🌹 मनुष्य अपने भाग्य का निर्माता आप है, इस विश्वास के आधार पर हमारी मान्यता है कि हम उत्कृष्ट बनेंगे और दूसरों को श्रेष्ठ बनाएँगे, तो युग अवश्य बदलेगा
🔴 पुरुषार्थ का नियम है और भाग्य उसका अपवाद। अपवादों को भी अस्तित्व तो मानना पड़ता है, पर उनके आधार पर कोई नीति नहीं अपनाई जा सकती, कोई कार्यक्रम नहीं बनाया जा सकता। कभी-कभी स्त्रियों के पेट से मनुष्याकृति से भिन्न आकृति के बच्चे जन्म लेते देखे गए हैं। कभी-कभी कोई पेड़ असमय में ही फल-फूल देने लगता है, कभी-कभी ग्रीष्म ऋतु में ओले बरस जाते हैं, यह अपवाद है। इन्हें कौतूहल की दृष्टि से देखा जा सकता है, पर इनको नियम नहीं माना जा सकता। इसी प्रकार भाग्य की गणना अपवादों में तो हो सकती है, पर यह नहीं माना जा सकता कि मानव जीवन की सारी गतिविधियाँ ही पूर्व निश्चित भाग्य-विधान के अनुसार होती हैं। यदि ऐसा होता तो पुरुषार्थ और प्रयत्न की कोई आवश्यकता ही न रह जाती। जिसके भाग्य में जैसा होता है, वैसा यदि अमिट ही है, तो फिर पुरुषार्थ करने से भी अधिक क्या मिलता और पुरुषार्थ न करने पर भी भाग्य में लिखी सफलता अनायास ही क्यों न मिल जाती?
🔵 हर व्यक्ति अपने-अपने अभीष्ट उद्देश्यों के लिए पुरुषार्थ करने में संलग्न रहता है, इससे प्रकट है कि आत्मा का सुनिश्चित विश्वास पुरुषार्थ के ऊपर है और वह उसी का प्रेरणा निरंतर प्रस्तुत करती रहती है। हमें समझ लेना चाहिए कि ब्रह्मा जी किसी का भाग्य नहीं लिखते, हर मनुष्य अपने भाग्य का निर्माता स्वयं है। जिस प्रकार कल का जमाया हुआ दूध आज दी बन जाता है, उसी प्रकार कल का पुरुषार्थ आज भाग्य बनकर प्रस्तुत होता है। आज के कर्मों का फल आज ही नहीं मिल जाता। उसका परिपाक होने में, परिणाम प्राप्त होने में, परिणाम निकलने में कुछ देर लगती है। यह देरी ही भाग्य कही जा सकती है। परमात्मा समदर्शी और न्यायकारी है, उसे अपने सब पुत्र समान रूप से प्रिय हैं, फिर वह किसी का भाग्य अच्छा, किसी का बुरा लिखने का अन्याय या पक्षपात क्यों करेगा? उसने अपने हर बालक को भले या बुरे कर्म करने की पूर्ण स्वतंत्रता प्रदान की है, पर साथ ही यह भी बता दिया है कि उनके भले या बुरे परिणाम भी अवश्य प्राप्त होंगे। इस प्रकार कर्म को ही यदि भाग्य कहें तो अत्युक्ति न होगी।
🔴 हमारे जीवन में अगणित समस्याएँ उलझी हुई गुत्थियों के रूप में विकसित वेष धारण किए सामने खड़ी हैं। इस कटु सत्य को मानना ही चाहिए। उनके उत्पादक हम स्वयं हैं और यदि इस तथ्य को स्वीकार करके अपनी आदतों, विचारधाराओं, मान्यताओं और गतिविधियों को सुधारने के लिए तैयार हों, तो इन उलझनों को हम स्वयं ही सुलझा सकते हैं। बेचारे ग्रह-नक्षत्रों पर दोष थोपना बेकार है। लाखों-करोड़ों मील दूर दिन-रात चक्कर काटते हुए अपनी मौत के दिन पूरे करने वाले ग्रह-नक्षत्र भला हमें क्या सुख-सुविधा प्रदान करेंगे? उनको छोड़कर सच्चे ग्रहों का पूजन आरंभ करें, जिनकी थोड़ी-सी कृपा-कोर से ही हमारा सारा प्रयोजन सिद्ध हो सकता है, सारी आकांक्षाएँ देखते-देखते पूर्ण हो सकती हैं।
🌹 क्रमशः जारी
🌹 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
http://literature.awgp.org/book/ikkeesaveen_sadee_ka_sanvidhan/v1.98
