बुधवार, 27 मार्च 2019

👉 संघर्ष करना सिखाइए

बाज पक्षी जिसे हम ईगल या शाहीन भी कहते है। जिस उम्र में बाकी परिंदों के बच्चे चिचियाना सीखते है उस उम्र में एक मादा बाज अपने चूजे को पंजे में दबोच कर सबसे ऊंचा उड़ जाती है। पक्षियों की दुनिया में ऐसी Tough and tight training किसी भी ओर की नही होती।

मादा बाज अपने चूजे को लेकर लगभग 12 Km ऊपर ले जाती है। जितने ऊपर अमूमन जहाज उड़ा करते हैं और वह दूरी तय करने में मादा बाज 7 से 9 मिनट का समय लेती है।

यहां से शुरू होती है उस नन्हें चूजे की कठिन परीक्षा।

उसे अब यहां बताया जाएगा कि तू किस लिए पैदा हुआ है?

तेरी दुनिया क्या है?

तेरी ऊंचाई क्या है?

तेरा धर्म बहुत ऊंचा है

और फिर मादा बाज उसे अपने पंजों से छोड़ देती है।

धरती की ओर ऊपर से नीचे आते वक्त लगभग 1 Km उस चूजे को आभास ही नहीं होता कि उसके साथ क्या हो रहा है।

6 Km के अंतराल के आने के बाद उस चूजे के पंख जो कंजाइन से जकड़े होते है, वह खुलने लगते है।

लगभग 8 Km आने के बाद उनके पंख पूरे खुल जाते है। यह जीवन का पहला दौर होता है जब बाज का बच्चा पंख फड़फड़ाता है।

अब धरती से वह लगभग 1000 मीटर दूर है ,लेकिन अभी वह उड़ना नहीं सीख पाया है। अब धरती के बिल्कुल करीब आता है जहां से वह देख सकता है उसके स्वामित्व को।

अब उसकी दूरी धरती से महज 700/800 मीटर होती है लेकिन उसका पंख अभी इतना मजबूत नहीं हुआ है की वो उड़ सके।

धरती से लगभग 400/500 मीटर दूरी पर उसे अब लगता है कि उसके जीवन की शायद अंतिम यात्रा है। फिर अचानक से एक पंजा उसे आकर अपनी गिरफ्त मे लेता है और अपने पंखों के दरमियान समा लेता है।
यह पंजा उसकी मां का होता है जो ठीक उसके उपर चिपक कर उड़ रही होती है और उसकी यह ट्रेनिंग निरंतर चलती रहती है जब तक कि वह उड़ना नहीं सीख जाता।

यह ट्रेनिंग एक कमांडो की तरह होती है। तब जाकर दुनिया को एक बाज़ मिलता है अपने से दस गुना अधिक वजनी प्राणी का भी शिकार करता है।

हिंदी में एक कहावत है... "बाज़ के बच्चे मुँडेर पर नही उड़ते।"

बेशक अपने बच्चों को अपने से चिपका कर रखिए पर... उसे दुनियां की मुश्किलों से रूबरू कराइए, उन्हें लड़ना सिखाइए। बिना आवश्यकता के भी संघर्ष करना सिखाइए।

अपने बच्चे को राष्ट्र व धर्म की रक्षा के लिए सदैव तैयार रहना.. सिखाईये .. आसान रास्तों के लिए गद्दार मुंडेरो पर नहीं .. देशभक्ति का संकल्प लेकर एक अनन्त  ऊंचाई तक ले जायें ...

ये TV के रियलिटी शो और अंग्रेजी स्कूल की बसों ने मिलकर आपके बच्चों को "ब्रायलर मुर्गे" जैसा बना दिया है जिसके पास मजबूत टंगड़ी तो है पर चल नही सकता। वजनदार पंख तो है पर उड़ नही सकता क्योंकि...

"गमले के पौधे और जंगल के पौधे में बहुत फ़र्क होता है।"

👉 आज का सद्चिंतन 27 March 2019


👉 प्रेरणादायक प्रसंग 27 March 2019


👉 आज मानवता रो रही है।

अपने समस्त ज्ञान, वैज्ञानिक अनुसंधान, खोज, बड़े-बड़े इंजीनियरिंग, चिकित्साशास्त्र तथा भौतिक समृद्धि के साधनों के बावजूद हम देखते हैं कि आधुनिक मनुष्यों में से मनुष्यत्व का पतन हो रहा है। उनकी मानवता का क्रमशः ह्रास होता जा रहा है। जिस चीज को हम “आदमीयत” कह कर गर्व करते हैं, वह निरन्तर क्षय होती जा रही है। मनुष्य “मनुष्य” का शत्रु हो गया है। सभ्यता का ढोंग चढ़ा कर, सफेद कपड़ों की आड़ में, वह ऐसे दुष्कर्म कर रहा है, जिन्हें देखकर उसे शैतान या हैवान ही कहना पड़ता है। मनुष्य के अन्दर बर्बर युग से सोया हुआ हैवान या शैतान जैसे आज जागृत हो गया है।

