गुरुवार, 23 फ़रवरी 2023

👉 सुमन की सुगन्ध

सुमन कोमल और सुगंधित होता है। सुमन का अर्थ सुन्दर स्वच्छ मन भी है। जो स्वामी तुलसीदास जी ने संतों के हृदय को जल के समान निर्मल और नवनीत (मक्खन) के समान कोमल बताया है। मक्खन अपने दुख से द्रवीभूत हो जाता है। जब तपाया जाय तभी पिघल उठता है। पर सज्जनों का हृदय दूसरों के दुख देखकर भी पिघल उठता है। कई पुष्पों में भी यह गुण होता है। वे संसार का वैभव और प्रकाश उल्लास देखकर हंसते हैं और उस पर कालिमा पुती देखकर मुरझा जाते हैं। कमल का फूल सूर्य निकलते ही खिल जाता है और रात्रि आते ही मुरझा जाता है इस प्रकार के पुष्पों को उच्च श्रेणी में गिना जाता है। उच्च श्रेणी का सुमन (सुन्दर मन) वही है जो दूसरों का वैभव देखकर प्रसन्न होता है और दीन दुखियों को देखकर दुखी होता है।

रामायण कहती है कि “संत हृदय नवनीत समाना। कहा कविन पै कहा न जाना॥ निज परिताप द्रवै नवनीता। पर दुख द्रवै सो संत पुनीता॥” पराये दुखों को देखकर भगवान बुद्ध की तरह जिसका अन्तस्थल रो पड़ता है वास्तव में वह सच्चा संत है। किसी का कष्ट देखकर जो आँसू निकलते हैं उसमें उसके सारे ताप घुलकर वह जाते है और अन्त स्थल परम पवित्र हो जाता।

ऐसे पवित्र सुमनों में मनमोहक सुगन्धि अपने आप आकर्षित हो जाती है। समुद्र में सम्मिलित होने के लिये नदियाँ अपने आप दौड़ पड़ती हैं। दयालु आत्मा में अन्य समस्त गुण अपने आप भर जाते हैं और वह वायु के साथ जब इधर-उधर फैलते हैं तो सुगन्ध कहलाते हैं। इसी सुगंध के आधार पर वे सुमन देवताओं के मस्तक पर चढ़ते हैं।

यदि तुम्हारा मन सुमन है तो उसमें निश्चय ही सद्गुणों की सुगंध भर जायगी और उस सुगंध पर संसार निछावर होगा।

📖 अखण्ड ज्योति दिसम्बर 1940 पृष्ठ 16

http://literature.awgp.org/akhandjyoti/1940/December/v1.16

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👉 इन तीन का ध्यान रखिए (भाग 2)

🔶 इन तीनों को त्याग दीजिए- कुढ़ना, बकझक और हँसी मजाक।

(1) कुढ़ना एक भयंकर मानसिक विकार है। इससे मनुष्य की शक्ति का ह्रास, चिंता और व्यग्रता में वृद्धि होती है। निश्चयबल का क्षय होता है और अपने प्रति अविश्वास उत्पन्न होता है। कुढ़ने का अभिप्राय है हीनत्व की भावना से ग्रसित होना। यह उसी की प्रतिक्रिया है। मनुष्य के किए जब कुछ नहीं होता, तो वह कुढ़ता है। यही मानसिक व्याधि विकसित होने पर नैराश्य का रूप धारण कर लेती है।

(2) व्यर्थ की बकझक से मनुष्य का थोथापन प्रकट होता है। बातूनी व्यक्ति जबानी जमा खर्च में चतुर होता है, ठोस कर्म कम करता है क्योंकि बकझक ही में शक्ति नष्ट हो जाती है।

(3) अनियंत्रित हँसी मजाक आत्मिक दृष्टि से गर्हित है। गन्दा हँसी मजाक कटुता का रूप धारण कर लेता है। इससे मनुष्य की गुप्त वासना का पर्दाफाश होता है। अतः इन तीनों को-कुढ़ना, व्यर्थ की बकझक और अनियंत्रित हँसी मजाक की अधिकतर आदतों को त्याग देना उचित है।

🔶 इन तीनों को ग्रहण कीजिए- चरित्र के उत्थान एवं आत्मिक शक्तियों के उत्थान के लिए इन तीनों सद्गुणों- होशियारी, सज्जनता और सहनशीलता- का विकास अनिवार्य है।

(1) यदि आप अपने दैनिक जीवन और व्यवहार में निरन्तर जागरुक, सावधान रहें, छोटी छोटी बातों का ध्यान रखें, सतर्क रहें, तो आप अपने निश्चित ध्येय की प्राप्ति में निरन्तर अग्रसर हो सकते हैं। सतर्क मनुष्य कभी गलती नहीं करता, असावधान नहीं रहता। कोई उसे दबा नहीं सकता।

(2) सज्जनता एक ऐसा दैवी गुण है जिसका मानव समाज में सर्वत्र आदर होता है। सज्जन पुरुष वन्दनीय है। वह जीवन पर्यंत पूजनीय होता है। उसके चरित्र की सफाई, मृदुल व्यवहार, एवं पवित्रता उसे उत्तम मार्ग पर चलाती हैं।

(3) सहनशीलता दैवी सम्पदा में सम्मिलित है। सहन करना कोई हँसी खेल नहीं प्रत्युत बड़े साहस और वीरता का काम है केवल महान आत्माएँ ही सहनशील होकर अपने मार्ग पर निरन्तर अग्रसर हो सकती हैं। इनके अतिरिक्त इन तीन पर श्रद्धा रखिये-धैर्य, शान्ति, परोपकार।

.... क्रमशः जारी
📖 अखण्ड ज्योति फरवरी 1950 पृष्ठ 13


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