कई मोर्चे खुले पर सब जगह हार देवताओं की हुई! असुर उनके एक-एक कर सभी दुर्ग जीतते चले गये, देवताओं का अस्तित्व ही संकट में पड़ गया! पराजित देवता प्रजापति ब्रह्मा के पास पहुँचे! पराजय के कारण और उनसे असुरों पर विजय का उपाय पूछा! पराजय के कारण और विजय की नई योजनाओं पर कुछ देर तक विचार करने के बाद ब्रह्मा जी बोले-
देवताओं! तुम सभी दिव्य गुणों वाले हो, त्यागी और तपस्वी भी कम नहीं हो, शक्ति और साहस का तुम में अभाव भी नहीं है किन्तु एक बहुत बड़ी कमी तुम में भी है संगठन का अभाव! तुम्हारी शक्तियाँ बिखरी होने के कारण अभीष्ट प्रभाव उत्पन्न नहीं कर पातीं जब कि पापी और दुर्गुणी होकर भी केवल संगठित होने के कारण थोड़े से असुरों की शक्ति में वह बल आ जाता है कि वे तुम सब को जब चाहते परास्त करके रख देते हैं!
फिर ब्रह्मा जी ने सभी देवताओं से शक्ति का थोड़ा अंश लेकर दुर्गा का अवतरण किया।
यह इस रहस्य का उद्घाटन करता है की देवताओं ने मिलकर अपनी-अपनी शक्ति का अंश देकर एक संघ शक्ति का निर्माण किया, दुर्गा उस संस्था एवं संगठन का प्रतीक है जिसमें श्रेष्ठ व्यक्तियों की शक्तियाँ संघ-बद्ध होकर काम करती हैं!
यह संघ शक्ति अवतरित हुई, उसने सिंह को अपना वाहन बनाया! सिंह साहस और स्फूर्ति का प्रतीक है उसका भावार्थ यह होता है कि देवताओं ने अपनी संगठित शक्ति का तेजी से साहसपूर्वक प्रयोग किया, उसका फल यह हुआ कि बड़े-बड़े दुर्दान्त और दिग्गज राक्षस आये पर दुर्गा उन सब को मारती-काटती चली गयी! वह अपने वाहन सहित राक्षसों पर टूट पड़ी, राक्षसों में अब उनका सामना करने की हिम्मत नहीं रही!
पुराणों की दुर्गा-अवतरण की कथा में संघ शक्ति का अलंकारिक चित्रण है, उसका उपयोग प्रकरान्तर से प्रत्येक युग में होता आया है, रावण जैसे शक्तिशाली असुर के सामने रीछ वानरों की कोई औकात नहीं थी पर यह उनकी संगठित शक्ति का परिणाम था कि एक लाख पुत्र, सवा लाख नातियों के कुनवे वाला मायावी रावण भी धराशायी कर दिया गया! इन्द्र के कोप का सामना करना कठिन हो जाता यदि यादवों ने कृष्ण के इशारे पर संगठित होकर गोवर्धन को नहीं उठा लिया होता! भगवान् बुद्ध को तो "बुद्धं शरणं गच्छामि" के साथ "संघं शरण गच्छामि" का भी नारा लगाना पड़ा था! तब कहीं उस युग में व्याप्त धर्म के नाम पर आडम्बर, अज्ञान, अनाचार और मत-मतान्तरों का अँधड़ रोका जा सका था!
अभी कुछ दिन पुर्व ही यही प्रयोग स्वतंत्रता सेनानियों ने किया! देशभक्तों के रूप में दुर्गा शक्ति ने अवतार लिया था तभी अंग्रेजी हुकूमत जैसी शक्तिशाली सत्ता पर भारतियों को विजय मिल सकी थी!
आज समाज में अच्छे लोगों का अभाव नहीं! लोग आस्तिक हैं, पूजा उपासना करते हैं, दान पुण्य करते हैं, उनमें नेक आदमियों के सब लक्षण है तो भी असुरता चाहे वह मनुष्यों के रूप में हो या दुष्प्रवृत्तियों के रूप में जीतती चली जाती है, अच्छे लोग आये दिन संकट में पड़ते, कष्ट भोगते रहते हैं यह सब उनमें संगठन शक्ति के आभाव के कारण है!
