गुरुवार, 28 फ़रवरी 2019

👉 युद्ध बलिदान मांगता है,,,

पाकिस्तानियों से ज्यादा गुस्सा फेसबुकियों पर आता है कई बार,,
एयर फोर्स के 12 जवानों के चित्र जारी कर रहे हैं, ध्यान रखो,,

दुश्मन सिर्फ बाहर नहीं है,, बड़ी मात्रा में अंदर भी है,, दुश्मन ठंडे रक्त बैठा है,, एक साल बाद बदला लेगा जब सब इस बात को भूल चुके होंगे,, क्यों उनकी जान को जोखिम में डाल रहे हो,,

अभी गुम हुए पायलेट का चित्र डालना शुरू कर दिया ,,, तुम भी वही कर रहे हो जो पाकिस्तान कर रहा है,, वह डर फैलाना चाहता है,, तुमको रुलाना चाहता है,, तुम पहले ही दहाड़ मार मारकर रोने को तैयार बैठे हो,,

अपने जवानों पर भरोसा रखो,, कच्ची मिट्टी के नहीं हैं वे लोग,, विश्व की सबसे बहादुर सेना है,,, टुकड़े टुकड़े कट मरेंगें पर उफ नहीं करेंगे,,

सूरा सो पहचानिए,, जो लड़े दीन के हेत,,
पुर्जा पुर्जा कट मरे,, कबहुँ न छड्डे खेत,,

तुमने कल उनके 300 से अधिक मारे,, तो भी वे कह रहे हैं कि हमारा तो कुछ नुकसान नहीं हुआ,, तुम्हारा एक पकड़ा गया तो रोना शुरू कर दिया,, लगे छाती पीटने,,

अपने देश और अपनी सेना के साथ बहादुरी से खड़े रहिए,, आहुतियां तो देनी पड़ती हैं जब राष्ट्र यज्ञ हो रहा हो,, लेकिन यकीन मानिए छाती वो पिटेंगे जिन्होंने ये शुरू किया है,,

युद्ध में फूलों के गुलदस्ते नहीं दिए जाते,, युद्ध बलिदान मांगता है,,, अपने पराक्रम और शौर्य का परिचय दो,,

तुम उनके वंशज हो जिनकी गर्दन कट जाने पर हाथ में गर्दन लेकर 1 किलोमीटर तक लड़ते रहे थे,,
तुम उनका खून हो जो सुमेलगिरी में 80 हजार से 60 टकरा गए थे,,
तो बंद करो ऐसी तस्वीरों को डालना जिससे चाहे अनचाहे हमारे अपनो का मनोबल टूटे,,,

रणचंडी के उपासक इतने कमजोर तो नहीं,,
उन्होंने युद्ध शुरू किया है,,निपटाएंगे हम,,

हर हर महादेव,,
जय भवानी,,
जय हिन्द की सेना।

👉 जय हिन्द की सेना

इस से पहले कि देश में IC 814 वाला माहौल बने और हम रोना बिलखना शुरू करें कुछ चीजों पर कॉमन कंसेंसस लाना होगा.

1. हम युद्ध के मुहाने पर खड़े हैं.

2. ये युद्ध हम पर थोपा गया है. हमारे 40 जवान जवानों आतंकवादी संगठन जैश ऐ मुहम्मद के आतंकवादी द्वारा बम्ब विस्फोट में गंवाने पड़े.

3. हमने जैश ऐ मुहमम्द के ट्रेनिंग कैंप पर हमला कर आतंकवादियों की कमर तोड़ी.

4. पाकिस्तान ने हमारे आर्मी इस्टैब्लिशमेंट पर हमला करने की कोशिश की जिसमें उनकी कोशिश को नाकाम कर दिया गया उनके F 16 को मार गिराया गया और उसी कोशिश में हमारा एक मिग 21 और विंग कमांडर अभिनन्दन पाकिस्तानियों के कब्जे में पहुँच गए. जेनेवा इंटरनेशनल कन्वेंशन के अनुसार विंग कमांडर अभिनन्दन को वापस लौटाना पाकिस्तान की मजबूरी है.

5 . युद्ध अब शुरू ही है. और हर युद्ध की एक कीमत होती है. जब हम युद्ध में जाने का फैसला करते हैं तो उस कीमत का आंकलन हमको होना चाहिए. देश का हौसला देश का विश्वास और देश पर देश वासियों का विश्वास बनाये रखने की जिम्मेदारी सिर्फ सेना, सरकार की ही नहीं हम जैसे आम नागरिकों की भी है.

6. किसी भी खबर पर पैनिक मत होइए...खासकर पाकिस्तानी प्रोपगंडा के बहकावे में मत आइये. हमारी सेना पाकिस्तान का मुंह तोड़ने में सक्षम है कृपया उनका मनोबल जाने अनजाने न गिराइये.

7. कोई भी आपत्तिजनक वीडियो फोटो अगर आपके पास आ भी गया है तो जिम्मेदारी के साथ उसको डेलीट या रिपोर्ट कर दीजिये. उसको आगे बढ़ा के आप जाने अनजाने देश के दुश्मनों की ही मदद कर रहे हैं क्यूंकि वो भी चाहते हैं कि आपके समाज में विघटन बढे और लोग डरें.

8. डट कर अपने देश की सरकार के साथ खड़े रहिये, जय हिन्द और जय हिन्द की सेना के साथ.

👉 एक जरुरी सुचना....कृपया पूरी पढ़े।

भारत की वायुसेना ने जो अदम्य साहस दिखाया है पाक को घर में घुस कर मारा है उसके लिए सेना को ढेर सारी बधाई। आज इस मुश्किल घडी में हम सब देश के साथ है देश की सेना के साथ है हर उस फैसले के साथ है जो राष्ट्र हित में होगा।

पर आज अब कुछ जिम्मेदारी हम आम नागरिको की भी बनती है पाक अभी बौखलाया हुआ है तनाव में है और ये भी तय है कि वो अब हमारी इस AirStrike का जवाब भी ढूंढ रहा होगा।

अब हमे बहुत सचेत और सावधान रहना होगा। अपने आसपास बस स्टेण्ड..रेलवे स्टेशन..मंदिर..होटल..मॉल..भीड़भाड़ वाले बाजार..सिनेमा हॉल..अन्य ऐसी जगह जहाँ बहुत ज्यादा भीड़ रहती है वँहा हमे सतर्क रहना होगा।

कुछ भी जो आपको संदिग्ध लगे..अप्रत्याशित सा लगे तो तुरन्त पुलिस को खबर करे।

हमे आज पाक से खतरा कम है और देश के अंदर बेठे गद्दारो और पाक परस्त लोगो से ज्यादा है। उन्हें कोई LOC या बोर्डर पार नही करना पड़ेगा और वो हमारी थोड़ी सी लापरवाही से हमे और हमारे देश को बड़ा नुकसान पहुँचा सकते है।

इसीलिए आप सभी से निवेदन है कि आने वाले कुछ दिनों तक अत्यंत सावधानी रखे और सदैव हरपल सतर्क रहे ,सावधान रहें और आसपास के लोगो को भी ऐसा करने को कहे।

पाकिस्तान से तो देश की सेना आराम से निपट लेगी पर आस्तीनों के सांपो से तो हमे ही निपटना होगा।

भारत देश अभी हाई अलर्ट पर है, भारत की सभी सीमाओ पर सेना तैनात है।

खुफिया एजेंसियां एवम गुप्त विभाग भी हाई अलर्ट है।

आम नागरिक भी हाई अलर्ट पर रहे।

कृपया इस सन्देश को ज्यादा से ज्यादा लोगो तक पहुचाये।

भारत माता की जय
जय हिन्द
वंदेमातरम

बुधवार, 27 फ़रवरी 2019

👉 अच्छा काम हमेशा कर देना चाहिए!!

एक आदमी ने एक पेंटर को बुलाया अपने घर, और अपनी नाव दिखाकर कहा कि इसको पेंट कर दो। वो पेंटर पेंट ले कर उस नाव को पेंट कर दिया, लाल रंग से जैसा कि, नाव का मालिक चाहता था। फिर पेंटर ने अपने पैसे लिए, और चला गया।

अगले दिन, पेंटर के घर पर वो नाव का मालिक पहुँच गया, और उसने एक बहुत बड़ी धनराशी का चेक दिया उस पेंटर को। पेंटर भौंचक्का हो गया, और पूछा कि ये किस बात के इतने पैसे हैं? मेरे पैसे तो आपने कल ही दे दिया था।

मालिक ने कहा कि "ये पेंट का पैसा नहीं है, बल्कि ये उस नाव में जो "छेद" था, उसको रिपेयर करने का पैसा है।"

पेंटर ने कहा,. "अरे साहब, वो तो एक छोटा सा छेद था, सो मैंने बंद कर दिया था। उस छोटे से छेद के लिए इतना पैसा मुझे, ठीक नहीं लग रहा है।"

मालिक ने कहा,.. "दोस्त, तुम समझे नहीं मेरी बात, अच्छा विस्तार से समझाता हूँ। जब मैंने तुम्हें पेंट के लिए कहा, तो जल्दबाजी में तुम्हें ये बताना भूल गया कि नाव में एक छेद है, उसको रिपेयर कर देना। और जब पेंट सूख गया, तो मेरे दोनों बच्चे,.. उस नाव को समुद्र में लेकर मछली मारने की ट्रिप पर निकल गए।

मैं उस वक़्त घर पर नहीं था, लेकिन जब लौट कर आया और अपनी पत्नी से ये सुना कि बच्चे नाव को लेकर, नौकायन पर निकल गए हैं,.. तो मैं बदहवास हो गया। क्योंकि मुझे याद आया कि नाव में तो छेद है। मैं गिरता पड़ता भागा उस तरफ, जिधर मेरे प्यारे बच्चे गए थे। लेकिन थोड़ी दूर पर मुझे मेरे बच्चे दिख गए, जो सकुशल वापस आ रहे थे। अब मेरी ख़ुशी और प्रसन्नता का आलम तुम समझ सकते हो। फिर मैंने छेद चेक किया, तो पता चला कि,. मुझे बिना बताये,.. तुम उसको रिपेयर कर चुके हो।

तो,.. मेरे दोस्त,.. उस महान कार्य के लिए, तो ये पैसे भी बहुत थोड़े हैं। मेरी औकात नहीं कि उस कार्य के बदले तुम्हे ठीक ठाक पैसे दे पाऊं।"
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इस कहानी से हमें यही समझना चाहिए कि भलाई का कार्य हमेशा "कर देना" चाहिए, भले ही वो बहुत छोटा सा कार्य हो। क्योंकि वो छोटा सा कार्य किसी के लिए "अमूल्य" हो सकता है।

👉 आदमी बनो! (अंतिम भाग)

