शुक्रवार, 18 अगस्त 2023

👉 जिन्दगी जीने की समस्या (भाग 4)

लोग धन कमाने में लगे है अपनी क्षमता के अनुरूप कमाते और खर्चते भी है। पर यह भूलते रहते है कि अन्य मूल्यवान वस्तुऐं, जो धन से भी अधिक उपयोगी है, उपार्जित की जा रही है या नहीं? स्वास्थ्य का मूल्य क्या धन से कम है? ज्ञान वृद्धि क्या व्यर्थ की चीज है? आमोद प्रमोद का क्या जीवन में कोई स्थान नहीं है? पूजा उपासना क्या निरुपयोगी ही है? स्त्री बच्चों को व्यक्तिगत दिलचस्पी से दूर रखकर क्या उन्हें रोटी कपड़ा देते रहना ही पर्याप्त है? जिस समाज में हम जन्मते और पलते है क्या उसके प्रति हमारे कोई कर्तव्य नहीं है?

इन बातों पर यदि विचार किया जाय तो यही निष्कर्ष निकलेगा कि धन कमाने की तरह यह सब बातें भी उतनी ही आवश्यक है। केवल एक ही काम में सारा समय और मनोयोग खर्च कर देना उचित नहीं वरन् सर्वतोमुखी उत्कर्ष की आवश्यकता है। जिस प्रकार केवल घी खाने से ही स्वास्थ्य नहीं सध सकता, उसके लिए अन्न, शाक, लवण आदि से सम्मिश्रित सन्तुलित भोजन चाहिए इसी प्रकार हमारे उपार्जन भी सर्वतोमुखी-सन्तुलित होने चाहिए। जीवन विद्या का यह पहला पाठ है।

कितने लोग है जिनने यह पाठ पढ़ा है और व्यवहारिक जीवन में उतारा है? जो इस शिक्षा से विमुख रहे वे भले ही धन या जो अभीष्ट है वह एक वस्तु अधिक मात्रा में कमा लें पर इतने मात्र से उन्हें जीवन का सर्वतोमुखी आनन्द कदापि प्राप्त न हो सकेगा।

.... क्रमशः जारी
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 अखण्ड ज्योति,  जून 1961 पृष्ठ 6

http://literature.awgp.org/akhandjyoti/1961/June/v1.6


👉 महिमा गुणों की ही है

🔷 असुरों को जिताने का श्रेय उनकी दुष्टता या पाप-वृति को नहीं मिल सकता। उसने तो अन्तत: उन्हें विनाश के गर्त में ही गिराया और निन्दा के न...