आज के दो वर्ग
आज का सम्पूर्ण संसार मोटे तौर पर दो बड़े भागों में विभक्त किया जा सकता है। (1) शोषक अर्थात् वह वर्ग जो आध्यात्मिक नैतिक, ज्ञान-विज्ञान की शक्तियों से शासन का आनन्द भोग रहा है। यह वर्ग हर प्रकार की ऐश-आराम, विलास का जीवन व्यतीत करता है, आज के अन्य सदस्यों द्वारा अर्जित खाद्य पदार्थों, भौतिक साधनों दैनिक व्यवहारों की चीजों की प्रचुरता का आनन्द लेता है। कल कारखाने, वायुयान, रेल, जहाज, लोहे के हथियार और औद्योगिक संस्थाओं, जमींदारों की बागडोर हाथ में है। उसे रुपये का घमण्ड है, विज्ञान द्वारा दिये गये भौतिक आनन्दों, प्रभुता, मद, ज्ञान विज्ञान का अभिमान है, मशीनों पर विश्वास है, एटम की शक्ति है। यह पूँजी पतियों का वर्ग है। इस वर्ग में बड़े बड़े अमीर, सत्ताधारी, ब्रह्मवादी, रूढ़िवादी क्षत्रिय, जागीरदार अमीर वैश्य, मठाधारी, मन्दिरों के पुरोहित, पंचायत के पंच लोग, बड़े अफसर पूँजीवादी राजनैतिक पार्टियों के प्रतिनिधि आदि सम्मिलित हैं।

दूसरा वर्ग शोषितों का है। इस वर्ग में दीन हीन गरीब मजदूर, किसान, मिलों फैक्ट्रियों में मजदूरी करने वाले, शूद्र, भंगी, चाण्डाल, चमार, होटलों, रेस्टोराँ, मोटर, रेल, सिनेमा में काम करने वाले नौकर इत्यादि अनेक प्रकार के व्यक्ति सम्मिलित हैं। पहले वर्ग की अपेक्षा इस वर्ग में अधिक व्यक्ति आते है। इसमें अछूत जातियों के लोग भी सम्मिलित हैं, जिनका कार्य उच्च वर्ग की चाकरी कर पेट पालना है। इन लोगों की गुलामी दो कारणों से हुई है-एक तो ये आर्थिक दृष्टि से दीन हीन हैं, दूसरे धर्म ग्रन्थों की आड़ में शिक्षा और सुविधाएं न देकर तलवार, लाठी, डंडों के बल इन्हें पनपने नहीं दिया गया है। उच्च वर्ग के इन्हें गुलाम बना कर इन्हें नौकरी चाकरी, घरों की सफाई, मल विष्ठा मूत्र से भरी नालियों की सफाई, उनकी स्त्रियों को विलास और मनोरंजन की वस्तु समझ कर सदियों इन्हें पशुत्व की कोटि में रखा है। इस वर्ग का निरन्तर शोषण होता रहा है। इस प्रकार हमारे समाज का आधा अंग पशुवत् अज्ञान, अशिक्षा, रूढ़िवादिता, भेदभाव, अहंकार असमर्थता में पड़ा हुआ शोषित हो रहा है।

अज्ञानान्धकार का पाप
आज के युग के भौतिक सुखों, आश्चर्यचकित कर देने वाली सुविधाओं, विलास और आराम की वस्तुओं की चर्चा की जाती है। किन्तु खेद है कि इतनी प्रचुरता में भी शोषित वर्ग में गरीबी, दुःख, अज्ञान और भयंकर भुखमरी है, इतने विस्तार और मुक्त वायु के बीच भी रोग, अशुचिता, गंदगी दयनीयता और बेबसी है, इतनी शिक्षा सुविधाओं के मध्य भी रूढ़ि जाति पांति, धर्मान्धता, दुराचार, अपहरण और अज्ञानान्धकार का साम्राज्य फैला हुआ है। हम सब मनुष्य कहलाते हुए भी दूसरे मनुष्य को छूने, प्यासे को पानी पिलाने में भूखे को अन्न देने में, बीमार की सुश्रूषा करने में सकुचाते हैं।

बिल्ली, कुत्ते का मुख चूमने में हमें कोई संकोच नहीं होता, किन्तु मनुष्य रूप में करोड़ों भारत संतानों का-शूद्र, चाण्डाल, म्लेच्छ, भंगी, चमार का स्पर्श करते हुए हमारा धर्म नष्ट होने लगता है।

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 अखण्ड ज्योति जनवरी 1953 पृष्ठ 5
http://literature.awgp.org/akhandjyoti/1953/January/v1.5

👉 Amrit Chintan

■ Your character is reflected in the reaction of people around you. One’s progress depends on this reaction of your sub-ordinates, officers, clients and those who get concerned to you. Because the persons and society observes your all actions and reactions. The true personality is not only your courteous behavior but the personality waves radiate both from your subtler body also, which they read.

✍🏻 Pt. Shriram Sharma Acharya
📖 Vangmay-42, P-2.19
 
□ The path followed by great men of the time show us the right way of living. If we follow them we will also attain the same aim of life as they could. Success of our life and wisdom can be attained on their guidance. Our life should not be like depressed, pessimistic or like those who are totally materialistic. We should not be hippocratic either in our talks and actions. That is our show of life totally different then what we are.

