🔷 किसी गाँव में कन्फ्यूशियस शिष्यों सहित पधारे। गाँव के पाँच युवक एक अन्धे को पकड़कर उनके पास लाये। उनमें से एक बोला- “भगवन्! एक समस्या हम सबके लिए उत्पन्न हो गई है। यह व्यक्ति आंख का तो अन्धा है पर है बहुत मूर्ख एवं हद दर्जे का तार्किक। हम इसको सतत् समझा रहे हैं कि प्रकाश का अस्तित्व है। प्रकृति के दृश्यों में सौंदर्य की अद्भुत छटा है। दुनिया में कुरूपता एवं सुन्दरता का युग्म सर्वत्र विद्यमान है। सूर्य, चाँद, सितारे प्रकाशवान हैं। समस्त संसार उनसे प्रकाशित-आलोकित होता है। रंग-बिरंगे पुष्पों में एक प्राकृतिक आकर्षण है जो सब का मन मोह लेता है। बसन्त के साथ प्रकृति श्रृंगार करके अवतरित होती- सबको मनमोहित करती है।”
🔶 “हमारी हर बात को यह अन्धा अपने तर्कों के सहारे काट कर रख देता है। कहता है कि प्रकाश की सत्ता कल्पित है। तुम लोगों ने मुझे अन्धा सिद्ध करने के लिए प्रकाश के सिद्धान्त गढ़ लिए हैं। वस्तुतः प्रकाश का अस्तित्व ही नहीं है। यदि है तो सिद्ध करके बताओ। मुझे स्पर्श कराके दिखाओ कि प्रकाश है। यदि स्पर्श के माध्यम से सम्भव नहीं है तो मैं चखकर देखना चाहता हूँ। यदि तुम कहते हो वह स्वाद रहित है तो मैं सुन सकता हूँ। प्रकाश की आवाज सम्प्रेषित करो। यदि उसे सुना भी नहीं जा सकता तो तुम मुझे प्रकाश की गन्ध का पान करा दो। मेरी घ्राणेंद्रियां सक्षम हैं- गन्ध को ग्रहण करने में। मेरी चारों इन्द्रियाँ समर्थ हैं। इनमें से किसी एक से प्रकाश का संपर्क करा दो। अनुभूति होने पर ही तो मैं मान सकता हूँ कि प्रकाश की सत्ता है।
🔷 उन पांचों ने कन्फ्यूशियस से कहा- “आप ही बतायें, इस अंधे को कैसे समझायें? प्रकाश को चखाया तो जा नहीं सकता। न ही स्पर्श कराया जा सकता। उसमें से गन्ध तो निकलती नहीं कि इसे सुँघाया जा सके न ही ध्वनि निकलती है जिसे सुना जा सके। आप समर्थ हैं, सम्भव है आपके समझाने से उसे सत्य का ज्ञान हो।
🔶 कन्फ्यूशियस बोले- प्रकाश को यह नासमझ जिन इन्द्रियों के माध्यम से समझना अनुभव करना चाहता है, उनसे कभी सम्भव नहीं है कि वह प्रकाश का अस्तित्व स्वीकार ले। उसको बोध कराने में तो मैं भी असमर्थ हूँ। तुम्हें मेरे पास नहीं किसी चिकित्सक के पास जाना चाहिए जब तक नेत्र नहीं मिल जाते, कोई भी उसे समझाने में सफल नहीं हो सकता। इसलिए कि आँखों के अतिरिक्त दृश्य प्रकाश का कोई प्रमाण नहीं है।
🔷 महान दार्शनिक का निर्देश पाकर पाँचों उस जन्मजात अंधे को एक कुशल वैद्य के पास लेकर पहुँचे। विशेषज्ञ वैद्य बोला- ‘‘इस रोगी को तो और पहले लाना चाहिए था। इसका रोग इतना गम्भीर नहीं है। बेकार में यह अपनी आयु की इतनी लम्बी अवधि अन्धेपन का भार लादे व्यतीत करता रहा।”
🔶 वैद्य ने शल्य क्रिया द्वारा आँखों की ऊपरी झिल्ली हटादी जिससे प्रकाश को आने का मार्ग मिल गया। अल्पावधि के उपचार से ही वह अन्धा ठीक हो गया। उसके आश्चर्य का कोई ठिकाना न रहा। उसके सारे तर्क अपने आप तिरोहित हो गये। अपनी भूल तिरोहित हो गयी। अपनी भूल उसे समझ में आ गयी कन्फ्यूशियस ने शिष्य मण्डली से कहा- “तुम्हें उस अंधे की मूर्खता तथा तर्क शीलता पर हँसी आ सकती है पर उन तथाकथित बुद्धिमानों को किस श्रेणी में रखा जाय जो ईश्वर जैसी अगोचर, निराकार, इन्द्रियातीत सत्ता को प्रत्यक्ष इन्द्रियों के सहारे समझने का प्रयास करते हैं। उसमें असफल होने पर ऐसे असंख्यों अन्धे उद्घोष करते दिखाई देते हैं कि ईश्वर का अस्तित्व नहीं है वह तो आस्तिकों की मात्र कल्पना है।”
