संसार में हर दुर्जन को सज्जन बनाने की, हर बुराई के भलाई में बदल जाने की आशा करना वैसी ही आशा करना है जैसी सब रास्तों पर से काँटे-कंकड़ हट जाने की। अपनी प्रसन्नता और सन्तुष्टि का, यदि हमने इसी आशा को आधार बनाया हो, तो निराशा ही हाथ लगेगी।
हाँ, यदि हम अपने स्वभाव एवं दृष्टिकोण को बदल लें तो यह कार्य जूता पहनने के समान सरल होगा और इस माध्यम से हम अपनी प्रत्येक परेशानी को बहुत अंशो में हल कर सकेंगे।
अपने स्वभाव और दृष्टिकोण में परिवर्तन कर सकना कुछ समयसाध्य और निष्ठासाध्य अवश्य है, पर असम्भव तो किसी प्रकार नहीं है। मनुष्य चाहे तो विवेक के आधार पर अपने मन को समझा सकता है, विचारों को बदल सकता है और दृष्टिकोण में परिवर्तन कर सकता है।
इतिहास के पृष्ठ ऐसे उदाहरणों से भरे पड़े हैं जिनसे प्रकट है की आरम्भ से बहुत हलके और ओछे दृष्टिकोण के आदमी अपने भीतर परिवर्तन करके संसार के श्रेष्ठ महापुरुष बने हैं।
✍🏻 श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 संस्कृति - संजीवनी श्रीमद् भागवत एवं गीता वांग्मय - 31- 1.127
All World Gayatri Pariwar Official Social Media Platform
Shantikunj WhatsApp
8439014110
Official Facebook Page
Official Twitter
Official Instagram
Youtube Channel Rishi Chintan
Youtube Channel Shantikunjvideo