मंगलवार, 11 सितंबर 2018

👉 परिवर्तन के महान् क्षण (भाग 9)

👉 भौतिकवाद की उलटबाँसियाँ  
 
🔷 अवांछनीयता अपनाकर कमाई हुई सफलता तत्काल न सही थोड़ी ही देर में थोड़ा ही आगे बढ़कर ऐसे संकट सामने ला खड़े करती है, जिनसे उबरना कठिन हो जाता है। पर उनके लिए क्या कहा और क्या किया जाए जिनकी मन्द दृष्टि मात्र कुछ ही इंच-फुट तक का देख सकने में साथ देती है। आगे चलकर कितने बड़े खाईं-खन्दक हैं। जिनमें एक बार गिर पड़ने पर कोई सहायता के लिए भी आगे नहीं आता है और जिस-तिस को कोसते हुए भयावह अंत का सामना करना पड़ता है। इन दिनों ऐसी ही कुछ गजब की गाज गिरी है। विज्ञान के आधार पर मिली, नीतिमत्ता से सर्वथा विलग सफलताओं ने कुछ ऐसा व्यामोह उत्पन्न कर दिया है कि लोग कुमार्ग पर चलते और दुर्गति के भाजन बनते देखे जाते हैं। प्रचलन यही बना रहा तो उसका दुष्परिणाम व्यक्ति और समाज के सम्मुख इस स्तर की विभीषिका बनकर सामने आएगा, जिससे बाद में उबर सकना शायद सम्भव ही न रहेगा। तथाकथित प्रगति अवगति से भी अधिक महँगी पड़ेगी।

🔶 इन दिनों हर क्षेत्र में प्रवेश किए हुए समस्याओं, अवांछनीयताओं, विडम्बनाओं के लिए दोष किसे दिया जाए? और उसका समाधान कहाँ ढूँढ़ा जाए? इस सन्दर्भ में मोटे तौर से एक ही बात कही जा सकती है कि प्रत्यक्षवाद की पृष्ठभूमि पर जन्मे भौतिकवाद ने लगभग सभी नैतिक मूल्यों की उपयोगिता, आवश्यकता मानने से इंकार कर दिया है। उसी प्रत्यक्षवादिता को प्रामाणिकता का एक स्वरूप मानने वाले जन-समुदाय ने हर प्रसंग में यही नीति अपना ली है कि प्रत्यक्ष एवं तात्कालिक लाभ को ही सब कुछ माना जाए।

🔷 जिसमें हाथों-हाथ भौतिक लाभ मिलने की बात बनती हो, उसी को स्वीकारा जाए। इस कसौटी पर नीति, सदाचार, उदारता, संयम जैसे उच्च आदर्शों के लिए कोई जगह नहीं रह जाती है। इस प्रत्यक्षवादी तत्त्वदर्शन ने ही मनुष्य को स्वेच्छाचारी बनने के लिए प्रोत्साहित किया है। उन परम्पराओं को छिन्न-भिन्न करके रख दिया है, जो मानवी गरिमा के अनुरूप मर्यादाओं के परिपालन एवं वर्जनाओं का परित्याग करने के लिए दबाव डालती और सहायता करती थीं।
      
.... क्रमशः जारी
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 परिवर्तन के महान् क्षण पृष्ठ 11

👉 How to Stay Happy? (Part 2)

🔷 It is not true that everything is going perfectly well in the life of a happy person. Everybody has to go through his/her share of difficult and challenging situations in life. All of us desire to have a better life, but we should not waste away whatever good things we already have in pursuit for something better. Instead we should utilize what we have to obtain what we desire further.

🔶 One might find happiness in the pages of an old book kept in one’s shelf or in something simple that a person cooked, while that recipe may not even be found in the menu of a 5-star restaurant. There could be times when a person might feel happy after keeping a vessel of water for birds to drink on a hot summer day, while he might not be satisfied with Rs. 500/- offering at a temple. In this way, one will realize that happiness is related to the emotions which make the mind happy and contented. Emotions which are disturbing, annoying and unpleasant can never give happiness.

🔷 In fact, most of our worries are centered on what others will think or say to what we do. If we want to lead a happy life, psychologists recommend that we stay connected to a goal instead of people and things. Another suggestion is that one should do what one’s conscience propels him to pursue instead of worrying about what others will say or think. It will be his great loss if he does not pursue his dream frightened of what others will think about it. Any worthy step that a person executes in a planned manner not only gives him/her happiness but also contentment. Positive thinking and diligent efforts are the keys to happiness.

To be continued...

👉 मन को उद्विग्न न कीजिए (भाग 2)

🔷 सन्तुलित मन में एकाग्रता सबसे बड़ी शक्ति है। सन्तुलित व्यक्ति एक−विचार पर की सम्पूर्ण शक्ति केन्द्रित कर पाता है। उसकी विचार शक्ति विकेन्द्रित होकर व्यर्थ ही नष्ट नहीं होती। अकारण ही वह भय तथा काल्पनिक दुःखों से ग्रसित नहीं होता।

🔶 मानसिक सन्तुलन पर स्वास्थ्य का बड़ा प्रभाव पड़ता है। जब स्वास्थ्य अच्छा होता है और शरीर रोग मुक्त होता है, तो मानसिक सन्तुलन ठीक रहता है। रोगी शरीर होने पर प्रायः सन्तुलन बिगड़ जाता है। कभी कभी मानसिक सन्तुलन के भंग होने का कारण बुरा स्वास्थ्य होता है। स्वयं अपने मानसिक सन्तुलन का निरीक्षण कीजिए और उसके नष्ट होने के कारण मालूम कीजिए। यदि आपका मानसिक सन्तुलन भंग है, तो उसका दूषित प्रभाव उसके शरीर पर प्रकट हुए बिना नहीं रह सकता। पाचन विकार से शिथिलता, चिड़चिड़ापन, निराशा उत्पन्न होती है। यदि शरीर में कोई कष्ट हो, तो मनुष्य दुःखी, अतृप्त एवं अशान्त बना रहता है। प्रायः देखने में आता है कि जीर्ण रोगियों को क्रोध एवं आवेश अधिक आता है, उनका स्वभाव नैराश्य पूर्ण होता है दुःख पूर्ण मनःस्थिति अधिक रहती है।

