शुक्रवार, 21 सितंबर 2018

👉 दूसरे की गलती से सीखें

🔷 किसी जंगल में एक सिंह, एक गधा और एक लोमड़ी रहते थे। तीनों में गहरी मित्रता थी। तीनों मिलकर जंगल में घूमते और शिकार करते। एक दिन वे तीनों शिकार पर निकले। उन तीनों में पहले से ही यह समझौता था कि मारे गए शिकार के तीन भाग किए जाएंगे।

🔶 अचानक उन्होंने एक बारहसिंगा देखा। वह खतरे से बेखबर घास चर रहा था। तीनों ने मिलकर उसकी पीछा किया और अंत में सिंह ने उसे मार गिराया।

🔷 तब सिंह ने गधे से कहा कि वह मरे हुए शिकार के तीन भाग करें। गधे ने शिकार के तीन भाग किए और सिंह से अपना एक भाग ले लेने के लिए कहा। यह देखकर सिंह क्रोधित हो गया। उसने गधे पर हमला कर दिया और अपने नुकीले दातों और पंजों से गधे को चीर-फाड़ दिया।

🔶 उसके बाद उसने लोमड़ी से कहा कि वह अपना हिस्सा ले ले। लोमड़ी बहुत चालाक और बुद्धिमान थी। उसने बारहसिंगे का तीन चौथाई से अधिक भाग सिंह की सेवा में अर्पित कर दिया और अपने लिए केवल एक चौथाई से भी कम भाग रखा। यह देखकर सिंह बहुत प्रसन्न हुआ और बोला- ”तुमने मेरे भोजन की सही मात्रा निकाली है। सच बताओ, कहां से यह चतुराई सीखी?“

🔷 चालाक लोमड़ी बोली- ”महाराज! मरे हुए गधे को देखकर मैं सब समझ गई। उसकी मूर्खता से ही मैंने सीखा है।“

शिक्षा – दूसरे की गलती से सीखें, दूसरों की गलतियों से सीख हासिल करनी चाहिए।

👉 आज का सद्चिंतन 21 September 2018


👉 प्रेरणादायक प्रसंग 21 September 2018


👉 परिवर्तन के महान् क्षण (भाग 14)

👉 लेखक का निजी अनुभव
 
🔷 अध्ययन, अनुभव, प्रयोग और विशेषज्ञों की पूछताछ से पता चला है कि आत्मिकी का प्रथम पक्ष है— साधक का परिष्कृत व्यक्तित्व और दूसरा पक्ष है— साधना-उपासना स्तर का उपक्रम। जीवन साधना को स्वास्थ्य और कर्मकाण्डपरक उपचारों को श्रृंगार स्तर का कहा जा सकता है। पर इन दिनों किसी भटकाव ने लोगों को ऐसा कुछ बता दिया है कि जीवन साधना की कोई विशेष आवश्यकता नहीं है। मात्र पूजापरक कर्मकाण्डों के ही बलबूते उस सारी महत्ता को हस्तगत किया जा सकता है जिसको कि शास्त्रकारों ने अपने अनुभव में और आप्तजनों ने अपने जीवनक्रम में समाविष्ठ करके वस्तुस्थिति की यथार्थता का पूरी तरह रहस्योद्घाटन किया है।
  
🔶 समस्त विश्व के, विशेषतया मानव समुदाय के भाग्य और भविष्य का भला-बुरा निर्धारण करने वाले इस प्रसंग पर अत्यन्त गहराई तक शोध करने के लिए आकुल-व्याकुल उत्कण्ठा से द्रवित होकर किसी दिव्य मार्गदर्शक ने संकेत किया कि— ‘‘इस तथ्य को प्रारम्भ से ही समझ लेना चाहिए।’’ अध्यात्म को अंकुरित, पल्लवित एवं पुष्पित होने के लिए यह नितान्त आवश्यक है कि इस प्रयोजन में प्रवेश करने वाले का व्यक्तित्व उत्कृष्टता से सुसम्पन्न हो। इसके पश्चात ही उपासनापरक कर्मकाण्डों की कुछ उपयोगी प्रतिक्रिया उपलब्ध होती है। यदि मनोभूमि और जीवनचर्या गन्दगी से भरी हो तो समझना चाहिए कि मन्त्र की, पूजा उपचार की प्रक्रिया प्राय: निरर्थक ही सिद्ध होगी। समय, श्रम और साधन सामग्री निरर्थक गँवाने के अतिरिक्त और कुछ हाथ न लगेगा। अध्यात्म दिव्य शक्ति के आधारभूत पुंज स्त्रोत हैं। विज्ञान जो सज्जा भर का प्रदर्शन करता है, उसमें आकर्षण और प्रलोभन के द्वारा बालबुद्धि को फुसलाने के लिए खिलौने जैसी चमक-दमक के अतिरिक्त और कुछ है ही नहीं।
  