✍🏻 Pt. Shriram Sharma Acharya
📖 Akhandjyoti, May, 1976

◆ We should work hard for our progress in life, but should not disturbed in our present situation. Money is not everything in life. If we develop our nature and behavior and create an atmosphere of happiness by sharing and caring for other. We can enjoy the bliss of life.

✍🏻 Pt. Shriram Sharma Acharya
📖 Akhandjyoti 1986, Jan

👉 झरने तक उतरकर प्यास बुझाई

तीन पथिक पहाड़ी की ऊपरी चोटी पर लम्बा रास्ता पार कर रहे थे। धूप और थकान से उनका मुँह सूखने लगा। प्यास से व्याकुल हो उनने चारों और देखा पर वहाँ पानी न था। एक झरना बहुत गहराई में नीचे बह रहा था।  एक पथिक ने आवाज लगाई- ' हे ईश्वर। सहायता कर हम तक पानी पहुँचा। दूसरे ने पुकारा -'हे इन्द्र। '' मेघ माला ला और जल वर्षा।'' तीसरे पथिक ने किसी से कुछ नहीं माँगा और चोटी से नीचे उतर तलहटी में बहने वाले झरने पर जा पहुँचा और भरपूर प्यास बुझायी। दो प्यासे की आवाजें अभी भी सहायता के लिए पुकारती हुई पहाड़ी को प्रतिध्वनित कर रही थीं, पर जिसने आत्मावलम्बन का साहस किया वह तृप्ति लाभ कर फिर आगे बढ़ चलने में समर्थ हो गया।

आत्मज्ञान की प्राप्ति के बाद ऐसी स्थिति आती है जिसे शाश्वत आनन्द की चरम उपलब्धि कहा जा सकता हैं।

📖 प्रज्ञा पुराण भाग 1

👉 प्रज्ञा पुराण (भाग 1) श्लोक 65 से 68

उवाच विष्णुर्ज्ञानार्थं कथा प्रज्ञापुराणजा।
विवेच्या, कर्मणे प्रज्ञाभियानस्य विधिष्वलम्॥६५॥
विधयोऽस्य च स्वीकर्तुं प्रगल्भान्प्रेरयानिशम्।
युगस्य सृजने सर्वे सहयोगं ददत्वलम् ॥६६॥
यथातथा विवोध्यास्ते भावुका अंशदायिन।
समयस्य च दातार: सोत्साहा उस्फुरन्तु यत् ॥६७॥
संयुक्तशक्त्या श्रेष्ठानां दुर्गावतरणोज्ज्वला।
प्रचण्डता समुत्पन्ना समस्या दूरयिष्यति॥६८॥

टीका- विष्णु भगवान् ने कह-ज्ञान के लिए प्रज्ञा पुराण का कथा विवेचन उचित होगा और कर्म के लिए प्रज्ञा अभियान की बहुमुखी गतिविधियों में से प्रगल्भों को उन्हें अपनाने की प्रेरणा निरन्तर देनी चाहिए। युग सृजन में सहयोग करने के लिए सभी भावनाशीलों में समय दान, अंशदान की उमंग उभारनी चाहिए। वरिष्ठों की इस संयुक्त शक्ति से ही दुर्गावतरण जैसी प्रचण्डता उत्पन्न होगी और युग समस्याओं के निराकरण में समर्थ होगी॥६५-६८॥

व्याख्या- युग चेतना को व्यापक करने के बाद कर्म में प्रवृत्त होने के लिए भगवान प्रगल्भों की चर्चा करते हैं। प्रगल्भ अर्थात् साहसी। ऐसे शूरवीर जो सत्प्रयोजनों के लिए कमर कस कर तैयार हो जायें।

अवतारों में उच्चस्तरीय वे ही माने जाते हैं जिनमें सन्त सी पवित्रता, सुधारक सी प्रखरता के साथ ऋषियों जैसी तत्व दृष्टि होती है। वे उत्कृष्टता को समर्पित होते हैं। अहंता के परिपोषण में लगने वाली शक्ति समर्पण के बाद उनके पास इतनी अधिक मात्रा में बच जाती है जिसके आधार पर सामान्य व्यक्ति भी असामान्य काम कर दिखाते हैं। भगवान कृष्ण, राम, ईसा, दयानन्द, गाँधी, गुरुगोविन्दसिंह, बुद्ध, मीरा, शंकराचार्य, ज्ञानेश्वर, समर्थ रामदास ऐसे जीते जागते प्रमाणों में से हैं, जिन्होंने प्रतिकूलता से जूझने का साहस दिखाया व सत्प्रयोजन में लगने के लिए असंख्यों को प्रेरित किया।

ऐसे व्यक्तियों का संगठन तो वह प्रचण्ड चमत्कार कर दिखाता है जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकी।

.... क्रमशः जारी
✍🏻 श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 प्रज्ञा पुराण (भाग १) पृष्ठ 26-27

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