मंगलवार, 31 अक्तूबर 2017

👉 अन्न का प्रभाव

🔷 शरशय्या पर पड़े हुए भीष्म पितामह मृत्यु से पूर्व आवश्यक उपदेश पाण्डवों को दे रहे थे। उन्हें इस प्रकार धर्मोपदेश देते देखकर द्रौपदी के मन में आया कि जब दुर्योधन मेरी इज्जत उतार रहा था तब इनने उसे कुछ उपदेश नहीं किया और आज धर्म की इतनी लम्बी-चौड़ी बातें कर रहे है। द्रौपदी इन मनोभावों के साथ हंस पड़ी।

🔶 द्रौपदी के मनोभाव भीष्म ने जान लिये। उनने कहा-बेटी उस समय मेरे शरीर में कौरवों का अन्न भरा हुआ था जिसके कारण मेरी बुद्धि वैसी ही अधर्मयुक्त हो रही थी। अब युद्ध में वह रक्त निकल गया, कई दिन से मैंने भोजन भी नहीं किये इससे मेरे पेट में कोई अन्न न होने से मेरे विचार शुद्ध है और अब मैं धर्मोपदेश देने की स्थिति में होने के कारण उत्तम शिक्षाऐं आप लोगों को दे रहा हूँ।

🔷 दुष्टों का अन्न खाने से सत्पुरुषों की भी बुद्धि दूषित हो जाती है अन्न का मन पर बड़ा प्रभाव पड़ता है।

🌹 अखण्ड ज्योति जून 1961

👉 हमारी वसीयत और विरासत (भाग 150)

🌹  ‘‘विनाश नहीं सृजन’’ हमारा भविष्य कथन

🔷 अगला समय संकटों से भरा-पूरा है, इस बात को विभिन्न मूर्धन्यों ने अपने-अपने दृष्टिकोण के अनुसार विभिन्न प्रकार के जोरदार शब्दों में कहा। ईसाई धर्मग्रंथ बाइबिल में जिस ‘‘सेविन टाइम्स’’ में प्रलय काल जैसी विपत्ति आने का उल्लेख किया है, उसका ठीक समय यही है। इस्लाम धर्म में चौदहवीं सदी के महान संकट का उल्लेख है। भविष्य पुराण में इन्हीं दिनों महती विपत्ति टूट पड़ने का संकेत है। सिखों के गुरु ग्रंथसाहिब में भी ऐसी ही अनेक भविष्यवाणियाँ हैं। कवि सूरदास ने इन्हीं दिनों विपत्ति आने का इशारा किया था। मिस्र के पिरामिडों में भी ऐसे ही शिलालेख पाए गए हैं। अनेक भारतीय भविष्यवक्ताओं ने इन दिनों भयंकर उथल-पुथल के कारण अध्यात्म आधार पर और दृश्य गणित ज्योतिष के सहारे ऐसी ही सम्भावनाएँ व्यक्त की हैं।

🔶 पाश्चात्य देशों में जिन भविष्य वक्ताओं की धाक है और जिनकी भविष्यवाणियाँ ९९ प्रतिशत सही निकलती रही हैं, उनमें जीन डिक्शन, प्रो०हरार, एंडरशन, जॉनबावेरी, कीरो, आर्थर क्लार्क, नोस्ट्राडेमस, मदर शिम्टन, आनंदाचार्य आदि ने इस समय के सम्बन्ध में जो सम्भावनाएँ व्यक्त की हैं, वे भयावह हैं। कोरिया में पिछले दिनों समस्त संसार के दैवज्ञों का एक सम्मेलन हुआ था, उसमें भी डरावनी सम्भावनाओं की ही आगाही व्यक्त की गई थी। टोरंटो-कनाडा में, संसार भर के भविष्य विज्ञान विशेषज्ञों (फ्यूचराण्टालाजिस्टा) का एक सम्मेलन हुआ था, जिसमें वर्तमान परिस्थितियों का पर्यवेक्षण करते हुए कहा था कि बुरे दिन अति समीप आ गए हैं। ग्रह-नक्षत्रों के पृथ्वी पर पड़ने वाले प्रभावों को समझने वालों ने इन दिनों सूर्य पर बढ़ते धब्बों और लगातार पड़ने वाले सूर्यग्रहणों को धरती निवासियों के लिए हानिकारक बताया है। इन दिनों सन् ८५ के प्रारम्भ में उदय हुआ ‘‘हैली धूमकेतु’’ की विषैली गैसों का परिणाम पृथ्वीवासियों के लिए हानिकारक बताया गया है।

