बुधवार, 26 अगस्त 2020

👉 कौन सा रास्ता सही

एक गरीब युवक, अपनी गरीबी से परेशान होकर, अपना जीवन समाप्त करने नदी पर गया, वहां एक साधू ने उसे ऐसा करने से रोक दिया। साधू ने, युवक की परेशानी को सुन कर कहा, कि मेरे पास एक विद्या है, जिससे ऐसा जादुई घड़ा बन जायेगा जो भी इस घड़े से मांगोगे, ये जादुई घड़ा पूरी कर देगा, पर जिस दिन ये घड़ा फूट गया, उसी समय, जो कुछ भी इस घड़े ने दिया है, वह सब गायब हो जायेगा।

अगर तुम मेरी 2 साल तक सेवा करो, तो ये घड़ा, मैं तुम्हे दे सकता हूँ और, अगर 5 साल तक तुम मेरी सेवा करो, तो मैं, ये घड़ा बनाने की विद्या तुम्हे सिखा दूंगा। बोलो तुम क्या चाहते हो, युवक ने कहा, महाराज मैं तो 2 साल ही आप  की सेवा करना चाहूँगा , मुझे तो जल्द से जल्द, बस ये घड़ा ही चाहिए, मैं इसे बहुत संभाल कर रखूँगा, कभी फूटने ही नहीं दूंगा।

इस तरह 2 साल सेवा करने के बाद, युवक ने वो जादुई घड़ा प्राप्त कर लिया, और अपने घर पहुँच गया।

उसने घड़े से अपनी हर इच्छा पूरी करवानी शुरू कर दी, महल बनवाया, नौकर चाकर मांगे, सभी को अपनी शान शौकत दिखाने लगा, सभी को बुला-बुला कर दावतें देने  लगा और बहुत ही विलासिता का जीवन जीने लगा, उसने शराब भी पीनी शुरू कर दी और एक दिन नशें में, घड़ा सर पर रख नाचने लगा और ठोकर लगने से घड़ा गिर गया और फूट गया.

घड़ा फूटते ही सभी कुछ गायब हो गया, अब युवक सोचने लगा कि काश मैंने जल्दबाजी न की होती और घड़ा बनाने की विद्या सीख ली होती, तो आज मैं, फिर से कंगाल न होता।

"ईश्वर हमें हमेशा 2 रास्ते पर रखता है एक आसान -जल्दी वाला और दूसरा थोडा लम्बे समय वाला, पर गहरे ज्ञान वाला, ये हमें चुनना होता है की हम किस रास्ते पर चलें"

"कोई भी काम जल्दी में करना अच्छा नहीं होता, बल्कि उसके विषय में गहरा ज्ञान आपको अनुभवी बनाता है।"

👉 अन्तर्जगत् की यात्रा का ज्ञान-विज्ञान (भाग १२)

सावधान! बड़ा बेबस बना सकता है मन

समर्पण हुआ, तो निश्चित ही साक्षी भाव की अनुभूति होगी और साधक अपने स्वरूप में अवस्थित होगा। पर यदि समर्पण न हो सका तब? इस प्रश्न का उत्तर महर्षि पतंजलि अपने अगले सूत्र यानि कि समाधि पाद के चौथे सूत्र में देते हैं। वह कहते हैं-
वृत्तिसारूप्यमितरत्र॥ १/४॥
  
साक्षी होने के अलावा अन्य सभी अवस्थाओं में मन की वृत्तियों के साथ तादात्म्य हो जाता है। ये वृत्तियाँ साधक की अन्तर्चेतना को मनचाहा भटकाती हैं। सुख-दुख के सपने दिखाती हैं। कभी हँसाती हैं, कभी रुलाती हैं। इच्छाओं के कच्चे धागों से बाँधती हैं। कल्पनाओं और कामनाओं की मदिरा पिला कर बेहोश करती हैं।
  
साक्षी होने के अतिरिक्त अन्य सभी अवस्थाओं का यही सत्य है। जिसे हम सभी किसी न किसी रूप में रोजमर्रा की जिन्दगी में अनुभव करते रहते हैं। मजे की बात तो यह है कि यदा-कदा हम में से कई या यूं कहें कि प्रायः हम सभी इन्हीं कामनाओं की तृप्ति के लिए साधना भी करने लगते हैं। गाढ़ी बेहाशी को और गाढ़ा करने के लिए जप-तप-व्रत का सिलसिला शुरू करते हैं। इसकी सफलताओं पर खुशियों की अठखेलों से खेलते हैं और असफल होने पर गम के आँसूओं से अपने-आपको भिगोते हैं। वृत्तियों का यह बहुरंगी तमाशा हमारे जीवन का सामान्य परिचय है। इसमें स्वप्न तो अनेक हैं, सत्य एक भी नहीं। इसी तथ्य का संकेत महर्षि के सूत्र में है।
  
.... क्रमशः जारी
📖 अन्तर्जगत् की यात्रा का ज्ञान-विज्ञान पृष्ठ २७
✍🏻 डॉ. प्रणव पण्ड्या

