मित्रो! गायत्री मंत्र कितना सामर्थ्यवान मंत्र है ! मैं चाहता था कि उस सामर्थ्य का लाभ उठाने के लिए मेरे बाद दूसरे आदमी भी रहे होते तो मजा आ जाता। अभी जो लोग रोज गालियाँ दिया करते हैं और कहते हैं कि हमको तीन साल गायत्री मंत्र जप करते हो गये, पर इससे कोई फायदा नहीं हुआ। यदि मैं अपने पीछे ऐसे आदमी छोड़कर मरा होता जो मेरे ही तरीके से गरदन ऊँची करके लोगों से यह कहने में समर्थ रहे होते कि अध्यात्म बड़े काम का है और यह बहुत उपयोगी है, फायदेमंद है और शक्तिशाली है और बड़ा चमत्कारी है। जैसे कि हम हिम्मत के साथ कहते हैं कि आप में से भी ऐसे आदमी होते और हम आपको यह सिखाते कि अध्यात्म क्या हो सकता है?
गायत्री क्या हो सकती है? उपासना क्या हो सकती है और उपासना के आधार क्या हो सकते हैं? बेटे! मैंने इसलिए शिविर में आपको बुलाया था कि गायत्री उपासना के जो पाँच अंग, पाँच कोश- अन्नमयकोश, प्राणमयकोश, मनोमयकोश, विज्ञानमयकोश और आनंदमयकोश हैं, इन पाँचों कोशों की उच्चस्तरीय उपासना, जो इसमें जुड़ी हुई है, उसे सामान्य प्रकिया में भी जोड़कर रखा है। यह ऊँचे स्तर की भी है। इसे मैं आपको समझाना चाहता था कि इन पाँचों कोशों का अनावरण कैसे किया जाता है। अभी तक जो ज्ञान आपको दिया गया, वह यह समझकर दिया गया कि अभी आप बालक हैं। समय आएगा तो मैं समझादुँगा, सिखा दूँगा।
मित्रो ! सोचता हूँ, अब शुरूआत तो करूँ, आपको पट्टीपूजन तो कराऊँ, ओलम- बाहरखड़ी तो सिखाऊँ, अक्षरज्ञान तो सिखाऊँ, गिनती गिनना तो सिखाऊँ। फिर पीछे फिजिक्स सिखा दूँगा, केमिस्ट्री सिखा दूँगा, रेखागणित सिखा दूँगा, गणित सिखा दूँगा। ये सब चीजें मैंने छिपाकर रखी थीं। अभी मैंने आपको गिनतियाँ याद कराई थीं और पहाड़े याद कराए थे और आपको जप करना सिखाया, अनुष्ठान करना सिखाया, माला घुमाना सिखाया था, प्राणायाम करना सिखाया था और इनकी विधि सिखाई थी, कर्मकांड सिखाया था।
क्रमशः जारी
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
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