🔷 सामान्य बुद्धि के लोग भी जानते हैं कि अंधा-धुंध बढ़ती हुई जनसंख्या के लिए अगले दिनों अन्न-जल तो क्या सड़कों पर चलने का रास्ता तक न मिलेगा। औद्योगीकरण-मशीनीकरण की भरमार से हवा और पानी भी कम पड़ रहा है और विषाक्त हो चला है। खनिज तेल और धातुएँ, कोयला, पचास वर्ष तक के लिए नहीं है। अणु परीक्षणों से उत्पन्न विकिरण से अगली पीढ़ी और वर्तमान जन समुदाय को कैंसर जैसे भयानक रोगों की भरमार होने का भय है। कहीं अणु युद्ध हो गया तो इससे न केवल मनुष्य, वरन् अन्य प्राणियों और वनस्पतियों का भी सफाया हो जाएगा। असंतुलित हुए तापमान से ध्रुवों की बर्फ पिघल पड़ने, समुद्र में तूफान आने और हिमयुग के लौट पड़ने की सम्भावना बताई जा रही है और अनेक प्रकार के संकटों के अनेकानेक कारण विद्यमान हैं। इस संदर्भ में साहित्य इकट्ठा करना हो, तो उनसे ऐसी सम्भावनाएँ सुनिश्चित दिखाई पड़ती हैं, जिनके कारण इन वर्षों में भयानक उथल-पुथल हो। सन् २००० में युग परिवर्तन की घोषणा है, ऐसे समय में भी विकास से पूर्व विनाश की, ढलाई से पूर्व गलाई की सम्भावना का अनुमान लगाया जा सकता है। किसी भी पहलू से विचार किया जाए, प्रत्यक्षदर्शी और भावनाशील मनीषी-भविष्यवक्ता इन दिनों  विश्व संकट को अधिकाधिक गहरा होता देखते हैं।

🌹 क्रमशः जारी
🌹 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
http://literature.awgp.org/book/My_Life_Its_Legacy_and_Message/v2.170

http://literature.awgp.org/book/My_Life_Its_Legacy_and_Message/v4.21

👉 अपने ब्राह्मण एवं संत को जिन्दा कीजिए (भाग 9)

🔶 हर रोज चिट्ठियाँ आती हैं, हर शाखाओं में मारकाट-मारकाट मुझे मैनेजर बनाइये, इस मैनेजर को निकालिये। हमने शाखा तथा शक्तिपीठें इसलिए नहीं बनाई थीं, देवता को इसलिए नहीं बैठाया था कि लोगों का अहंकार बढ़े। हमने ट्रस्टी इसलिए नहीं बनाया था कि इसे बरबाद करो। हमने स्वयं गलती की इन लोगों को मालिक, ट्रस्टी बनाकर, इनके अहंकार एवं स्वार्थपरता को आगे बढ़ाकर। अब पंचायत समितियों में जिस प्रकार झगड़ा होते हैं, हमारे शक्तिपीठों में भी हर जगह चाण्डालपन है, हमें क्या दिखता नहीं? क्या हमने शक्तिपीठें इसीलिए बनाई थीं, पूजा इसीलिए प्रारम्भ की थी, इसीलिए संगठन बनाया था कि आप लोग अहंकारी बन जाइये और आपस में ही एक-दूसरे की टाँग-खिचाई कीजिये, आप ऐसी पूजा को बंद कीजिए, पूजा मत कीजिये, पर यह घटियापन बन्द कीजिये। आप नास्तिक हो जाइये, भले ही पर आप इसी तरह के संगठन बनाना बन्द कर दीजिए। आप शक्तिपीठों को बनाना बन्द कर दीजिये।
        
🔷 यहाँ हम एक बात अवश्य कहेंगे कि आप आध्यात्मिकता के मौलिक सिद्धान्तों को समझिये। पूजा को पीछे हटाइए, आध्यात्मिकता के मौलिक सिद्धान्तों को समझिये। आप यह मत सोचिये कि गुरुजी ने चौबीस-चौबीस लाख का जप किया था। नहीं, हम और चौबीस लाख के जप करने वालों का नाम बता सकते हैं जो आज बिलकुल खाली एवं छूँछ हैं। जप करने वाले कुछ नहीं कर सकते हैं, हम ब्राह्मण की शक्ति, सन्त की शक्ति जगाना चाहते हैं। आप राम का नाम लें या न लें। अब तो मैं यहाँ तक कहता हूँ कि अब माला जप करें या न करें, एक माला जप करें या ८१ माला जप करें, परन्तु मुख्य बात यह है कि आप अपने ब्राह्मणत्व को जगाइए। प्याऊ को कौन चलाएगा। हनुमान चालीसा पाठ करने वालों ने कितनों का भला किया है? ब्राह्मणों ने भला किया है, सन्तों ने भला किया है? ब्राह्मणों की वाणी में, सन्तों की तपस्या में बल होता है। आपको इसी प्रकार कोई मिल जाएगा तो आप नास्तिक हो जाएँगे। आप पूजा का महत्त्व बढ़ाइये। अध्यात्म इन लोगों के द्वारा ही टिका हुआ है।

