रविवार, 11 दिसंबर 2022

👉 दृष्टिकोण मे परिवर्तन

संसार में हर दुर्जन को सज्जन बनाने की, हर बुराई के भलाई में बदल जाने की आशा करना वैसी ही आशा करना है जैसी सब रास्तों पर से काँटे-कंकड़ हट जाने की। अपनी प्रसन्नता और सन्तुष्टि का, यदि हमने इसी आशा को आधार बनाया हो, तो निराशा ही हाथ लगेगी।

हाँ, यदि हम अपने स्वभाव एवं दृष्टिकोण को बदल लें तो यह कार्य जूता पहनने के समान सरल होगा और इस माध्यम से हम अपनी प्रत्येक परेशानी को बहुत अंशो में हल कर सकेंगे।

अपने स्वभाव और दृष्टिकोण में परिवर्तन कर सकना कुछ समयसाध्य और निष्ठासाध्य अवश्य है, पर असम्भव तो किसी प्रकार नहीं है। मनुष्य चाहे तो विवेक के आधार पर अपने मन को समझा सकता है, विचारों को बदल सकता है और दृष्टिकोण में परिवर्तन कर सकता है।

इतिहास के पृष्ठ ऐसे उदाहरणों से भरे पड़े हैं जिनसे प्रकट है की आरम्भ से बहुत हलके और ओछे दृष्टिकोण के आदमी अपने भीतर परिवर्तन करके संसार के श्रेष्ठ महापुरुष बने हैं।

✍🏻 श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 संस्कृति - संजीवनी श्रीमद् भागवत एवं गीता वांग्मय - 31- 1.127

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👉 इस ढोंग से क्या फायदा?

माथे पर चन्दन पोतने से क्या फायदा? जब कि मन में बुराइयों के ढेर जमा हो रहे हैं। बाहरी बनावट से कुछ काम न सरेगा जबकि दिल मक्कारियों की गठरी बना हुआ है। चेहरे को विशेष आकृति का बनाकर धर्मात्मा नहीं बना जा सकता है। ढोंग करना सज्जनों का काम नहीं, ठगों का व्यापार है। बाहर से उजला और भीतर से मैला मनुष्य उस गधे के तुल्य है जो शेर की खाल ओढ़े फिरता है, पर घरों पर चरता है। धर्मात्मा बनने वाला दुराचारी उस बधिक की तरह है कि जो जाल बिछा कर झाड़ियों के पीछे छिपा रहता है और भोली चिड़ियों को फँसाता है। अपवित्र मन को लेकर तीर्थ में जाने से कुछ लाभ न होगा।

मन में वासनायें भरी रहे और बाहर से त्याग का आडंबर करें, तो उससे क्या प्रयोजन? ढोंगी आदमी समझता है कि मैं दूसरों को खूब चकमा देता हूँ, परन्तु यथार्थ में वह अपने सिवाय और किसी को नहीं ठग सकता। जो दूसरों की दृष्टि में धर्मात्मा बनता है, पर अपनी दृष्टि में पापी है, वह अन्त समय बहुत पछतावेगा और कहेगा-हाय! मैंने अपने हाथों अपना नाश क्यों किया? जिनका हृदय पवित्र है, उन्हें आडम्बर की क्या जरूरत? अगर तुम्हारे हृदय में त्याग मौजूद है, तो न सिर घुटाने की जरूरत है और न जटा रखने की।

ऋषि तिरुवल्लुवर
📖 अखण्ड ज्योति जुलाई 1942 पृष्ठ 25

http://literature.awgp.org/magazine/AkhandjyotiHindi/1942/July.25

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