यदि आप कहें कि वह मनुष्य था तो इसमें सन्देह नहीं किया जायेगा। एक बात अवश्य है, शरीर से वह मनुष्य था हृदय और मस्तिष्क उसे मिलना था, पर वह इससे पहले ही आपके द्वारा हिन्दू, मुसलमान ईसाई बना दिया गया? क्या ही अच्छा होता कि - उसे जब मनुष्य का शरीर मिला था तो मनुष्य का हृदय और मस्तिष्क भी पा जाने देते और वह हिन्दुस्तानी, हिन्दू मुसलमान, राजपूत, ब्राह्मण, पंजाबी, बंगाली बनता, वह आदमी भी रहता और हिन्दू, मुसलमान, ईसाई भी। परन्तु आपकी भयानक भूल से वह आज तक केवल शरीर से मनुष्य अर्थात् आधा ही मनुष्य रहा। ठीक यही दशा आपकी भी है आप कोरे दुकानदार, वकील और दस्तकार हैं, आदमी नहीं।

यदि शरीर की बनावट पर ध्यान न दिया जाय तो आप में और पशु में बहुत कम अन्तर रह गया है एक आप जैसा मनुष्य रूप में पशु सिगरेट पीने लगा है, आप भी उसकी देखा−देखी सिगरेट पीना शुरू कर देते हैं, आपको इस चाल में भेड़ की सिफत है। आपके हित के लिये कोई मनुष्य का संगठन करना चाहता है। आप में से एक भागता है, उसको संभालता है तो दूसरा चला जाता है, तीसरा काबू में आया तो चौथा निकल गया। यह आप में उन मेंढ़कों के गुण हैं जो तोलने में नहीं आते। इसी तरह आप में चमगादड़, बगुले, काग और गीदड़ आदि पशुओं के स्वभाव और उनकी आदमें मिलती हैं। इसलिये आपके सम्बंध में कूपमण्डूक, तराजू के मेंढक भेड़चाल आदि उपाधि ठीक ही प्रचलित है।

आज आपका समाज मानव समाज नहीं, हिन्दू समाज मुसलिम समाज है। आपका धर्म मानव धर्म नहीं, सनातनधर्म इस्लाम धर्म है। आपकी जाति मनुष्य नहीं, गूजर कोली, ब्राह्मण, वैश्य, क्षत्रिय, चमार है।

आपकी सभ्यता मानव सभ्यता नहीं, इंग्लिश एटिकेट है। असल बात यह है कि आप मनुष्य ही नहीं हैं, और न जाने क्या-क्या हैं। आप में एक खूबी है, मनुष्य हृदय और मस्तिष्क आवश्यक है और हृदय और मस्तिष्क की खुराक भी, पर आप इन सब के बिना भी जीते हैं, पर केवल जीते ही हैं, वे सर्वोच्च आनन्द, जिनकी जीवित प्राणी आकाँक्षा कर सकता है, आपको प्राप्त नहीं है। निर्दोष, शाँतिमय, सर्वांगपूर्ण जिन्दगी का मजा आपको चखने भर को नहीं मिलता। किसी प्रकार आपका जीवन तो स्थिर है पर उसमें जिन्दगी का नाम नहीं। अब भी यदि आप जीवन के सर्वोच्च आनन्दों को जानना चाहते हैं तो मजबूत बनें, महान बनें, और बनें शरीर तथा हृदय और मस्तिष्क वाले पूर्ण मनुष्य उस जीवन को, जिसमें जिन्दगी का नाम नहीं, और जो सड़ी गली चीजों से पूर्ण है, धता बतायें। जीवन की यह कोई साहित्यिक और शास्त्रीय व्याख्या नहीं सीधी सादी बात है-

हमने माना हो फरिश्ते शेरुजी।
आदमी होना बहुत दुश्वार है॥

📖 अखण्ड ज्योति अगस्त 1943 पृष्ठ 9

सहज़ साधना

एक स्त्री ने दो चाकू ख़रीदे, एक को उसने सुरक्षित आलमारी में रख दिया और दूसरे को प्रयोग में हमेशा लिया सब्जी और फ़ल काटने में। दूसरा हमेशा पहले से जलता देख़ो कितना प्यार करती उसे सम्हाल के रखा मुझे रोज़ प्रयोग करती हैं।

वर्ष भर बाद एक दिन त्यौहार में दूसरे चाकू की अवश्यक्ता पड़ी, लेकिन कभी उपयोग न होने के कारण रखे रखे उसमे जंग लग गया आवशयक्ता पड़ने पर काम न आ सका।

मित्रों इसी तरह यदि हमने दीक्षा ली और नियमित उपासना, साधना, आराधना के साथ सत्साहित्य का नियमित अध्ययन नहीं किया तो हमको अपेक्षित सफलता नहीं मिलेगी। हमारी साधना में प्राण नहीँ आयेगा। हमारी गुरु दीक्षा को जंग लग जायेगा और हमारा उद्धार नहीं हो पायेगा।

साधना में प्राण आएगा ईश्वर के प्रति सच्चे प्रेम, नियमितता (जप,ध्यान और स्वाध्याय), सच्चे भाव, श्रद्धा आर पूर्ण विश्वास से।

👉 आज का सद्चिंतन 27 Feb 2019


👉 प्रेरणादायक प्रसंग 27 Feb 2019




👉 प्रज्ञा पुराण (भाग 1) श्लोक 24 से 26

वरिष्ठता नराणां तु श्रंद्धाप्रज्ञाऽवलम्बिता ।
निष्ठाश्रिता च व्यक्तित्वं सर्वेषामत्र संस्थितम्॥२४॥
न्यूनाधिकता हेतो: क्षीयते वर्धते च तत्।
उत्थानसुखजं पातदु:खजं जायते वृति:॥२५॥
अधुना मानवैस्त्यक्ता श्रेष्ठताऽऽभ्यन्तर स्थिता ।
फलत आत्मनेऽन्येभ्य: सटान् भावयन्ति ते॥२६॥

टीका:- मनुष्य की वरिष्ठा श्रद्धा, प्रज्ञा और निष्ठा पर अवलम्बित है। इन्हीं की न्यूनाधिकता से उसका व्यक्तित्व उठता-गिरता है। (व्यक्तित्व) के उठने-गिरने के कारण उत्थानजन्म सुखों और पतनजन्य दुखों का वातावरण बनता है। इन दिनों मनुष्यों ने आन्तरिक वरिष्ठता गँवा दी है। फलत: अपने तथा सबके लिए संकट उत्पन्न कर रहे है ॥२४-२६॥

व्याख्या:- श्रद्धा अर्थात् सद्भाव, प्रज्ञा अर्थात् सद्ज्ञान एवं निष्ठा अर्थात् सत्कर्म। तीनों का समन्वित स्वरूप ही व्यक्तित्व का निर्माण करता है। श्रद्धा अन्तःकरण से प्रस्फुटित होने वाले आदर्शो के प्रति प्रेम है। इस गंगोत्री से निःसृत होने वाली पवित्र धारा ही सद्ज्ञान और सत्कर्म से मिलकर पतितपावनी गंगा का स्वरुप ले लेती है। इन तीनों का विकास-उत्थान ही मानव की महामानव बनाता है तथा इस क्षेत्र का पतन ही उसे विकृष्ट स्तर का जीवनयापन करने को विवश करता है।

मनुष्य अपनी वरिष्ठता का कारण अपने वैभव-पुरुषार्थ, बुद्धिबल-धनबल को मानता है, जबकि यह मान्यता नितान्त मिथ्या है। व्यक्तित्व का निर्धारण तो अपना ही स्व-अन्त:करण करता है। निर्णय, निर्धारण यहाँ से होते हैं। मन और शरीर स्वामिभक्त सेवक की तरह अन्त:करण की आकांशा पूरी करने के लिए तत्परता और स्फूर्ति से लगे रस्ते हैं। उन्नति-अवनति का भाग्य-विधान यही लिखा जाता है।

अन्तःकरण से सद्भाव न उपजेगा तो सद्ज्ञान व सदाचरण किस प्रकार फलीभूत होगा ? वस्तुत: तीनों ही परस्पर पूरक हैं।

.... क्रमशः जारी
✍🏻 श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 प्रज्ञा पुराण (भाग १) पृष्ठ 11-12

👉 अशुभ चिंतन छोड़िये-भय मुक्त होइये

बहुधा नये कामों का आरम्भ करते समय एक किस्म का संकोच होने लगता है। कारण वही है- अशुभ आशंका। उस स्थिति में अशुभ आशंकाओं को अपने मन से झटक कर विचार किया जाना चाहिए। सफलता और असफलता दोनों ही सम्भावनाएँ खुली हुई हैं। फिर क्या जरूरी है कि असफल ही होना पड़ेगा। मन में आशा का यह अंकुर जमा लिया जाए तो असफलता भी पराजित नहीं कर पाती। उस स्थिति में भी व्यक्ति को यह सन्तोष रहता है कि असफलता कोई नये अनुभव दे गई है। इन अनुभवों से लाभ उठाते हुए आशावादी व्यक्ति दुबारा प्रयत्न करता रहता है और तब तक प्रयत्न करता रहता है, जब तक कि सफलता हस्तगत नहीं हो जाती।

असफलताओं और दुःखदाई घटनाओं को स्मृति पटल पर बार-बार लाने की अपेक्षा ऐसी घटनाओं का स्मरण करना चाहिए जो अपने आपके प्रति आस्था और विश्वास को जगाती हैं। प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में सफलता के और असफलता के दोनों ही अवसर आते हैं, दोनों तरह की परिस्थितियाँ आती हैं जो अच्छी और बुरी होती है। सुख-दुःख के क्षण सभी के जीवन में आते हैं। असफलताओं, कठिनाइयों और कष्टों को याद रखने तथा याद करने की अपेक्षा सफलताओं और सुखद क्षणों को याद करना आशा तथा उत्साह का जनक होता है। ये स्मृतियाँ व्यक्ति में आत्मविश्वास उत्पन्न करती हैं और जो व्यक्ति अपने आप में विश्वास रखता है, हर कठिनाई को सामना करने के लिए प्रस्तुत रहता है उसके लिए कैसा भय और कैसी निराशा?

भविष्य के प्रति आशंका, भय को आमंत्रण मनुष्य की नैसर्गिक क्षमताओं को कुँद बना देते हैं। अस्तु, जिन्हें जीवन में सफलता प्राप्त करने की आकांक्षा है उन्हें चाहिए कि वे अशुभ चिन्तन, भविष्य के प्रति आशंकित रहने और व्यर्थ के भयों को पालने की आदत से छुटकारा प्राप्त करें।

.... क्रमशः जारी
✍🏻 श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 अखण्ड ज्योति जून 1981 पृष्ठ 22
http://literature.awgp.org/akhandjyoti/1981/January/v1.22

मंगलवार, 26 फ़रवरी 2019

👉 आदमी बनो!

