मंगलवार, 12 मार्च 2019

Keep Smiling, Keep Laughing | हँसते रहो, मुस्कुराते रहो | हारिये न हिम्म...



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👉 अंतर ज्योति:-

किसी नगर में एक सेठ रहता था। उसके पास अपार धन-संपत्ति थी, विशाल हवेली थी, नौकर-चाकर थे, सब तरह का आराम था, फिर भी उसका मन अशांत रहता था। हर घड़ी उसे कोई-न-कोई चिंता घेरे रहती थी। सेठ उदास रहता।

जब उसकी हालत बहुत खराब होने लगी तो एक दिन उसके एक मित्र ने उसे शहर से कुछ दूर आश्रम में रहने वाले साधु के पास जाने की सलाह दी। कहा- "वह पहुंचा हुआ साधु है। कैसा भी दुख लेकर जाओ, दूर कर देता है।"

सेठ साधु के पास गया। अपनी सारी मुसीबत सुनाकर बोला- "स्वामीजी, मैं जिंदगी से बेजार हो गया हूँ। मुझे बचाइए।"

साधु ने कहा - "घबराओ नहीं। तुम्हारी सारी अशांति दूर हो जाएगी। प्रभु के चरणों में लौ लगाओ।"

उसने तब ध्यान करने की सलाह दी और उसकी विधि भी समझा दी, लेकिन सेठ का मन उसमें नहीं रमा। वह ज्योंही जप का ध्यान करने बैठता, उसका मन कुरंग-चौकड़ी भरने लगता। इस तरह कई दिन बीत गए। उसने साधु को अपनी परेशानी बताई, पर साधु ने कुछ नहीं कहा। चुप रह गए।

एक दिन सेठ साधु के साथ आश्रम में घूम रहा था कि उसके पैर में एक कांटा चुभ गया। सेठ वहीं बैठ गया और पैर पकड़कर चिल्लाने लगा - "स्वामीजी, मैं क्या करूं? बड़ा दर्द हो रहा है।"

साधु ने कहा - "चिल्लाते क्यों हो? कांटे को निकाल दो।"

सेठ ने जी कड़ा करके कांटे को निकाल दिया। उसे चैन पड़ गया।

साधु ने तब गंभीर होकर कहा - "सेठ तुम्हारे पैर में जरा-सा कांटा चुभा कि तुम बेहाल हो गए, लेकिन यह तो सोचो कि तुम्हारे भीतर कितने बड़े-बड़े कांटे चुभे हुए हैं। लोभ के, मोह के, क्रोध के, ईर्ष्या के, देश के और न जाने किस-किस के। जब तक तुम उन्हें नहीं उखाड़ोगे, तुम्हें शांति कैसे मिलेगी?"

साधु के इन शब्दों ने सेठ के अंतर में ज्योति जला दी। उसके अज्ञान का अंधकार दूर हो गया। ज्ञान का प्रकाश फैल गया। उसे शांति का रास्ता मिल गया।

👉 बन्दा बैरागी की साधना

बन्दा वैरागी भी इसी प्रकार समय की पुकार की अवहेलना कर, संघर्ष में न लगकर एकान्त साधना कर रहे थे । उन्हीं दिनों गुरुगोविन्दसिंह की बैरागी से मुलाकात हुई । उन्होंने एकान्त सेवन को आपत्तिकाल में हानिकारक बताते हुए कहा-"बन्धु! जब देश, धर्म, संस्कृति की मर्यादाएँ नष्ट हो रही है और हम गुलामी का जीवन बिता रहे है, आताताइयों के अत्याचार हम पर हो रहे है उस समय यह भजन, पूजन, ध्यान, समाधि आदि किस काम के हैं?"

गुरुगोविन्दसिंह की युक्तियुक्त वाणी सुनकर बन्दा वैरागी उनके अनुयायी हो गए और गुरु की तरह उसने भी आजीवन देश को स्वतन्त्र कराने, अधर्मियों को नष्ट करने और संस्कृति की रक्षा करने की प्रतिज्ञा की । इसी उद्देश्य के लिए बन्दा वैरागी आजीवन प्रयत्नशील रहे । मुसलमानों द्वारा वैरागी पकड़े गये, उन्हें एक पिंजरें में बन्द किया गया । मौत या धर्म परिवर्तन की शर्त रखी गई, लेकिन वे तिल मात्र भी विचलित नहीं हुए । अन्तत: आतताइयों ने उनके टुकड़े-टुकडे कर दिये । बन्दा अन्त तक मुस्कराते ही रहे । भले ही बन्दा मर गये परन्तु अक्षय यश और कीर्ति के अधिकारी बने ।

📖 प्रज्ञा पुराण भाग १

👉 कुछ बिन्दु जिन्दगी के लिये

1. प्रतिदिन 10 से 30 मिनट टहलने की आदत बनायें. चाहे समय ना हो तो घर मे ही टहले , टहलते समय चेहरे पर मुस्कराहट रखें.