🔷 सचमुच ही अन्तःकरण पर छाये कषाय-कल्मषों को धोकर परिमार्जित किया जा सके, उसे निर्मल बनाया जा सके तो उसमें ईश्वरीय प्रकाश को झिलमिलाते देखा- अनुभव किया जा सकता है।
🔶 “हमारी हर बात को यह अन्धा अपने तर्कों के सहारे काट कर रख देता है। कहता है कि प्रकाश की सत्ता कल्पित है। तुम लोगों ने मुझे अन्धा सिद्ध करने के लिए प्रकाश के सिद्धान्त गढ़ लिए हैं। वस्तुतः प्रकाश का अस्तित्व ही नहीं है। यदि है तो सिद्ध करके बताओ। मुझे स्पर्श कराके दिखाओ कि प्रकाश है। यदि स्पर्श के माध्यम से सम्भव नहीं है तो मैं चखकर देखना चाहता हूँ। यदि तुम कहते हो वह स्वाद रहित है तो मैं सुन सकता हूँ। प्रकाश की आवाज सम्प्रेषित करो। यदि उसे सुना भी नहीं जा सकता तो तुम मुझे प्रकाश की गन्ध का पान करा दो। मेरी घ्राणेंद्रियां सक्षम हैं- गन्ध को ग्रहण करने में। मेरी चारों इन्द्रियाँ समर्थ हैं। इनमें से किसी एक से प्रकाश का संपर्क करा दो। अनुभूति होने पर ही तो मैं मान सकता हूँ कि प्रकाश की सत्ता है।
🔷 उन पांचों ने कन्फ्यूशियस से कहा- “आप ही बतायें, इस अंधे को कैसे समझायें? प्रकाश को चखाया तो जा नहीं सकता। न ही स्पर्श कराया जा सकता। उसमें से गन्ध तो निकलती नहीं कि इसे सुँघाया जा सके न ही ध्वनि निकलती है जिसे सुना जा सके। आप समर्थ हैं, सम्भव है आपके समझाने से उसे सत्य का ज्ञान हो।
🔶 कन्फ्यूशियस बोले- प्रकाश को यह नासमझ जिन इन्द्रियों के माध्यम से समझना अनुभव करना चाहता है, उनसे कभी सम्भव नहीं है कि वह प्रकाश का अस्तित्व स्वीकार ले। उसको बोध कराने में तो मैं भी असमर्थ हूँ। तुम्हें मेरे पास नहीं किसी चिकित्सक के पास जाना चाहिए जब तक नेत्र नहीं मिल जाते, कोई भी उसे समझाने में सफल नहीं हो सकता। इसलिए कि आँखों के अतिरिक्त दृश्य प्रकाश का कोई प्रमाण नहीं है।
🔷 महान दार्शनिक का निर्देश पाकर पाँचों उस जन्मजात अंधे को एक कुशल वैद्य के पास लेकर पहुँचे। विशेषज्ञ वैद्य बोला- ‘‘इस रोगी को तो और पहले लाना चाहिए था। इसका रोग इतना गम्भीर नहीं है। बेकार में यह अपनी आयु की इतनी लम्बी अवधि अन्धेपन का भार लादे व्यतीत करता रहा।”
🔶 वैद्य ने शल्य क्रिया द्वारा आँखों की ऊपरी झिल्ली हटादी जिससे प्रकाश को आने का मार्ग मिल गया। अल्पावधि के उपचार से ही वह अन्धा ठीक हो गया। उसके आश्चर्य का कोई ठिकाना न रहा। उसके सारे तर्क अपने आप तिरोहित हो गये। अपनी भूल तिरोहित हो गयी। अपनी भूल उसे समझ में आ गयी कन्फ्यूशियस ने शिष्य मण्डली से कहा- “तुम्हें उस अंधे की मूर्खता तथा तर्क शीलता पर हँसी आ सकती है पर उन तथाकथित बुद्धिमानों को किस श्रेणी में रखा जाय जो ईश्वर जैसी अगोचर, निराकार, इन्द्रियातीत सत्ता को प्रत्यक्ष इन्द्रियों के सहारे समझने का प्रयास करते हैं। उसमें असफल होने पर ऐसे असंख्यों अन्धे उद्घोष करते दिखाई देते हैं कि ईश्वर का अस्तित्व नहीं है वह तो आस्तिकों की मात्र कल्पना है।”
🔷 सचमुच ही अन्तःकरण पर छाये कषाय-कल्मषों को धोकर परिमार्जित किया जा सके, उसे निर्मल बनाया जा सके तो उसमें ईश्वरीय प्रकाश को झिलमिलाते देखा- अनुभव किया जा सकता है।