आपके जीवन में एक नहीं, अनेक बार ऐसे अवसर आये होंगे कि आपके साथ कोई पूरा आदमी हो और उसके विषय में किसी ने पूछा हो कि ‘आप की तारीफ?’ अर्थात् यह कौन है, तो आपने उत्तर दिया हो कि ‘आप अमुक फैक्टरी के मैनेजर हैं, अच्छे लेखक और वक्ता हैं अथवा डॉक्टर हैं, ग्रेजुएट हैं, गुजराती हैं, इत्यादि’ किन्तु किसी की तारीफ में आपने न तो कभी यह कहा होगा न कि किसी दूसरे के मुँह से सुना होगा, कि आप मनुष्य हैं। क्या हुआ यदि आपने किसी से पूछा हो-”आप कौन हैं?” तो किसी ने मजाक में कह ही दिया हो-”आदमी है।”

आप ऐसा जवाब सुनकर या तो खीझ गये होंगे या हंस दिया होगा। हमारा ख्याल है कि आपने कभी यकीन नहीं किया होगा कि वे कहने वाले सचमुच आदमी हैं। दुनिया में चाहे आज झूठ का बोल बाला हो पर यदि कहीं कुछ झूठ नहीं कही जाती तो केवल यही कि किसी को आदमी कहने के विषय में आज भी बड़े संयम और सत्य से काम लिया जाता है। एक साहब राजपूत हैं और साथ ही राजस्थानी भी हैं, हिन्दुस्तानी भी हैं, गोरे हैं-प्रोफेसर हैं, तो भी हो सकता है कि वे आदमी न हों। एक बच्चा ठोकर खाकर गिर पड़ता है, पीछे आने वाली लकड़ी उस गिरे हुए बच्चे को खून में लथपथ देखकर भी छोड़कर चली जाती है। इसलिये न कि वह उसका कोई नहीं है।

दिन दहाड़े एक भले आदमी को एक गुण्डा तंग कर रहा है, आप उसे क्यों नहीं बचाते। इसलिये कि आप उन दोनों से परिचित नहीं है या वे दोनों लड़ने वाले दूसरी कौम या मजहब के हैं। आप अपने बच्चे के लिये खिलौने लाये हैं, दूसरा एक बच्चा भी सामने खड़ा है, वह भी आपके बच्चे की तरह खिलौने के लिये लालायित है पर खिलौना आप उसे नहीं देते, इसलिये कि वह बच्चा आपका नहीं है, चाहे वह यह भेद न जानता हो। एक बेचारा रोगी दर्द से पीड़ित आपको कुर्सी के पास बैठा मुँह की तरफ देख रहा है आप उसे देखने से पहले सेठजी के कब्ज की शिकायत सुन रहे हैं। आप कैसे डॉक्टर हैं। उस दिन जो एक थका हुआ आदमी बिना पूछे आपकी सड़क पर पड़ी खाली चारपाई पर बैठ गया था तो आप उससे क्यों लड़ पड़े थे। इसलिये तो कि वह अनजान पंजाबी था यह आपकी रोज की आदतें हैं।

आप इन बातों में कभी अपनी कमजोरी या गलती अनुभव नहीं करते, इसलिये कि आप अभ्यस्त हो गये हैं उन हाकिमों की तरह जो क्लर्कों से 10-11 घण्टे काम लेकर भी उन पर इसलिये नाराज हो उठते हैं कि वे काम नहीं करते। तब सोलह आना हमारी समझ में आ गया कि आप सचमुच आदमी न होकर कुछ और ही हैं। आप अपने जन्म की स्थिति को चाहे न जानते हों, परन्तु किसी बच्चे को जन्म के समय अवश्य देखा होगा। आप बताइये, वह उस समय क्या था बेदर्दी डॉक्टर या निर्दय अफसर या बेईमान वकील? क्या उस समय वह मुसलमान था। उसकी सुन्नत हुई थी? क्या वह हिन्दू था? क्या उस समय उसके चोटी या जनेऊ या तिलक था?

📖 अखण्ड ज्योति अगस्त 1943 पृष्ठ 9

👉 आज का सद्चिंतन 26 Feb 2019


👉 प्रेरणादायक प्रसंग 26 Feb 2019


👉 प्रज्ञा पुराण (भाग 1) श्लोक 21 से 23

ईदृश्यां च दशायां तु स्वप्रतिज्ञानुसारत: ।
जाता नवावतारस्य व्यवस्थायाः स्थिति: स्वयम्॥२१॥
प्रज्ञावतारनाम्नां च युगस्यास्यावतारक:।
भूलोके मानवानां तु सर्वेषां हि मन:स्थितौ॥२२॥
परिस्थितौ च विपुलं चेष्टते परिवर्तनम्।
सृष्टिक्रमे चतुर्विश एष निर्धार्यतां क्रम:॥२३॥

टीका:- ऐसी दशा में अपनी प्रतिज्ञानुसार नये अवतार की व्यवस्था बन गई। प्रज्ञावतार नाम से इस का अवतरण भूलोक के मनुष्य समुदाय की मनःस्थिति एवं में भारी परिवर्तन करने जा रहा है । सृष्टि क्रम में इस प्रकार का यह चौबीसवाँ निर्धारण है॥२१-२३॥

व्याख्या:- आस्था संकट के दौर में भगवान हमेशा अपनी प्रतिज्ञा पूरी करते हैं, ऐसी परिस्थिति में ईश्वरीय, संत्ता के अवतरण का उद्देश्य एक ही रहता है । गीता में कहा हैं-

यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत । अभ्युत्थनमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ॥
परित्राणाय साधनां विनाशाय च दुष्कृताम् । धर्मसंस्थापनार्थाय संभवामि युगे-युगे॥

गोस्वामी तुलसीदास के अनुसार-
असुर मारि थापहिं सुरन्ह राखहिं निजश्रुति सेतु ।
जग विस्तारहिं विशद यश राम जनम कर हेतु ॥

भावार्थ यह है किं अधर्म का नाश और धर्म की स्थापना अवतार प्रक्रिया का मूलभूत प्रयोजन है। यह संकल्प विराट है और अनादिकाल से यथावत् चला आ रहा हैं।


.... क्रमशः जारी
✍🏻 श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 प्रज्ञा पुराण (भाग १) पृष्ठ 10-11

👉 अशुभ चिंतन छोड़िये-भय मुक्त होइये (भाग 3)

भय और मनोबल, अशुभ और शुभ चिन्तन आशंकाएं और आशाएँ सब मन के ही खेल हैं। इनमें पहले वर्ग का चुनाव जहाँ व्यक्ति को आत्मघाती स्थिति में धकेलता है वही दूसरे प्रकार का चुनाव उसे उत्कर्ष तथा प्रगति के लिए प्रेरित और प्रोत्साहित करता है। सर्वविदित है कि आत्मघात, व्यक्तित्व का हनन या असफलता का चुनाव व्यक्ति किन्हीं विवशताओं के कारण ही चुनता है। अन्यथा सभी अपना विकास, प्रगति और अपने अभियानों में सफलता चाहते हैं। जब सभी लोग सफलता और प्रगति की ही आकाँक्षा करते हैं तो मन में समाये भय के भूत को जगाकर क्यों असफलताओं को आमन्त्रित करता है? इसके लिए मन की उस दुर्बलता को उत्तरदायी ठहराया जा सकता है जिसे आत्मविश्वास का अभाव कहा जाता है।

प्रथम तो अशुभ चिन्तन और अमंगलकारी आशंकाओं से ही बचा जाना चाहिए। लेकिन यह स्वभाव में सम्मिलित हो गया है और अपने आपके प्रति अविश्वास बहुत गहरे तक बैठ गया तो उसके लिए भी प्रयत्न करना चाहिए। इस दिशा में सचेष्ट होते समय यह ध्यान रखा जाना चाहिए कि हम स्वयं ही भय की रचना करते हैं, उसे बुलाते और अपनी हत्या के लिए आमन्त्रित करते हैं। यह जान लिया गया तो यह समझ पाना भी कठिन नहीं है कि स्वयं ही भय को नष्ट भी किया जा सकता है।

अपने लगाये पेड़ को स्वयं काटा भी जा सकता है और सन्दर्भों में यह बात लागू होती हो अथवा नहीं होती हो किन्तु मन के सम्बन्ध में यह बात शत प्रतिशत लागू होती है कि वह तभी भयभीत होता है, जब जाने अनजाने उसे भयभीत होने की आज्ञा दे दी जाती है। यह आज्ञा अशुभ आशंकाओं के रूप में भी हो सकती है और अतीत के कटु अनुभवों तथा दुःखद स्मृतियों के रूप में भी। कहने का आशय यह कि किसी भी व्यक्ति के मन में उसकी इच्छा और अनुमति के विपरीत भय प्रवेश कर ही नहीं सकता। तो भीरुता को अपने स्वभाव से हटाने के लिए पहली बात तो यह आवश्यक है कि भय को अपने मनःक्षेत्र में प्रवेश करने की अनुमति न दी जाए।

.... क्रमशः जारी
✍🏻 श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 अखण्ड ज्योति जून 1981 पृष्ठ 21
http://literature.awgp.org/akhandjyoti/1981/January/v1.21

👉 स्वप्न का राजा

एक युवक ने स्वप्न देखा कि वह किसी बड़े राज्य का राजा हो गया है। स्वप्न में मिली इस आकस्मिक विभूति के कारण उसकी प्रसन्नता का ठिकाना न रहा। प्रात:काल पिता ने काम पर चलने को कहा, माँ ने लकडियाँ लाने की आज्ञा दी, धर्मपत्नी ने बाजार से सौदा लाने का आग्रह किया, पर युवक ने कोई भी काम न कर एक ही उत्तर दिया- 'मैं राजा हूँ, मैं कोई भी काम कैसे कर सकता हूँ?'

घर वाले बड़े हैरान थे, आखिर किया क्या जाये? तब कमान सम्भाली उसकी छोटी बहिन ने। एक- एक कर उसने सबको बुलाकर चौके में भोजन करा दिया, अकेले खयाली महाराज ही बैठे के बैठे रह गये। शाम हो गई, भूख से आँतें कुलबुलाने लगीं। आखिर जब रहा नहीं गया तो उसने बहन से कहा- 'क्यों री! मुझे खाना नहीं देगी क्या?' बालिका ने मुँह बनाते कहा- '
राजाधिराज! रात आने दीजिए, परियाँ आकाश से उतरेंगी तथा वही आपके लिए उपयुक्त भोजन प्रस्तुत करेंगी। हमारे रूखे- सूखे भोजन से आपको सन्तोष कहाँ होगा?'

