🔷 प्रत्येक विचारशील व्यक्ति का कर्तव्य है कि वह अपने जीवन को सार्थक एवं भविष्य को उज्ज्वल बनाने की आधारशिला-आस्तिकता को जीवन में प्रमुख स्थान देने का प्रयत्न करे। ईश्वर को अपना साथी, सहचर मानकर हर घड़ी निर्भय रहे और सन्मार्ग से ईश्वर की कृपा एवं कुमार्ग से ईश्वर की सजा प्राप्त होने के अविचल सिद्धान्त को हृदयंगम करता हुआ अपने विचारों और आचरणों को सज्जनोचित बनाने का प्रयत्न करता रहे। इसी प्रकार जिसे अपने परिवार में, स्त्री बच्चों से सच्चा प्रेम हो, उसे भी यही प्रयत्न करना चाहिए कि घर के प्रत्येक सदस्य के जीवन में किसी न किसी प्रकार आस्तिकता का प्रवेश हो। परिवार का बच्चा-बच्चा ईश्वर विश्वासी बने।
🔶 यदि किसी को अधिक भौतिक अधिकार प्राप्त हुए हैं तो इसका यह अर्थ कदापि नहीं होता कि दूसरों का उत्पीड़न किया जाए। आपका स्वास्थ्य उत्तम है तो दुर्बलों को सताइये नहीं। अपनी योग्यताओं का लाभ प्राप्त करिये पर दूसरों के अधिकार तो न छीनिए। संसार में सभी प्राणी स्वतन्त्र और स्वाभाविक जीवन व्यतीत करने के लिए आये हैं, अपने स्वार्थ के लिए दूसरों के कष्ट पहुँचाना अन्याय है। सभी आपकी तरह सुख और सुविधायें प्राप्त करने के अधिकारी हैं। आपकी तरह वे भी अपने प्रयत्नों में लगे हैं, यदि किसी तरह उनकी सहायता नहीं कर सकते तो इतना कीजिये कि आपकी तरफ से उनके प्रयत्नों में किसी तरह की रुकावट न पैदा की जाय।
🔷 महानता की प्राप्ति के लिए हमें महान् आदर्शों एवं महान् सम्बलों का सहारा लेना पड़ता है। सद्गुणों के रूप में महानता का आह्वान करके उसे यदि अपने अन्तःकरण में धारण करें और उन्हीं प्रेरणाओं के अनुरूप अपना जीवन क्रम चलावें तो विकट परिस्थितियों में रहते हुए भी महानता प्राप्त कर सकना सम्भव हो सकता है।
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
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