👉 व्यक्तित्व की समग्र साधना हेतु चान्द्रायण तप
ब्रह्मर्षि परम पूज्य गुरूदेव ने अपना समूचा जीवन तप के इन उच्चस्तरीय प्रयोगों में बिताया। उन्होंने अपने समूचे जीवन काल में कभी भी तप की प्रक्रिया को विराम् नहीं दिया। अपने अविराम तप से उन्होंने जो प्राण ऊर्जा इकट्ठी की उसके द्वारा उन्होंने लाखों लोगों को स्वास्थ्य के वरदान दिये। इतना ही नहीं उनने कई कुमार्गगामी- भटके हुए लोगों को तप के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित भी किया। ऐसा ही एक उदाहरण गुजरात के सोमेश भाई पटेल का है। आर्थिक रूप से समृद्ध होते हुए भी ये सज्जन शराब, सिगरेट, जुआ, नशा जैसी अनेकों बुरी आदतों की गिरफ्त में थे। इन आदतों के कारण उनके घर में तो कलह रहती ही थी, स्वयं के स्वास्थ्य में भी घुन लग चुका था। उच्च रक्तचाप, मधुमेह के साथ कैंसर के लक्षण भी उनमें उभर आये थे।
ऐसी अवस्था में वे गुरुदेव के पास आये। गुरुदेव ने उनकी पूरी विषद् कथा धैर्य से सुनी। सारी बातें सुनकर वह बोले बेटा मैं तुझे ठीक तो कर सकता हूँ पर इसके लिए तुझे मेरी फीस देनी पड़ेगी। ‘फीस’ इस शब्द ने सोमेश भाई पटेल को पहले तो चौंकाया, लेकिन बाद में सम्हलते हुए बोले- आप जो माँगेंगे मैं दूँगा। पहले सोच ले- गुरुदेव ने उन्हें चेताया। इस बात के उत्तर में सोमेश भाई थोड़ा सहमे, पर उन्होंने कहा यही कि ठीक है आप जो भी माँगेंगे मैं दूँगा। तो ठीक है पहले तू यहीं शान्तिकुञ्ज में रहकर एक महीने चन्द्रायण करते हुए गायत्री का अनुष्ठान कर। इसके बाद महीने भर बाद मिलना। गुरुदेव का यह आदेश यूँ तो उनकी प्रकृति के विरुद्ध था, फिर भी उन्होंने उनकी बात स्वीकार की। उन दिनों शान्तिकुञ्ज में चान्द्रायण सत्र चल रहा था। वह भी उसमें भागीदार हो गये। चान्द्रायण तप करते हुए एक महीना बीत गया। इस एक महीने में उनके शरीर व मन का आश्चर्यजनक ढंग से कायाकल्प हो गया।
इसके बाद जब वह गुरुदेव से मिलने गये तो उन्होंने कहा- तू अब ठीक है, आगे भी ठीक रहेगा। गुरुजी आप की फीस? सोमेश भाई की इस बात पर वह हँसे और बोले- सो तो मैं लूँगा ही, छोडूँगा नहीं। मेरी फीस यह है कि तू प्रत्येक साल में चार महीने आश्विन, चैत्र, माघ, आषाढ़ चन्द्रायण करते हुए गायत्री साधना करना। साधक बनकर के जीना। जो साधक के योग्य न हो वैसा तू कुछ भी नहीं करना। बस यही मेरी फीस है। वचन के धनी सोमेश भाई ने अपनी फीस पूरी ईमानदारी से चुकायी। इसी के साथ उन्हें समग्र स्वास्थ्य का अनुदान भी मिला। साथ ही उन्हें लगने लगा- असली सुख- भोग विलास में नहीं, प्रेममयी भक्ति में है।
.... क्रमशः जारी
✍🏻 डॉ. प्रणव पण्ड्या
📖 आध्यात्मिक चिकित्सा एक समग्र उपचार पद्धति पृष्ठ ७३