व्यर्थ की कल्पनाओं में विचरण करने वाले युवक ने हार मानी और शाश्वत और सनातन सत्य को प्राप्त करने का, श्रमशील बनकर पुरुषार्थरत होने का, वचन देने पर ही भोजन पाने का अधिकारी बन सका।

ऐसे लोगों की स्थिति वैसी ही होती है, जिनका कबीर ने अपनी ही शैली में वर्णन किया है-

ज्यों तिल माही तेल है, ज्यों चकमक में आग।
तेरा साँई तुझ में, जागि सके तो जाग॥
ज्यों नैनों में पूतली, त्यों मालिक सर मांय।
मूर्ख लोग ना जानिये, बाहर ढूँढ़न जाँय॥

📖 प्रज्ञा पुराण भाग १

सोमवार, 25 फ़रवरी 2019

👉 रिश्तो को दूषित करता आज का मिडिया

आधुनिक टेलीविजन--

टेलीविजन पर जितने भी विज्ञापन आते है सबका एक ही उद्देश्य है लड़की . . . .
सेहत कुछ नही, संस्कार कुछ नही, देश का विकास नही , भ्रष्टाचार से कोई मतलब नही, बलात्कार से मतलब नही केवल और केवल लड़की को अपने जाल मे फंसाओ।
कुछ उदाहरण है:-
1 spirit पियो लड़की पटाओ
2 Raymond's या या कोई सा भी सूट पहनो लड़की पटाने के लिए
3 कोलगेट करो तो लड़की पटती है
4 क्लोजअप करो लड़की आर्कषित होती है
5 हिरो पैशन चलाओ तो लड़की कार छोड़ मोटर साइकिल पर आ जाती है
6 फेयर एंड हैडसम का एक ही फायदा लड़की ठीक यही फायदा फेयर एंड लवली का है लड़का पटाओ
7 स्कुटी चलाओ तो लड़के से आगे निकल जाओ
8 यहाँ तक गंजी तथा छोटे कपड़े पहनो तो भी लड़की
9 पाउडर, क्रिम या शेन्ट या डिओ सब का एक ही मकसद लड़की या लड़का
10 जिलेट ब्लेड से ढाड़ी बनाओ तो वहा भी लड़की सेहत और पैसे का कोई महत्व नही मतलब इन सब चीजो से कोई फायदा नही, देश का विकास नही।

बच्चों को रखे टीवी से दूर...

इन कामो मे सबसे ज्यादा विदेशी कम्पनियाँ है ये भारत के अरबो रुपये लूट कर अपने देश की अर्थव्यवस्था को कमजोर कर रही है और हमे महँगाई, बेरोजगारी के दलदल मे ढकेल रही है। जनता इस काम मे साथ दे रहे है। आप से यह निवेदन टीवी, देख कर न चले, समान न खरिदे। अपनी बुद्धि का प्रयोग करे और जरूरतानुसार खरीदारी करे। केवल स्वदेशी वस्तुओ का प्रयोग करे। अगर वह किसी गरीब का कुटीर उद्धोग हो तो और भी अच्छा, आप का पैसा किसी गरीब के पास जायेगा,उसका विकास होगा और आप का सेहत और पैसा दोनो बचेगा। अगर आप को क्वालीटी की चिन्ता है तो आप को बता दू इन विदेशीयो मे कोई गुण नही है,अगर आप इनका गहरा अध्धयन करो ये आप को पता चलेगा, ये सिर्फ हमे बेवकुफ बनाती है।

टेलिविजन नही यह इडियट बॉक्स है, और इस इडियट़ बॉक्स ने हमारे देश की युवा पिढ़ी के विचारो को पोलियो ग्रस्त कर दिया है।
टीवी पर दिखाये गये एड़, टीवी सीरियल, न्यूज़ चैनल, वेबसाइट्स, फ़िल्मे, में नारी को मन बहलाने की चीज की तरह दिखाया जाता है।

यकीन मानिये जिस दिन इस देश से माँतृ शक्ती विलुप्त हो गई उस दिन यह धरती वीरो, महाबलीयो, शूरवीरो, योद्धाओ, बुद्धजीवियों से शून्य हो जायेगी तब देश में केवल .... ही पैदा होंगे जो कुछ तो विपक्ष में, फिल्मो और JNU जैसे कॉलेजो में आसानी से मिल जायेंगे और इनकी आने वाली नस्ल तो...

क्या हम माँतृ शक्ती को पुनः सम्मान दिला सकते है?

👉 आज का सद्चिंतन 25 Feb 2019


👉 प्रेरणादायक प्रसंग 25 Feb 2019


शुक्रवार, 22 फ़रवरी 2019

👉 एक प्यार ऐसा भी....

नींद की गोलियों की आदी हो चुकी बूढ़ी माँ नींद की गोली के लिए ज़िद कर रही थी।

बेटे की कुछ समय पहले शादी हुई थी।

बहु डॉक्टर थी। बहु सास को नींद की दवा की लत के नुक्सान के बारे में बताते हुए उन्हें गोली नहीं देने पर अड़ी थी। जब बात नहीं बनी तो सास ने गुस्सा दिखाकर नींद की गोली पाने का प्रयास किया।

अंत में अपने बेटे को आवाज़ दी।

बेटे ने आते ही कहा, 'माँ मुहं खोलो। पत्नी ने मना करने पर भी बेटे ने जेब से एक दवा का पत्ता निकाल कर एक छोटी पीली गोली माँ के मुहं में डाल दी।
पानी भी पिला दिया। गोली लेते ही आशीर्वाद देती हुई माँ सो गयी।

पत्नी ने कहा,

ऐसा नहीं करना चाहिए। पति ने दवा का पत्ता अपनी पत्नी को दे दिया। विटामिन की गोली का पत्ता देखकर पत्नी के चेहरे पर मुस्कराहट आ गयी।

धीरे से बोली

आप माँ के साथ चीटिंग करते हो।

''बचपन में माँ ने भी चीटिंग करके कई चीजें खिलाई है। पहले वो करती थीं, अब मैं बदला ले रहा हूँ।

यह कहते हुए बेटा मुस्कुराने लगा।"

👉 आज का सद्चिंतन 22 Feb 2019


👉 प्रेरणादायक प्रसंग 22 Feb 2019


👉 दुःखों की गठरी घटे कैसे ?

दुःखों को कैसे बँटाया जाए और उनसे कैसे निबटा जाए, इस संबंध में बायजीद नामक एक सूफी फकीर ने बड़ी सुंदर कथा कही है। उस फकीर ने एक दिन प्रार्थना की, हे मेरे भगवान्! मेरे मालिक!! मेरा दुःख किसी और को दे। मुझे थोड़ा छोटा दुःख दे दो, मेरे पास बहुत दुःख हैं। प्रार्थना करते- करते उसको नींद लग गई। उसने स्वप्र देखा कि खुदा मेहरबान है। दुनिया के सब लोग आकर उसके पास दुःखों की गठरियाँ टाँगते चले जा रहे हैं। भगवान् कह रहे हैं कि अपनी गठरियाँ मेरे पास बाँध दो और मनचाही वह दूसरी लेते जाओ। बायजीद मुस्कराए, सोचा भगवान् ने मन की बात सुन ली। अब मैं भी अपनी दुःखों की गठरी बाँधकर हलके दुःखों वाली गठरी ले जाता हूँ। बायजीद ने आश्चर्य से देखा कि दुनिया में दुःख तो बहुत हैं। न्यूनतम दुःखों वाली गठरी भी उसकी गठरी से दुगनी थी। सपने में ही वह भागा कि अपनी वाली गठरी पहले उठा लूँ। कहीं ऐसा न हो कि मेरे जिम्मे दुगने दुःखों वाली गठरी आ जाए और मेरी गठरी कोई और ले जाए। माँगा तो था मैंने कम दुःख और कोई मुझे अधिक दुःख पकड़ा जाए।

यदि इस कथा का मर्म हमारी समझ में आ जाए, तो हम भगवान् से, अपने खुदा से, अपने इष्ट से कभी प्रार्थना नहीं करेंगे कि हमारे दुःख कम हों, हम कहेंगे कि औरों के दुःख कम हों, उनकी फलों में आसक्ति कम हो, वे विकर्मी नहीं दिव्यकर्मी बनें। दुःख हमारे हित में है। दुःख को तप बना लेना ज्ञानी का काम है। सुख को यही ज्ञानी योग बना लेता है। जो दुःख में, कष्ट में परेशान हो जाए, उद्विग्र हो जाए तथा सुख में भोग- विलासी बन जाए, वह अज्ञानी है। ज्ञान की पवित्र अग्रि में कर्मों को भस्म कर व्यक्ति यही पहला मर्म सीखता है कि मुझे औरों के लिए जीना चाहिए। जीवन भर परम पूज्य गुरुदेव यही शिक्षण हमें देते चले गए। उन्होंने कहा, ‘‘औरों के हित जो जीता है, औरों के हित जो मरता है, उसका हर आँसू रामायण, प्रत्येक कर्म ही गीता है।’’ इसी आग ने तो कइयों के अंदर परहितार्थाय मर मिटने की अलख जगा दी और देखते- देखते एक विराट् संगठन गायत्री परिवार का खड़ा होता चला गया।

👉 बिल्ली ने सपना देखा

बिल्ली ने सपना देखा कि वह शेर बन गई है और एक मोटी- सी बकरी का शिकार कर रही है। शिकार का स्वाद लेने भी न पाई कि उसने देखा कि पड़ोसी का मोटा कुत्ता भोंकता हुआ उसके ऊपर चढ़ दौड़ा। बिल्ली ने बकरी छोड़ दी और वह भाग कर मालिकन की पौली में आ छिपी। दूसरा सपना बिल्ली ने फिर देखा कि वह कुत्ता बन गई है और मालकिन के चौके में घुस कर स्वादिष्ट व्यंजनों पर हाथ साफ करने की तैयारी कर रही है, इतने में मालकिन आ पहुँची और उन्होंने मोटे बेलन से मार- मार कर उसे बेदम कर दिया और वह बुरी तरह कराहने लगी।

उनींदी बिल्ली को कराहते- कलपते देख मालकिन ने उसे जगाया। बिल्ली ने आँखें खोलीं तो कहीं कुछ न था। उसने मालकिन से कहा- 'अब मैं वही बनी रहूँगी, जो हूँ। रूप बदलने में तो खतरा ही खतरा रहता है। '

अपने स्वरूप को हम अच्छी तरह समझे रहें, कभी भूलें नहीं इसका स्मरण विभिन्न घटना- क्रम दिलाते रहते है।

📖 प्रज्ञा पुराण भाग १

👉 प्रज्ञा पुराण (भाग 1) श्लोक 18 से 20

अधुनास्ति हि संर्वत्राऽनास्था क्रमपरम्परा ।
अदूरदर्शिताग्रस्ता जना विस्मृत्य गौरवम् ॥१८॥
अचिन्त्यचिन्तना जाता अयोग्याचरणास्तथा ।
फलत: रोगशोकार्तिकलहक्लेशनाशजम् ॥१९॥
वातावरणमुत्पन्नं भीषणाश्च विभीषिका: ।
अस्तित्वं च धरित्यास्तु संदिग्धं कुर्वतेऽनिशम्॥२०॥

टीका:- इन दिनों सर्वत्र अनास्था का दौर है अदूरदर्शिताग्रस्त हो जाने से लोग मानवी गरिमा को भूल गये हैं । अचिन्त्य-चिन्तन और अनुपयुक्त आचरण में संलग्न हो रहे है, फलत: रोग, शोक, कलह, भय, और विनाश का वातावरण बन रहा है। भीषण- विभीषिकाएँ निरन्तर धरती के अस्तित्व तक को चुनौती दे रही हैं।

