जीवन की नश्वरता को जो जान लेते हैं, वे सत्य को समझ लेते हैं। जिन्हें भी सत्य की अनुभूति हुई है, उन सबने यही कहा है कि जीवन झाग का बुलबुला है। जो इस घड़ी है, अगली घड़ी मिट जाएगा। जो इस नश्वर को शाश्वत मान लेते हैं, वे इसी में डूबते और नष्ट हो जाते हैं। लेकिन जो इसके सत्य के प्रति सजग होते हैं, वे एक ऐसे जीवन को पा लेने की शुरुआत करते हैं, जिसका कोई अन्त नहीं है।
जीवन के इस सत्य का अनुभव करने वाले एक फकीर को किसी बादशाह ने कैद कर लिया। कैद की वजह यह थी कि उसने बादशाद के सामने सत्य बातें कह दी थीं। बादशाह को फकीर का कहा हुआ सच अप्रिय लगा, सो उसने उसे कैद कर लिया। उस फकीर के एक मित्र ने उससे कहा- आखिर यह बैठे-बिठाये मुसीबत क्यों मोल ले ली। न कहते वे सब बातें, तो तुम्हारा क्या बिगड़ जाता। अपने मित्र की बातें सुनकर फकीर हँस पड़ा और बोला- मैं करूँ भी तो क्या? जब से खुदा का दीदार हुआ है, तब से झूठ बेमानी हो गया है। कोशिश करने पर भी झूठ बोला ही नहीं जाता।
परमात्मा की सत्ता ही कुछ ऐसी है कि उसे अनुभव करने के बाद असत्य का ख्याल ही नहीं आता। सत्य के अतिरिक्त अब जीवन में कोई विकल्प नहीं है। फिर-इस कैद का क्या? यह कैद तो बस घड़ी भर की है। फकीर की कही हुई यह बात जेल के किसी सिपाही ने सुन ली और बादशाह को बता भी दी। इसे सुनकर उस बादशाह ने कहा- उस पागल फकीर से कहना कि यह कैद घड़ी भर की नहीं, बल्कि जीवन भर की है। फकीर ने जब बादशाह के इस कथन को सुना तो जोर से हँस पड़ा और बोला- अरे भाई! उस बादशाह से कहना कि उस पागल फकीर ने कहा है कि क्या जिन्दगी घड़ी भर से ज्यादा की है? सचमुच ही जो जीवन का सत्य पाना चाहते हैं उन्हें जीवन की यह सच्चाई जाननी ही पड़ती है। इसे समझकर वे अनुभव कर पाते हैं कि एक स्वप्न से अधिक न तो जीवन की कोई सत्ता है और न ही जीवन का सत्य।
✍🏻 डॉ. प्रणव पण्ड्या
📖 जीवन पथ के प्रदीप से पृष्ठ २०३