🔷 शरशय्या पर पड़े हुए भीष्म पितामह मृत्यु से पूर्व आवश्यक उपदेश पाण्डवों को दे रहे थे। उन्हें इस प्रकार धर्मोपदेश देते देखकर द्रौपदी के मन में आया कि जब दुर्योधन मेरी इज्जत उतार रहा था तब इनने उसे कुछ उपदेश नहीं किया और आज धर्म की इतनी लम्बी-चौड़ी बातें कर रहे है। द्रौपदी इन मनोभावों के साथ हंस पड़ी।
🔶 द्रौपदी के मनोभाव भीष्म ने जान लिये। उनने कहा-बेटी उस समय मेरे शरीर में कौरवों का अन्न भरा हुआ था जिसके कारण मेरी बुद्धि वैसी ही अधर्मयुक्त हो रही थी। अब युद्ध में वह रक्त निकल गया, कई दिन से मैंने भोजन भी नहीं किये इससे मेरे पेट में कोई अन्न न होने से मेरे विचार शुद्ध है और अब मैं धर्मोपदेश देने की स्थिति में होने के कारण उत्तम शिक्षाऐं आप लोगों को दे रहा हूँ।
🔷 दुष्टों का अन्न खाने से सत्पुरुषों की भी बुद्धि दूषित हो जाती है अन्न का मन पर बड़ा प्रभाव पड़ता है।
🌹 अखण्ड ज्योति जून 1961
🔶 द्रौपदी के मनोभाव भीष्म ने जान लिये। उनने कहा-बेटी उस समय मेरे शरीर में कौरवों का अन्न भरा हुआ था जिसके कारण मेरी बुद्धि वैसी ही अधर्मयुक्त हो रही थी। अब युद्ध में वह रक्त निकल गया, कई दिन से मैंने भोजन भी नहीं किये इससे मेरे पेट में कोई अन्न न होने से मेरे विचार शुद्ध है और अब मैं धर्मोपदेश देने की स्थिति में होने के कारण उत्तम शिक्षाऐं आप लोगों को दे रहा हूँ।
🔷 दुष्टों का अन्न खाने से सत्पुरुषों की भी बुद्धि दूषित हो जाती है अन्न का मन पर बड़ा प्रभाव पड़ता है।
🌹 अखण्ड ज्योति जून 1961