व्याख्या:- यहाँ भगवान आज की परिस्थितियों पर संकेत करते हुए अनास्था की विवेचना करते हैं व वातावरण में संव्याप्त रूप तथा भयावह परिस्थितियों का कारण भी श्रद्धा तत्व की अवमानना को ही बताते हैं। मनुष्य के चिन्तन और व्यवहार से ही आचरण बनता हैं। वातावरण से परिस्थिति बनती है और वही सुख-दुःख, उत्थान-पतन का निर्धारण करती हैं। जमाना बुरा है, कलयुग का दौर है, परिस्थितियाँ कुछ प्रतिकूल बन गयी हैं, भाग्य चक्र कुछ उल्टा चल रहा है-ऐसा कह कर लोग मन को हल्का करते हैं, पर इससे समाधान कुछ नहीं निकलता। जब समाज में से ही तो अग्रदूत निकलते हैं। प्रतिकूलता का दोषी मूर्धन्य राजनेताओं को भी ठहराया जा सकता है। पर भूलना नहीं चाहिए कि इन सबका उद्गम केन्द्र मानवों अन्तराल ही है। आज की विषम परिस्थितियों को बदलने की जो आवश्यकता समझते हैं, उन्हें कारण तह तक जाना होगा। अन्यथा सूखे पेड़, मुरझाते वृक्ष को हरा बनाने के लिए जड़ की उपेक्षा करके पत्ते सींचने जैसी विडम्बना ही चलती रहगी।

आज अस्त: के उद्गम से निकलने तथा व्यक्तित्व व परिस्थितियों का निर्माण करने वाली आस्थाओं का स्तर गिर गया है। मनुष्य ने अपनी गरिमा खो दी हैं और संकीर्ण स्वार्थपरता का विलासी परिपोषण ही उसका जीवन लक्ष्य बन गया है। वैभव सम्पादन और उद्धत प्रदर्शन, उच्छृंखल दुरुपयोग ही सबको प्रिय है। समृद्धि बढ़ रही है, पर उसके साथ रोग-कलह भी प्रगति पर हैं। प्रतिभाओं की कमी नहीं पर श्रेष्ठता संवर्धन व निकृष्टता उन्मूलन हेतु प्रयास ही नहीं बन पढ़ते। लोक मानस पर पशु प्रवृत्तियों का ही आधिपत्य है। आदर्शों के प्रति लोगों का न तो रुझान हैं, न उमंग ही। दुर्भिक्ष-सम्पदा का नहीं, आस्थाओं का है। स्वास्थ्य की गिरावट, मनोरागों की वृद्धि अपराध वृत्ति तथा उद्दण्डता सारे वातावरण में संव्याप्त है और ये ही अदृश्य जगत में उस परिस्थिति को विनिर्मित कर रही हैं, जिसके रहते धरती महाविनाश-युद्ध की विभीषिकाओं के बिल्कुल समीप आ खडी हुई है।

भगवान ने यहाँ स्पष्ट संकेत युग की समस्याओं के मूल कारण आस्था संकट की ओर किया है। सड़ी कीचड़ में से मक्खी, मच्छर कृमि-कीटक, विषाणु के उभार उठते हैं। रक्त की विषाक्तता फुंसियों के के रूपं में, ज्वर प्रदाह के रूप, में प्रकट होती हैं। ऐसें में प्रयास कहाँ हो ताकि मूल कारण को हटाया जा सके। अंत: की निकृष्टता को मिटाया जा सकें इसी तथ्य की विवेचना वे करते हैं।
  
.... क्रमशः जारी
✍🏻 श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 प्रज्ञा पुराण (भाग १) पृष्ठ 9-10

👉 अशुभ चिंतन छोड़िये-भय मुक्त होइये (भाग 2)

इसके उत्तर में जिन्न ने कहा कि “तुम्हीं ने मुझे बुलाया है और तुम्हीं ने मुझे डराने के लिए जिम्मेदार किया है। इसके लिए तुम्हीं जिम्मेदार हो, क्योंकि तुम्हीं ने मुझे उत्पन्न किया है।” जापान के बड़े बुजुर्ग अपने बच्चों को यह कहानी सुनाते हुए बताते हैं कि यह जिन्न लोगों के बुलाने पर अब भी आता है तथा उन्हें तरह-तरह से परेशान करता है। इस जिन्न का नाम भय है। कुल मिलाकर यह कि भय अपने ही मन की उपज है। कौन यह सोचने के लिए बाध्य करता है कि व्यापार में घाटा हो सकता है, परीक्षा में फेल हुआ जा सकता है, नौकरी में अधिकारी नाराज हो सकते हैं, काम धन्धा चौपट हो सकता है।

बिना किसी के कहने पर व्यक्ति स्वयं ही तो इस तरह की बातें सोचता है। अन्यथा क्या यह नहीं सोचा जा सकता कि व्यापार में पहले की अपेक्षा अधिक लाभ होगा, नौकरी में तरक्की हो सकती है, परीक्षा में पहले की अपेक्षा अच्छे नम्बरों से पास हुआ जा सकता है। व्यक्ति इस तरह का शुभ और आशाप्रद चिन्तन क्यों नहीं करता, क्यों वह अशुभ ही अशुभ सोचता है?

भविष्य की कल्पना करते समय शुभ और अशुभ दोनों की विकल्प सामने हैं। यह अपनी ही इच्छा पर निर्भर है कि शुभ सोचा जाए अथवा अशुभ। शुभ को छोड़कर कोई व्यक्ति अशुभ कल्पनाएँ करता है तो इसमें किसी और का दोष नहीं है, दोषी है तो वह स्वयं ही, इसलिए कि उसने शुभ चिन्तन का विकल्प सामने रहते हुए भी अशुभ चिन्तन को ही अपनाया।

अशुभ चिन्तन चुनने के पीछे भी कारण है। विगत के कटु अनुभवों, असफलताओं और कठिनाइयों से पीड़ित मन वर्तमान में भी लौट-लौटकर उन्हीं स्मृतियों को दोहराता रहता है और जाने-अनजाने अशुभ कल्पनायें करता रहता है। यह कल्पनाएँ ही व्यक्ति में भय उत्पन्न करती हैं। जबकि स्मरण के लिए अतीत के सुखद अनुभव, सफलताएँ और अनुकूलताएँ भी हैं। यदि उन्हें याद किया जाता रहे तो भविष्य के प्रति आशंकित होने के स्थान पर सुखद सम्भावनाओं से आशान्वित भी हुआ जा सकता है।

.... क्रमशः जारी
✍🏻 श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 अखण्ड ज्योति जून 1981 पृष्ठ 20

http://literature.awgp.org/akhandjyoti/1981/January/v1.21

गुरुवार, 21 फ़रवरी 2019

👉 क्या बनना चाहेंगे आप:-

कुछ दिनों से उदास रह रही अपनी बेटी को देखकर माँ ने पूछा, ” क्या हुआ बेटा, मैं देख रही हूँ तुम बहुत उदास रहने लगी हो…सब ठीक तो है न ?”

”कुछ भी ठीक नहीं है माँ … ऑफिस में बॉस की फटकार, दोस्तों की बेमतलब की नाराजगी ….पैसो की दिक्कत …मेरा मन बिल्कुल अशांत रहेने लगा है माँ, जी में तो आता है कि ये सब छोड़ कर कहीं चली जाऊं ….”, बेटी ने रुआंसे होते हुए कहा।

माँ ये सब सुनकर गंभीर हो गयीं और बेटी का सिर सहलाते हुए किचन में ले गयीं।

वहां उन्होंने तीन पैन उठाये और उनमे पानी भर दिया उसके बाद उन्होंने पहले पैन में कैरट, दूसरे में एग्स और तीसरे में कुछ कॉफ़ी बीन्स डाल दी.
फिर उन्होंने तीनो पैन्स को चूल्हे पे चढ़ा दिया और बिना कुछ बोले उनके खौलने का इंतज़ार करने लगीं.
लगभग बीस मिनट बाद उन्होंने गैस बंद कर दी, और फिर एक – एक कर के कैरट्स और एग्स अलग-अलग प्लेट्स में निकाल दिए और अंत में एक मग में कॉफ़ी उड़ेल दी.

“बताओ तुमने क्या देखा “, माँ ने बेटी से पूछा .
“कैरट्स, एग्स , कॉफ़ी … और क्या ??…लेकिन ये सब करने का क्या मतलब है .”, जवाब आया.

माँ बोलीं,” मेरे करीब आओ …और इन कैरट्स को छू कर देखो !”
बेटी ने छू कर देखा, कैरट नर्म हो चुके थे .
“अब एग्स को देखो ..”
बेटी ने एक एग हाथ में लिया और देखने लगी …एग बाहर से तो पहले जैसा ही था पर अन्दर से सख्त हो चुका-था.
और अंत में माँ ने कॉफ़ी वाला मग उठा कर देखने को कहा ….

” …इसमे क्या देखना है…ये तो कॉफ़ी बन चुका है …लेकिन ये सब करने का मतलब क्या है ….???’, बेटी ने कुछ झुंझलाते हुए पूछा.

माँ बोलीं , ” इन तीनो चीजों को एक ही तकलीफ से होकर गुजरना पड़ा — खौलता पानी. लेकिन हर एक ने अलग अलग तरीके से रियेक्ट किया .
कैरट पहले तो ठोस था पर खौलते पानी रुपी मुसीबत आने पर कमजोर और नरम पड़ गया, वहीँ एग पहले ऊपर से सख्त और अन्दर से सॉफ्ट था पर मुसीबत आने के बाद उसे झेल तो गया पर वह अन्दर से बदल गया, कठोर हो गया, सख्त दिल बन गया ….लेकिन कॉफ़ी बीन्स तो बिल्कुल अलग थीं …उनके सामने जो दिक्कत आयी उसका सामना किया और मूल रूप खोये बिना खौलते पानी रुपी मुसीबत को कॉफ़ी की सुगंध में बदल दिया…

” तुम इनमे से कौन हो?” माँ ने बेटी से पूछा .

” जब तुम्हारी ज़िन्दगी में कोई दिक्कत आती है तो तुम किस तरह रियेक्ट करती हो? तुम क्या हो …कैरट, एग या कॉफ़ी बीन्स ?”