2. प्रतिदिन कम से कम 10 मिनट चुप रहकर बैठें.

3. पिछले साल की तुलना में इस साल ज्यादा पुस्तकें पढ़ें.

4. 70 साल की उम्र से अधिक आयु के बुजुर्गों और 6 साल से कम आयु के बच्चों के साथ भी कुछ समय व्यतीत करें.

5. प्रतिदिन खूब पानी पियें.

6. प्रतिदिन कम से कम तीन बार  ये सोचे की मैने आज कुछ गलत तो नही किया.

7. गपशप पर अपनी कीमती ऊर्जा बर्बाद न करें.

8. अतीत के मुद्दों को भूल जायें, अतीत की गलतियों को अपने जीवनसाथी को याद न दिलायें.

9. एहसास कीजिये कि जीवन एक स्कूल है और आप यहां सीखने के लिये आये हैं. जो समस्याएं आप यहाँ देखते हैं, वे पाठ्यक्रम का हिस्सा हैं.

10. एक राजा की तरह नाश्ता, एक राजकुमार की तरह दोपहर का भोजन और एक भिखारी की तरह रात का खाना खायें.

11. दूसरों से नफरत करने में अपना समय व ऊर्जा बर्बाद न करें. नफरत के लिए ये जीवन बहुत छोटा है.

12. आपको हर बहस में जीतने की जरूरत नहीं है, असहमति पर भी अपनी सहमति दें.

13. अपने जीवन की तुलना दूसरों से न करें.

14. गलती के लिये गलती करने वाले को माफ करना सीखें.

15. ये सोचना आपका काम नहीं कि दूसरे लोग आपके बारे में क्या सोचते हैं.

16. समय ! सब घाव भर देता है.

17. ईर्ष्या करना समय की बर्बादी है. जरूरत का सब कुछ आपके पास है.

18. प्रतिदिन दूसरों का कुछ भला करें.

19. जब आप सुबह जगें तो अपने माता-पिता को धन्यवाद दें, क्योंकि माता-पिता की कुशल परवरिश के कारण आप इस दुनियां में हैं.

20. हर उस व्यक्ति को ये संदेश शेयर करें जिसकी आप परवाह करते हैं..l

👉 आज का सद्चिंतन 12 March 2019


👉 प्रेरणादायक प्रसंग 12 March 2019


👉 प्रज्ञा पुराण (भाग 1) श्लोक 34 से 36

सोत्सुकं नारदोSपृच्छद्देवात्र किमपेक्ष्यते ।
कथं ज्ञेया वरिष्ठास्ते किं शिक्ष्या:कारयामि किम् ॥३७॥
यैन युगसन्धिकाले ते मूर्धन्या यान्तु धन्यताम् ।
समयश्चापि धन्य: स्यात्तात तत्सृज युगविधिम् ॥३८॥
पूर्वसंचितसंस्कारा श्रुत्वा युगनिमन्त्रणम्।
मौना: स्थातुंन शख्यन्ति चौत्सुक्यात् संगतास्तत॥३९॥

टीका- तब नारद ने उत्सुकतापूर्वक पूछा-हे देव । इसके लिए क्या करने की आवश्यकता है? वरिष्ठों कों कैसे ढूँढा जाय? उन्हें क्या सिखाया जाय और क्या कराया जाय? जिससे युग-सन्धि की बेला में अपनी भूमिका से मूर्धन्य आत्माएँ स्वयं धन्य बन सकें और समय को धन्य बना सकें। भगवान् बोले- हे तात्! युग सृजन का अभियान आरम्भ करना चाहिए? जिनमें पूर्व संचित संस्कार होंगे वे युग निमन्त्रण सुनकर मौन बैठे न रह सकेंगे, उत्सुकता प्रकट करेंगे, समीप आवेंगे और परस्पर सम्बद्ध होंगे ॥३७-३९॥

व्याख्या- जागृत आत्माएँ कभी भी चुप बैठी नहीं रह सकती। उनके अर्जित संस्कार व सत्साहस युग की पुकार सुनकर उन्हें आगे बढ़ने व अवतार के प्रयोजनों हेतु क्रियाशील होने को बाध्य कर देते हैं।

.... क्रमशः जारी
✍🏻 श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 प्रज्ञा पुराण (भाग १) पृष्ठ 18

👉 प्रेरणादायक प्रसंग 30 Sep 2024

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