जो जीवन के रहस्य को जान लेते हैं- वे मृत्यु के रहस्य को भी जान लेते हैं। इस जीवन का प्रत्येक क्षण बोध का एक अवसर है। जिन्दगी का हर पल किसी नए रहस्य को अनावृत्त करने के लिए, उसे जानने के लिए है। जो इस सच से अनजान रहकर जिन्दगी के क्षण-पल को, दिवस-रात्रि को यूँ ही चुका देते हैं, वे दरअसल जीवन से चूक जाते हैं। मृत्यु भी उनके लिए केवल रहस्यमय भयावह अँधेरा बनकर रह जाती है।
चीनी सन्त लाओत्से के जीवन का एक प्रसंग है। साँझ के समय उसके पास एक युवक ची-लु एक उलझन लेकर आया। लाओत्से ने साँझ के झुरपुटे में उसके चेहरे की ओर ताकते हुए कहा- अपनी बात कहो? इस पर उस युवक ने पूछा मृत्यु क्या है? लाओत्से ने अपने उत्तर में थोड़ा हैरानी व्यक्त करते हुए कहा- अरे समस्या तो जीवन की होती है, मृत्यु की कैसी समस्या? फिर थोड़ी देर रुक कर लाओत्से ने धीमे से कहा- मृत्यु उनके लिए समस्या बनी रहती है, जो जीवन की समस्या का समाधान नहीं जान लेते।
ची-लु, लाओत्से के कथन को ध्यान से सुन रहा था। वृद्ध लाओत्से उससे कह रहा था- अपनी शक्तियों को केवल जीवन जी लेने में नहीं, बल्कि उसे ज्ञात करने में लगाओ। मृत्यु एवं मृतात्माओं की चिन्ता करने की बजाय जीवन एवं जीवित मनुष्यों की समस्याओं के समाधान की खोज करो। अरे जब तुम अभी जीवन से ही परिचित नहीं हो, तब तुम मृत्यु से भला कैसे परिचित हो सकते हो।
लाओत्से के कथन की गहराई का अहसास ची-लु को होने लगा। उसने अनुभव किया कि जो जीवन को जान लेते हैं, केवल वे ही मृत्यु को जान पाते हैं। जीवन का रहस्य जिन्हें ज्ञात हो जाता है, उन्हें मृत्यु भी रहस्य नहीं रह जाती है। क्योंकि वह तो उसी सच का दूसरा पहलू है।
मृत्यु का भय केवल उन्हें सताता है, जो कि जीवन को नहीं जानते। मृत्यु के भय से जो मुक्त हो सका- समझना कि उसने जीवन का बोध पा लिया। किसी की मृत्यु के समय ही यह पता चलता है कि वह व्यक्ति जीवन को सही ढंग से जानता था या नहीं। अब तनिक स्वयं में झाँको- वहाँ यदि मृत्यु का भय हो, तो समझो कि तुम्हें अभी जीवन को जानना शेष है। ऐसा कहते हुए लाओत्से ने साँझ समय का दीपक जला दिया, जिसके उजाले में जीवन व मृत्यु के सच झिलमिला उठे।
✍🏻 डॉ. प्रणव पण्ड्या
📖 जीवन पथ के प्रदीप से पृष्ठ १८०
चीनी सन्त लाओत्से के जीवन का एक प्रसंग है। साँझ के समय उसके पास एक युवक ची-लु एक उलझन लेकर आया। लाओत्से ने साँझ के झुरपुटे में उसके चेहरे की ओर ताकते हुए कहा- अपनी बात कहो? इस पर उस युवक ने पूछा मृत्यु क्या है? लाओत्से ने अपने उत्तर में थोड़ा हैरानी व्यक्त करते हुए कहा- अरे समस्या तो जीवन की होती है, मृत्यु की कैसी समस्या? फिर थोड़ी देर रुक कर लाओत्से ने धीमे से कहा- मृत्यु उनके लिए समस्या बनी रहती है, जो जीवन की समस्या का समाधान नहीं जान लेते।
ची-लु, लाओत्से के कथन को ध्यान से सुन रहा था। वृद्ध लाओत्से उससे कह रहा था- अपनी शक्तियों को केवल जीवन जी लेने में नहीं, बल्कि उसे ज्ञात करने में लगाओ। मृत्यु एवं मृतात्माओं की चिन्ता करने की बजाय जीवन एवं जीवित मनुष्यों की समस्याओं के समाधान की खोज करो। अरे जब तुम अभी जीवन से ही परिचित नहीं हो, तब तुम मृत्यु से भला कैसे परिचित हो सकते हो।
लाओत्से के कथन की गहराई का अहसास ची-लु को होने लगा। उसने अनुभव किया कि जो जीवन को जान लेते हैं, केवल वे ही मृत्यु को जान पाते हैं। जीवन का रहस्य जिन्हें ज्ञात हो जाता है, उन्हें मृत्यु भी रहस्य नहीं रह जाती है। क्योंकि वह तो उसी सच का दूसरा पहलू है।
मृत्यु का भय केवल उन्हें सताता है, जो कि जीवन को नहीं जानते। मृत्यु के भय से जो मुक्त हो सका- समझना कि उसने जीवन का बोध पा लिया। किसी की मृत्यु के समय ही यह पता चलता है कि वह व्यक्ति जीवन को सही ढंग से जानता था या नहीं। अब तनिक स्वयं में झाँको- वहाँ यदि मृत्यु का भय हो, तो समझो कि तुम्हें अभी जीवन को जानना शेष है। ऐसा कहते हुए लाओत्से ने साँझ समय का दीपक जला दिया, जिसके उजाले में जीवन व मृत्यु के सच झिलमिला उठे।
✍🏻 डॉ. प्रणव पण्ड्या
📖 जीवन पथ के प्रदीप से पृष्ठ १८०