बेटी माँ की बात समझ चुकी थी, और उसने माँ से वादा किया कि वो अब उदास नहीं होगी और विपरीत परिस्थितियों का सामना अच्छे से करेगी।

हमारे साहित्य को घर घर पहुँचाये
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
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https://youtu.be/tS_tnMrIM4U

👉 आत्मनिर्माण के पांच कार्यक्रम

यदि हम अपने व्यक्तित्व को श्रेष्ठता के ढांचे में ढालने के लिए सचमुच उत्सुक एवं उद्यत है तो अपने दैनिक कार्यक्रम में उत्कृष्ट विचारधाराओं को मस्तिष्क में बैठाने का एक नियमित विभाग बना ही लेना चाहिए। मन लगे चाहे न लगे, फुर्सत मिले चाहे न मिले, इसके लिए बलपूर्वक, हठपूर्वक समय निकालना चाहिए।

नित्य नियमित ईश्वर उपासना के बारे में हम सदा से कहते रहे हैं। चरित्र निर्माण की आधारशिला ही आस्तिकता है। ईश्वर विश्वास छोड देने से मनुष्य अंकुश रहित उन्मत्त हाथी की तरह  आचरण करता है, अपने लिए तथा दूसरों के लिए विपत्ति का कारण बनता है।इसलिए हममें से हर एक को किसी न किसी रूप में ईश्वर उपासना नित्य ही करनी चाहिए।

प्रत्येक पाठक को व युग निर्माण के प्रत्येक सदस्य को

( 1 ) अपने दैनिक जीवन में उपासना को स्थान देना चाहिए।
(2) स्वाध्याय के लिए कोई निश्चित समय निर्धारित करना चाहिए।
(3) नित्य युग निर्माण सत्संकल पढना चाहिए।
(4) सोते समय आत्मनिरिक्षण का कार्यक्रम नियमित रूप से चलाना चाहिए।
(5) दिन में समय समय पर कुविचारो से लडते रहने की तैयारी करनी चाहिए।

ये पांच कार्यक्रम आत्मनिर्माण की दृष्टि से अत्यंत आवश्यक है। युग निर्माण अपने आप से ही आरंभ करना है, इसलिए ये पांच कार्य जितनी जल्दी आरंभ किए जा सके उतना उत्तम है।

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 अखण्ड ज्योति अप्रैल 1963  पृष्ठ 24 25

👉 नारी का वर्चस्व- विश्व का उत्कर्ष

नर और नारी यों दोनों ही भगवान की दायीं-बायीं ऑंख, दायीं बायीं भुजा के समान हैं। उनका स्तर, मूल्य, उपयोग, कर्त्तव्यत, अधिकार पूर्णत: समान है। फिर भी उनमें भावनात्मक दृष्टि से कुछ भौतिक विशेषताएँ हैं। नर की प्रकृति में परिश्रम, उपार्जन, संघर्ष, कठोरता जैसे गुणों की विशेषता है वह बुद्धि और कर्म प्रधान है। नारी में कला, लज्जा, शालीनता, स्नेह, ममता जैसे सद्गुण हैं वह भाव और सृजन प्रधान है। यह दोनों ही गुण अपने-अपने स्थान पर महत्त्वपूर्ण है। उनका समन्वय ही एक पूर्ण व्यक्तित्व का निर्माण करता है।

सामयिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए नर और नारी की इन विशेषताओं का उपयोग किया जाता है। युद्ध कौशल में पुरुष की प्रकृति ही उपयुक्त थी सो उसे आगे रहना पड़ा। जो वर्ग आगे रहता है, नेतृत्व भी उसी के हाथ में आ जाता है। जो वर्ग पीछे रहते हैं उन्हें अनुगमन करना पड़ता हैं। परिस्थितियों ने नर-नारी के समान स्तर को छोटा-बड़ा कर दिया, पुरुष को प्रभुता मिली - नारी उसकी अनुचरी बन गई। जहॉं प्रेम सद्भाव की स्थिति थी वहॉं वह उस आधार पर हुआ और जहॉं दबाव और विवश्सता की स्थिति थी वहाँ दमन पूर्वक किया गया। दोनों ही परिस्थितियों में पुरुष आगे रहा और नारी पीछे।

नये युग के लिये हमें नई नारी का सृजन करना होगा, जो विश्व के भावनात्मक क्षेत्र को अपने मजबूत हाथों में सम्भायल सके और अपनी स्वाभाविक महत्ता का लाभ समस्त संसार को देकर नारकीय दावानल में जलने वाले कोटि-कोटि नर-पशुओं को नर-नारायण के रूप में परिणत करना सम्भव करके दिखा सकें। नारी के उत्कर्ष - वर्चस्व को बढ़ाकर उसे नेतृत्व का उत्तरदायित्व जैसे-जैसे सौंपा जायेगा वैसे-वैसे विश्व शान्ति की घड़ी निकट आती जायेगी ।

✍🏻 पं. श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 युग निर्माण योजना - दर्शन, स्वरूप व कार्यक्रम-६६ (४.२८)

ज्ञान रथ चलाने के लिये समय निकालिये
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
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https://youtu.be/VVgZ3pa-iMs

👉 Empower women, empower the world

Man and woman are like the two eyes or the two shoulders of our creator. They are identical in their level, value, utility, responsibilities, as well as rights. Generally speaking, industry, endurance, toughness, and a mentality of providing for the family are attributes more predominant in man, signifying intelligence and action. On the flip side, art, humility, compassion, and love are more prominent in woman, signifying creation and emotional intelligence. Both of these characteristics have equal importance and it is their confluence that creates a complete human being.

The important needs of the time are met by calling upon these manly as well as womanly characteristics. Traditionally, the manly qualities were needed to fight wars, and hence men fought wars. Leadership naturally fell into their hands, rendering women as the followers. Such circumstances created a divide and a hierarchy between the two sexes. Man became the leader, woman became the follower and the worshipper. Whether in the guise of worship and love for the man, or in an environment where she was helpless and explicitly suppressed, woman was exploited; man stayed ahead.

For the new era, we must develop the new woman, who can manage and mould the emotional landscape of the world with her strong hands. We must develop the woman who can use her innate abilities and demonstrate that it is indeed possible to transform the hell of subhuman existence into a heaven of grand-hearted humanness. To promote the ascent of woman toward a position of power and responsibility is to inch closer and closer to the goal of world peace.

✍🏻 Pt. Shriram Sharma Acharya
📖 YUG NIRMAN YOJANA – DARSHAN, SWAROOP & KARYAKRAM -66 (4.28)

👉 आज का सद्चिंतन 21 Feb 2019


👉 प्रेरणादायक प्रसंग 21 Feb 2019


👉 सिंह शावक गीदडों के बीच

एक गीदड़ ने सिंह के बच्चे को नवजात अवस्था में कहीं पड़ा देखा, उठाया और उसे अपने बच्चों के साथ पालने लगा। सिंह शावक गीदड़ों के बच्चों के साथ पलते- पलते उस परिकर में विकसित होते कभी स्वयं को नहीं पहचान पाया। एक बार यह परिवार शिकार को गया। मरे हाथी पर जैसे ही खाने के लिए टूटे वैसे ही स्वयं वनराज सिंह वहाँ पधार गये। उन्हें देखते ही गीदड़ परिवार कूच कर गया पर सिंह की पकड़ में सिंह शावक आ गया। सिंह ने उससे पूछ- "वह कैसे उनके साथ था और भयभीत क्यों होता है?"

शावक समझ ही नहीं पा रहा था कि यह सब क्या है? उसे भय से काँपते देख वनराज सब समझ गये। उन्होनें उसे पानी में अपनी परछाई दिखाई वे भी स्वयं अपना चेहरा। स्वयं दहाड़े और उसे भी स्वयं दहाड़ने को कहा। तब उसे अपने विस्मृत आत्म- स्वरूप का भान हुआ और वह सिंह बिरादरी में शामिल हो उमुक्त- भयमुक्त विचरण करने लगा।

ऐसे लोगों की संख्या अधिक होती है जो अपना स्वरूप भूलकर दिवास्वप्न अधिक देखते हैं।

📖 प्रज्ञा पुराण भाग १


ज्ञान के आभाव की आवश्यकता पूरी की जाए।
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
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https://youtu.be/zEdJw7vEYXM

👉 प्रज्ञा पुराण (भाग 1) श्लोक 16 से 17

जिज्ञासां नारदस्याथ ज्ञात्वा संमुमुदे हरि:।
उवाच च महर्षे त्वमात्थ यन्मे मनीषितम्  ॥१६॥
युगानुरूपं सामर्थ्य पश्यन्नन्न प्रसङ्गके ।
निर्धारणस्य चर्चाया व्यापकत्वं समीप्सितम् ॥१७॥

टीका- नारद की जिज्ञासा जानकर भगवान् बहुत प्रसन्न हुए और बोले-''देवर्षि आप तो हमारे मन की बात कह रहे हूँ । समय की आवश्यकता को देखते हुए इस प्रसंग पर चर्चा होना और निर्धारण को व्यापक किया जाना आवश्यक भी है ॥१६-१७॥"

व्याख्या- जो जिज्ञासा भक्त के मन में धुमड़ रही थी वही भगवान् के भी अंतःकरण में विद्यमान थी, भक्त हमेशा भगवान् की आकांक्षा के अनुरूप ही विचारते हैं एवं अपनी गतिविधियों का खाका बनाते हैं । सच्चे भक्त की कसौटी पर देवर्षि खरे उतरते हैं, जभी वे जन-सामान्य की समस्या को लेकर प्रभु से मार्गदर्शन माँगते हैं ।

ऋषिवर नारद से श्रेष्ठ और हो ही कौन सकता था जो सामयिक आवश्यकतानुसार अपने प्रभु के मन की इच्छा जानें व उनकी प्रेरणाओं-समस्याओं के समाधानों को जन-जन के गले उतार सकें।
 
.... क्रमशः जारी
✍🏻 श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 प्रज्ञा पुराण (भाग १) पृष्ठ 9

आपको संपर्क बढ़ाना पड़ेगा।
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
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https://youtu.be/ys6_JpyYi8Y

रविवार, 17 फ़रवरी 2019

👉 जरा सोचिये !!!

एक बार किसी रेलवे प्लैटफॉर्म पर जब गाड़ी रुकी तो एक लड़का पानी बेचता हुआ निकला। ट्रेन में बैठे एक सेठ ने उसे आवाज दी,ऐ लड़के इधर आ!!लड़का दौड़कर आया। उसने पानी का गिलास भरकर सेठ की ओर बढ़ाया तो सेठ ने पूछा, कितने पैसे में? लड़के ने कहा - पच्चीस पैसे।सेठ ने उससे कहा कि पंदह पैसे में देगा क्या?

यह सुनकर लड़का हल्की मुस्कान दबाए पानी वापस घड़े में उड़ेलता हुआ आगे बढ़ गया।
उसी डिब्बे में एक महात्मा बैठे थे, जिन्होंने यह नजारा देखा था कि लड़का मुस्कराय मौन रहा। जरूर कोई रहस्य उसके मन में होगा। महात्मा नीचे उतरकर उस लड़के केपीछे- पीछे गए। बोले : ऐ लड़के ठहर जरा, यह तो बता तू हंसा क्यों?

वह लड़का बोला, महाराज, मुझे हंसी इसलिए आई कि सेठजी को प्यास तो लगी ही नहीं थी। वे तो केवल पानी के गिलास का रेट पूछ रहे थे।

महात्मा ने पूछा - लड़के, तुझे ऐसा क्यों लगा कि सेठजी को प्यास लगी ही नहीं थी।

लड़के ने जवाब दिया - महाराज, जिसे वाकई प्यास लगी हो वह कभी रेट नहीं पूछता। वह तो गिलास लेकर पहले पानी पीता है। फिर बाद में पूछेगा कि कितने पैसे देने हैं?
पहले कीमत पूछने का अर्थ हुआ कि प्यास लगी ही नहीं है।

वास्तव में जिन्हें ईश्वर और जीवन में कुछ पाने की तमन्ना होती है, वे वाद-विवाद में नहीं पड़ते। पर जिनकी प्यास सच्ची नहीं होती, वे ही वाद-विवाद में पड़े रहते हैं।
वे साधना के पथ पर आगे नहीं बढ़ते.

