के सामने झुकना लज्जा की बात है। रानी सैनिक के वेश में घोड़े पर सवार होकर निकल पड़ी। रानी को सैनिक के वेश में देखकर आसफ खान के होश उड़ गये। रणक्षेत्र में रानी के सैनिक उत्साहित होकर शत्रुओ को काटने लगे। रानी भी शत्रुओ पर टूट पड़ी। देखते ही देखते दुश्मनो की सेना मैदान छोड़कर भाग निकली। आसफ खान बड़ी कठिनाई से अपने प्राण बचाने में सफल हुआ।
आसफ खान की बुरी तरह हार सुनकर अकबर बहुत लज्जित हुआ। डेढ़ वर्ष बाद उसने पुनः आसफ खान को गढ़मंडल पर आक्रमण करने भेजा। रानी तथा आसफ खान के बीच घमासान युद्ध हुआ। तोपों का वार होने पर भी रानी ने हिम्मत नहीं हारी। रानी हाथी पर सवार सेना का संचालन कर रही थी। उन्होंने मुग़ल तोपचियों का सिर काट डाला। यह देखकर आसफ खान की सेना फिर भाग खड़ी हुई। दो बार हारकर आसफ खान लज्जा और ग्लानी से भर गया।
🔷 अंत समय
24 जून 1564 को मुगल सेना ने फिर हमला बोला। रानी ने अपने पुत्र के नेतृत्व में सेना भेजकर स्वयं एक टुकड़ी का नेतृत्व संभाला। दुश्मनों के छक्के छूटने लगे। उसी बीच रानी ने देखा कि उसका 15 का वर्ष का पुत्र घायल होकर घोड़े से गिर गया है। रानी विचलित न हुई।
उसी सेना के कई वीर पुरुषो ने वीर नारायण को सुरक्षित स्थान पर पहुंचा दिया और रानी से प्रार्थना की कि वे अपने पुत्र का अंतिम दर्शन कर ले। रानी ने उत्तर दिया- यह समय पुत्र से मिलने का नहीं है। मुझे ख़ुशी है कि मेरे वीर पुत्र ने युद्ध भूमि में वीर गति पाई है. अतः मैं उससे देवलोक में ही मिलूंगी।
रानी दुर्गावती ने लगभग 16 वर्षो तक संरक्षिका के रूप में शासन किया। भारत के इतिहास में रानी दुर्गावती और चाँदबीबी ही ऐसी वीर महिलाएं थी जिन्होंने अकबर की शक्तिशाली सेना का सामना किया तथा मुगलों के राज्य विस्तार को रोका। अकबर ने अपने शासन काल में बहुत सी लड़ाईयां लड़ी किन्तु गढ़मंडल के युद्ध ने मुग़ल सम्राट के दांत खट्टे कर दिए।
रानी दुर्गावती में अनेक गुण थे। वीर और साहसी होने के साथ ही वे त्याग और ममता की मूर्ति थी। राजघराने में रहते हुए भी उन्होंने बहुत सादा जीवन व्यतीत किया। राज्य के कार्य देखने के बाद वे अपना समय पूजा – पाठ और धार्मिक कार्यो में व्यतीत करती थी।
भारतीय नारी की वीरता तथा बलिदान की यह घटना अमर रहेगी।
24 जून 1564 को मुगल सेना ने फिर हमला बोला। रानी ने अपने पुत्र के नेतृत्व में सेना भेजकर स्वयं एक टुकड़ी का नेतृत्व संभाला। दुश्मनों के छक्के छूटने लगे। उसी बीच रानी ने देखा कि उसका 15 का वर्ष का पुत्र घायल होकर घोड़े से गिर गया है। रानी विचलित न हुई।
उसी सेना के कई वीर पुरुषो ने वीर नारायण को सुरक्षित स्थान पर पहुंचा दिया और रानी से प्रार्थना की कि वे अपने पुत्र का अंतिम दर्शन कर ले। रानी ने उत्तर दिया- यह समय पुत्र से मिलने का नहीं है। मुझे ख़ुशी है कि मेरे वीर पुत्र ने युद्ध भूमि में वीर गति पाई है. अतः मैं उससे देवलोक में ही मिलूंगी।
रानी दुर्गावती ने लगभग 16 वर्षो तक संरक्षिका के रूप में शासन किया। भारत के इतिहास में रानी दुर्गावती और चाँदबीबी ही ऐसी वीर महिलाएं थी जिन्होंने अकबर की शक्तिशाली सेना का सामना किया तथा मुगलों के राज्य विस्तार को रोका। अकबर ने अपने शासन काल में बहुत सी लड़ाईयां लड़ी किन्तु गढ़मंडल के युद्ध ने मुग़ल सम्राट के दांत खट्टे कर दिए।
रानी दुर्गावती में अनेक गुण थे। वीर और साहसी होने के साथ ही वे त्याग और ममता की मूर्ति थी। राजघराने में रहते हुए भी उन्होंने बहुत सादा जीवन व्यतीत किया। राज्य के कार्य देखने के बाद वे अपना समय पूजा – पाठ और धार्मिक कार्यो में व्यतीत करती थी।
भारतीय नारी की वीरता तथा बलिदान की यह घटना अमर रहेगी।