http://literature.awgp.org/book/ikkeesaveen_sadee_ka_sanvidhan/v2.17
🔴 पुरुषार्थ का नियम है और भाग्य उसका अपवाद। अपवादों को भी अस्तित्व तो मानना पड़ता है, पर उनके आधार पर कोई नीति नहीं अपनाई जा सकती, कोई कार्यक्रम नहीं बनाया जा सकता। कभी-कभी स्त्रियों के पेट से मनुष्याकृति से भिन्न आकृति के बच्चे जन्म लेते देखे गए हैं। कभी-कभी कोई पेड़ असमय में ही फल-फूल देने लगता है, कभी-कभी ग्रीष्म ऋतु में ओले बरस जाते हैं, यह अपवाद है। इन्हें कौतूहल की दृष्टि से देखा जा सकता है, पर इनको नियम नहीं माना जा सकता। इसी प्रकार भाग्य की गणना अपवादों में तो हो सकती है, पर यह नहीं माना जा सकता कि मानव जीवन की सारी गतिविधियाँ ही पूर्व निश्चित भाग्य-विधान के अनुसार होती हैं। यदि ऐसा होता तो पुरुषार्थ और प्रयत्न की कोई आवश्यकता ही न रह जाती। जिसके भाग्य में जैसा होता है, वैसा यदि अमिट ही है, तो फिर पुरुषार्थ करने से भी अधिक क्या मिलता और पुरुषार्थ न करने पर भी भाग्य में लिखी सफलता अनायास ही क्यों न मिल जाती?
🔵 हर व्यक्ति अपने-अपने अभीष्ट उद्देश्यों के लिए पुरुषार्थ करने में संलग्न रहता है, इससे प्रकट है कि आत्मा का सुनिश्चित विश्वास पुरुषार्थ के ऊपर है और वह उसी का प्रेरणा निरंतर प्रस्तुत करती रहती है। हमें समझ लेना चाहिए कि ब्रह्मा जी किसी का भाग्य नहीं लिखते, हर मनुष्य अपने भाग्य का निर्माता स्वयं है। जिस प्रकार कल का जमाया हुआ दूध आज दी बन जाता है, उसी प्रकार कल का पुरुषार्थ आज भाग्य बनकर प्रस्तुत होता है। आज के कर्मों का फल आज ही नहीं मिल जाता। उसका परिपाक होने में, परिणाम प्राप्त होने में, परिणाम निकलने में कुछ देर लगती है। यह देरी ही भाग्य कही जा सकती है। परमात्मा समदर्शी और न्यायकारी है, उसे अपने सब पुत्र समान रूप से प्रिय हैं, फिर वह किसी का भाग्य अच्छा, किसी का बुरा लिखने का अन्याय या पक्षपात क्यों करेगा? उसने अपने हर बालक को भले या बुरे कर्म करने की पूर्ण स्वतंत्रता प्रदान की है, पर साथ ही यह भी बता दिया है कि उनके भले या बुरे परिणाम भी अवश्य प्राप्त होंगे। इस प्रकार कर्म को ही यदि भाग्य कहें तो अत्युक्ति न होगी।
🔴 हमारे जीवन में अगणित समस्याएँ उलझी हुई गुत्थियों के रूप में विकसित वेष धारण किए सामने खड़ी हैं। इस कटु सत्य को मानना ही चाहिए। उनके उत्पादक हम स्वयं हैं और यदि इस तथ्य को स्वीकार करके अपनी आदतों, विचारधाराओं, मान्यताओं और गतिविधियों को सुधारने के लिए तैयार हों, तो इन उलझनों को हम स्वयं ही सुलझा सकते हैं। बेचारे ग्रह-नक्षत्रों पर दोष थोपना बेकार है। लाखों-करोड़ों मील दूर दिन-रात चक्कर काटते हुए अपनी मौत के दिन पूरे करने वाले ग्रह-नक्षत्र भला हमें क्या सुख-सुविधा प्रदान करेंगे? उनको छोड़कर सच्चे ग्रहों का पूजन आरंभ करें, जिनकी थोड़ी-सी कृपा-कोर से ही हमारा सारा प्रयोजन सिद्ध हो सकता है, सारी आकांक्षाएँ देखते-देखते पूर्ण हो सकती हैं।
🌹 क्रमशः जारी
🌹 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
http://literature.awgp.org/book/ikkeesaveen_sadee_ka_sanvidhan/v1.98
http://literature.awgp.org/book/ikkeesaveen_sadee_ka_sanvidhan/v2.17