🌹 ब्राह्मण मन और ऋषि कर्म
🔵 जमदग्नि पुत्र परशुराम के फरसे ने अनेक उद्धत उच्छृंखलों के सिर काटे थे। यह वर्णन अलंकारिक भी हो सकता है। उन्होंने यमुनोत्री में तपश्चर्या कर प्रखरता की साधना की एवं सृजनात्मक क्रांति का मोर्चा संभाला। जो व्यक्ति तत्कालीन समाज निर्माण में बाधक, अनीति में लिप्त थे, उनकी वृत्तियों का उन्होंने उन्मूलन किया। दुष्ट और भ्रष्ट जनमानस के प्रवाह को उलट कर सीधा करने का पुरुषार्थ उन्होंने निभाया। इसी आधार पर उन्हें भगवान् शिव से ‘‘परशु (फरसा)’’ प्राप्त हुआ। उत्तरार्द्ध में उन्होंने फरसा फेंककर फावड़ा थामा एवं स्थूल दृष्टि से वृक्षारोपण एवं सूक्ष्मतः रचनात्मक सत्प्रवृत्तियों का बीजारोपण किया। शान्तिकुञ्ज से चलने वाली लेखनी ने, वाणी ने उसी परशु की भूमिका निभाई एवं असंख्यों की मान्यताओं, भावनाओं, विचारणाओं एवं गतिविधियों में आमूल-चूल परिवर्तन कर दिया है।
🔴 भागीरथ ने जल दुर्भिक्ष के निवारण हेतु कठोर तप करके स्वर्ग से गंगा को धरती पर लाने में सफलता प्राप्त की थी। भागीरथ शिला गंगोत्री के समीपस्थ है। गंगा उन्हीं के तप पुरुषार्थ से अवतरित हुईं। इसीलिए भागीरथी कहलाईं। लोक मंगल के प्रयोजन हेतु प्रचण्ड पुरुषार्थ करके भागीरथ दैवी कसौटी पर खरे उतरे एवं भगवान् शिव के कृपा पात्र बने। आज आस्थाओं का दुर्भिक्ष चारों ओर संव्याप्त है। इसे दिव्य ज्ञान की धारा गंगा से ही मिटाया जा सकता है। बौद्धिक और भावनात्मक अकाल निवारणार्थ शान्तिकुञ्ज से ज्ञान गंगा का जो अविरल प्रवाह बहा है, उससे आशा बँधती है कि दुर्भिक्ष मिटेगा, सद्भावना का विस्तार चहुँ ओर होगा।
🔵 चरक ऋषि ने केदारनाथ क्षेत्र के दुर्गम क्षेत्रों में वनौषधियों की शोध करके रोग ग्रस्तों को निरोग करने वाली संजीवनी खोज निकाली थी। शास्त्र कथन है कि ऋषि चरक औषधियों से वार्ता करके गुण पूछते और उन्हें एकत्र कर उन पर अनुसंधान करते थे। जीवनीशक्ति सम्वर्धन, मनोविकार शमन एवं व्यवहारिक गुण, कर्म, स्वभाव में परिवर्तन करने वाले गुण रखने वाली अनके औषधियाँ इसी अनुसंधान की देन हैं। शान्तिकुञ्ज में दुर्लभ औषधियों को खोज निकालने, उनके गुण प्रभाव को आधुनिक वैज्ञानिक यंत्रों से जाँचने का जो प्रयोग चलता है, उसने आयुर्वेद को एक प्रकार से पुनर्जीवित किया है। सही औषधि के एकाकी प्रयोग से कैसे निरोग रहकर दीर्घायुष्य बना जा सकता है, यह अनुसंधान इस ऋषि परम्परा के पुनर्जीवन हेतु किए जा रहे प्रयासों की एक कड़ी है।
🌹 क्रमशः जारी
🌹 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
http://hindi.awgp.org/gayatri/AWGP_Offers/Literature_Life_Transforming/Books_Articles/hari/brahman.2
🔵 जमदग्नि पुत्र परशुराम के फरसे ने अनेक उद्धत उच्छृंखलों के सिर काटे थे। यह वर्णन अलंकारिक भी हो सकता है। उन्होंने यमुनोत्री में तपश्चर्या कर प्रखरता की साधना की एवं सृजनात्मक क्रांति का मोर्चा संभाला। जो व्यक्ति तत्कालीन समाज निर्माण में बाधक, अनीति में लिप्त थे, उनकी वृत्तियों का उन्होंने उन्मूलन किया। दुष्ट और भ्रष्ट जनमानस के प्रवाह को उलट कर सीधा करने का पुरुषार्थ उन्होंने निभाया। इसी आधार पर उन्हें भगवान् शिव से ‘‘परशु (फरसा)’’ प्राप्त हुआ। उत्तरार्द्ध में उन्होंने फरसा फेंककर फावड़ा थामा एवं स्थूल दृष्टि से वृक्षारोपण एवं सूक्ष्मतः रचनात्मक सत्प्रवृत्तियों का बीजारोपण किया। शान्तिकुञ्ज से चलने वाली लेखनी ने, वाणी ने उसी परशु की भूमिका निभाई एवं असंख्यों की मान्यताओं, भावनाओं, विचारणाओं एवं गतिविधियों में आमूल-चूल परिवर्तन कर दिया है।
🔴 भागीरथ ने जल दुर्भिक्ष के निवारण हेतु कठोर तप करके स्वर्ग से गंगा को धरती पर लाने में सफलता प्राप्त की थी। भागीरथ शिला गंगोत्री के समीपस्थ है। गंगा उन्हीं के तप पुरुषार्थ से अवतरित हुईं। इसीलिए भागीरथी कहलाईं। लोक मंगल के प्रयोजन हेतु प्रचण्ड पुरुषार्थ करके भागीरथ दैवी कसौटी पर खरे उतरे एवं भगवान् शिव के कृपा पात्र बने। आज आस्थाओं का दुर्भिक्ष चारों ओर संव्याप्त है। इसे दिव्य ज्ञान की धारा गंगा से ही मिटाया जा सकता है। बौद्धिक और भावनात्मक अकाल निवारणार्थ शान्तिकुञ्ज से ज्ञान गंगा का जो अविरल प्रवाह बहा है, उससे आशा बँधती है कि दुर्भिक्ष मिटेगा, सद्भावना का विस्तार चहुँ ओर होगा।
🔵 चरक ऋषि ने केदारनाथ क्षेत्र के दुर्गम क्षेत्रों में वनौषधियों की शोध करके रोग ग्रस्तों को निरोग करने वाली संजीवनी खोज निकाली थी। शास्त्र कथन है कि ऋषि चरक औषधियों से वार्ता करके गुण पूछते और उन्हें एकत्र कर उन पर अनुसंधान करते थे। जीवनीशक्ति सम्वर्धन, मनोविकार शमन एवं व्यवहारिक गुण, कर्म, स्वभाव में परिवर्तन करने वाले गुण रखने वाली अनके औषधियाँ इसी अनुसंधान की देन हैं। शान्तिकुञ्ज में दुर्लभ औषधियों को खोज निकालने, उनके गुण प्रभाव को आधुनिक वैज्ञानिक यंत्रों से जाँचने का जो प्रयोग चलता है, उसने आयुर्वेद को एक प्रकार से पुनर्जीवित किया है। सही औषधि के एकाकी प्रयोग से कैसे निरोग रहकर दीर्घायुष्य बना जा सकता है, यह अनुसंधान इस ऋषि परम्परा के पुनर्जीवन हेतु किए जा रहे प्रयासों की एक कड़ी है।
🌹 क्रमशः जारी
🌹 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
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