रविवार, 7 अगस्त 2016

👉 समाधि के सोपान (भाग 12) (In The Hours Of Meditation)

 

🔴 विकारों के क्षणों में निराश न होओ। कभी च्युत हो भी जाओ तब भी निराश न होओ। प्रभु सदैव समीप हैं। वे तुम्हारे कष्ट और तुम्हारी सचाई को जानते हैं। फिर भी उन्हें पुकारना न छोड़ो। अपनी भूलों समय भी प्रार्थना में दृढ़ रहो। प्रार्थना की गहराइयों से ही सभी वस्तुएँ आती हैं, ईश्वर के प्रति प्रेम, आध्यात्मिक दर्शन और अनुभूति। इस धारणा को आधार बनाओ कि ईश्वर सर्वशक्तिमान हैं तथा उनका स्वभाव उस उत्तम गड़रिये के समान है जो कि अपनी भेड़ों को विशेष कर जब कि वे गलत रास्ते पर जाती हैं मार्गदर्शन करता है। यह जान लो कि न्याय कर्त्ता होने के पूर्व ईश्वर प्रेमस्वरूप हैं। तुम माँगो और तुम्हें दिया जायेगा। तुम खोजो और तुम पाओगे। तुम दस्तक दो और तुम्हारे लिये द्वार खोल दिया जायेगा। थोड़ी सी ही चेष्टा तो करो वह भी तुम्हें धर्म के राज्य में पहुँचा देगी।

🔵 अहो! प्रत्येक प्रार्थना जो तुम करते हो, प्रत्येक बार जब तुम अपने हृदय को ईश्वराभिमुख करते हो वह तुम्हारी साधना में 'सम्मिलित होगा और तुम्हें शक्ति देगा। तुम्हारी प्रार्थना तुम्हें पूर्ण बना देगी। प्रार्थना पर निर्भर करो। यही उपाय। तुम्हारा हृदय कितना ही तमसाच्छन्न क्यों न हो प्रार्थना उसमें प्रकाश लायेगी। क्योंकि प्रार्थना ध्यान है। प्रार्थना अपने आप में दर्शन है। प्रार्थना ईश्वर के साथ संपर्क है। यह तुम्हें परम- प्रेम -स्वरूप सर्वशक्तिमान से युक्त कर देती है। यह तुम्हारी आत्मा को मानो पंख देती है। यदि तुम कठिनाई में हो तो भी उठोगे। यदि पर्वताकार खलता भी तुममें आ गई हो तथा उसने तुम्हारी आध्यात्मिकता के प्रत्येक चिह्न को ढक दिया हो तो भी प्रार्थना '' ऊपर उठा देगी।

🔴 अंतःकरण के भीतर ईश्वर तुम्हारी प्रार्थना सुनेंगे उनकी शक्ति तथा प्रेम तुम्हारे भीतर प्रगट होगी तथा तुम ईश्वर की अभयवाणी के प्रमाण स्वरूप उन्नत होओगे। और तब तुम ईश्वर की महिमा बढ़ने वाले गीत गाओगे और तुम्हारा हृदय स्वयं प्रभु की दया की महानता की गवाही देगा; तथा वे लोग जो कभी तुम्हें जानते थे आश्चर्य से कहेंगें, 'देखो ! वह एक संत हो गया है! '' सचमुच उसकी कृपा ही उसका न्याय है। तथा उसकी कृपा अनंत- काल तक रहती है। चाहे जितने भी प्रलोभन शत्रुरूप में तुम पर आघात करें प्रार्थना न छोड़ो। प्रार्थना के द्वारा तुम अपने स्वभाव के चारों ओर एक ऐसा किला बना लोगे जो अभेद्य होगा यहाँ तक कि नारकीय शक्ति भी उसका कुछ नहीं कर सकेगी। क्योंकि भगवान प्रेम तथा अनुभूति के घनिष्ठ बंधन से तुम्हें अपने साथ बाँध लेंगे जो कि प्रार्थना से उपलब्ध होता है।

हरि ओम् तत् सत्
 

🌹 क्रमशः जारी
🌹 एफ. जे. अलेक्जेन्डर

👉 माँ का क़र्ज़


🔵 एक बार एक बेटा पढ़ लिखकर बहुत बड़ा आदमी बन गया। पिता के स्वर्गवास हो जाने के बाद माँ ने हर तरह का काम करने बेटे को पढाया और उसे लायक बना दिया लेकिन शादी के बाद से बेटे की पत्नी को अपनी सास से शिकायत रहने लगी की उसकी सास उनके स्टेटस में फिट नहीं है और वो जब लोग के सामने ये बताती है कि उसकी सास अनपढ़ है उसे बहुत ही शर्म महसूस होती है।