🔷 भोजन का मानसिक सन्तुलन पर बड़ा प्रभाव पड़ता है। आप जैसा भोजन लेते हैं, वैसा ही सन्तुलन स्थिर रहता है। खराब, दूषित, बासी, या अभक्ष्य पदार्थों के भोजन से मानसिक सन्तुलन भंग हो जाता है। मद्य, तमाकू , पान, सिगरेट से वासना उद्दीप्त होती है। इनका प्रयोग करने वालों में कामोत्तेजना बनी रहती है। माँस के साथ क्रूरता का अटूट सम्बन्ध है। मांस खाने वाले तुनकमिज़ाज, उत्तेजक स्वभाव, क्रुद्ध होने वाले, क्रूर हिंसामय प्रवृत्ति के होते हैं। मिर्च के साथ उत्तेजना का निकट साहचर्य है। राजसी भोजन, अधिक भोजन और अभक्ष पदार्थों के भोजन सन्तुलन को नष्ट करने वाले हैं। इनके विपरीत शाक भाजी दूध इत्यादि के साथ सात्विक भावनाएँ संयुक्त हैं। शाकाहार करने वाले ऋषि मुनि गण सरलता से मानसिक सन्तुलन स्थिर रख सके हैं। सात्विक भोजन सुख शान्ति की अभिवृद्धि करने वाला है।

.... क्रमशः जारी
📖 अखण्ड ज्योति, फरवरी 1955 पृष्ठ 12

👉 आज का सद्चिंतन 11 September 2018


👉 प्रेरणादायक प्रसंग 11 September 2018

👉 नदी का पानी

🔶 पुराने समय की बात है किसी नगर में एक भोला नाम का व्यक्ति रहता था। भोला दिन भर खेतों में काम करता और खेत में उगाये अन्न से ही उसके परिवार का गुजारा चलता था। भोला ने बचपन से ही गरीबी का सामना किया था। उसके माता पिता बेहद ही गरीब थे।

🔷 अब बच्चे बड़े हो गये, स्कूल जाने लगे, उनकी फ़ीस का खर्चा और ऊपर से महंगाई। भोला अक्सर सोचता कि जीवन कितना कठिन है। एक समस्या खत्म नहीं होती तो दूसरी शुरू हो जाती है। पूरा जीवन इन समस्याओं को हल करने में ही निकलता जा रहा है।

🔶 ऐसे ही एक दिन भोला एक साधु के पास पंहुचा, और उन्हें सारी परेशानी बताई – कि कैसे मैं अपनी जिंदगी की कठिनाइयों का सामना करूँ? एक परेशानी खत्म होती है तो दूसरी शुरू हो जाती है।

🔷 साधु महाराज हंसकर बोले- तुम मेरे साथ चलो मैं तुम्हारी परेशानी का हल बताता हूँ, साधु भोला को लेकर एक नदी के किनारे पहुंचे और बोले – मैं नदी के दूसरी पार जाकर तुमको परेशानी का हल बताऊंगा। यह कहकर साधु नदी के किनारे खड़े हो गए।

🔶 नदी के किनारे खड़े खड़े जब बहुत देर हो गयी, भोला बड़ा आश्चर्यचकित होकर बोला – महाराज हमें तो नदी पार करनी है तो हम इतनी देर से किनारे पर क्यों खड़े हैं। साधु महाराज – बेटा मैं इस नदी के पानी के सूखने का इंतजार कर रहा हूँ, जब ये सूख जायेगा फिर आराम से नदी पार कर लेंगे।

🔷 भोला को साधु की बातें मूखर्तापूर्ण लगीं, वो बोला – महाराज नदी का पानी कैसे सूख सकता है आप कैसी मूखर्तापूर्ण बातें कर रहे हैं।

🔶 साधु हंसकर बोले – बेटा यही तो मैं तुमको समझाना चाह रहा हूँ, ये जीवन एक नदी है और समस्या पानी की तरह हैं। जब तुमको पता है कि नदी का पानी नहीं सूखेगा, तो तुमको खुद प्रयास करके नदी को पार करना होगा। वैसे ही जीवन में समस्याएं तो चलती रहेंगी, तुमको अपने प्रयासों से इन परेशानियों से पार पाना है। अगर किनारे बैठ कर नदी का पानी सूखने का इंतजार करोगे तो जीवन भर कुछ नहीं पा सकोगे। पानी तो बहता रहेगा, समस्या तो आती रहेंगी लेकिन आपको नदी की धार को चीरते हुए आगे जाना होगा, हर समस्या को धराशायी करना होगा। तभी जीवन में आगे बढ़ सकोगे।

🔷 भोला की समझ में सारी बातें आ चुकी थीं।

🔶 मित्रो हमारी जिंदगी में भी कुछ ऐसा ही होता है, हम हमेशा सोचते हैं कि ये परेशानी खत्म हो जाये तब जीवन सुखी होगा, कभी वो परेशानी सुलझ जाये तब जीवन सुखी होगा। लेकिन ये समस्या ही नदी का पानी है, नदी तो बहती रहेगी तुमको पार जाना है धारा चीर कर आगे बढ़ते जाइये।

👉 प्रेरणादायक प्रसंग 30 Sep 2024

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