🔷 दुनिया के हर भले आदमी को फिजूलखर्ची से बचना पड़ा है। हमारे लिए भी एक ही रास्ता है कि अपनी हर फिजूलखर्ची को पूरी तरह त्याग दें। अपनी गाढ़ी कमाई के एक-एक पैसे को दस बार सोच-समझकर केवल उपयोगी और आवश्यक कार्यों में ही खर्च करें। जिस दिन हमारा यह दृष्टिकोण बन जाएगा उसी दिन आर्थिक तंगी के बहाने हमें बेईमानी करने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी और ईमानदारी का जीवनयापन करना सर्वथा सुलभ प्रतीत होगा।
🔶 ओजस्वी ऐसे ही व्यक्ति कहे जाते हैं, जिन्हें पराक्रम प्रदर्शित करने में संतोष और गौरव अनुभव होता है। जिन्हें आलसी रहने में लज्जा का अनुभव होता है। जिन्हें अपाहिज, अकर्मण्यों की तरह सुस्ती में पड़े रहना अत्यन्त कष्टकारक लगता है। सक्रियता अपनाये रहने में, कर्मनिष्ठा के प्रति तत्परता बनाये रहने में जिन्हें आनंद आता है।
🔷 यह विचार सही नहीं है कि जो अमीर होते हैं, वे मौज करते हैं और जो गरीब हैं उन्हीं को श्रम करना पड़ता है। सच्चाई यह है कि जो श्रमशील हैं, वे ही अमीर बनते हैं और जो आरामतलबी के शिकार हैं, वे क्रमशः गरीबी के गर्त में चले जाते हैं।
🔶 ओजस्वी ऐसे ही व्यक्ति कहे जाते हैं, जिन्हें पराक्रम प्रदर्शित करने में संतोष और गौरव अनुभव होता है। जिन्हें आलसी रहने में लज्जा का अनुभव होता है। जिन्हें अपाहिज, अकर्मण्यों की तरह सुस्ती में पड़े रहना अत्यन्त कष्टकारक लगता है। सक्रियता अपनाये रहने में, कर्मनिष्ठा के प्रति तत्परता बनाये रहने में जिन्हें आनंद आता है।
🔷 यह विचार सही नहीं है कि जो अमीर होते हैं, वे मौज करते हैं और जो गरीब हैं उन्हीं को श्रम करना पड़ता है। सच्चाई यह है कि जो श्रमशील हैं, वे ही अमीर बनते हैं और जो आरामतलबी के शिकार हैं, वे क्रमशः गरीबी के गर्त में चले जाते हैं।
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
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