👉 सामाजिक कुरीतियों की जंजीर सत्यानाशी विवाहोन्माद

हम अपनी सामाजिक कुरीतियों पर ध्यान दें तो लगता है कि लोहे की गरम सलाखों से बनी हुई जंजीरों की तरह वे हमें जकड़े हुए हैं और हर घड़ी हमारी नस-नस को जलाती रहती हैं। घर में तीन−चार कन्याएं जन्म ले ले तो माता−पिता की नींद हराम हो जाती है। वे जैसे-जैसे बढ़ने लगती हैं वैसे ही वैसे अभिभावकों का खून सूखता चला जाता है। विवाह—आह विवाह—कन्या का विवाह उनके माता-पिता के यहाँ डकैती, लूट, बर्बादी होने के समान है। आजकल साधारण नागरिकों की आमदनी इतनी ही मुश्किल से हो पाती है कि वे अपना पेट पाल सके। जितना धन दहेज के लिए चाहिए उतना जमा करना तभी संभव है जब या तो कोई आदमी अपना पेट काटे, नंगा रहे, दवादारू के बिना भाग्य भरोसे बीमारी से निपटे, बच्चों को शिक्षा न दे या फिर कहीं से बेईमानी करके लावे।

इन उपायों के अतिरिक्त सामान्य श्रेणी के नागरिक के लिए उतना धन जमा करना कैसे संभव हो सकता है, जितने कि कन्या के विवाह में जरूरत पड़ती है—माँगा जाता है। यह संकट कौन कन्या का पिता किस पीड़ा और चिन्ता के साथ पार करता है, इसके पीछे लम्बी करुण कहानी छिपी रहती है। कर्ज का ब्याज, भावी जीवन में अँधेरा शेष बच्चों की शिक्षा एवं प्रगति में गतिरोध जैसी आपत्तियों को कन्या का विवाह अपने पिता और छोटे भाई−बहिनों के लिए छोड़ जाता है। विवाह का पत्थर छाती पर से हटा तो अर्थ संकट का आरा अपनी काट शुरू कर देता है। कई कन्याएँ हैं तब तो जीवित ही मृत्यु है। मृत्यु एक दिन कष्ट देकर शाँति की गोद में सुला देती है पर यह जीवित मृत्यु तो पग-पग पर काटती, नोचती, छेदती और चीरती रहती है।

हमारे हिन्दू समाज में विवाह शादी के अवसर पर जैसा अन्धापन और बावलापन छा जाता है उसे देखकर हैरत होती है। पृथ्वी के एक कोने से लेकर दूसरे कोने तक घूम जाइए, कोई भी देश, कोई भी धर्म, कोई भी समाज ऐसा न मिलेगा। जहाँ विवाह-शादियों के अवसर पर पैसे की ऐसी होली जलाई जाती हो जैसी हमारे यहाँ जलाई जाती है। बरात की निकासी, आतिशबाजी, बाजे, नाच, स्वाँग, दावत, जाफत देखकर ऐसा लगता है कि यह शादी वाले कोई लखपती, करोड़पती हैं और अपने अनाप-शनाप पैसे का कोई उपयोग न देखकर उसकी होली जला देने पर उतर आये हैं। जिन्हें अपने बच्चों का लालन-पालन और शिक्षण दुर्लभ है वे यदि ऐसे स्वाँग बनावें जैसे कि विवाह के दिनों में आमतौर से बनाये जाते हैं तो उसे समझदारी की कसौटी पर केवल ‘उन्माद’ ही कहा जा सकता है। सारी दुनियाँ में कही भी ऐसा ‘सत्यानाशी विवाहोन्माद’ नहीं देखा जाता। मामूली-सी रस्म की तरह, एक बहुत छोटे घरेलू उत्सव की तरह लोग विवाह-शादी कर लेते हैं। भार किसी को नहीं पड़ता, तैयारी किसी को नहीं करनी पड़ती। पर एक हम हैं जिनके जीवन में बच्चों का विवाह ही जीवन भर भारी समस्या बना रहता है, और इसी उलझन को सुलझाते-सुलझाते मर खप जाते हैं।

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 अखण्ड ज्योति जनवरी 1962

👉 Whatever we have, is it less ?

A person went to a Mahatma and said, “Life is short. What all activities to do in such duration? You don’t have knowledge in childhood, old age is worse. You don’t get proper sleep and the diseases also bother. In the youth, we have to look after the family then how do we get the real knowledge? When do we do social service? Getting time in this life doesn’t seem happening.” Saying this he gets depressed and starts crying. 

Seeing him, the Mahatma also starts crying. The man asked, “Why are you crying?” The Mahatma said, “Son, what to do, I need food grains to eat. But I don’t have the land to grow grains. I am dying of hunger. One part of God is Maya (illusion). One part of Maya has three qualities. One part of the qualities is the sky. Sky has air and the air has fire. One part of the fire has water. One hundredth of water is earth. Mountains cover half of the earth. Then there are so many rivers and forests here and there. God has not even left a small piece of land for me. Different people have already occupied whatever little land was there. Tell me will I not starve then?” 

The person said to him,”In spite of all this you are alive, right? Then why do you cry?” The Mahatma said instantaneously, “You also have time and this invaluable life then why are you complaining that you don’t have enough time and life is getting spent away. From now on don’t complain about lack of time. At least use whatever you have.” 

It doesn’t suit human being, the prince of God’s kingdom, to complain about lack of resources. The desire of converting one’s incompleteness into the complete is only acceptable and desirable if it pertains to the inner spiritual space. But such a complaint is uncalled for when the external resources are in plenty. 

Pragya Puran Part 1

👉 महिमा गुणों की ही है

🔷 असुरों को जिताने का श्रेय उनकी दुष्टता या पाप-वृति को नहीं मिल सकता। उसने तो अन्तत: उन्हें विनाश के गर्त में ही गिराया और निन्दा के न...