मंगलवार, 14 नवंबर 2023

👉 आत्मचिंतन के क्षण Aatmchintan Ke Kshan 14 Nov 2023

सुना है कि आत्मज्ञानी सुखी रहते हैं और चैन की नींद सोते हैं। अपने लिए ऐसा आत्मज्ञान अभी तक दुर्लभ ही बना हुआ है। ऐसा आत्मज्ञान कभी मिल भी सकेगा या नहीं, इसमें पूरा-पूरा सन्देह है। जब तक व्यथा-वेदना का अस्तित्व इस जगती में बना रहे, जब तक प्राणियों को कश्ट और क्लेष की आग में जलना पड़े, तब तक हमें भी चैन से बैठने की इच्छा न हो। जब भी प्रार्थना का समय आया तब भगवान से निवेदन यही किया कि हमें चैन नहीं, वह करुणा चाहिए, जो पीड़ितों की व्यथा को अपनी व्यथा समझने की अनुभूति करा सके। हमें समृद्धि नहीं, वह षक्ति चाहिए, जो आँखों से आँसू पोंछ सकने की अपनी सार्थकता सिद्ध कर सके।

लोगों की आँखों से हम दूर हो सकते हैं, पर हमारी आँखों से कोई दूर न होगा। जिनकी आँखों में हमारे प्रति स्नेह और हृदय में भावनाएँ हैं, उन सबकी तस्वीरें हम अपने कलेजे में छिपाकर ले जायेंगे और उन देव प्रतिमाओं पर निरन्तर आँसुओं का अध्र्य चढ़ाया करेंगे। कह नहीं सकते उऋण होने के लिए प्रत्युपकार का कुछ अवसर मिलेगा या नहीं; पर यदि मिला तो अपनी इन देव प्रतिमाओं को अलंकृत और सुसज्जित करने में कुछ उठा न रखेंगे। लोग हमें भूल सकते हैं, पर हम अपने किसी स्नेही को नहीं भूलेंगे।                       

हमारी कितनी रातें सिसकते बीती हैं। कितनी बार हम बालकों की तरह बिलख-बिलख कर फूट-फूट कर रोये हैं। इसे कोई कहाँ जानता है? लोग हमें संत, सिद्ध, ज्ञानी मानते हैं, तो कोई लेखक, विद्वान, वक्ता, नेता समझते हैं; पर किसने हमारा अन्तःकरण खोलकर पढ़ा-समझा है? कोई इसे देख सका होता तो उसे मानवीय व्यथा-वेदना की अनुभूतियों से, करुण कराह से हाहाकार करती एक उद्विग्न आत्मा भर इस हड्डियों के ढाँचें में बैठी बिलखती ही दिखाई पड़ती है। हमें चैन नहीं, वह करुणा चाहिए; जो पीड़ितों की व्यथा को अपनी व्यथा समझने की अनुभूति करा सके।

🌹 ~पं श्रीराम शर्मा आचार्य

👉 प्रेरणादायक प्रसंग 4 Jan 2025

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