अगर भगवान नहीं हे तो उसका ज़िक्र क्यो??
और अगर भगवान हे तो फिर फिक्र क्यों ???

समय दान ही युगधर्म
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
👇👇👇
https://youtu.be/N_eAjQRo25g

👉 आज का सद्चिंतन 17 Feb 2019


👉 प्रेरणादायक प्रसंग 17 Feb 2019


👉 जहाँ जाना है उसे ठीक बनाया

एक राज्य का यह नियम था कि जन साधारण में से जो राजा चुनकर गद्दी पर बिठाया जाय ठीक अनाया दस वर्ष बाद ऐसे निविड़ एकाकी द्वीप में छोड़ दिया जाय, जहाँ अन्न जल उपलब्ध न हो। कितने ही राजा इसी प्रकार अपने प्राण गवाँ चुके थे। जो अपना राज्यकाल बिताते थे उन्हें अन्तिम समय में अपने भविष्य की चिन्ता दु:खी करती थी, तब तक समय आ चुका होता था।

एक बार एक बुद्धिमान व्यक्ति जानबूझकर उस समय गद्दी पर बैठा जब कोई भी उस पद को लेने के लिए तैयार न था। उसे भविष्य का ध्यान था। उसने उस द्वीप को अच्छी तरह देखा व वहाँ खेती कराने, जलाशय बनाने, पेड़ लगाने तथा व्यक्तियों को बसाने का कार्य आरम्भ कर दिया। दस वर्ष में वह नीरव एकाकी प्रदेश अत्यन्त रमणीक बन गया। अपनी अवधि समाप्त होते ही राजा वहाँ गया और सुख पूर्वक शेष जीवन व्यतीत किया।

जीवन के थोडे़ दिन 'स्वतन्त्र चयन' के रूप में हर व्यक्ति को मिलते हैं। इसमें वर्तमान का सुनियोजन और भविष्य की सुखद तैयारी जो कर लेता है, वह दूरदर्शी राजा की तरह सुखपूर्वक जीता है।

📖 प्रज्ञा पुराण भाग १


स्वाध्याय एवं सत्संग।
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
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https://youtu.be/IIJG66Dp01E

👉 आत्मचिंतन के क्षण 17 Feb 2019

★ धैर्य का मंत्र उनके लिए लाभदायक है, जिनके कार्यों में विघ्न-बाधाएँ उपस्थित होती हैं और वे निराश होकर अपने विचार को ही बदल डालते हैं। यह निराशा तो मनुष्य के लिए मृत्यु के समान है। इससे जीवन की धारा का प्रवाह मंद पड़ जाता है और वह किसी काम का नहीं रहता। यदि निराशा को त्यागकर विघ्नों का धैर्यपूर्वक सामना किया जाय, तो असफलता का मुख नहीं देखना पड़े।

◆ जो लोग प्रत्यक्ष में पुण्यात्मा दिखाई देते हैं, वे भी बड़ी-बड़ी विपत्तियों में फँसते देखे गये हैं। सतयुग में भी विपत्ति के अवसर आते रहते थे। यह कौन जानता है कि किस मनुष्य पर किस समय कौन विपत्ति आ पड़े। इसलिए दूसरों की विपत्ति में सहायक होना ही कर्त्तव्य है। यदि कोई सहायता करने में किसी कारणवश समर्थ न हो तो भी विपत्तिग्रस्त के प्रति सहानुभूति तो होनी ही चाहिए।

◇ विचारों का परिष्कार एवं प्रसार करके आप मनुष्य से महामनुष्य, दिव्य मनुष्य और यहाँ तक ईश्वरत्त्व तक प्राप्त कर सकते हैं। इस उपलब्धि में आड़े आने के लिए कोई अवरोध संसार में नहीं। यदि कोई अवरोध हो सकता है, तो वह स्वयं ेका आलस्य, प्रमाद, असंमय अथवा आत्म अवज्ञा का भाव। इस अनंत शक्ति का द्वार सबके लिए समान रूप से खुला है और यह परमार्थ का पुण्य पथ सबके लिए प्रशस्त है। अब कोई उस पर चले या न चले यह उसकी अपनी इच्छा पर निर्भर है।

■ कठिनाइयों को उनसे दूर भाग कर, घबराकर दूर नहीं किया जा सकता। उनका खुलकर सामना करना ही बचने का सरल रास्ता है। प्रसन्नता के साथ कठिनाइयों का वरण करना आंतरिक मानसिक शक्तियों के विकसित होने का राजमार्ग है। संसार के अधिकांश महापुरुषों ने कठिनाइयों का स्वागत करके ही जीवन में महानता प्राप्त की है।

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

संसार का सबसे महत्वपूर्ण काम लोकमानस का परिष्कार।
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
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https://youtu.be/eT4Rj6sDAeU

👉 प्रज्ञा पुराण (भाग 1) श्लोक 10 से 15

पिपृच्छां च समाधातुं वैकुण्ठं नारदो गत:।
नत्वाSभ्यर्च्य च देवेशं देवेनापि तु पूजित: ॥११॥
कुशलक्षेमचर्चान्तेSभीष्टे चर्चाSभवद् द्वयो ।
संसारस्य च कल्याणकामना संयुता च या ॥१२॥

टीका- इस पूछताछ के लिए देवर्षि नारद बैकुण्ड लोक पहुँचे, नारद ने नमन-वन्दन किया, भगवान ने भी उन्हें सम्मानित किया। परस्पर कुशल-क्षेम के उपरान्त अभीष्ट प्रयोजनों पर चर्चा प्रारम्भ हुई जो संसार की कल्याण-कामना से युक्त थी ॥११-१२॥

नारद उवाच-

देवर्षि: परमप्रीत: पप्रच्छ विनयान्यित:।
नेतुं जीवनचर्या वै साधनामयतां प्रभो॥१३॥
प्राप्तुं च परमं लक्ष्यमुपायं सरलं वद।
समाविष्टो भवेद्यस्तु सामान्ये जनजीवने॥१४॥
विहाय स्वगृहं नैव गन्तु विवशता भवेत्।
असामान्या जनार्हा च तितीक्षा यत्र नो तप: ॥१५॥

टीका- प्रसन्नचित्त देवर्षि ने विनय पूर्वक पूछा-''देव! संसार में जीवनचर्या को ही साधनामय बना लेने और परमलक्ष्य प्राप्त कर सकने का सरल उपाय बतायें ऐसा सरल जिसे सामान्य जन-जीवन में समाविष्ट करना कठिन न हो। घर छोड़कर कहीं न जाना पडे़ और ऐसी तप-तितीक्षा न करनी पड़े जिसे सामान्य स्तर के लोग न कर सकें ॥१३-१५॥

व्याख्या- भगवान् से देवर्षि जो प्रश्न पूछ रहे हैं वह सारगर्भित है। सामान्यजन भक्ति, वैराग्य, तप का मोटा अर्थ यही समझते हैं कि इसके लिए एकान्तसाधना करने, उपवन जाने की आवश्यकता पड़ती है पर इस उच्चस्तरीय तपश्रर्या के प्रारम्भिक चरण जीवन साधना के मर्म को नहीं जानते। इसी जीवन-साधना, प्रभु परायण जीवन के विधि-विधानों को जानने, उन्हें व्यवहार में कैसे उतारा जाय इस पक्ष को विस्तार से खोलने की वे भगवान से विनती करतें हैं।

रामायण में काकभुशुण्डि जी ने इसी प्रकार का मार्गदर्शन गरुड़जी को दिया है। जीवन साधना कैसे की जाय इसका प्रत्यक्ष उदाहरण राजा जनक के जीवन में देखने को मिलता है।
 
.... क्रमशः जारी
✍🏻 श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 प्रज्ञा पुराण (भाग १) पृष्ठ 8

गुरुवार, 14 फ़रवरी 2019

👉 सोच

एक गांव में दो बुजुर्ग बातें कर रहे थे....

पहला :- मेरी एक पोती है, शादी के लायक है... BA  किया है, नौकरी करती है, कद - 5"2 इंच है.. सुंदर है
कोई लडका नजर मे हो तो बताइएगा..

दूसरा :- आपकी पोती को किस तरह का परिवार चाहिए...??

पहला :- कुछ खास नही.. बस लडका MA/M.TECH किया हो, अपना घर हो, कार हो, घर मे एसी हो, अपने बाग बगीचा हो, अच्छा job, अच्छी सैलरी, कोई लाख रू. तक हो...

दूसरा :- और कुछ...

पहला :- हाँ सबसे जरूरी बात.. अकेला होना चाहिए..
मां-बाप,भाई-बहन नही होने चाहिए..
वो क्या है लडाई झगड़े होते है...

दूसरे बुजुर्ग की आँखें भर आई फिर आँसू पोछते हुए बोला - मेरे एक दोस्त का पोता है उसके भाई-बहन नही है, मां बाप एक दुर्घटना मे चल बसे, अच्छी नौकरी है, डेढ़ लाख सैलरी है, गाड़ी है बंगला है, नौकर-चाकर है..

पहला :- तो करवाओ ना रिश्ता पक्का..

दूसरा :- मगर उस लड़के की भी यही शर्त है की लडकी के भी मां-बाप,भाई-बहन या कोई रिश्तेदार ना हो...
कहते कहते उनका गला भर आया..
फिर बोले :- अगर आपका परिवार आत्महत्या कर ले तो बात बन सकती है.. आपकी पोती की शादी उससे हो जाएगी और वो बहुत सुखी रहेगी....

पहला :- ये क्या बकवास है, हमारा परिवार क्यों करे आत्महत्या.. कल को उसकी खुशियों मे, दुःख मे कौन उसके साथ व उसके पास होगा...

दूसरा :- वाह मेरे दोस्त, खुद का परिवार, परिवार है और दूसरे का कुछ नही... मेरे दोस्त अपने बच्चो को परिवार का महत्व समझाओ, घर के बडे ,घर के छोटे सभी अपनो के लिए जरूरी होते है... वरना इंसान खुशियों का और गम का महत्व ही भूल जाएगा, जिंदगी नीरस बन जाएगी...

पहले वाले बुजुर्ग बेहद शर्मिंदगी के कारण कुछ नही बोल पाए...

दोस्तों परिवार है तो जीवन मे हर खुशी, खुशी लगती है अगर परिवार नही तो किससे अपनी खुशियाँ और गम बांटोगे....

.....अच्छी सोच रक्खे ...अच्छी  सीख  दे ......