🔶 आपके पास बैंक में धन जमा नहीं है, तो चैक कैसे काट सकते हैं। आपकी बैंक में पूँजी होनी चाहिए। पहले जमा तो कीजिए कुछ। केवल पूजा से ही काम चलने वाला नहीं है। हमारी सबसे बड़ी पूजा समाज की सेवा है। हमने लाखों आदमियों की ही नहीं, वरन् सारे विश्व की सेवा की है। हमने अपनी अक्ल, धन, अनुष्ठान, वर्चस् सभी इसी में लगाया है। हमने खेती करने वालों, मकान बनाने वालों को देखा है कि सेवा के नाम पर नगण्य हैं।

🌹 क्रमशः जारी
🌹 पं श्रीराम शर्मा आचार्य (अमृतवाणी)

👉 आत्मचिंतन के क्षण 31 Oct 2017

🔶 सत्य का सज्जनता से अनन्य सम्बन्ध है। सत्यनिष्ठा उसी की निभेगी जो सज्जन होगा। इसी बात को यों भी कह सकते हैं कि सत्यनिष्ठा से सज्जनता के सभी आवश्यक गुण उत्पन्न हो जायेंगे। एक के बिना दूसरी बात निभ ही नहीं सकेगी। तामसी राजसी इच्छाओं और आवश्यकताओं वाला व्यक्ति सत्यनिष्ठ रह सके यह कठिन है। सत्य केवल सच बोलने तक ही सीमित नहीं है। वरन् वह एक सर्वांगीण सर्वतोमुखी जीवन साधना है। वैसी ही साधना जैसी अन्यान्य कष्ट साध्य योग साधनाएँ परमात्मा को प्राप्त करने के लिए की जाती हैं। सत्य पालन की साधना से भी जीवात्मा परमात्मा तक इसी प्रकार पहुँच सकती है जैसे अन्यान्य योगों के साधक तपस्वी लोग ब्रह्म सायुज्य की स्थिति तक पहुँचते हैं। जिस प्रकार सभी साधनाओं में कुछ कष्ट उठाने और कुछ त्याग करने के लिए तैयार होना पड़ता है उसी प्रकार सत्य साधना का भी मूल्य चुकाना पड़ता है।

🔷 सफलता क्षेत्र में सत्य का भी वही स्थान है जो ईश्वर का। जिस प्रकार शिव, विष्णु आदि की उपासना की जाती है उसी प्रकार ही सत्य की भी आराधना है। सिद्ध हुआ सत्य भी साधक को वैसे ही वरदान दे सकता है जैसे कोई अन्य देवता या साक्षात् परमात्मा प्रसन्न होने पर अपने आराधक को प्रदान करते हैं।
पातञ्जलि योगदर्शन साधन पाद के सूत्र 36 में कहा गया है—
सत्य प्रतिष्ठायाँ क्रिया फलाश्रित्वम्।
अर्थात्—सत्य में स्थिति दृढ़ हो जाने पर क्रिया फल का आश्रय बन जाती है।

🔶 सत्यनिष्ठ की वाणी के द्वारा जो क्रिया होती है अर्थात् जो कुछ वह कहता है सो फलीभूत सफल होता है। उसकी वाणी कभी असत्य नहीं होती। अनेकों पुण्य कार्य करने से जो फल अन्य लोगों को मिलते हैं वह फल सत्यनिष्ठ को अपनी वाणी साधना से ही मिल जाते हैं। यदि वह किसी को शाप या वरदान दे तो पूर्ण सफल होता है। किसी ने जो शुभ नहीं किया है उसका सत्परिणाम उपस्थित कर देने की शक्ति उसमें उत्पन्न हो जाती है। यह तो एक प्रत्यक्ष एवं प्रकट सिद्धि है। इसके अतिरिक्त भी सत्यनिष्ठ अनेक आध्यात्मिक सफलताओं से सम्पन्न हो जाता है।

🌹 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

👉 आज का सद्चिंतन 31 Oct 2017


👉 प्रेरणादायक प्रसंग 31 Oct 2017


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