🔷 इस संकेत से मार्गदर्शन मिला। विश्वास जमा। फिर भी भ्रान्तियों के जाल-जंजाल से निकलने के लिए आवश्यक समझा गया कि क्यों न अपनी काया की प्रयोगशाला में तथ्य का निरीक्षण-परीक्षण करके देखा जाए? इसमें हानि ही क्या है? अपने प्रयोग यदि खरे उतरते हैं तो उससे श्रद्धा विश्वास की अभिवृद्धि ही होती है। यदि मिथ्या सिद्ध होते हैं तो हानि मात्र इतनी ही है कि जैसे असंख्य अधकचरी स्थिति में सन्देेह भरी स्थिति में रह रहे हैं, उन्हीं में एक की और वृद्धि हो जाएगी। फिर विश्वास और साहसपूर्वक अपनी मान्यता बनाने या दूसरों से साहसपूर्वक कुछ कहने की स्थिति तो समाप्त हो जाएगी।

.... क्रमशः जारी
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 परिवर्तन के महान् क्षण पृष्ठ 17

👉 Living The Simple Life (Part 4)

🔷 The first few years I used a blue scarf and a blue sweater during chilly weather, but I eventually discarded them as not really essential. I am now so adjustable to changes in temperature that I wear the same clothes summer and winter, indoors and out. Like the birds, I migrate north in the summer and south in the winter. If you wish to talk to people out-of-doors, you must be where the weather is pleasant or people will not be out.

🔶 When the temperature gets high and the sun gets hot there is nothing so welcome as shade. There is a special coolness about the shade of a tree, but unless it is a big tree some shifting is required to stay in the shade. Clouds provide shade as they drift across the sun. A rock provides what I call deep shade; so does a bank early in the morning or late in the afternoon. Sometimes even the shade of a bush is appreciated, or that of a haystack. Man-made things provide shade too. Buildings, of course, and even signs which disfigure the landscape do provide shade.

🔷 So do bridges, providing shelter from the rain as well. Of course, one can wear a hat or carry an umbrella. I do neither. Once when a reporter asked if by chance I had a folding umbrella in my pockets I replied, ‘‘I won’t melt. My skin is waterproof. I don’t worry about little discomforts.’’ But I’ve sometimes used a piece of cardboard for a sun shade. Water is something you think of in hot weather, but I have discovered that if I eat nothing but fruit until my day’s walk is over I do not get thirsty. Our physical needs are so simple.

To be continued...

👉 दुष्प्रवृत्ति निरोध आन्दोलन (भाग 1)

🔷 विवाहोन्माद प्रतिरोध आन्दोलन आज के हिन्दू समाज की सबसे बड़ी एवं सबसे प्रमुख आवश्यकता है। उसकी पूर्ति के लिए हमें अगले दिनों बहुत कुछ करना होगा। हमारा यह प्रयत्न निश्चित रूप में सफल होगा। अगले दिनों हवा बदलेगी और आज की खर्चीली वैवाहिक कुरीतियाँ पीढ़ी वालों के लिए एक कौतूहल की बात रह जायगी। कुछ वर्षों बाद भावी सन्तान को यह खोज करनी पड़ेगी कि हमारे पूर्वज थे तो बुद्धिमान पर ऐसी मूर्खतापूर्ण रीति-रिवाज के जंजाल में फँसकर इतना कमर तोड़ अपव्यय आखिर करते क्यों थे?