Humari Hriday Ki Awaaz Anurodh,Prarthna Suniye
Pt. Shriram Sharma Acharya
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https://youtu.be/pssU6OFaQI0

👉 आज का सद्चिंतन 14 Feb 2019


👉 प्रेरणादायक प्रसंग 14 Feb 2019


👉 नचिकेता का तीसरा वर

यमराज द्वारा नचिकेता की निष्ठा पर प्रसन्न होकर उन्हें तीन वर दिये गये। उन्होंने मृत्यु भय से मुक्त होने के स्थान पर पिता के क्रोध की शान्ति पहला वर माँगा, परलोक के लिए स्वर्ग के साधनरूप अग्नि विज्ञान का दूसरा वर प्राप्त करके उन्होंने तीसरे वर के रूप में आत्मा के यथार्थ स्वरूप

और उसकी प्राप्ति का उपाय जानना चाहा। यमराज द्वारा वचन बद्ध होते हुए भी तीसरे वर का उसे पात्र न मानने के कारण उन्होंने उसे सब प्रकार के प्रलोभन दिए व बदले में कुछ और माँगने को कहा। पर आत्मतत्व तथा आत्मा के मरणोपरांत अस्तित्व संबंधी अनुभूति ज्ञान के अतिरिक्त उसने कुछ न मांगा। चयन की स्वतंत्रता सामने होते हुए भी नचिकेता ने सुखोपभोग, मुक्ति, पुनर्जीवन जैसे लाभ एक ओर होते हुए भी ब्रह्मविद्या व आत्म विद्या के ज्ञान को जानने को ही प्राथमिकता दी। पंचाग्नि विद्या को आत्मसात् कर साधना पथ का मार्गदर्शन मानव मात्र के लिए कर सकने में वे सफल हुए। ऐसे सौभाग्यशाली बिरले ही होते हैं।

📖 प्रज्ञा पुराण भाग १


बड़े कार्य के लिये सहयोगी चाहिये
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
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https://youtu.be/UZ2ypr0UAXE

👉 प्रज्ञा पुराण (भाग 1) श्लोक 5 से 10

एकदा हृदये तस्य जिज्ञासा समुपस्थिता ।
ब्रह्मविद्यावगाहाय काल उच्चैस्तु प्राप्यते ॥५॥
सञ्चितैश्च सुसंस्कारै: कठोरं व्रतसाधनम् ।
योगाभ्यासं तपश्चापि कुर्वन्त्येते यथासुखम् ॥६॥
सामान्यानां जनानां तु मनस: सा स्थिति: सदा ।
चंचलासित न ते कर्तुं  समर्था अधिकं क्वचित्॥७॥
अल्पेSपि चात्मकल्याणसाधनं सरलं न ते।
वर्त्म पश्यन्ति पृच्छामि भगवन्तमस्तु तत्स्वयम्॥८॥
सुलभं सर्वमर्त्यानां ब्रह्मज्ञानं भवेद यथा।
आत्मविज्ञानमेवापि योग-साधंनमप्युत॥९॥
नातिरिक्तं जीवचर्या दृष्टिकोणं नियम्य वा ।
सिद्धयेत्प्रयोजन लक्ष्यपूरकं जीवनस्य यत्॥१०॥

टीका- एक बार उनके मन में जिज्ञासा उठी-'उच्चस्तर के लोग तो ब्रह्मविद्या के गहन-अवगाहन के लिए समय निकाल लेते हैं। संचित सुसंस्कारिता के कारण कठोर व्रत-धारण, योगाभ्यास एवं तपसाधन भी कर लेते हैं। किन्तु सामान्य-जनों की मन:स्थिति-परिस्थिति उथली होती है। ऐसी दशा में वे अधिक कर नहीं पाते। थोडे़ में सरलतापूर्वक आत्मकल्याण का साधन बन सके ऐसा मार्गदर्शन उन्हें प्राप्त नहीं होता। अस्तु भगवान से पूछना चाहिए कि सर्वसधारण की सुविधा का ऐसा ब्रह्मज्ञान, आत्म-विज्ञान एवं योग साधन क्या हो सकता है जिसके लिए कुछ अतिरिक्त न करना पडे़, मात्र दृष्टिकोण एवं जीवन-चर्या में थोडा परिवर्तन करके ही जीवन-लक्ष्य को पूरा करने का प्रयोजन सध जाय' ॥५-१०॥

व्याख्या- जनमानस को स्तर की दृष्टि से दो भागों में विभाजित किया जाता है । एक वे जो तत्वदर्शन, साधन तपश्चर्या के मर्म को समझते हैं । कठोर पुरुषार्थ करने योग्य पात्रता भी उन्हें पूर्व जन्म के अर्जित संस्कारों व स्वाध्याय परायणता के कारण मिल जाती है परन्तु देवर्षि नारद न जन-जन में प्रवेश करके पाया कि दूसरे स्तर के लोगों की संख्या अधिक है जो जीवन व्यापार में उलझे रहने के कारण अथवा साधना विज्ञान के विस्तृत उपक्रमों से परिचित होने का सौभाग्य न मिल पाने के कारण अध्यात्मविद्या के सूत्रों को समझ नहीं पाते, व्यवहार में उतार नहीं पाते तथा ऐसी ही उथली स्थिति में जीते हुए किसी तरह अपना जीवन शकट खींचते हैं ।

विशेष लोगों के लिए तो विशेष उपलब्धियाँ हैं। ऐसे असाधारण व्यक्तियों की तो बात ही अलग हैं । उनके जीवन-उपाख्यान यही बताते हैं कि वें विशिष्ट विभूति सम्पन्न होते हैं ।
 
.... क्रमशः जारी
✍🏻 श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 प्रज्ञा पुराण (भाग १) पृष्ठ 6

 
आपके पूर्व संस्कारो से हमने आप को ढूंढा है
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
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https://youtu.be/v-bV4h-X9Eg

बुधवार, 13 फ़रवरी 2019

👉 आज का सद्चिंतन 13 Feb 2019


👉 प्रेरणादायक प्रसंग 13 Feb 2019


👉 ईमानदारी तथा बेईमानी

कुछ लोग संसार में ईमानदारी से जीते हैं, और बहुत से लोग झूठ छल कपट बेईमानी करते हैं। ईमानदार लोगों को धन, सम्मान आदि कम मिलता है। झूठे बेईमान लोग जैसे तैसे छल कपट से चालाकी से बहुत सा धन भी इकट्ठा कर लेते हैं और उनके बड़े-बड़े शौक भी पूरे हो जाते हैं।

ईमानदार लोगों के पास धन संपत्ति सुविधाएं कम होने से, वे अपने सारे शौक पूरे नहीं कर पाते। कोई बात नहीं।

किसी भी शौक को पूरा करने से जो सुख मिलता है वह क्षणिक होता है थोड़ी देर का होता है। उसमें पूर्ण तृप्ति का अनुभव नहीं होता। परंतु जो ईमानदारी से थोड़े साधन संपत्ति में भी संतोष करके जीते हैं, उनके सभी शौक भले ही पूरे नहीं होते, फिर भी वे चिंता रहित तनाव रहित मस्त जीवन जीते हैं।

यदि ईमानदारी तथा बेईमानी, इन दोनों की तुलना करें, तो ईमानदारी वाला जीवन अधिक अच्छा है। इसलिए ऐसे लोग सदा आनंदित रहते हैं। उनको भूख अच्छी लगती है, नींद अच्छी आती है, और वे अपने जीवन को सफलतापूर्वक जीते हैं। आप भी सोचिए दो में से कौन-सा जीवन अपनाना चाहेंगे।

मंत्र कैसे काम करता है
डॉ चिन्मय पंड्या
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https://youtu.be/BzPGs2I8iac

मंगलवार, 12 फ़रवरी 2019

👉 दिल करीब होते हैं

एक हिन्दू सन्यासी अपने शिष्यों के साथ गंगा नदी के तट पर नहाने पहुंचा. वहां एक ही परिवार के कुछ लोग अचानक आपस में बात करते-करते एक दूसरे पर क्रोधित हो उठे और जोर-जोर से चिल्लाने लगे. संयासी यह देख तुरंत पलटा और अपने शिष्यों से पूछा; “क्रोध में लोग एक दूसरे पर चिल्लाते क्यों हैं ?”

शिष्य कुछ देर सोचते रहे, एक ने उत्तर दिया, “क्योंकि हम क्रोध में शांति खो देते हैं इसलिए !” “पर जब दूसरा व्यक्ति हमारे सामने ही खड़ा है तो भला उस पर चिल्लाने की क्या ज़रुरत है, जो कहना है वो आप धीमी आवाज़ में भी तो कह सकते हैं”, सन्यासी ने पुनः प्रश्न किया.
कुछ और शिष्यों ने भी उत्तर देने का प्रयास किया पर बाकी लोग संतुष्ट नहीं हुए.

अंततः सन्यासी ने समझाया…
“जब दो लोग आपस में नाराज होते हैं तो उनके दिल एक दूसरे से बहुत दूर हो जाते हैं. और इस अवस्था में वे एक दूसरे को बिना चिल्लाये नहीं सुन सकते… वे जितना अधिक क्रोधित होंगे उनके बीच की दूरी उतनी ही अधिक हो जाएगी और उन्हें उतनी ही तेजी से चिल्लाना पड़ेगा.
क्या होता है जब दो लोग प्रेम में होते हैं ? तब वे चिल्लाते नहीं बल्कि धीरे-धीरे बात करते हैं, क्योंकि उनके दिल करीब होते हैं, उनके बीच की दूरी नाम मात्र की रह जाती है.”

सन्यासी ने बोलना जारी रखा,” और जब वे एक दूसरे को हद से भी अधिक चाहने लगते हैं तो क्या होता है ? तब वे बोलते भी नहीं, वे सिर्फ एक दूसरे की तरफ देखते हैं और सामने वाले की बात समझ जाते हैं.”


गुरुदेव का आशीर्वाद जिस जिस को मिला वो निहाल हो गया।
डॉ चिन्मय पंड्या
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https://youtu.be/3NaRdsNuyxU

👉 “गुरु कृपा चार प्रकार से होती है ।”

01 स्मरण से
02 दृष्टि से
03 शब्द से
04 स्पर्श से

जैसे कछुवी रेत के भीतर अंडा देती है पर खुद पानी के भीतर रहती हुई उस अंडे को याद करती रहती है तो उसके स्मरण से अंडा पक जाता है।
ऐसे ही गुरु की याद करने मात्र से शिष्य को ज्ञान हो जाता है।
यह है स्मरण दीक्षा।।

दूसरा जैसे मछली जल में अपने अंडे को थोड़ी थोड़ी देर में देखती रहती है तो देखने मात्र से अंडा पक जाता है।
ऐसे ही गुरु की कृपा दृष्टि से शिष्य को ज्ञान हो जाता है।
यह दृष्टि दीक्षा है ।।

तीसरा जैसे कुररी पृथ्वी पर अंडा देती है,
और आकाश में शब्द करती हुई घूमती है तो उसके शब्द से अंडा पक जाता है।
ऐसे ही गुरु अपने शब्दों से शिष्य को ज्ञान करा देता है।
यह शब्द दीक्षा है।।

चौथा जैसे मयूरी अपने अंडे पर बैठी रहती है तो उसके स्पर्श से अंडा पक जाता है।
ऐसे ही गुरु के हाथ के स्पर्श से शिष्य को ज्ञान हो जाता है।
यह स्पर्श दीक्षा है।।


गायत्री मंत्र की महत्ता
डॉ चिन्मय पंड्या
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https://youtu.be/0R0E7FMA1RA

👉 प्रेरणादायक प्रसंग 30 Sep 2024

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