यदि आज भी लोग संगठित हो जायें तो इस युग की असुरता, पाप और अत्याचार को उसी प्रकार भगाया जा सकता है जिस प्रकार दुर्गा को जन्म देकर देवताओं ने असुरों को मार भगाया!!
देवताओं! तुम सभी दिव्य गुणों वाले हो, त्यागी और तपस्वी भी कम नहीं हो, शक्ति और साहस का तुम में अभाव भी नहीं है किन्तु एक बहुत बड़ी कमी तुम में भी है संगठन का अभाव! तुम्हारी शक्तियाँ बिखरी होने के कारण अभीष्ट प्रभाव उत्पन्न नहीं कर पातीं जब कि पापी और दुर्गुणी होकर भी केवल संगठित होने के कारण थोड़े से असुरों की शक्ति में वह बल आ जाता है कि वे तुम सब को जब चाहते परास्त करके रख देते हैं!
फिर ब्रह्मा जी ने सभी देवताओं से शक्ति का थोड़ा अंश लेकर दुर्गा का अवतरण किया।
यह इस रहस्य का उद्घाटन करता है की देवताओं ने मिलकर अपनी-अपनी शक्ति का अंश देकर एक संघ शक्ति का निर्माण किया, दुर्गा उस संस्था एवं संगठन का प्रतीक है जिसमें श्रेष्ठ व्यक्तियों की शक्तियाँ संघ-बद्ध होकर काम करती हैं!
यह संघ शक्ति अवतरित हुई, उसने सिंह को अपना वाहन बनाया! सिंह साहस और स्फूर्ति का प्रतीक है उसका भावार्थ यह होता है कि देवताओं ने अपनी संगठित शक्ति का तेजी से साहसपूर्वक प्रयोग किया, उसका फल यह हुआ कि बड़े-बड़े दुर्दान्त और दिग्गज राक्षस आये पर दुर्गा उन सब को मारती-काटती चली गयी! वह अपने वाहन सहित राक्षसों पर टूट पड़ी, राक्षसों में अब उनका सामना करने की हिम्मत नहीं रही!
पुराणों की दुर्गा-अवतरण की कथा में संघ शक्ति का अलंकारिक चित्रण है, उसका उपयोग प्रकरान्तर से प्रत्येक युग में होता आया है, रावण जैसे शक्तिशाली असुर के सामने रीछ वानरों की कोई औकात नहीं थी पर यह उनकी संगठित शक्ति का परिणाम था कि एक लाख पुत्र, सवा लाख नातियों के कुनवे वाला मायावी रावण भी धराशायी कर दिया गया! इन्द्र के कोप का सामना करना कठिन हो जाता यदि यादवों ने कृष्ण के इशारे पर संगठित होकर गोवर्धन को नहीं उठा लिया होता! भगवान् बुद्ध को तो "बुद्धं शरणं गच्छामि" के साथ "संघं शरण गच्छामि" का भी नारा लगाना पड़ा था! तब कहीं उस युग में व्याप्त धर्म के नाम पर आडम्बर, अज्ञान, अनाचार और मत-मतान्तरों का अँधड़ रोका जा सका था!
अभी कुछ दिन पुर्व ही यही प्रयोग स्वतंत्रता सेनानियों ने किया! देशभक्तों के रूप में दुर्गा शक्ति ने अवतार लिया था तभी अंग्रेजी हुकूमत जैसी शक्तिशाली सत्ता पर भारतियों को विजय मिल सकी थी!
आज समाज में अच्छे लोगों का अभाव नहीं! लोग आस्तिक हैं, पूजा उपासना करते हैं, दान पुण्य करते हैं, उनमें नेक आदमियों के सब लक्षण है तो भी असुरता चाहे वह मनुष्यों के रूप में हो या दुष्प्रवृत्तियों के रूप में जीतती चली जाती है, अच्छे लोग आये दिन संकट में पड़ते, कष्ट भोगते रहते हैं यह सब उनमें संगठन शक्ति के आभाव के कारण है!
यदि आज भी लोग संगठित हो जायें तो इस युग की असुरता, पाप और अत्याचार को उसी प्रकार भगाया जा सकता है जिस प्रकार दुर्गा को जन्म देकर देवताओं ने असुरों को मार भगाया!!