🔶 वह दिन निश्चित रूप में आने हैं। समय की माँग, युग की पुकार इतनी प्रबल होती है कि उसके द्वारा बड़े-बड़े प्रवाह मोड़ दिये जाते हैं। इस परिवर्तन का लाभ अगली पीढ़ी को मिलेगा, हमें तो इसके लिए भागीरथ तप ही करना है और प्रतिरोध करते हुए गोली न हो तो कम से कम गाली तो खाते ही रहना है। अन्ध मान्यताओं की भी नशेबाजी जैसी लत होती है, वह मुश्किल से छूटती है। इसलिए काम बहुत कठिन है। पर कठिन काम भी मनुष्य ही करते हैं। हम कठिनाइयों को चीरते हुए आगे बढ़ेंगे और समय को बदल डालने की प्रतिज्ञा पूरी करके रहेंगे।

🔷 विवाहोन्माद की जड़े काफी गहरी हैं। उन्माद रोगग्रस्त व्यक्ति के गले कोई बात उतारना काफी कठिन होता है। रूढ़ियों की चुड़ैल जिनकी गर्दन पर सवार है उनके लिए समझ की बात मानना अपनाना काफी कठिन होगा। यह प्रचार करते हुए जहाँ जाया जाय वहाँ प्रथम बार में ही सफलता मिल जाय, इसकी आशा कम ही होगी। कितनी ही बार प्रचारक को निराश और तिरस्कृत होकर लौटना पड़ेगा। ऐसी दशा में मानव मनोविज्ञान के अनुसार यह हो सकता है कि तिरस्कृत करने वाले और तिरस्कार सहने वाले के बीच मनोमालिन्य का अंकुर उत्पन्न हो जाय और उसके कारण आगे मिलने-जुलने या मधुर सम्बन्ध बनाये रहने में बाधा उत्पन्न होने लगे। यदि ऐसा हुआ तो उससे अपने मिशन को नुकसान ही पहुँचेगा।

.... क्रमशः जारी
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 अखण्ड ज्योति जुलाई 1965 पृष्ठ 46

http://literature.awgp.org/hindi/akhandjyoti/1965/July/v1.46

👉 चित्रों का भला और बुरा प्रभाव (भाग 1)

🔷 आपने कहीं न कहीं महात्मा गांधी के साथ या अलग से उन तीन बन्दरों का चित्र अवश्य देखा होगा जिसमें एक बन्दर दोनों हाथों से अपनी आंख बन्द किए है। जिसका तात्पर्य है ‘‘बुरी बात मत देखो’’ ‘‘बुराई की तरफ से अपनी आंखें बन्द करलो’’। किसी चित्र या दृश्य को देख कर उससे संबंधित अच्छाई या बुराई का प्रभाव अवश्य पड़ता है। बुरे चित्र देखने पर बुराइयां और अच्छे दृश्य देखने पर अच्छाइयां पनपती हैं।

🔶 वस्तुतः जो कुछ भी हम देखते हैं उसका सीधा प्रभाव हमारे मन में और मस्तिष्क पर पड़ता है। किसी चित्र या दृश्य विशेष को बार बार देखने पर उसका सूक्ष्म प्रभाव हमारे अन्तर मन पर अंकित होने लगता है। और जितनी बार उसे देखा जाता है उतना ही वह स्थाई और परिपक्व बनता जाता है। हमारा अव्यक्त मन कैमरे की प्लेट के समान है जिस पर नेत्रों के लेन्स से जो छाया गुजरती है वही उस पर अंकित हो जाती है! हम अच्छा या बुरा जो कुछ भी देखते हैं। उसका सीधा प्रभाव हमारे अन्तरमन पर, सूक्ष्म चेतना पर होता है।

🔷 प्रत्येक चित्र का अस्तित्व केवल उसके आकार प्रकार तथा रंग रूप तक ही सीमित नहीं रहता वरन् उसके पीछे कुछ आदर्श होते हैं कुछ विचार, धारणायें और मान्यतायें होती हैं। ये अच्छी भी हो सकती हैं और बुरी भी किन्तु होती अवश्य हैं। वस्तुतः चित्र की अपनी एक भाषा होती है जिसके माध्यम से चित्रकार समाज में अपने भावों की अभिव्यक्ति करता है। प्रत्येक चित्र में उससे हाव, भाव, भंगिमा, पोशाक, अंग प्रत्यंग, मुख, मुद्रा आदि में कुछ संकेत भरे होते हैं। चित्र या दृश्य देखने के साथ-साथ उनसे सम्बन्धित अच्छी बुरी धारणा, संकेत भी मनुष्य के मन पर अंकित हो जाते हैं। हमारा मन इन आदर्शों, संकेतों को चुपचाप ग्रहण करता रहता है। चित्र दर्शन के साथ-साथ उसमें निहित अच्छाई भी मानस पटल पर अंकित हो जाती है।

.... क्रमशः जारी
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 भारतीय संस्कृति की रक्षा कीजिए पृष्ठ 136

👉 प्रेरणादायक प्रसंग 30 Sep 2024

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