🔶 पहाड़ी इलाकों में जहां अमूमन जबर्दस्त तूफान आया करते हैं। ऐसे ही एक तूफान में पानी के तेज बहाव से एक बड़ा पत्थर टूट कर सड़क के बीचों-बीच आ गिरा।
🔷 तभी एक व्यक्ति वहां आया, जहां पत्थर गिरा था, वहां वह रुक गया और किसी के आने की प्रतीक्षा करने लगा। थोड़ी देर बाद एक दूसरा व्यक्ति अपनी घोड़ागाड़ी से वहां आ पहुंचा।
🔶 उसने पहले व्यक्ति से पूछा कि तुम यहां सड़क के बीच में हट जाओ ताकि मैं यहां से गुजर सकूं। पहले व्यक्ति ने कहा- 'तुम्हें जल्दी है तो पहले वहां जाकर यह चट्टान हटाओ। पहले व्यक्ति ने कहा क्यों न किसी शक्तिशाली आदमी की प्रतीक्षा करें। वही हमारा रास्ता साफ करेगा।'
🔷 दोनों साथ-साथ बैठ गए। तभी एक और घोड़ागाड़ी वाला वहां आ पहुंचा। वह काफी बूढ़ा था। जब उसे पता चला कि दोनों यहां क्यों खड़े हैं तो वह पत्थर के इर्द-गिर्द चहलकदमी करने लगा। समय बीतता रहा। अब वहां एक
🔶 काफिला इकट्ठा हो गया। इतने में गेरुआ वस्त्र पहने एक संन्यासी वहां आ पहुंचे। वे स्वामी विवेकानंद के गुरुभाई एवं रामकृष्ण परमहंस के शिष्य स्वामी अखंडानंद थे।
🔷 वह इन दिनों अपनी एकांत साधना के लिए यहां आए हुए थे। वे सब को परेशान देख बोले- तुम लोग अपनी जवाबदेही दूसरों पर डालने की कोशिश मत करो। आओ हम सभी मिलकर प्रयास करते हैं।
🔶 स्वामी जी ने सबसे पहले पत्थर हटाना शुरू किया। उन्हें देख दूसरों ने भी कोशिश की। और इस तरह पत्थर हट गया।
🔷 स्वामी जी ने कहा-हम हर समय दूसरों का मुंह देखते रहते हैं।हमें लगता है कोई आकर हमारी समस्या हल करेगा। कोई आगे बढ़कर खुद पहल नहीं करता। अगर हम ऐसा करने लगें तो जीवन की समस्याएं अपने आप हल हो जाएंगी।
संक्षेप में
🔶 अगर एकता हो तो बड़े से बड़े काम भी आसान हो जाते हैं। समस्याएं वहीं रहतीं हैं जहां पर एकता नहीं रहती वहां छोटे से छोटे काम भी बमुश्किल हो पाते हैं।
🔷 तभी एक व्यक्ति वहां आया, जहां पत्थर गिरा था, वहां वह रुक गया और किसी के आने की प्रतीक्षा करने लगा। थोड़ी देर बाद एक दूसरा व्यक्ति अपनी घोड़ागाड़ी से वहां आ पहुंचा।
🔶 उसने पहले व्यक्ति से पूछा कि तुम यहां सड़क के बीच में हट जाओ ताकि मैं यहां से गुजर सकूं। पहले व्यक्ति ने कहा- 'तुम्हें जल्दी है तो पहले वहां जाकर यह चट्टान हटाओ। पहले व्यक्ति ने कहा क्यों न किसी शक्तिशाली आदमी की प्रतीक्षा करें। वही हमारा रास्ता साफ करेगा।'
🔷 दोनों साथ-साथ बैठ गए। तभी एक और घोड़ागाड़ी वाला वहां आ पहुंचा। वह काफी बूढ़ा था। जब उसे पता चला कि दोनों यहां क्यों खड़े हैं तो वह पत्थर के इर्द-गिर्द चहलकदमी करने लगा। समय बीतता रहा। अब वहां एक
🔶 काफिला इकट्ठा हो गया। इतने में गेरुआ वस्त्र पहने एक संन्यासी वहां आ पहुंचे। वे स्वामी विवेकानंद के गुरुभाई एवं रामकृष्ण परमहंस के शिष्य स्वामी अखंडानंद थे।
🔷 वह इन दिनों अपनी एकांत साधना के लिए यहां आए हुए थे। वे सब को परेशान देख बोले- तुम लोग अपनी जवाबदेही दूसरों पर डालने की कोशिश मत करो। आओ हम सभी मिलकर प्रयास करते हैं।
🔶 स्वामी जी ने सबसे पहले पत्थर हटाना शुरू किया। उन्हें देख दूसरों ने भी कोशिश की। और इस तरह पत्थर हट गया।
🔷 स्वामी जी ने कहा-हम हर समय दूसरों का मुंह देखते रहते हैं।हमें लगता है कोई आकर हमारी समस्या हल करेगा। कोई आगे बढ़कर खुद पहल नहीं करता। अगर हम ऐसा करने लगें तो जीवन की समस्याएं अपने आप हल हो जाएंगी।
संक्षेप में
🔶 अगर एकता हो तो बड़े से बड़े काम भी आसान हो जाते हैं। समस्याएं वहीं रहतीं हैं जहां पर एकता नहीं रहती वहां छोटे से छोटे काम भी बमुश्किल हो पाते हैं।