गुरुवार, 20 जुलाई 2023

👉 आत्मचिंतन के क्षण Aatmchintan Ke Kshan 20 July 2023

जो अपने को हमारे सम्मुख अपने लौकिक व्यवहार से प्रियजन सिद्ध करना चाहते हैं, वे हमें निरर्थक लगते हैं, किन्तु जो कभी मिलते भी नहीं, पत्र भी नहीं लिखते, प्रशंसा-पूजा का हलका सा भी प्रयत्न नहीं करते, पर मिशन के लिए समर्पित होकर काम कर रहे हैं वे प्राणप्रिय और अति समीप लगते हैं।

आत्म-निरीक्षण और आत्म-सुधार की दिशा में जिनकी रुचि नहीं बढ़ी और लोकमंगल के लिए त्याग, बलिदान करने के लिए जिनमें कोई उत्साह पैदा नहीं हुआ मात्र पूजा-पाठ, तिलक-छापे और कर्मकाण्ड तक सीमित रह जाये ऐसे निर्जीव आध्यात्मिकता को देखते हैं तो इतना ही सोचते हैं बेचारा कुमार्गगामी कार्यों से बचकर इस गोरखधंधे में लग गया तो कुछ अच्छा ही है। अच्छाई का नाटक भी अच्छा, पर काम तो इतने मात्र से चलता नहीं। प्रखर और सजीव आध्यात्मिकता तो वह है जिसमें अपने आपका निर्माण दुनिया वालों की अँधी भेड़चाल के अनुकरण से नहीं, वरन् स्वतंत्र विवेक के आधार पर कर सकना संभव हो सके।

उत्कृष्टता और आदर्शवादिता की गतिविधियों को अपनाना किसी प्रकार भी घाटे का सौदा नहीं है। यह प्रक्रिया स्वास्थ्य सुधारती है, दीर्घजीवन प्रदान करती है, दाम्पत्य प्रेम में भारी उल्लास भर देती है, बच्चे सुसंस्कृत बनते हैं, पैसे की तंगीनहीं रहती, मनोविकारों और उद्वेगों में नहीं जलना पड़ता, यश मिलता है, सच्चे और सज्जन मित्र मिलते हैं, प्रगति का पथ प्रशस्त होता है, असफलताएँ क्षुब्ध नहीं करती, चित्त में प्रसन्नता उमड़ती रहती है, आत्म संतोष मिलता है और ईश्वर के अनुग्रह एवं सान्निध्य का हर घड़ी अनुभव होता है।

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

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👉 दूसरों की बात भी सुनें

लोग सोचते हैं कि हमारे पास जितना धन अधिक होगा , जितनी संपत्ति, जितने साधन अधिक होंगे, उतना हम अधिक सुखी हो जाएंगे। जबकि यह कोरी भ्रांति है। संसार में देखा यह जा रहा है कि जिसके पास जितनी अधिक संपत्ति है वह उतना ही अधिक दुखी, परेशान और चिंता ग्रस्त है। उसे अपनी संपत्ति खो जाने चुरा लिए जाने और लूट लिए जाने का भय है। तो कृपया इस भ्रांति से बाहर निकलें, कि बहुत धन संपत्ति होने पर बहुत सुखी हो जाएंगे। वास्तविकता तो यह है कि यह भौतिक धन संपत्ति केवल जीवन रक्षा मात्र के लिए सहयोगी है, इससे अधिक नहीं। इससे कोई आत्मिक आनंद मानसिक शांति नहीं मिलती। हाँ, जीवन रक्षा अवश्य होती है।

जीवन रक्षा के लिए तो बहुत थोड़े साधन चाहिएँ। उसके बाद तो व्यक्ति केवल अपनी इच्छाएं ही पूरी करता रहता है। और आश्चर्य की बात यह है कि जितनी इच्छाएं पूरी करता जाता है इच्छाएं उतनी ही बढ़ती जाती हैं। फिर इच्छाओं का कोई अंत नहीं आता। इसलिए व्यक्ति सदा दुखी रहता है। और यदि वह अपनी इच्छाओं को थोड़ा नियंत्रित करके दूसरों के लिए कुछ त्याग करे, सेवा करे, माता-पिता का आदर सम्मान करे, बुजुर्गों एवं  विद्वानों के निर्देश का पालन करे, उनकी सेवा करे, प्राणियों की रक्षा करे, सच्ची विद्या का प्रचार करे, सच्चाई और ईमानदारी से जिए, यदि इस प्रकार के कार्य करें और इसमें तप त्याग तपस्या करे, तो उसे जो आनंद और शांति मिलेगी, वह संसार के किसी बाजार में धन से नहीं खरीदी जा सकती। इसलिए आनंद और शांति के लिए त्याग करें, लोभ नहीं।

बहुत से लोगों को हमेशा यह शिकायत रहती है कि मेरे घर के लोग, मेरे मित्र, रिश्तेदार मुझे समझते ही नहीं। मेरी भावनाओं को नहीं समझते, मेरी बातों को नहीं समझते , जो मैं चाहता हूं वह करते नहीं। यदि ध्यान से देखा जाए तो वास्तव में इस शिकायत में में काफी कुछ सच्चाई भी है। लोग वास्तव में दूसरे की बात को पूरे ध्यान से सुनते नहीं हैं।

प्रायः देखा जाता है कि वे अपनी बात कहने में ज्यादा रुचि रखते हैं, दूसरे की बात सुनना उनको पसंद नहीं । इसलिए वे दूसरे की बात सुनते ही नहीं। जब सुनते ही नहीं, तो उस पर विचार क्या करेंगे? जब विचार ही नहीं करेंगे तो क्या समझेंगे? जब समझते ही नहीं तो दूसरे के अनुकूल व्यवहार कैसे कर पाएंगे?

इसलिए जब लोग एक दूसरे के अनुकूल व्यवहार नहीं करते, तो आपस में शिकायत बढ़ती जाती है। और बढ़ते बढ़ते एक दिन बारुद की तरह विस्फोट होता है। और उसके बहुत दुष्परिणाम सामने आते हैं। लड़ाई होती है झगड़े होते हैं कोर्ट केस होते हैं। और कभी-कभी लोग दुखी परेशान होकर हत्या या आत्महत्या तक भी कर लेते हैं।

तो इन सब दुष्परिणामों से बचने के लिए दूसरों की बात ध्यान पूर्वक सुनें, उनके सही अभिप्राय को समझने की कोशिश करें, और ठीक-ठीक समझकर न्याय पूर्वक व्यवहार करें। तभी आप सबका जीवन सुखमय हो सकता है।

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👉 महिमा गुणों की ही है

🔷 असुरों को जिताने का श्रेय उनकी दुष्टता या पाप-वृति को नहीं मिल सकता। उसने तो अन्तत: उन्हें विनाश के गर्त में ही गिराया और निन्दा के न...