🔷 इस चिन्ता से तथाकथित धर्म गुरुओं के रचे भोंडे फूहड़ ग्रन्थ मुक्ति दिला देते हैं। उनका कहना है अमुक माला जपने वाले या अमुक पूजा अर्चा करने वाले को पाप कर्मों के दण्ड भुगतने से छुटकारा मिल जाता है। यह बहुत बड़ी बात है। यदि दण्ड का भय न रहे तो फिर पाप कर्मों द्वारा प्राप्त हो सकने वाले लाभों को छोड़ने को कोई कारण ही नहीं रह जाता। इस प्रकार उपरोक्त आश्वासनों पर विश्वास करने वाले यह मान बैठते हैं कि उनके पाप कट गये। अब वे कुकर्मों के दण्ड से पूर्णतया छुटकारा पा चुके। भूतकाल में किये हुये या भविष्य में किये जाने वाले पापों के दण्ड से वह देवता या मन्त्र बचा लेगा कि जिसे थोड़ा-सा जप, स्तवन, पूजन आदि करके या किसी दूसरे से कराके सहज ही बहकाया, फुसलाया और अनुकूल बनाया जा सकता है।
🔶 इस मिथ्या मान्यता का आज बहुत प्रचलन है। हर कोई इसी सस्ते नुस्खे को दुहराता है। मतवादी यही ढोल पीटते हैं कि हमारे सम्प्रदाय में भर्ती हो जाने पर हमारा खुदा सारे गुनाह माफ कर देगा। इस बहकावे में आये बाहर से बताते हुए ‘कर्मकाण्ड’ करते रहते हैं और भीतर से पाप कर्मों में निर्भय होकर प्रवृत्त रहते हैं। धर्म के नाम पर प्रस्तुत की गई मिथ्या मान्यताओं ने आज सर्वत्र यही स्थिति उत्पन्न कर दी है और सच्चा विश्लेषण करने पर पूजा-पाठ न करने वालों की अपेक्षा उस प्रक्रिया में निरत लोग अधिक अनैतिक और अवाँछनीय गतिविधियों में प्रवृत्त पाये जाते हैं। ऐसी स्थिति में आत्मिक प्रगति सर्वथा असम्भव है। जब साधना का प्रथम चरण ही पूरा नहीं किया गया तो उपासना का दूसरा चरण कैसे उठेगा। जब पहली मंजिल ही बन कर तैयार नहीं हुई तो भवन की दूसरी मंजिल बनाने की योजना कैसे पूर्ण होगी।
🔷 उपासना से पाप नष्ट होने का वास्तविक अर्थ यह है कि ऐसा व्यक्ति जीवन साधना के प्रथम चरण का परिपालन करते हुए दुर्भावनाओं और दुष्प्रवृत्तियों के दुष्परिणाम समझेगा और उनसे सतर्कता पूर्वक विरत हो जायेगा, पाप नष्ट होने का अर्थ है पाप-कर्म करने की प्रवृत्ति का नाश, पर उल्टा अर्थ कर दिया गया पाप-कर्मों के प्रतिफल का नाश। कदाचित ऐसी उलटबांसी सही होती तो फिर इस संसार में पाप को ही पुण्य और कर्तव्य माना जाने लगता। फिर कोई भी पाप से न डरता। राजदण्ड से बचने की हजार तरकीबें हैं। उन्हें अपना कर अनाचारी लोग सहज ही निर्द्वन्द्व निश्चिन्त रह सकते हैं दैव दण्ड ही एक मात्र बंधन था सो इन धर्मध्वजियों ने उड़ा दिया। अब असुरता को स्वच्छंद रूप से फलने-फूलने और फैलने का पूरा-पूरा अवसर मिल गया। पाप कर्मों के दण्ड से मुक्ति दिलाने का आश्वासन पूजा-पाठ की कीमत पर जिनने भी दिया है उनने मानवीय आदर्शों और अध्यात्म के मूलभूत आधारों के साथ व्यभिचार किया है।
.... क्रमशः जारी
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 अखण्ड ज्योति मई 1972 पृष्ठ 8
🔶 इस मिथ्या मान्यता का आज बहुत प्रचलन है। हर कोई इसी सस्ते नुस्खे को दुहराता है। मतवादी यही ढोल पीटते हैं कि हमारे सम्प्रदाय में भर्ती हो जाने पर हमारा खुदा सारे गुनाह माफ कर देगा। इस बहकावे में आये बाहर से बताते हुए ‘कर्मकाण्ड’ करते रहते हैं और भीतर से पाप कर्मों में निर्भय होकर प्रवृत्त रहते हैं। धर्म के नाम पर प्रस्तुत की गई मिथ्या मान्यताओं ने आज सर्वत्र यही स्थिति उत्पन्न कर दी है और सच्चा विश्लेषण करने पर पूजा-पाठ न करने वालों की अपेक्षा उस प्रक्रिया में निरत लोग अधिक अनैतिक और अवाँछनीय गतिविधियों में प्रवृत्त पाये जाते हैं। ऐसी स्थिति में आत्मिक प्रगति सर्वथा असम्भव है। जब साधना का प्रथम चरण ही पूरा नहीं किया गया तो उपासना का दूसरा चरण कैसे उठेगा। जब पहली मंजिल ही बन कर तैयार नहीं हुई तो भवन की दूसरी मंजिल बनाने की योजना कैसे पूर्ण होगी।
🔷 उपासना से पाप नष्ट होने का वास्तविक अर्थ यह है कि ऐसा व्यक्ति जीवन साधना के प्रथम चरण का परिपालन करते हुए दुर्भावनाओं और दुष्प्रवृत्तियों के दुष्परिणाम समझेगा और उनसे सतर्कता पूर्वक विरत हो जायेगा, पाप नष्ट होने का अर्थ है पाप-कर्म करने की प्रवृत्ति का नाश, पर उल्टा अर्थ कर दिया गया पाप-कर्मों के प्रतिफल का नाश। कदाचित ऐसी उलटबांसी सही होती तो फिर इस संसार में पाप को ही पुण्य और कर्तव्य माना जाने लगता। फिर कोई भी पाप से न डरता। राजदण्ड से बचने की हजार तरकीबें हैं। उन्हें अपना कर अनाचारी लोग सहज ही निर्द्वन्द्व निश्चिन्त रह सकते हैं दैव दण्ड ही एक मात्र बंधन था सो इन धर्मध्वजियों ने उड़ा दिया। अब असुरता को स्वच्छंद रूप से फलने-फूलने और फैलने का पूरा-पूरा अवसर मिल गया। पाप कर्मों के दण्ड से मुक्ति दिलाने का आश्वासन पूजा-पाठ की कीमत पर जिनने भी दिया है उनने मानवीय आदर्शों और अध्यात्म के मूलभूत आधारों के साथ व्यभिचार किया है।
.... क्रमशः जारी
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 अखण्ड ज्योति मई 1972 पृष्ठ 8