ब्रह्मर्षि परम पूज्य गुरूदेव ने अपना समूचा जीवन तप के इन उच्चस्तरीय प्रयोगों में बिताया। उन्होंने अपने समूचे जीवन काल में कभी भी तप की प्रक्रिया को विराम् नहीं दिया। अपने अविराम तप से उन्होंने जो प्राण ऊर्जा इकट्ठी की उसके द्वारा उन्होंने लाखों लोगों को स्वास्थ्य के वरदान दिये। इतना ही नहीं उनने कई कुमार्गगामी- भटके हुए लोगों को तप के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित भी किया। ऐसा ही एक उदाहरण गुजरात के सोमेश भाई पटेल का है। आर्थिक रूप से समृद्ध होते हुए भी ये सज्जन शराब, सिगरेट, जुआ, नशा जैसी अनेकों बुरी आदतों की गिरफ्त में थे। इन आदतों के कारण उनके घर में तो कलह रहती ही थी, स्वयं के स्वास्थ्य में भी घुन लग चुका था। उच्च रक्तचाप, मधुमेह के साथ कैंसर के लक्षण भी उनमें उभर आये थे।
ऐसी अवस्था में वे गुरुदेव के पास आये। गुरुदेव ने उनकी पूरी विषद् कथा धैर्य से सुनी। सारी बातें सुनकर वह बोले बेटा मैं तुझे ठीक तो कर सकता हूँ पर इसके लिए तुझे मेरी फीस देनी पड़ेगी। ‘फीस’ इस शब्द ने सोमेश भाई पटेल को पहले तो चौंकाया, लेकिन बाद में सम्हलते हुए बोले- आप जो माँगेंगे मैं दूँगा। पहले सोच ले- गुरुदेव ने उन्हें चेताया। इस बात के उत्तर में सोमेश भाई थोड़ा सहमे, पर उन्होंने कहा यही कि ठीक है आप जो भी माँगेंगे मैं दूँगा। तो ठीक है पहले तू यहीं शान्तिकुञ्ज में रहकर एक महीने चन्द्रायण करते हुए गायत्री का अनुष्ठान कर। इसके बाद महीने भर बाद मिलना। गुरुदेव का यह आदेश यूँ तो उनकी प्रकृति के विरुद्ध था, फिर भी उन्होंने उनकी बात स्वीकार की। उन दिनों शान्तिकुञ्ज में चान्द्रायण सत्र चल रहा था। वह भी उसमें भागीदार हो गये। चान्द्रायण तप करते हुए एक महीना बीत गया। इस एक महीने में उनके शरीर व मन का आश्चर्यजनक ढंग से कायाकल्प हो गया।
इसके बाद जब वह गुरुदेव से मिलने गये तो उन्होंने कहा- तू अब ठीक है, आगे भी ठीक रहेगा। गुरुजी आप की फीस? सोमेश भाई की इस बात पर वह हँसे और बोले- सो तो मैं लूँगा ही, छोडूँगा नहीं। मेरी फीस यह है कि तू प्रत्येक साल में चार महीने आश्विन, चैत्र, माघ, आषाढ़ चन्द्रायण करते हुए गायत्री साधना करना। साधक बनकर के जीना। जो साधक के योग्य न हो वैसा तू कुछ भी नहीं करना। बस यही मेरी फीस है। वचन के धनी सोमेश भाई ने अपनी फीस पूरी ईमानदारी से चुकायी। इसी के साथ उन्हें समग्र स्वास्थ्य का अनुदान भी मिला। साथ ही उन्हें लगने लगा- असली सुख- भोग विलास में नहीं, प्रेममयी भक्ति में है।
.... क्रमशः जारी
✍🏻 डॉ. प्रणव पण्ड्या
📖 आध्यात्मिक चिकित्सा एक समग्र उपचार पद्धति पृष्ठ ७३