🔴 तो एक दिन बात के बढ़ जाने पर बेटे ने अपनी माँ से कहा कि माँ आज मैं इतना बड़ा और इस काबिल हो गया हूँ कि तेरे जितने मुझ पर क़र्ज़ है सूद समेत बता दे मैं चुकता कर सकता हूँ। अब तक के सारे जितने तूने खर्च किये है बता दे मैं ब्याज समेत अदा कर देता हूँ। फिर हम दोनों अलग अलग सुखी रहेंगे इस पर माँ ने कहा बेटे हिसाब जरा लम्बा है मैं तुम्हे सोचा कर बताऊंगी इसके लिए मुझे थोडा सा समय देदे।

🔵 इस पर बेटे ने माँ से कहा कि मुझे कोई जल्दी नहीं है माँ तू सोच कर आराम से बता देना। लेकिन हाँ दो चार दिन के अंदर ही बता देना। रात हो गयी उसका बेटा सो रहा था माँ उसके कमरे में आयी और एक लौटा पानी लिया और जिस और बेटा करवट लेकर सो रहा था उस और पानी डाल कर गीला कर दिया इस पर बेटा करवट बदल कर सो गया तो माँ ने दूसरी और भी पानी डाल कर गीला कर दिया तो बेटे ने खीजते हुए कहा कि माँ ये क्या है क्यों परेशान कर रही है |तूने मेरे पूरे बिस्तर पर पानी पानी क्यों कर दिया।

🔴 इस पर माँ ने जवाब दिया बेटा तू पूछ रहा था न कि माँ तेरे जितने क़र्ज़ है बता दे मैं चुकता कर दूंगा। इसलिए मैं अभी ये हिसाब लगा रही थी कि मैंने कितनी राते तेरे बिस्तर को गीला कर देने के बात बिना नींद लिए काटी है और ये तो पहली रात है तू तो पहली रात में ही घबरा गया। मैंने तो अभी हिसाब शुरू भी न किया कि तू चुकता कर पाए। माँ की इस बात ने बेटे को अंदर तक झकजोर दिया और वो समझ गया कि मन का क़र्ज़ आजीवन नहीं उतारा जा सकता है।

👉 समाधि के सोपान (भाग 11) 7 AUG 2016 (In The Hours Of Meditation)


🔴 ध्यान की घड़ियों में आगे आत्मा स्वयं से कहती है- यह सत्य है कि परीक्षा की घड़ियाँ उगती हैं तथा मानवीय दुर्बलताएँ बलवती हैं। किन्तु यह ज्ञान ही कि दुर्बलता ही पाप है यथासमय उसका नाश कर देगी। क्योंकि एक बार जब तुम यह जान लोगे कि यह विष है तब स्वाभाविक ही उससे घृणा करने लगोगे। जब तुम अपनी दुर्बलता को जान जाओगे तब फिर वह दुर्बलता न रह जायेगी। तुमने अपनी कठिनाइयों का हृदय खोल कर रख दिया और जो तुम्हारे अंतस् में है वह इसकी धाराओं को परिवर्तित कर देगा।

🔵 जब तक हृदय में ईमानदारी है, तब तक, यथा समय तुम अवश्य विजयी होओगे। और अध्यवसायपूर्वक प्रार्थना करो। क्योंकि आध्यात्मिक संघर्ष में स्वयं के सतत निरीक्षण की आवश्यकता होती है। यदा कदा ऐसे क्षण आयेंगे जब तुम अपने असली स्वरूप की झलक पा सकोगे तथा दुर्बलताओं को दुर्बलता के रूप में पहचान सकोगे। उस समय ईश्वर को पुकारों और वह तुम्हारी प्रार्थना सुनकर तुम पर कृपा करेंगे।

🔴 सिद्धांत एक बात है और जीवन 'दूसरी। यह समझ लो कि सत्य के संबंध में तुम्हारी बौद्धिक चेतना कितनी भी आश्चर्यजनक क्यों न हो, उद्देश्य मस निर्माण ही है। अनुभूति ही सर्वस्व है। तुम्हारे अंतर का पशु प्रबल हे, किन्तु आंतरिक प्रार्थना द्वारा उसे वशीभूत किया जा सकता है। प्रार्थना ही एक वस्तु है। केवल प्रार्थना ही वासना को जीत सकती है। ईश्वर के नाम से बड़ा और कुछ भी नहीं है। सतत सावधानी और सतत प्रार्थना ही तुम्हारा उद्देश्य हो और सर्वशक्तिमान के संदेश- वाहक जो कि सहायक हैं आयेंगे और तुम मुक्त हो जाओगे। निस्संदेह पथ बहुत लंबा है पर उसका अन्त निश्चित है। प्रार्थना गहरी प्रविष्ट होती है तथा प्रलोभन की शक्ति को नष्ट कर देती है। प्रार्थना करो! प्रार्थना करो! सतत प्रार्थनाकरो! सर्वदा प्रार्थना करो!

🌹 क्रमशः जारी
🌹 एफ. जे. अलेक्जेन्डर

👉 महिमा गुणों की ही है

🔷 असुरों को जिताने का श्रेय उनकी दुष्टता या पाप-वृति को नहीं मिल सकता। उसने तो अन्तत: उन्हें विनाश के गर्त में ही गिराया और निन्दा के न...