शनिवार, 5 मार्च 2016

---धुएं की दिवार-----
 
(दिवार दिलों में नहीं हो)

अमीचंद ने कुलाह सिर पर जमाया, फिर शीशे के सामने खड़ा होकर पगड़ी बाँधने लगा। उसकी नज़र शीशे के बीचोंबीच पड़ी बारीक तरेड़ पर ठहर गईं। वह और भी उदास हो गया....टूटे शीशे में मुँह देखना शुभ नहीं होता...आज हाट से दूसरा शीशा ज़रूर खरीदकर लायेगा। बँटवारे के बाद आज पहली बार वह बेलेवालाँ जा रहा था, पर उसके मन में कोई उत्साह नहीं था। पहले हर महीने वह  बेलेवालाँ के हाट से सबके लिए ज़रूरी सामान लाता था, दुलीचंद और उसके बच्चों के लिए भी, पर आज.....। उसने खिड़की के बाहर उदास निगाह डाली, अपने पुश्तैनी मकान को दो हिस्सों में बाँटती दीवार उसके दिल को चीरती चली गई। बँटवारे वाले दिन से उसके और दुलीचंद के बीच बातचीत बिल्कुल बंद थी।

बाहर दुलीचंद गाय को दुहने की तैयारी कर रहा था। दूसरे अन्य सामान के साथ गाय छोटे भाई के हिस्से में गई थी। तभी अमीचंद की नज़र अपनी दस वर्षीया बेटी पर पड़ी, जो हाथ में लस्सी वाला बड़ा गिलास लिये दबे कदमों से अपने चाचा की ओर बढ़ रही थी। वह चिल्लाकर उसे रोकना चाहता था, पर आवाज़ गले में फँसकर रह गई। उसका दिल ज़ोर–ज़ोर से धड़कने लगा।

दुली ने मुस्करा कर अपनी भतीजी की ओर देखा, जवाब में वह भी धीरे से हँसी। दुलीचंद ने उसके हाथ से गिलास लपक लिया और चटपट उसे दूध की धारों से भर दिया। अमीचंद साँस रोके इस दृश्य को देख रहा था। ठीक उसी समय दुलीचंद की पत्नी घर से निकली। उसे पूरा विश्वास था कि बहू उसकी बेटी के हाथ से दूध का गिलास छीनकर पटक देगी और न जाने क्या–क्या बकेगी। बँटवारे के समय कैसे मुँह उघाड़कर उसके सामने आ खड़ी हुई थी। अमीचंद यह देखकर हैरान रह गया कि बहू के चेहरे पर हल्की मुस्कान रेंगी और कहीं पति उसे देख न ले, इस डर से उल्टे कदमों भीतर चली गई।

उसकी बेटी ने एक साँस में ही दूध का गिलास खाली कर दिया और वापस घर की ओर दौड़ पड़ी। अमीचंद की आँखें भर आईं । उसने वापस शीशे के सामने आकर तरेड़ पर हाथ फेरा तो एक बाल उसके हाथ में आ गया, और शीशा बिल्कुल साफ हो गया। उसे बेहद खुशी हुई, लगा घरके बीच की दीवार अदृश्य हो गई है।

अमीचंद उत्साह से भरा हुआ घर से बाहर आया और अड़ोस–पड़ोस को सुनाता हुआ ऊँची आवाज में बोला, ‘ ‘ओए दुली, मैं बेलेवालाँनजा रहा हूँ। तुम्हें जाने की जरूरत नहीं। मैं तुम सबके लिए सामान लेता आऊँगा।’’

शुभ प्रभात। आज का दिन आप के लिए शुभ एवं मंगलमय हो।

2 टिप्‍पणियां:

Ritesh Kumar Baranwal ने कहा…

एक उत्तम विचार जो व्यक्ति से समाज, देश और विश्व तक को बदल दे... धन्यवाद !

Allmotive ने कहा…

ati uttam lekh hai jo sabko sarahniye hai

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