सोमवार, 14 मार्च 2016

देखा जब उस वृद्ध को तो जिन्दगी बदल गई


एक सेठ के एक इकलौता पुत्र था पर छोटी सी उम्र मे ही गलत संगत के कारण राह भटक गया! परेशान सेठ को कुछ नही सूझ रहा था तो वो ईश्वर के मन्दिर मे गया और ईश दर्शन के बाद पुजारी को अपनी समस्या बताई !

पुजारी जी ने कहा की आप कुछ दिन मन्दिर मे भेजना कोशिश पुरी करेंगे की आपकी समस्या का समाधान हो आगे जैसी सद्गुरु देव और श्री हरि की ईच्छा !

सेठ ने पुत्र से कहा की तुम्हे कुछ दिनो तक मन्दिर जाना है नही तो तुम्हे सम्पति से बेदखल कर दिया जायेगा, घर से मन्दिर की दूरी ज्यादा थी और सेठ उसे किराये के गिनती के पैसे देते थे! अब वो एक तरह से बंदिश मे आ गया!

मंदिर के वहाँ एक वृद्ध बैठा रहता था और एक अजीब सा दर्द उसके चेहरे पर था और रोज वो बालक उस वृद्ध को देखता और एक दिन मन्दिर के वहाँ बैठे उस वृद्ध को देखा तो उसे मस्ती सूझी और वो वृद्ध के पास जाकर हँसने लगा और उसने वृद्ध से पुछा हॆ वृद्ध पुरुष तुम यहाँ ऐसे क्यों बैठे रहते हो लगता है बहुत दर्द भरी दास्तान है तुम्हारी और व्यंग्यात्मक तरीके से कहा शायद बड़ी भूलें की है जिंदगी मे?

उस वृद्ध ने जो कहा उसके बाद उस बालक का पूरा जीवन बदल गया! उस वृद्ध ने कहा हाँ बेटा हँस लो आज तुम्हारा समय है पर याद रखना की जब समय बदलेगा तो एक दिन कोई ऐसे ही तुम पर हँसेगा! सुनो बेटा मैं भी खुब दौड़ा मेरे चार चार बेटे है और उन्हे जिंदगी मे इस लायक बनाया की आज वो बहुत ऊँचाई पर है और इतनी ऊँचाई पर है वो की आज मैं उन्हे दिखाई नही देता हुं! और मेरी सबसे बड़ी भुल ये रही की मैंने अपने बारे मे कुछ भी न सोचा! अपने इन अंतिम दिनो के लिये कुछ धन अपने लिये बचाकर न रखा इसलिये आज मैं एक पराधीनता का जीवन जी रहा हुं! पर मुझे तो अब इस मुरलीधर ने सम्भाल लिया की यहाँ तो पराधीन हुआ हुं कही आगे जाकर पराधीन न हो जाऊँ!

बालक को उन शब्दो ने झकझोर कर रख दिया! बालक - मैंने जो अपराध किया है उसके लिये मुझे क्षमा करना हॆ देव! पर हॆ देव आपने कहा की आगे जाकर पराधीन न रहूँ ये मेरी कुछ समझ मे न आया?

वृद्ध - हॆ वत्स यदि तुम्हारी जानने की ईच्छा है तो बिल्कुल सावधान होकर सुनना अनन्त यात्रा का एक पड़ाव मात्र है ये मानवदेह और पराधीनता से बड़ा कोई अभिशाप नही है और आत्मनिर्भरता से बड़ा कोई वरदान नही है! अभिशाप की जिन्दगी से मुप्ति पाने के लिये कुछ न कुछ जरूर कुछ करते रहना! धन शरीर के लिये तो तपोधन आत्मा के लिये बहुत जरूरी है!

नियमित साधना से तपोधन जोडिये आगे की यात्रा मे बड़ा काम आयेगा! क्योंकि जब तुम्हारा अंतिम समय आयेगा यदि देह का अंतिम समय है तो धन बड़ा सहायक होगा और देह समाप्त हो जायेगी तो फिर आगे की यात्रा शुरू हो जायेगी और वहाँ तपोधन बड़ा काम आयेगा!

और हाँ एक बात अच्छी तरह से याद रखना की धन तो केवल यहाँ काम आयेगा पर तपोधन यहाँ भी काम आयेगा और वहाँ भी काम आयेगा! और यदि तुम पराधीन हो गये तो तुम्हारा साथ देने वाला कोई न होगा!
उसके बाद उस बालक का पुरा जीवन बदल गया!
इसलिये नियमित साधना से तपोधन इकठ्ठा करो!

1 टिप्पणी:

Manish Kumar ने कहा…

"Anashritah karmaphalam karyam karmakaroti yah, Sa sannyasi cho yogi cho na niragnirna chakriyah"(Gita,6.1)"Samam kayashirogrivam dharayannachalam thirah, Samprekshya nasikagramswam dishashwanavalokaya. Prashantatma vigatabhirbrahmacharivrate sthitah, Mnah sanyamya machhittau yukta aaseeta matparah"(Gita,6.13-14)"Yuktaharaviharasya yuktachestasya karmasu, Yuktaswapnavabodhasya yogo bhavati dukhaha"(Gita,6.17)

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