असत्य का त्याग करना जीवन में आनन्द और विकास के बीज बोने के समान है। ‘सत्य शिव सुन्दरम्’ सत्य ही शिव है- कल्याणकारी है और वही सुन्दर है। असत्य का आचरण हर प्रकार से अमाँगलिक होता है। मनीषियों ने सत्य को मनुष्य के हृदय में रहने वाला ईश्वर बताया है। सत्य ही वह सार्वकालिक और सार्वदेशिक तथ्य है जो सूर्य के समान हर स्थल पर समान रूप से चमकता है।
एकाकी रोते-कलपते रहने वाला मनुष्य श्मशान में रहने वाले प्रेत-पिशाच की तरह उद्विग्न रहता है। जिसके आँसू पोंछने वाला कोई नहीं-जिसे सहानुभूति और आश्वासन के शब्द सुनने को नहीं मिलते वह अपनी घुटन में आप घुटता है और अपनी जलन में आप जलता है। यह एकाकीपन उस दुख से भी भारी पड़ता है जिसने कसक और कराह की स्थिति उत्पन्न की। दुख कष्टकर अवश्य होते हैं पर वे तब मधुर भी लगते हैं जब इस बहाने मित्रों की सहानुभूति और संवेदना उस दुखिया पर बरसती है।
हमें ऐसे विश्वासी चरित्रनिष्ठ और परिष्कृत दृष्टिकोण के मित्र तलाश करने चाहिए जो स्वयं गिरने से बचे रह सकें हों ओर दूसरों की गिरी स्थिति से उबारने की सामर्थ्य संग्रह कर सके हों। इस प्रकार के साथी केवल उन्हें ही मिलते हैं जिनने स्वयं आगे बढ़ कर समय-समय पर दूसरों के दुख बंटाये हैं जो कष्टों को बंटाने वाली करुणा से सम्पन्न हैं उनके कष्टों को बंटाने वाले सहज ही उत्पन्न होते हैं और विपत्ति का बोझ हलका करने में कन्धा लगाते हैं।
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
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