रविवार, 26 फ़रवरी 2023

👉 खरे बनिए! चापलूसी से दूर रहिए!

जो बात आपको सच्ची प्रतीत होती है उसे बिना किसी हिचकिचाहट के खुली जबान से कहिए अपने अन्तःकरण को कुचल कर बनावटी बातें करना, किसी के दबाव में आकर निजी विचारों को छिपाते हुए हाँ में हाँ मिलाना आपके गौरव के विपरीत है। इस प्रकार की कमजोरियाँ प्रकट करती हैं कि यह व्यक्ति आत्मिक दृष्टि से बिलकुल ही निर्बल है, डर के मारे स्पष्ट विचार तक प्रकट करने में डरता है। ऐसे कायर व्यक्ति किसी प्रकार अपना स्वार्थ साधन तो कर सकते हैं पर किसी के हृदय पर अधिकार नहीं जमा सकते।

स्मरण रखिए प्रतिष्ठा की वृद्धि सच्चाई और ईमानदारी द्वारा होती है। आप खरे विचार प्रकट करते हैं, जो बात मन में है उसे ही कह देते हैं तो भले ही कुछ देर के लिए कोई नाराज हो जावे पर क्रोध उतरने पर वह इतना तो अवश्य अनुभव करेगा कि यह व्यक्ति खरा है, अपनी आत्मा के प्रति सच्चा है। विरोधी होते हुए भी वह मन ही मन आदर करेगा।

आप किसी भी लोभ-लालच के लिए अपनी आत्म स्वतंत्रता मत बेचीए, किसी भी फायदे के बदले आत्म गौरव का गला मत कटने दीजिए। चापलूसी और कायरता से यदि कुछ लाभ होता हो तो भी उसे त्याग कर कष्ट में रहना स्वीकार कर लीजिए, क्योंकि इससे आपकी प्रतिष्ठा बढ़ेगी, आत्म गौरव को प्रोत्साहन मिलेगा। स्मरण रखिए आत्म गौरव के साथ जीने में ही जिन्दगी का सच्चा आनन्द है।

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 अखण्ड ज्योति सितम्बर 1943 पृष्ठ 1

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👉 आत्मसम्मान धन है।

आत्मसम्मान को प्राप्त करने और उसकी रक्षा करने के लिए प्राण प्रण से चेष्टा करते रहिए क्योंकि यह बहुमूल्य सम्पत्ति है। पैसे की तरह यह आँख से दिखाई नहीं पड़ता और पास रखने के लिए तिजोरी की जरूरत नहीं पड़ती तो भी स्पष्टतः यह धन है। हम ऐसे व्यापारियों को जानते हैं जिनके पास अपनी एक पाई न होने पर भी दूसरों से उधार लेकर बड़े-बड़े लम्बे चौड़े व्यापार कर डालते हैं क्योंकि उनका बाजार में सम्मान है, ईमानदारी की प्रतिष्ठा है।

हम ऐसे नौकरों को जानते हैं जिन्हें मालिक अपने सगे बेटे की तरह प्राण से प्यारा रखते हैं और उनके लिए प्रत्यक्ष, अप्रत्यक्ष रूप से इतना पैसा खर्च कर देते हैं जो उनके निर्धारित वेतन से अनेक गुना होता है कारण यह कि नौकर के सद्गुणों के कारण मालिक के मन में उसका सम्मान घर कर लेता है। गुरुओं के वचन मानकर श्रद्धालु शिष्य अपना सर्वस्व देने के लिए तत्पर हो जाते हैं, अपनी जीवन दिशा बदल देते हैं, प्यारी से प्यारी वस्तु का त्याग कर देते हैं, राजमहल छोड़कर बिखारी बन जाते हैं, ऐसा इसलिए होता है कि शिष्य के मन में गुरु के प्रति अगाध सम्मान होता है, गुरु का आत्म सम्मान शिष्य को अपना वशवर्ती बना लेता है।

अदालत में किसी एक ही गवाह की गवाही विपक्षी सौ गवाहों की बात को रद्द कर देती है कारण यह है कि उस गवाह की प्रतिष्ठा न्यायाधीश को प्रभावित कर देती है। आत्म सम्मान ऊंची कोटि का धन है जिसके द्वारा ऐसे महत्वपूर्ण लाभ हो सकते हैं जो कितना ही पैसा खर्च होने पर नहीं हो सकते थे।


आत्मसम्मान धन है। बाजार में वह पूँजी की तरह निश्चित फल देने वाला है, समाज में पूजा कराने वाला है, आत्मा को पौष्टिक भोजन देने वाला है हम कहते हैं कि- हे आध्यात्मवाद का आश्रय लेने वाले शूरवीर साधकों, आत्मसम्मान सम्पादित करो और प्रयत्नपूर्वक उसकी रक्षा करो।

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 अखण्ड-ज्योति सितम्बर 1943 पृष्ठ 6

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