गुरुवार, 30 नवंबर 2023

👉 आत्मचिंतन के क्षण Aatmchintan Ke Kshan 30 Nov 2023

🔷 मानव-जीवन की सफलता, सौंदर्य और उपयोगिता में वृद्धि जिन नैतिक सद्गुणों से होती है, उनमें सहानुभूति का महत्व कम नहीं है। शक्ति, सत्यनिष्ठा, व्यवस्था, सच्चाई कर्म-निष्ठा, निष्पक्षता, मितव्ययिता और आत्म-विश्वास के आधार पर सम्मान मिलता है, समृद्धि प्राप्त होती है और जीवन के सभी क्षेत्रों में सफलता के दर्शन होते हैं, किन्तु लौकिक जीवन में जो मधुरता तथा सरसता अपेक्षित है, वह सहानुभूति के अभाव में सम्भव नहीं। सहानुभूति चरित्र की वह गरिमा है, जो दूसरों का मन मोह लेने की क्षमता रखती है। इससे पराये अपने हो जाते हैं। किसी तरह की रुकावट परेशानी मनुष्य जीवन में नहीं आती। सहानुभूति से मन निर्मल होता है, पवित्रता जागती है और बुद्धि-प्रखरता से व्यक्तित्व निखर उठता है।

🔶 दूसरों के दुःखों में अपने को दुःख जैसे भावों की अनुभूति हो तो हम कह सकते हैं कि हमारे अन्तःकरण में सच्ची सहानुभूति का उदय हुआ है। इससे व्यक्तित्व का विकास होता है और पूर्णता की प्राप्ति होती है। सभी में अपनापन समाया हुआ देखने की भावना सचमुच इतनी उदात्त है कि इसकी शीत छाया में बैठने वाला हर घड़ी अलौकिक सुख का आस्वादन करता है। दीनबन्धु परमात्मा की उपासना करनी हो तो आत्मीयता की उपासना करनी चाहिये।

🔷 मौन वाणी की शक्ति को संशोधित और संवर्धित करने की साधना है। वाणी के दुरुपयोग से हमारी शक्ति का एक बहुत बड़ा अंश नष्ट हो जाता है। इसलिए जिस तरह इन्द्रिय संयम के लिए ब्रह्मचर्य आदि का विधान है, उसी तरह वाणी के संयम के लिए मौन की साधना बताई गई है। महात्मा गाँधी ने कहा है “मौन सर्वोत्तम भाषण है, अगर बोलना ही हो तो कम-से-कम बोलो। एक शब्द से भी काम चल जाय तो दो न बोलो।” फैंकलिन के शब्दों में “चींटी से अच्छा कोई उपदेश नहीं देता और वह मौन रहती है।” कालाइल ने कहा है, “मौन में शब्दों की अपेक्षा अधिक वाक्शक्ति होती है।”

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

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👉 धर्म का प्रथम आधार और इसकी पृष्ठभूमि

धर्म का प्रथम आधार है - आस्तिकता, ईश्वर विश्वास। परमात्मा की सर्वव्यापकता, समदर्शिता और न्यायशीलता पर आस्था रखना, आस्तिकता की पृष्ठभूमि है। यह मान्यता मनुष्य की दुष्प्रवृत्तियों पर अंकुश रख सकने में पूर्णतया समर्थ होती है। सर्वव्यापी ईश्वर की दृष्टि में हमारा गुप्त-प्रकट कोई आचरण अथवा भाव छिप नहीं सकता। समाज की, पुलिस की आँखों में धूल झोंकी जा सकती है, पर घट-घटवासी परमेश्वर से तो कुछ छिपाया नहीं जा सकता ।

सत्कर्मों का या दुष्कर्मों का दण्ड आज नहीं तो कल मिलेगा ही, यह मान्यता वैयक्तिक एवं सामाजिक जीवन में नीति और कर्त्तव्य का पालन करते रहने की प्रेरणा देती है। सत्कर्म करने वाले को यदि प्रशंसा, मान्यता या सफलता नहीं मिली है तो ईश्वर भविष्य में देगा ही, यह आस्था उसे निराश नहीं होने देती और असफलताएँ मिलने पर भी वह सदाचरण के पथ पर आरूढ़ बना रहता है। इसी प्रकार कुकर्मी निर्भय नहीं हो पाता।

🔷 आस्तिकता धर्म का इसलिए प्रथम आवश्यक एवं अनिवार्य अंग माना गया है कि उससे हमारा सदाचरण अक्षुण्य बना रह सकता है।

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 युग निर्माण योजना - दर्शन, स्वरूप व कार्यक्रम-६६ (६.१०)


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👉 प्रेरणादायक प्रसंग 30 Sep 2024

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