शुक्रवार, 9 जून 2017
👉संस्कृति पुरुष - परमपूज्य गुरुदेव
🔵 सजल भावनाओं एवं प्रखर विचारों के राशि सितारों से भारतवर्ष की देवसंस्कृति का आकाश भरा पड़ा है। अनंत-अनगिनत सितारे हैं। इन सबकी उज्ज्वल ज्योति जब घनीभूत हो संस्कृति पुरुष की भव्य मूर्ति गढ़ती है, तो परमपूज्य गुरुदेव का दिव्य स्वरूप साकार होता है।
🔴 संस्कृति पुरुष परमपूज्य गुरुदेव में देवसंस्कृति के सभी तत्त्व अपने मौलिक, किन्तु सार रूप में समाहित हैं। उनके व्यक्तित्व में भावनाओं की सजलता है, तो कृतित्व में विचारों की प्रखरता। वे सजल श्रद्धा और प्रखर प्रज्ञा दोनों एक साथ हैं। वंदनीया माताजी उन्हीं की छाया हैं, उन्हीं में समाहित हैं। उनमें संस्कृति की मधुरिमा एवं सम्मोहन दोनों ही हैं।
🔵 पूज्य गुरुदेव के विचारों में तप की इतनी प्रबल शक्ति है कि उनका साहित्य पढ़ते समय भी उनका तप-प्राण निरंतर आस-पास मँडराता रहता है। उनके शब्द कभी बड़े प्यार सें हमें अपनी बाँहों में भर लेते हैं, सहलाते हैं, प्रेम भरा आश्वासन देते हैं। कभी हमारा आवाहन करते हैं और हमारे अहसास को प्रखर करते रहते हैं। उनके शब्दों में जीवंतता है, अधिकार है, आत्मविश्वास है, और है निर्भयता। यह सारी सामर्थ्य उनकी आध्यात्मिक साधना से उद्धृत है। उन्हें पढ़ने वाला या सुनने वाला इस अनोखेपन का अहसास पाए बिना नहीं रहता।
🔴 उनकी भाषा अत्यंत सरल, रसमयी, अर्थ को सटीक अभिव्यक्ति देने वाली और हृदयस्पर्शी है। जीवन एक संस्कृति, अतीत एवं वर्तमान, धर्म एवं विज्ञान, प्राच्य एवं पाश्चात्य के किसी भी पहलू के भीतर बैठते समय जब वह उसके एक-एक रहस्य को उजागर करते हैं, विश्लेषण एवं समन्वय करते हैं, तो ऐसा लगता है, मानो किसी गीत की कड़ी को बार-बार नए-नए स्वरालंकारों से सजा रहे हों। वे देवसंस्कृति के हर रहस्य को हमारे दैनंदिन जीवन में घटने वाले, हम सबके जाने-पहचाने उदाहरण देकर तर्कसंगत रूप से प्रस्तुत करते हैं। परमपूज्य गुरुदेव निश्चित ही इस युग के संस्कृति पुरुष हैं। उनमें भारतीय संस्कृति के अस्तित्व एवं अस्मिता का गौरव संपूर्ण रूप से प्रकाशित है। मनुष्य में देवत्व एवं धरा पर स्वर्ग के अवतरण का संकल्प उन्होंने लिया है। इस संकल्प को साकार करना प्रत्येक मनुष्य का दायित्व है।
🌹 डॉ प्रणव पंड्या
🌹 जीवन पथ के प्रदीप पृष्ठ 87
🔴 संस्कृति पुरुष परमपूज्य गुरुदेव में देवसंस्कृति के सभी तत्त्व अपने मौलिक, किन्तु सार रूप में समाहित हैं। उनके व्यक्तित्व में भावनाओं की सजलता है, तो कृतित्व में विचारों की प्रखरता। वे सजल श्रद्धा और प्रखर प्रज्ञा दोनों एक साथ हैं। वंदनीया माताजी उन्हीं की छाया हैं, उन्हीं में समाहित हैं। उनमें संस्कृति की मधुरिमा एवं सम्मोहन दोनों ही हैं।
🔵 पूज्य गुरुदेव के विचारों में तप की इतनी प्रबल शक्ति है कि उनका साहित्य पढ़ते समय भी उनका तप-प्राण निरंतर आस-पास मँडराता रहता है। उनके शब्द कभी बड़े प्यार सें हमें अपनी बाँहों में भर लेते हैं, सहलाते हैं, प्रेम भरा आश्वासन देते हैं। कभी हमारा आवाहन करते हैं और हमारे अहसास को प्रखर करते रहते हैं। उनके शब्दों में जीवंतता है, अधिकार है, आत्मविश्वास है, और है निर्भयता। यह सारी सामर्थ्य उनकी आध्यात्मिक साधना से उद्धृत है। उन्हें पढ़ने वाला या सुनने वाला इस अनोखेपन का अहसास पाए बिना नहीं रहता।
🔴 उनकी भाषा अत्यंत सरल, रसमयी, अर्थ को सटीक अभिव्यक्ति देने वाली और हृदयस्पर्शी है। जीवन एक संस्कृति, अतीत एवं वर्तमान, धर्म एवं विज्ञान, प्राच्य एवं पाश्चात्य के किसी भी पहलू के भीतर बैठते समय जब वह उसके एक-एक रहस्य को उजागर करते हैं, विश्लेषण एवं समन्वय करते हैं, तो ऐसा लगता है, मानो किसी गीत की कड़ी को बार-बार नए-नए स्वरालंकारों से सजा रहे हों। वे देवसंस्कृति के हर रहस्य को हमारे दैनंदिन जीवन में घटने वाले, हम सबके जाने-पहचाने उदाहरण देकर तर्कसंगत रूप से प्रस्तुत करते हैं। परमपूज्य गुरुदेव निश्चित ही इस युग के संस्कृति पुरुष हैं। उनमें भारतीय संस्कृति के अस्तित्व एवं अस्मिता का गौरव संपूर्ण रूप से प्रकाशित है। मनुष्य में देवत्व एवं धरा पर स्वर्ग के अवतरण का संकल्प उन्होंने लिया है। इस संकल्प को साकार करना प्रत्येक मनुष्य का दायित्व है।
🌹 डॉ प्रणव पंड्या
🌹 जीवन पथ के प्रदीप पृष्ठ 87
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